महज 100 दिनों में डोनाल्ड ट्रम्प ने अमेरिका की अर्थव्यवस्था को संकट के मुहाने पर पहुंचा दिया है। टैरिफ युद्धों, महंगाई बढ़ाने वाली नीतियों और वैश्विक सहयोगियों से टकराव ने अमेरिका की आर्थिक स्थिरता को गहरी चोट पहुंचाई है। बाजार में भय का माहौल है, उपभोक्ता का विश्वास गिरा है और जनता का भरोसा ट्रम्प की आर्थिक नीतियों से टूट रहा है। ट्रम्प का दावा है कि वह अमेरिका को फिर समृद्ध बनाएंगे, लेकिन अब तक उनके फैसलों ने देश को अनिश्चितता और आर्थिक झटकों की ओर धकेल दिया है। कुल मिलाकर 100 दिन में अमेरिका को संकट के मुहाने पर ले आए हैं राष्ट्रपति ट्रम्प
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने दूसरे कार्यकाल के शुरुआती 100 दिनों में वह कर डाला जो कभी कल्पना भी नहीं की गई थी। उन्होंने अमेरिका की विश्वविख्यात अर्थव्यवस्था को संकट की कगार पर ला खड़ा किया। अमेरिका की वित्तीय सुरक्षित छवि को गहरी चोट पहुंची है और आम अमेरिकियों के बीच नेतृत्व को लेकर अविश्वास तेजी से बढ़ रहा है। 2024 के चुनाव में महंगाई से परेशान जनता ने पुराने ‘ट्रम्प युग’ की अपेक्षाओं के साथ उन्हें दोबारा चुना था। लेकिन ट्रम्प ने जान-बूझकर ऐसी आर्थिक नीतियां अपनाईं जिनसे महंगाई और बढ़ने, सप्लाई में बाधा आने और छोटे-बड़े व्यवसायों में अनिश्चितता का माहौल बनने का खतरा बढ़ गया है।
वे बीते जमाने के 19वीं सदी के ‘स्वर्ण युग’ को दोहराने की कोशिश कर रहे हैं, जिसमें अमेरिकी ताकत को ‘सुंदर’ टैरिफों के जरिए व्यापारिक प्रतिद्वंद्वियों को हराने का सपना देखा गया। लेकिन हकीकत यह है कि शेयर बाजार से खरबों डाॅलर का नुकसान हो चुका है, एयरलाइनों ने उड़ानों में कटौती कर दी है, खुदरा कंपनियां चीनी माल का आयात छोड़ने लगी हैं और बड़े काॅरपारेरेट समूह अपनी वार्षिक आय अनुमानों को कम कर रहे हैं।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अमेरिका की विकास दर का अनुमान घटा दिया है, फेडरल रिजर्व ने चेतावनी दी है कि कई कम्पनियों ने नई भर्तियां रोक दी हैं और वाॅलमार्ट के सीईओ ने ट्रम्प को बताया है कि यदि नीतियां नहीं बदलीं तो गर्मियों तक सप्लाई चेन ठप हो सकती है।
संकट के स्पष्ट संकेत
उपभोक्ताओं का विश्वास तेजी से चरमरा रहा है और अप्रैल में यह 1952 के बाद से चैथे सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है। ‘सीएनएन’ का ‘फियर एंड ग्रीड इंडेक्स’ पिछले एक महीने से लगातार ‘डर’ या ‘अत्यधिक डर’ के स्तर पर बना हुआ है। ट्रम्प की आर्थिक नीतियां न केवल कानूनी और संवैधानिक दृष्टि से सवालों के घेरे में हैं, बल्कि उनके एकतरफा टैरिफ युद्ध ने वैश्विक आर्थिक स्थिरता को भी डगमगा दिया है। उनका मानना है कि अमेरिका को हर सौदे में लाभ मिलना चाहिए, भले ही इसके लिए सहयोगियों से टकराव क्यों न मोल लेना पड़े। उनके इसी नजरिए के चलते अमेरिका ने अपने पुराने सहयोगियों को नाराज किया है। आर्थिक विश्लेषकों का मानना है कि ट्रम्प की शैली ‘जीत या हार’ के उस दर्शन से प्रेरित है जहां सामूहिक वैश्विक नेतृत्व नहीं, बल्कि अकेली अमेरिका की ताकत को सर्वोच्च माना जाता है।
अर्थव्यवस्था की अनिश्चितता
ट्रम्प का विश्वास है कि वे आर्थिक मामलों में विशेषज्ञ हैं, लेकिन फेडरल रिजर्व के प्रमुख जेरोम पाॅवेल पर उनके हमलों ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था की स्थिरता पर गम्भीर सवाल खड़े कर दिए हैं। ट्रम्प लगातार ब्याज दरों में बड़ी कटौती की मांग कर रहे हैं, जबकि विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि इससे महंगाई और बढ़ेगी।
चीन के साथ उनका टकराव भी अब आर्थिक युद्ध का रूप ले चुका है, जिससे वैश्विक व्यापारिक संतुलन खतरे में है। ट्रम्प का दावा है कि उनकी नीतियों से अमेरिका फिर से दुनिया का सबसे समृद्ध राष्ट्र बनेगा, लेकिन अब तक इसके परिणाम उलटे ही नजर आ रहे हैं।
अनिश्चित फैसले, बढ़ता भ्रम
ट्रम्प ने मनमाने टैरिफ लगाए, हटाए और फिर बदले, जिससे व्यवसायों में गहरा भ्रम फैला। उनका दावा है कि उन्होंने 200 व्यापार समझौते कर लिए हैं, जबकि वास्तविकता यह है कि चीन जैसे देशों के साथ व्यापारिक वार्ताएं लगभग ठप पड़ी हैं। हालत यह है कि ट्रम्प के आर्थिक प्रबंधन पर अमेरिकी जनता का भरोसा तेजी से गिर रहा है। ‘सीएनएन’ के एक ताजा सर्वे के अनुसार ट्रम्प की लोकप्रियता 41 प्रतिशत के निचले स्तर पर जा पहुंची है, जो 70 वर्षों में किसी भी राष्ट्रपति के शुरुआती 100 दिनों में सबसे खराब रिकाॅर्ड है।
डीलमेकिंग का खोखला वादा
जब ट्रम्प ने ‘आर्थिक स्वतंत्रता दिवस’ की घोषणा करते हुए नए टैरिफ लगाए थे तो दावा किया था कि अमेरिका जल्द ही अतुलनीय समृद्धि प्राप्त करेगा। लेकिन वास्तविकता में टैरिफ के जवाब में विदेशी बाजारों से भी जवाबी टैरिफ लगे और निवेशकों का अमेरिकी बाजार से भरोसा उठना शुरू हो गया है। ट्रम्प की टीम हालांकि अब भी दावा कर रही है कि ‘नई व्यापार क्रांति’ आने वाली है, लेकिन आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार कड़वी सच्चाई यह है कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार समझौते वर्षों लगाते हैं और जो भी सौदे होंगे वे शायद ट्रम्प की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरेंगे।
महंगाई का नया दौर
भले ही ट्रम्प कुछ समझौते कर लें, लेकिन उनकी नीतियां निश्चित रूप से अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए महंगाई बढ़ा देंगी। ट्रम्प खुद कह चुके हैं कि यदि अगले साल विदेशी वस्तुओं पर 20 प्रतिशत, 30 प्रतिशत या 50 प्रतिशत तक टैरिफ लगाना पड़े तो वह इसे ‘पूर्ण विजय’ मानेंगे। यानी अमेरिकियों के लिए हर चीज महंगी हो जाएगी। वे दावा करते हैं कि टैक्स में भारी कटौती इसे संतुलित करेगी, लेकिन अब तक कांग्रेस में इस पर कोई ठोस प्रगति नहीं हो पाई है। ट्रम्प ने यहां तक कह दिया है कि वे खुद वस्तुओं के दाम तय करेंगे, जो बाजार व्यवस्था के लिए खतरे की घंटी है। प्रसिद्ध निवेशक केन ग्रिफिन ने हाल ही में चेताया कि अमेरिका सिर्फ एक देश नहीं था, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक प्रेरणा था। लेकिन ट्रम्प की नीतियां उस ब्रांड को भी नुकसान पहुंचा रही हैं, जिस पर दुनिया ने लम्बे समय तक भरोसा किया।