उत्तराखण्ड सरकार में कैबिनेट मंत्री सौरभ बहुगुणा वर्तमान में राज्य के कृषि, पशुपालन, दुग्ध विकास, एवं ग्राम्य विकास जैसे महत्वपूर्ण विभागों का दायित्व सम्भाल रहे हैं। वे एक मजबूत राजनीतिक विरासत से आते हैं। उनके दादा स्वर्गीय हेमवती नंदन बहुगुणा देश के प्रतिष्ठित राजनेता और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे, जबकि उनके पिता विजय बहुगुणा 2012 में कांग्रेस की जीत बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और बाद में भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए। सौरभ बहुगुणा का राजनीतिक सफर एक युवा और जमीनी नेता के तौर पर पहचान बना रहा है। उन्होंने ग्रामीण विकास, कृषि आधुनिकीकरण और दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के क्षेत्र में कई पहल की है जो राज्य के दूरदराज के इलाकों को मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास कर रही है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में वे डबल इंजन सरकार के विजन को मजबूत करने के लिए सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। ‘दि संडे पोस्ट’ के सुनील भारद्वाज, संजय स्वार और दिव्या भारती ने सौरभ बहुगुणा से उनके मंत्रालयों में किए जा रहे कार्यों, राज्य के विकास विजन तथा उनकी राजनीतिक यात्रा पर विस्तृत बातचीत की
दिव्या भारती : आप एक राजनीतिक विरासत से आते हैं, हेमवती नंदन बहुगुणा और विजय बहुगुणा जैसे नेताओं की विरासत को आगे बढ़ाते हुए आपकी अपनी राजनीतिक पहचान किस दिशा में विकसित हो रही है?
देखिए, जो लिगेसी है वो आपने सही बोला कि हमारे स्वर्गीय दादाजी की है। हेमवती नंदन जी बहुत प्रख्यात नेता रहे हैं। पूरे देश और विश्व में उनका नाम रहा और उसे लिगेसी को आगे बढ़ाने में कहीं न कहीं मुझे एक मौका मिल रहा है। लेकिन लिगेसी आपको एक हद तक मदद करती है क्योंकि जब आप जनता के बीच में जाते हैं, चुनाव लड़ते हैं तो फिर आपका भविष्य आपकी परफाॅरमेंस, आपके रिश्ते, आपके काम पर मैटर करते हैं। मैं 2016 में सरकारी नौकरी से इस्तीफा देकर यहां पर पर आया था। पहला चुनाव 2017 में लड़ने में मैं कुमाऊं की नम्बर वन सीट सितारगंजज से 28,000 वोट से जीता और उसके बाद विधायक के रूप में 5 साल सितारगंज की सेवा करने का मौका मिला। 2022 में जब चुनाव लड़ा तो फिर से जनता ने मुझे आशीर्वाद दिया तो लिगेसी आपको एक हद तक पहुंचाने में मदद करती है लेकिन उसको आगे बढ़ाने में पाॅलीटिकल लाइफ को आगे ले जाने में आपका हार्ड वर्क, आपका कमिटमेंट टुवड्र्स योर स्टेट, आपके डेवलपमेंट वर्क क्या है, आपके रिश्ते कैसे हैं जनता से, वह बहुत मैटर करते हैं। कहीं न कहीं मुझे लगता है कि बहुगुणा नाम आगे बढ़ाने का मुझको जो मौका मिला है, उस लिगेसी को आगे ले जाने का मौका मिला है यह मेरे लिए काफी गर्व की बात है। मुझे बहुत अच्छा लगता है कि मैं एक ऐसे परिवार से हूं जिसने जनता की सेवा की है। सालों साल जनता के सुख-दुख में साथ खड़े रहे हैं। विकास को धरातल पर उतारने में अपना रोल निभाया है और मैं भी कोशिश यही कर रहा हूं कि दादाजी के पदचिन्हों पर चल सकूं और जनता की जितनी मदद हो सके कर सकूं।
दिव्या भारती : आप धामी मंत्रिमंडल के सबसे युवा मंत्री है, स्वर्गीय हेमवती नंदन बहुगुणा की विरासत और चुनौतीपूर्ण मंत्रालय का कितना दबाव महसूस करते हैं?
नहीं, देखिए मुझे कोई दबाव महसूस नहीं होता मैम, क्योंकि मंशा अच्छी हो तो सारे काम पाॅसिबल है। मैंने पूर्ण कोशिश की और मेरा मानना यह है कि जो विभाग है मेरे पास है चाहे वह पशुपालन विभाग हो, डेयरी विभाग हो, मत्स्य विभाग हो, यह सारे विभाग ऐसे हैं जो उत्तराखण्ड की दो सबसे बड़ी समस्याओं को साॅल्व करने में मदद कर सकते हैं। सबसे पहले पलायन की क्योंकि देखिए जो आज सबसे बड़ा दर्द उत्तराखण्ड झेल रहा है वह पर्वतीय क्षेत्रों से जो तराई क्षेत्रों की तरफ मूवमेंट हो रहा है और दूसरा बेरोजगारी का जो हमारे युवा है बेरोजगार घूम रहे हैं और कहीं ना कहीं मेरा मानना यह है यह तीन विभाग ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुधारने में बहुत इम्पाॅर्टेंट रोल प्ले कर सकते हैं तो अब तक मेरा फोकस यही रहा है कि इन तीन विभागों के माध्यम से पर्वतीय क्षेत्रों में लोगों को रोजगार से जोड़ा जा सके और मुझे खुशी है यह बताते हुए कि जब मैंने 2022 में फिशरीज मिनिस्टर के रूप में ज्वाइन किया था हम टाॅप 25 में नहीं थे। जीएसडीपी (सकल राज्य घरेलू उत्पाद) काॅन्ट्रिब्यूशन में लेकिन इस बार जो नम्बर आए हैं हम थर्ड फास्टेस्ट ग्रोइंग सेक्टर बन चुके हैं। कहीं न कहीं जो स्टेप्स हमने उठाए हैं मुख्यमंत्री जी के नेतृत्व में, लोगों को रोजगार से जोड़ने के लिए, लोगों को जो माननीय प्रधानमंत्री जी का एक सपना है कि फाम्र्स की आय दोगुनी हो, उस पर मुझे लगता है कि हमने रोल अच्छा प्ले किया है। जो दुग्ध संघ है उसमें हमने जब से उत्तराखण्ड बना है तब से हाईएस्ट एवर प्रोक्योरमेंट ‘आंचल’ का इस साल किया है। 2 लाख 80,000 लीटर के आस- पास हमने प्रोक्योर किया है। हमारे जितने भी दुग्ध संघ हैं, उसमें से एक दुग्ध संघ को छोड़कर जब मैंने ज्वाइन किया था एक सब दुग्ध संघ नुकसान में थे, आज सारे दुग्ध संघ लगभग लगभग 9 दुग्ध संघ प्राॅफिट में है, एक टिहरी दुग्ध संघ है हमारा जो थोड़ा-बहुत नुकसान में है। हमारा प्रोक्योरमेंट बढ़ा है, हमारी सेल्स बढ़ी है। ‘आंचल’ को हमने डायवर्सिफाई किया, लोगों को रोजगार से जोड़ा और उसके बाद गन्ना किसानों का जो हमारे तराई के क्षेत्र है, चाहे वो हरिद्वार जिला हो, ऊधमसिंह नगर जिला हो, देहरादून जिला हो, जो परमानेंटली गन्ना किसानों से प्रभावित है उसमें हमने बहुत अच्छा काम किया। हमारी सरकार ने पिछले 3 साल में किसानों का भुगतान पेराई सत्र के 3 महीने के अंदर कर दिया। पहले ये भुगतान एक-एक साल, डेढ़-डेढ़ साल नहीं होता था। हमने उत्तराखण्ड जब से बना है चीनी मिलों के आधुनिकीकरण के लिए एक अलग से फंड बनवाया और अभी तक हम 80 करोड़ चीनी मिलों के आधुनिकीकरण में खर्च कर चुके हैं। जिसका फायदा यह हुआ कि हमारे ब्रेकडाउन कम हो गए, हमारी रिकवरी बेटर हुई, हमारी सरकार का घाटा कम हुआ। पशुपालन विभाग में लगभग 2300 परिवार हम एक साल के अंदर गाॅटवेली प्रोजेक्ट से जोड़ चुके हैं। मत्स्य विभाग में लगभग 10,000 से ज्यादा परिवार आज हमारे साथ जुड़कर काम कर रहे हैं तो मुझे कोई दबाव महसूस नहीं होता। अच्छा लगता है कि जो जिम्मेदारी मिली थी कहीं न कहीं उसका रिजल्ट अब धरातल पर दिखना शुरू हो गया है।
संजय स्वार : सर आपके पास जो मंत्रालय हैं, खासकर पशुपालन, दुग्ध और मत्स्य इनके आर्थिक पहलू तो है ही इसके सामाजिक पहलू भी है, अगर हम यह कहे कि ये मंत्रालय हमारे उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों की आर्थिक रीढ़ भी हैं तो इन मंत्रालयों की भूमिका उत्तराखण्ड की जनता के लिए किन-किन क्षेत्रों में महत्वपूर्ण है?
मैंने आपको अभी बताया कि उत्तराखण्ड में ये तीनों सेक्टर है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए बहुत जरूरी है चाहे वो पर्वतीय हों या तराई का क्षेत्र हो। दुग्ध फेडरेशन के साथ लगभग 59 हजार परिवार उत्तराखण्ड में जुड़े हुए हैं। मत्स्य में हम थर्ड फास्टेस्ट ग्रोइंग सेक्टर सकल राज्य घरेलू उत्पाद में काॅन्ट्रिब्यूट कर रहे हैं। मत्स्य का स्कोप इसलिए भी बहुत बढ़ा है क्योंकि जैसे आपने बोला कि उत्तराखण्ड में नेचुरल रिसोर्सेस है, हमारे कोल्ड रनिंग वाटर बहुतायत में हैं और ट्राउट के लिए वह सबसे ज्यादा जरूरी होता है। हमने ट्राउट की फार्मिंग के लिए काफी बड़ी-बड़ी योजनाएं इस बार शुरू की हैं। हमने पहली बार उत्तराखण्ड में ‘मुख्यमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना’ की पाॅलिसी लाॅन्च की। पहले हमारे पूरे उत्तराखण्ड में कोई भी स्टेट की पाॅलिसी नहीं थी। हम 100 प्रतिशत केंद्र सरकार से गवर्नर होते थे। हमने 2023 के आखिरी में ‘मुख्यमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना’ लाॅन्च की जिसमें हमने मातृ शक्ति को ट्राउट से जोड़ने के लिए, फार्मिंग से जोड़ने के लिए 50 प्रतिशत की सब्सिडी का क्लाॅज रखा। उत्तराखण्ड के पर्वतीय इलाके एक्सेसिव रैनफाॅल से, लैंडस्लाइड से, अर्थक्वेक से जूझते हैं, तो जब भी हमारे रेस बेस टूट जाते थे तो कोई इंश्योरेंस की स्कीम नहीं थी। हमने ‘मुख्यमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना’ में पहली बार इंश्योरेंस की स्कीम रखी जहां पर 90 प्रतिशत अनुदान प्रदेश सरकार देगी 10 प्रतिशत फाॅर्मर देगा उसका रिजल्ट ये निकला कि बहुत सारे लोगों ने मत्स्य पालन शुरू किया। 10000 से ज्यादा लोग हमसे जुड़े। हम थर्ड फास्टेस्ट ग्रोइंग सेक्टर बने और एनिमल हसबेंडरी की जो आप बात कर रहे हैं उसमें दो हमारे ड्रीम प्रोजेक्ट थे ‘गोट वैली’ और ‘कुक्कुट वैली’ जिसमें हम चाहते थे कि पर्वतीय समाज के जो लोग हैं, दूरस्थ और दुर्गम क्षेत्र के जो लोग हैं, उनको रोजगार से जोड़ा जा सके। 2023 नवम्बर में मैंने पाॅलिसी लाॅन्च की थी ‘गोट वैली प्रोजेक्ट’ जिसमें हम 16 बकरियों का एक क्लस्टर बना कर एक व्यक्ति को देते हैं जिसमें पहली 5 बकरी वो लोन में लेता है और उसके बाद 10 बकरी और एक बकरा उसको सरकार फ्री में देती है और उसका रिजल्ट ये है कि डेढ़ साल के अंदर-अंदर हम 3200 से ज्यादा परिवार को इससे जोड़ चुके हैं। ये सभी बहुत अच्छी तरह से आमदनी कर रहे हैं। दूसरा सबसे बड़ा काम जो हमने किया है कि चाहे वो ट्राउट हो या गोट हो या मिल्क हो जब तक आपके पास मार्केट नहीं होगी तो आपको कहीं भी अच्छा रेट पाॅसिबल नहीं होता है। हमारी सरकार पूरे उत्तराखण्ड और पूरे देश में पहली सरकार है जिसने आईटीबीपी के साथ एक एमओयू साइन किया। हमारे आईटीबीपी के यहां तीन पोस्ट है उत्तरकाशी, चमोली और पिथौरागढ़। लगभग 10 से 11 हजार उनके सैनिक वहां पर पोस्टेड हैं और हमने इस सरकार में पहली बार आईटीबीपी से अनुबंध साइन किया कि अगले तीन साल के लिए वो हमसे डायरेक्ट प्रोक्योरमेंट करेंगे। हमारे अब जो फाॅर्मर है चाहे वो दुग्ध फाॅर्मर हो चाहे एनिमल हसबेंडरी से जो रिलेटेड हों, चाहे वो मत्स्य फाॅर्मर हो उनको एक डायरेक्ट मार्केट आईटीबीपी से मिली। एक उदाहरण के तौर पर मैं आपको बता रहा हूं कि जैसे उत्तरकाशी के जो हमारे किसान थे वो पहले अपनी भेड़-बकरी हिमाचल में बेचते थे और उनको 6 से 8 महीने तक पेमेंट नहीं मिलती थी, कभी-कभी एक साल हो जाता था, आज के दिन डायरेक्ट आईटीबीपी के लोग आते हैं, हमारे एनिमल हसबेंडरी विभाग के डाॅक्टर्स जाते हैं, उनके डाॅक्टर्स आते हैं, वो चिन्हित करते हैं और उसके बाद वो भेड़-बकरी लेकर जाते हैं और दो दिन के अंदर उनके अकाउंट में डीबीटी आता है। अब तक 2 करोड़ 78 लाख रुपए का हमलोग आईटीबीपी को सामान बेच चुके हैं और उसका डायरेक्ट बेनीफिशियरी सीधा किसान होता है, कोई बिचैलिया नहीं, कोई कमीशन नहीं, कोई बीच में पैसा खाने वाला नहीं।
दिव्या भारती : पलायन उत्तराखण्ड की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है, क्या आपके मंत्रालय ने कोई ऐसा विजन डाॅक्यूमेंट तैयार किया है जो अगले 10 वर्षों में पलायन की गति को नियंत्रित कर सके?
मैंने अभी जितनी भी पाॅलिसीज आपको बताई हैं वो पलायन को रोकने के लिए ही है क्योंकि जब लोगों को रोजगार उपलब्ध होगा उन्हीं के गांव में, जब लोगों को फैसिलिटीज उपलब्ध होगी तो कोई भी व्यक्ति अपना गांव छोड़ नीचे आने की सोचेगा। अभी जितनी भी पाॅलिसीज मैंने आपको गिनाई हैं, ‘गोट वैली’, ‘कुक्कुट वैली’, ‘दुग्ध फेडरेशन’ इत्यादि सभी पलायन की रोकथाम के लिए ही हैं। देखिए, दुग्ध संघों के जरिए हमने 8 से 11 रुपए की दूध की वृद्धि करी है जबकि एवरेज रेट जो बढ़ता था वो सवा रुपया प्रति लीटर बढ़ता था। हमने भूसे में 50 प्रतिशत सब्सिडी दी मिलर मिक्सचर में हमने 50 प्रतिशत सब्सिडी दी और उन सबका फर्क हमको देखने को मिला है कि लोगों का रुझान जो है दूध, फिश की तरफ और एनिमल हसबेंडरी की तरफ ज्यादा बड़ा है जिससे पलायन भी रुका है।
संजय स्वार : डेयरी विकास की आपने बात की। दूध के जो बायप्रोडक्ट्स हैं उसके लिए सम्भावनाएं बहुत ज्यादा हैं लेकिन ‘आंचल’ ने खुद को सिर्फ कुछ ही उत्पादों तक सीमित रखा है तो क्या बड़े ब्रांड्स का मुकाबला करने के लिए नए उत्पादों के क्षेत्र में नहीं जाना चाहिए ‘आंचल’ को?
आप बात सही कह रहे हैं। मेरा भी मानना मंत्री के रूप में यही था कि कोई भी विभाग जैसे मैं चीनी मिल से ही शुरुआत करता हूं, जो भी विभाग सिर्फ 6 महीने काम करेगा वो कभी भी प्राॅफिट मेकिंग विभाग नहीं हो सकता। चीनी मिलों में हम 6 महीना सिर्फ गन्ना पेराई सत्र करते थे फिर छोड़ देते थे दूसरी तरफ जो प्राइवेट कम्पनीज हैं वो इथेनाॅल पर भी काम कर रहे हैं, पावर प्लांट पर भी काम कर रहे हैं, वाइनरी पर भी काम कर रहे हैं तो हमारी ये कोशिश है कि हम पहले चीनी मिलों का माॅडर्नाइज करे और माॅडर्नाइज करने के बाद उसको एथेनाॅल की तरफ, पावर प्लांट की तरफ और वाइनरी की तरफ ले जाए जिसमें लगातार हमारी कोशिश जारी है। आपने ‘आंचल’ की बात की, मेरा भी मानना यही था कि ‘आंचल’ सिर्फ दूध में क्यों रहे, हमको कम्पीट करना है अगर ‘अमूल’ जैसे ब्रांड से ‘मदर डेयरी’ जैसे ब्रांड से ‘वर्का’ जैसे ब्रांड से, तो हमको भी डाइवर्सिफाइ करना पड़ेगा और हमने पिछले तीन साल में कम से कम 16 नए प्रोडक्ट्स में ‘आंचल’ को डाइवर्सिफाइ किया है। इसका बहुत अच्छा रिजल्ट हमको देखने को मिला है कि 2022 में जहां पे ‘आंचल’ का टर्नओवर 21 करोड़ रुपए था वो टर्नओवर 3 साल में 21 करोड़ से बढ़कर 53 करोड़ टच कर रहा है और जो हमारा प्राॅफिट 2.5 करोड़ का था ‘आंचल’ में वो आज लगभग 9 करोड़ टच कर रहा है। हमने नए कैफेस खोले हैं ‘आंचल’ के जिसमें हमने कोशिश की है ‘आंचल’ को लोगांे तक पहुंचा सके। लगभग 17 नए कैफेस हम उत्तराखण्ड में खोल चुके हैं। हमने पहली बार ‘आंचल’ को चार धाम रूट में टैप करने की कोशिश की है।
मेरे और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जी के बीच घनिष्ठ सम्बंध हैं, उनके सहयोग से फिशरीज विभाग का बजट 80 करोड़ से 280 करोड़ और एनिमल हसबेंडरी विभाग का बजट 5 करोड़ से 25 करोड़ तक बढ़ा है। चीनी मिलों के आधुनिकीकरण के लिए भी मुख्यमंत्री जी के समर्थन से 80 करोड़ रुपए का फंड स्वीकृत हुआ। मतभेदों की बात मीडिया की और मेरे ही कुछ मित्रों की देन है, इन बातों में कुछ भी सच्चाई नहीं राज्य तेजी से प्रगति पथ की ओर है। पशुपालन, दुग्ध और मत्स्य विभागों के माध्यम से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करते हुए 59,000 परिवारों को दुग्ध फेडरेशन से, 3200 से अधिक परिवारों को गोट वैली प्रोजेक्ट और 10,000 से अधिक परिवारों को मत्स्य पालन से जोड़ा गया। चीनी मिलों के आधुनिकीकरण के लिए पहली बार अलग फंड हेड बनाकर 80 करोड़ रुपए का निवेश किया गया, जिससे बाजपुर व किच्छा चीनी मिलों में मशीनों का नवीनीकरण हुआ और चीनी मिलों की रिकवरी दर में उल्लेखनीय सुधार। सितारगंज क्षेत्र में 250 से 300 करोड़ रुपए के विकास कार्यों के अंतर्गत अस्पतालों के उच्चीकरण, एजुकेशनल इंस्टीट्यूट्स की स्थापना और बस अड्डा निर्माण जैसे परियोजनाएं क्रियान्वित की गई हैं।
संजय स्वार : स्किल डेवलपमेंट जैसा महत्वपूर्ण विभाग आपके पास है जो युवाओं के रोजगार के लिए बहुत सहायक सिद्ध हो सकता है लेकिन उसके उत्तराखण्ड में अभी तक अपेक्षित परिणाम देखने को नहीं मिले हैं?
हम ऑलरेडी इसको कर रहे हैं। साल में हमारी कोशिश यही रही है कि जो हमारे आईटीआई के बच्चे हैं उनको कहीं न कहीं आज की तकनीक, मशीनों, इंस्ट्रक्टर्स के साथ जरूरत के हिसाब से ट्रेन किया जाए। हमने अपने आईटीआई को सेंटर आॅफ एक्सीलेंस के तौर पे चलाने की शुरुआत की। आज के दिन हम दो सेंटर आॅफ एक्सीलेंस चला रहे हैं, एक आईटीआई रोशनाबाद हरिद्वार फिलिप्स के साथ और दूसरा आईटीआई काशीपुर स्नाइडर के साथ। इनका बहुत अच्छा रिजल्ट देखने को मिला है। जो बच्चे इनमें एनरोल्ड हुए, अभी तक लगभग 140 बच्चों ने फिलिप्स के साथ काम किया है, ट्रेनिंग की और 140 में से 139 बच्चे वहां एम्पलाॅय हुए हैं, जो बच्चा आईटीआई करने के बाद पहले सिडकुल में 11-12 हजार की तनख्वाह पर लगता था उनको एवरेज 24000 रुपए की सैलरी पे फिलिप्स ने हायर किया। स्नाइडर ने लगभग 150 बच्चों को ट्रेन किया है उसमें से 130 बच्चों को भी हायर किया है। हमने पहली बार उत्तराखण्ड में इंडस्ट्रीज को टैपिंग की। हमने अशोक लीलैंड संग टाईअप किया कि आप अगले 3 साल के लिए हमारे आईटीआई बच्चों को इंटर्नशिप में रखेंगे। हर साल 1 हजार बच्चे और उसके बाद उनको जितने भी आपको ठीक लगे उतने आप परमानेंटली हायर करेंगे। लेकिन ये सारे इन कैम्पस रिक्रूटमेंट होंगे। हमारा बच्चा कहीं नहीं जाएगा। आज के दिन आप देखेंगे अगर जाकर
आईटीआई में हमारे अशोक लीलैंड की टीम आती है, चाहे वो पर्वतीय आईटीआई हो या तराई के आईटीआई हो वहां पर इंटरव्यू होते हैं। बच्चों के उनका इंटरव्यू होता है और उसके बाद सिलेक्शन होता है। पिछले साल अशोक लीलैंड ने 454 बच्चों को इंटर्नशिप में हायर किया। इनकैम्पस रिक्रूटमेंट जाकर किया और वो उन 454 बच्चों में से 110 बच्चों को परमानेंट नौकरी मिली। हमने इस बार नया एमओयू साइन किया है टाटा मोटर्स के साथ पंतनगर सेम प्रोसेस में कि टाटा मोटर्स हमारे 1000 बच्चों को हर साल इंटर्नशिप कराएगा, उनको फिर हायर करने में मदद करेगा। हमें 13 नए आईटीआई टाटा टेक्नोलाॅजी को दिए हैं जिसमें 75 करोड़ रुपए 5 साल में सरकार लगाएगी और 300 करोड़ रुपए टाटा टेक्नोलाॅजी लगाएगी। वो हमारे बच्चों को ट्रेन करेंगे, उनके
इंस्ट्रक्टर्स होंगे, उनकी मशीनें होंगी और उसके बाद वो हायर करेंगे। उत्तराखण्ड में पहली बार सहसपुर में स्किल हब सेंटर बन रहा है जो 96 प्रतिशत तैयार हो चुका है। वहां पर 9 सेंटर आॅफ एक्सीलेंस ट्रेड होंगे जहां पर टाॅप इंडिया की कम्पनीज अपने ट्रेड खोलेंगे। वहां हमने उत्तराखण्ड के बच्चों के लिए फ्री बोर्डिंग फैसिलिटी रखी हैं, फ्री फूड फैसिलिटी रखी है। उत्तराखण्ड का कोई भी बच्चा वहां आ सकता है। इन 9 सेंटर आॅफ एक्सीलेंस में ट्रेनिंग लेगा और उसके बाद वही से हायर होकर वो बाहर जाएगा। हमने पहली बार उत्तराखण्ड में
फॉरेन प्लेसमेंट सेल भी शुरू किया है। उत्तराखण्ड के बच्चे टैलेंटेड हैं, सक्षम हैं, उस डिमांड को पूर्ण करने के लिए हमने जापान में एल्डरलीकेयर में अभी तक 32 बच्चों को भेज चुके हैं जिनकी एवरेज सैलरी 1.75 से 2 लाख महीने तक है। हमने सिंगापुर, जर्मनी और यूके के साथ टाईअप किया है जहां हमारी बच्चों की ट्रेनिंग अभी चल रही है, लैंग्वेज ट्रेनिंग जैसे ही खत्म होगी 60-70 बच्चे हम इस साल विदेश भेजने की तैयारी में हैं।
संजय स्वार : सेवायोजन मंत्रालय आपके पास है। एक समय में यह नौकरी का एक जरिया हुआ करता था। संसाधन होने के बावजूद वो सिर्फ रोजगार मेले लगाने या पंजीकरण जैसे कार्यों तक सीमित रह गया है तो सरकार इतने संसाधन होने के बावजूद इनकी कोई और नई भूमिका क्यों नहीं तलाशी जैसे आउटसोर्सिंग एजेंसी भी क्यों नहीं बना देती?
पिछले एक साल से सेवायोजन विभाग आउटसोर्सिंग एजेंसी बन चुका है। हमने कैबिनेट से उसकी स्वीकृति कराई। मेरा भी मानना यही था कि जिस विभाग के पास आर्म स्ट्रेंथ है, 23 ऑफिसेज है, हमारे जिलों में उस विभाग को आउटसोर्सिंग करना चाहिए। हम पहले भी करते थे, यूपी के टाइम पर भी करते थे फिर बीच में थोड़े ऐसे ही प्रक्रिया आई कि हम सिर्फ एक पंजीकरण के विभाग बनकर रह गए। लेकिन अब जो है सेवायोजन एक फुलफ्लैश आउटसोर्सिंग एजेंसी है। अभी हमने सीआरसी और डीआरसी की जो रिक्रूटमेंट थी उसको हमारे सेवायोजन के माध्यम से किया। एनिमल हसबेंडरी विभाग में क्लास 4 के हमने जो पद निकाले वो सेवायोजन के माध्यम से हुए।
संजय स्वार : भू-कानून के प्रावधानों में ऊधमसिंह नगर और हरिद्वार जिले को बाहर रखा गया इसमें थोड़ा-सा कुछ लोगों को आशंका है तो इस बारे में आप क्या कहेंगे?
देखिए इसमें लोगों के मध्य एक भ्रम फैलाया जा रहा है कांग्रेस के माध्यम से। उत्तराखण्ड सरकार की प्राथमिकता है कि जमीन भी बचे और रोजगार भी उत्पन्न हों। ऊधमसिंह नगर और हरिद्वार ऐसे जिले हैं जो इंडस्ट्रीयल बेल्ट हैं। आज भी कम से कम हजारों उत्तराखण्डी लड़के इन इंडस्ट्रीयल बेल्ट्स में काम कर रहे हैं। चाहे वो पंतनगर सिडकुल में कर रहे हों, सितारगंज सिडकुल में कर रहे हों या सेलाकुई सिडकुल में कर रहे हों, हरिद्वार सिडकुल में कर रहे हों। हमने एक इन्वेस्टर्स समिट किया था 2022 में। उसमें 3-3.5 लाख के एमओयू साइन हुए थे। अगर आप इंडस्ट्रियल बेल्ट को समाप्त कर देंगे तो रोजगार कहां से लाएंगे? हमने 80 हजार करोड़ की ग्राउंडिंग की है। इंडस्ट्रीज कहां बनेंगी? वो इन्हीं क्षेत्रों में तो बनेंगी? युवाओं को अगर रोजगार से जोड़ना है, उत्तराखण्ड के जीएसडीपी को कंट्रीब्यूशन करना है, उत्तराखण्ड में अपने रेवेन्यू को बढ़ाना है तो उसके लिए इंडस्ट्रीज जरूरी है। हम उसको बंद नहीं कर सकते, उस सोर्स को खोल के रखना है और ये उत्तराखण्ड का सौभाग्य है कि यहां पर वर्कफोर्स अच्छी है लोग सिम्पल हैं, देश इसलिए सारी इंडस्ट्रीज उत्तराखण्ड की तरफ देख रही हैं। हमको ये सोर्स को बंद नहीं करके इसको आगे बढ़ाना है ताकि रोजगार उत्पन्न हो सके।
संजय स्वार : आपके पिता विजय बहुगुणा जी कांग्रेस छोड़कर भाजपा में गए क्या आज भी उनके राजनीतिक निर्णयों से आपकी भूमिका या पहचान पर असर पड़ता है?
नहीं, देखिए वो सीनियर हैं और पॉलिटिकल नाॅलेज उनको मुझसे ज्यादा है। मैं उनसे डिसकस जरूर करता हूं क्योंकि वो लीगल बैकग्राउंड से हैं जज रहे हैं, सीनियर वकील रहे हैं तो कहीं पर अगर ऐसी कोई परिस्थितियां आती हैं कि मुझे लगता है कि कोई एडवाइस की जरूरत है तो मैं जरूर उनसे एडवाइस लेता हूं लेकिन उन्होंने मुझे पूरी फ्रीडम दे रखी है कि आपके पास विभाग है, आप एक्सपीरियंस व्यक्ति हैं आपने 5 साल विधायक के रूप में भी सेवा की है तो आप अपने निर्णय खुद लीजिए लेकिन जो भी डिसीजन लेंगे वह जनता के फेवर का डिसीजन हो।
दिव्या भारती : 2027 के विधानसभा चुनाव को लेकर आपने क्या प्राथमिकताएं तय की हैं? और क्या आप किसी विशेष क्षेत्रीय मॉडल के जरिए उत्तराखण्ड को एक विकसित राज्य बनाने का रोडमैप प्रस्तुत करने की योजना रखते हैं?
देखिए, मेरा हमेशा से चुनाव लड़ने का एक ही तरीका रहा है कि जनता के बीच में रहो, लोगों के सुख- दुख में साथ ररहे, डेवलेपमेंट वर्क को धरातल पर उतारो और मुझे खुशी है कि मैं सितारगंज में तीन साल में लगभग 250 से 300 करोड़ रुपए के डेवलेपमेंट वर्क धरातल पर उतार चुका हूं। लोगों को रोजगार से जोड़ा गया है। लोगों का विकास हुआ, क्षेत्र का विकास हुआ है। एजुकेशनल इंस्टीट्यूट्स बने हैं। अस्पतालों का उच्चीकरण हुआ है, बस अड्डा बना है तो मेरी कोशिश यही रहेगी जो मेरे वादे थे चुनाव में 2022 के वो वादे पूर्ण हो और जनता के सुख-दुख में मैं खड़ा रहूं और कहीं न कहीं मुझे पूर्ण विश्वास है कि जब मैं 2027 में चुनाव लड़ने जाऊंगा तो मेरे कामों को देखते हुए मेरे रिश्तों को देखते हुए फिर भारतीय जनता पार्टी को उस क्षेत्र से चुनेगी।
सुनील भारद्वाज : युवा मतदाता वर्ग में आपकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है। क्या आप स्वयं को उत्तराखण्ड भाजपा में भावी नेतृत्व के रूप में देखते हैं? जैसा कि पिछले दिनों से काफी चर्चा आपकी जोरों से चल रही है?
देखिए, कोई चर्चा नहीं है। ये सब तो आप लोगों की देन है। लेकिन हमारा फर्ज है कि भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व, केंद्रीय नेतृत्व और प्रदेश नेतृत्व मुझको एक जिम्मेदारी दी है उत्तराखण्ड में इन 6 विभागों के माध्यम से लोगों को, उत्तराखण्ड को आगे बढ़ाने की, लोगों को रोजगार से जोड़ने पलायन का जो दर्द उत्तराखण्ड झेल रहा है उसको कहीं न कहीं राहत दिलाने की तो मैं पुरजोर कोशिश कर रहा हूं कि मैं हर जिले में जाकर घूम सकूं। हर जिले में लोगों से मिल सकूं। विभागीय योजनाओं को धरातल पर उतार सकूं। विभागीय योजनाओं का लोगों को फायदा मिल सके। मुझे अच्छा लगता है कि अगर आज मैं इस स्थिति में हूं कि मैं उत्तराखण्ड में अपने विभाग के माध्यम से प्रदेश के सकल घरेलू उत्पाद पलायन में और रोजगार उत्पन्न करने में अपनी भागीदारी दे पा रहा हूं तो मेरे लिए इतना बहुत है। मैं 37 साल की उम्र में राजनीति में आया था, कभी नहीं सोचा था कि 37 साल में विधायक बन जाऊंगा, कभी नहीं सोचा था कि 42 साल की उम्र में मंत्री बन जाऊंगा। मैं स्पोर्ट्समैन रहा हूं। मेरे टारगेट्स सेट हैं और मैं उन गोल्स में काम कर रहा हूं।
सुनील भारद्वाज : यह चर्चा आम रही है कि आपके और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के बीच सामंजस्य की कमी है। क्या आप इन बातों को केवल अफवाह मानते हैं या इनके पीछे कुछ वास्तविक राजनीतिक मतभेद हैं?
नहीं, मेरे कुछ राजनीतिक मित्र हैं जिन्होंने फैलाई हुई है ऐसी बातें। अगर मेरे और उनके बीच में सामंजस्य कम होता तो मेरी विधानसभा में 2.5 सौ करोड़ के काम कहां से हो गए होते, मेरे मुख्यमंत्री से आज से नहीं 2012 से बहुत घनिष्ठ रिश्ते हैं? अगल-बगल की कांस्टीट्यूएंसी से हम दोनों आते हैं। मेरे पिता जी से उनके बहुत अच्छे रिश्ते हैं। कुछ लोगों ने कोशिश की है रिश्तों को खराब करने की। लेकिन वो हमेशा मेरे बड़े भाई थे, हैं और उन्होंने मुझे गाइड भी किया। वो विधायक बने थे 2012 में। खटीमा से सितारगंज क्षेत्र लगा हुआ है तो मुझे राजनीति में आगे बढ़ने में, मुझे उन्होंने गाइड भी किया। मंत्री के रूप में भी बतौर चीफमिनिस्टर वो मुझसे बात करते रहते हैं, समझाते रहते हैं। डिस्कशन होते हैं और तभी आप देखिए जैसा मैंने आपको बताया कि मेरे फिशरीज विभाग का बजट है टोटल में 80 करोड़ रुपए का था वो आज 280 करोड़ रुपए में पहुंच गया। ये बिना मुख्यमंत्री जी के सहयोग से तो नहीं पहुंचा और मेरे एनिमल हसबेंडरी विभाग का जो बजट था वो 5 करोड़ से 25 करोड़ पहुंचा है तो मुख्यमंत्री जी की मदद से ही पहुंचा। अगर गन्ना चीनी मिल में जो हमने पहली बार माॅडर्नाइजेशन का फंड खुलवाया था और 80 करोड़ रुपए उसमें हमें माॅडर्नाइजेशन के लिए मिले तो बिना मुख्यमंत्री जी के अप्रूवल के तो नहीं मिल सकते थे। देखिए, राजनीतिक चर्चाएं चलती रहती हैं लेकिन हमारे और मुख्यमंत्री जी के रिश्ते बहुत घनिष्ठ थे, हैं और रहेंगे।
सुनील भारद्वाज : मुख्यमंत्री धामी डबल इंजन सरकार की बात करते हैं क्या आपको लगता है कि राज्य स्तर पर सभी मंत्री एक ही गति से और एक ही दिशा में काम कर पा रहे हैं?
देखिए, हर मंत्री अपनी बेस्ट कैपेबिलिटी से काम करने की कोशिश करता है। हो सकता है मेरी गति किसी से कम हो और वो मुझसे ज्यादा कैपेबल हो। लेकिन मुख्यमंत्री जी के कैबिनेट की खासियत है कि एक तो हमारा सामंजस्य बहुत अच्छा है एक-दूसरे से। हमारा रेपो बहुत अच्छा है जो काम धरातल पर होने हैं उसमें मुख्यमंत्री जी की तरफ से कोई स्टॉपेज नहीं होती। अप्रूवल के लिए जाए तो अप्रूवल फटाफट से मिल जाती हैं और उसका फायदा हमको धरातल में मिलता है क्योंकि पाॅलिसीज की फ्रेमिंग में, पॉलिसी की फाइनेंशियल अप्रूवल में मुख्यमंत्री जी हमको मदद कर देते हैं। जितने भी मंत्री हैं जिनके साथ मुझे काम करने का अवसर मिल रहा है, सभी मुझसे सीनियर हैं तो मैं अपनी टिप्पणी करूं वो ठीक नहीं है। लेकिन मुझे ये लगता है कि सभी मंत्री अपनी क्षमता के हिसाब से कही न कहीं अपने विभाग को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं।