मैं आपसे वोटिंग प्रोसेस खत्म होने के बाद क्या-क्या घटनाक्रम घटा उस पर आपसे कुछ बातें साझा करूंगा। कुछ ऐसे तथ्य हैं जो कभी प्रकाश में नहीं आएंगी। यदि मैं उन घटनाक्रमों को, उन बातों को प्रकाश में नहीं लाऊंगा, तो आने वाले समय के साथ अन्याय होगा। हो सकता है मैंने जो बातें कहीं हैं इससे एक-दो लोगों के दिल में ठेस लगे, मगर सत्य, सत्य है। उत्तराखण्ड की जनता को यह सत्य जानने का हक है। मेरे द्वारा उद्भाटित सत्य कल के उत्तराखण्ड की संरचना में मददगार होंगे। वोटिंग के परिणामों को लेकर मेरे साथियों के मन में जरूर कुछ शंकाएं थी। वह स्वाभाविक थी। केंद्रीय सत्ता का नग्न खेल और उनकी सशक्त एजेंसीज जिस प्रकार ‘साम-दाम, दंड-भेद’, सभी उपायों का सहारा ले रही थी। विधायकों को प्रभावित करने के लिए इन एजेंसीज में ऐसे अधिकारियों को चुन- चुनकर यहां भेजा गया जिनके रिश्तेदार कांग्रेस के विधायक थे। मैं उन विधायकों का नाम नहीं लेना चाहूंगा क्योंकि उससे उनकी रिश्तेदारी में खटास पैदा होगी। उनके रिश्तेदार अधिकारियों ने हमारे दो विधायकों को बहुत दबाव में लेकर प्रभावित करने की कोशिश की। मगर हमारे साथी दबाव झेल गए। सब लोग निष्ठा के साथ पार्टी के संग खड़े रहे केवल एक काली बकरी निकली। मुझे बहुमत हासिल करने का विश्वास था। हमने इस बात की तैयारी करके रखी थी कि मत विभाजन के बाद हम रिस्पना से गांधी पार्क तक पैदल चलते हुए लोगों से हाथ जोड़ते हुए जाएंगे। कुछ नगाड़े, रणसिंघा आदि का भी बंदोबस्त करके रखा हुआ था। मेरे मन में विचार था कि इस अवसर का उपयोग कर क्यों न हम विधानसभा चुनाव में जाने की तैयारियां करें। खुले संकेत मिलने लगे थे कि मतगणना के हमारे पक्ष में आते ही केंद्रीय सरकार फजीहत में बचने के लिए राष्ट्रपति शासन हटा देगी
हरीश रावत
पूर्व मुख्यमंत्री, उत्तराखण्ड
दिल्ली की सत्ता ने हमारी पार्टी के दो लोगों को उप मुख्यमंत्री पद का लालच दिया। मैंने उन लोगों से बात की, उन्होंने कहा नहीं हम पार्टी के साथ हैं। मैं उनका बहुत आभारी हूं। एक हमारे पार्टी के बड़े दलित नेता को उन्होंने अप्रोच किया वन प्लस वन लाइए, आप जो पद कहेंगे हम वह पद आपको देने के लिए तैयार हैं। लेकिन उन्होंने कहा नहीं, मैं पार्टी के साथ खड़ा हूं। मुझे यह सूचनाएं अलग-अलग सूत्रों से मिल रही थी। हम भी सजग थे। मगर हमारे घर के अंदर ही, मेरे विश्वास के अंदर ही इतना बड़ा डाका पड़ रहा है उसका मुझे अनुमान नहीं था। ‘साम-दाम-दंड-भेद’ सब अपनाए गए। आदरणीय मायावती जी ने अपने विधायकों को स्पष्ट निर्देश दिए कि किसी भी कीमत पर आपको हरीश रावत की सरकार को बचाना है, उनके ऊपर सारी ताकत लगा दी गई। लेकिन मायावती जी ने अपने एक विश्वासपात्र आदमी को भेज करके उनको कहीं और रुकने का निर्देश दिया और अपने पार्टी के उस नेता को यह आदेश दिया गया कि तुम्हारी ड्यूटी है ठीक 10ः50 बजे, विधायक विधानसभा के गेट के अंदर दिखाई देने चाहिए और जब मुझे हरीश रावत के वहां से सूचना आएगी तब तुम हट सकते हो और यह काम हर हालत में तुमको पूरा करना है और उन्होंने वह काम पूरा करके दिखाया। हमने पुलिस प्रोटेक्शन उनको जरूर प्रोवाइड किया, लेकिन उन्होंने अपनी पार्टी की नेता का आदेश मानकर के हमें बहुमत सिद्ध करने में मदद दी। उन्होंने अपने नेता के निर्देश का पालन किया। पीडीएफ के साथी भी दृढ़ता के साथ हमारे साथ रहे जबकि एक वरिष्ठतम अधिकारी ने कई तरीके के छल-छंद से हमारे एक मंत्रिमंडल के सहयोगी को तोड़ने का प्रयास किया। लेकिन वह सफल नहीं हो पाए। जब मुझे सूचना मिली कि मेरी ‘मुंह बोली बेटी’ को ही भाजपा ने मेरे खिलाफ अपने साथ मिला दिया है तो मुझे विश्वास नहीं आया। मैं विधानसभा के गेट पर खड़ा हो गया। मुझे पूरा विश्वास था ज्यूं ही वह मुझे देखेगी तो हमारे साथ आकर के खड़ी हो जाएगी। यहां तक कि जब विश्वास मत में वोटिंग हो रही थी उस समय भी मेरा मन कह रहा था कि नहीं वह हमारे पक्ष में वोट करेगी। लेकिन धन की ताकत बड़ी होती है और अब तो यह सारा उत्तराखण्ड जान गया है कि धन लूटने के मामले में वह भी असली जन्मजात भाजपाई है।
खैर यह मेरे विश्वास की हार थी, लेकिन विश्वास मत हासिल करने में हम हारे नहीं। भाजपा के दो साथियों ने हमारा साथ दिया, मैं उनका भी बहुत आभारी हूं और बिना किसी प्रलोभन के, एक साथी ने त्यागपत्र देकर के विधानसभा से और दूसरे ने बहुत समझाने के बाद भी हमारा साथ दिया। मैंने उनसे कहा कि आपको कई तरीके के नुकसान होंगे, उन्होंने कहा कोई भी नुकसान हो मैं आपकी सरकार को बचाना चाहता हूं, आप फिर से मुख्यमंत्री हों, इसलिए मैं आपकी मदद करना चाहता हूं और हमें वह मदद मिली। जब आज मैं उन बातों को याद कर रहा हूं तो मेरा मन उन दोनों महानुभावों के प्रति नतमष्तक है।
मैं आपसे वोटिंग प्रोसेस खत्म होने के बाद क्या-क्या घटनाक्रम घटा उस पर आपसे कुछ बातें साझा करूंगा। कुछ ऐसे तथ्य हैं जो कभी प्रकाश में नहीं आएंगी। यदि मैं उन घटनाक्रमों को, उन बातों को प्रकाश में नहीं लाऊंगा, तो आने वाले समय के साथ अन्याय होगा। हो सकता है मैंने जो बातें कहीं हैं इससे एक-दो लोगों के दिल में ठेस लगे, मगर सत्य, सत्य है। उत्तराखण्ड की जनता को यह सत्य जानने का हक है। मेरे द्वारा उद्भाटित सत्य कल के उत्तराखण्ड की संरचना में मददगार होंगे। वोटिंग के परिणामों को लेकर मेरे साथियों के मन में जरूर कुछ शंकाएं थी। वह स्वाभाविक थी। केंद्रीय सत्ता का नग्न खेल और उनकी सशक्त एजेंसीज जिस प्रकार ‘साम-दाम, दंड-भेद’, सभी उपायों का सहारा ले रही थी। विधायकों को प्रभावित करने के लिए इन एजेंसीज में ऐसे अधिकारियों को चुन-चुनकर यहां भेजा गया जिनके रिश्तेदार कांग्रेस के विधायक थे। मैं उन विधायकों का नाम नहीं लेना चाहूंगा क्योंकि उससे उनकी रिश्तेदारी में खटास पैदा होगी। उनके रिश्तेदार अधिकारियों ने हमारे दो विधायकों को बहुत दबाव में लेकर प्रभावित करने की कोशिश की। मगर हमारे साथी दबाव झेल गए। सब लोग निष्ठा के साथ पार्टी के साथ खड़े रहे केवल एक काली बकरी निकली। मुझे बहुमत हासिल करने का विश्वास था। हमने इस बात की तैयारी करके रखी थी कि मत विभाजन के बाद हम रिस्पना से गांधी पार्क तक पैदल चलते हुए लोगों से हाथ जोड़ते हुए जाएंगे। कुछ नगाड़े, रणसिंघा आदि का भी बंदोबस्त करके रखा हुआ था। मेरे मन में विचार था कि इस अवसर का उपयोग कर क्यों न हम विधानसभा चुनाव में जाने की तैयारियां करें। खुले संकेत मिलने लगे थे कि मतगणना के हमारे पक्ष में आते ही केंद्रीय सरकार फजीहत में बचने के लिए राष्ट्रपति शासन हटा देगी। मैंने मन ही मन सोचा था कि ऐसा होने पर हम विधानसभा भंग करने और चुनाव करने का प्रस्ताव करेंगे। मैं इस बात से सावधान था कि केंद्र सरकार के दबाव में माननीय राज्यपाल, मंत्रिमंडल की संस्तुति को लटका सकते हैं। हमने इस विषय में जो कानूनी आॅप्शंस थे वह सब तैयार करके रखे हुए थे। सारी कानूनी प्रक्रियाओं के बाद मेरा और मेरे सहयोगियों का काॅन्फिडेंस लेवल बहुत बढ़ गया था और मुझे इस बात का दृढ़ विश्वास था कि यदि इस समय हम चुनाव में जाएंगे तो हमको जीत मिलेगी।
मत विभाजन के बाद यह स्पष्ट हो गया कि हमारे साथ बहुमत है। मैंने धन्यवाद देने के लिए मंत्रिगणों, विधायकों व सहयोगी दलों के विधायकों को भी धन्यवाद देने के लिए विधानसभा में अपने कक्ष में आमंत्रित किया। मैं इस बहाने चुनाव को लेकर उनका मन जानना चाहता था। मंत्रिमंडल के साथियों में भी एक-दो लोगों में असमंजस था कि इस समय चुनाव में जाना चाहिए या कुछ और काम करवा लेने चाहिए। कई लोगों के अपने सड़कों के सवाल थे, स्कूलों के सवाल थे, हर कोई हमारा विधायक कुछ और विकास के काम करवा करके और अधिक विश्वास अर्जित करना चाहते थे। जनता के बीच में जाने से पहले। मुझे इस बात की भी जानकारी थी कि एक पूर्व मुख्यमंत्री हमारे मंत्रिमंडल के एक सहयोगी को बहुत दबाव में ले रहे हैं, क्योंकि वह उनसे पूर्व में थोड़ा उपकृत थे। उस उपकार का बदला उनसे चाहते थे और उनके ऊपर दबाव डाल रहे थे कि वह हमारा साथ छोड़े। बहरहाल वह सरकार के साथ विश्वास मत में दृढ़ता के साथ खड़े रहे। मैंने उनसे अलग से भी बात की तो उन्होंने चुनाव में जाने में हिचकिचाहट प्रकट की। मुझसे कहा कि पहले बहुत सारे काम हैं, वह काम कर लेंगे फिर इस पर विचार कर लेंगे। हमारे भी कुछ विधायक साथी भी ऐसे थे जो चुनाव में नहीं जाना चाहते थे, कुछ लोगों के स्कूलों के मामले अटके हुए थे। कुछ अन्यान्य प्रस्ताव कहीं न कहीं किसी विभाग में अड़े हुए थे। उनका कहना था कि यह सब काम कर लें फिर इस पर विचार करें। मैंने अपने कुछ सहयोगियों को इस काम पर लगा रखा था कि हम रिस्पना से हाथ जोड़ते हुए जनता जनार्दन को धन्यवाद देते हुए गांधी पार्क तक जाएंगे और गांधी बाबा को धन्यवाद देंगे कि उनकी कृपा से सच्चाई की जीत हुई। यह विचार मुझे त्यागना पड़ा। क्योंकि मंत्रिमंडल में किसी तरीके का भी भेद का फायदा उठाने के लिए भाजपा तैयार बैठी हुई थी और माननीय गवर्नर महोदय के ऊपर उनका दबाव स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा था। हमारे कई साथी चाहते थे कि हम चुनाव में जाएं मैंने उनको समझाया और उनसे कहा कि थोड़ी सी प्रतीक्षा करो। इसके लिए मेरे पास एक स्पष्ट बहाना था कि अभी मतदान ही हुआ है, मतों की गिनती तो सुप्रीम कोर्ट में कल होगी और जब माननीय सुप्रीम कोर्ट में गिनती होगी उसके बाद क्या निष्कर्ष निकलता है सुप्रीम कोर्ट का हमको उसका इंतजार करना चाहिए। उस समय एक भावनात्मक उद्वेग था, मैं पहले उसका फायदा लेना चाहता था। लेकिन जब बातचीत के बाद मेरे सामने एक दूसरा चित्र उभर कर के आया उससे मेरे मन में कई तरीके की शंकाएं पैदा हो गई। मैंने शंकाओं के साथ इस तरीके का निर्णय न लेने का फैसला किया और मैंने तदनरूप पार्टी की प्रभारी महोदया से बातचीत कर इस स्थिति से अवगत करा दिया। उन्होंने भी मुझसे कहा कि पूरी तरीके से चीजों के पुख्ता होने और सब लोगों को विश्वास में लेने के बाद ही कोई कदम उठाना उचित रहेगा। मगर एक बात निश्चित थी यदि हम इस सारी प्रक्रिया के एक-डेढ़ माह के अंदर चुनाव में जाते तो कांग्रेस की बहुत शानदार जीत होती। मैं यह नहीं चाहता था कि उत्तर प्रदेश के साथ हमारा चुनाव हो, क्योंकि उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री जी का बहुत कुछ स्टेक पर लगा हुआ था। मेरे मन में यह आशंका थी कि उत्तर प्रदेश में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति को आगे बढ़ाया जाएगा। हम भी उत्तर प्रदेश का हिस्सा रहे थे, जो साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की हवा उत्तर प्रदेश से चलेगी, उत्तराखण्ड उससे अछूता नहीं रहेगा और मेरी यह आशंका अंततोगत्वा सही साबित हुई। मेरी हार्दिक इच्छा थी कि किसी तरीके से हो, चाहे दो महीने पहले हो या दो महीने बाद या तीन महीने बाद हों, मगर हमारा चुनाव उत्तर प्रदेश के साथ न हो? लेकिन हो ही वही, जो राम रचि राखा।
क्रमशः
(यह लेखक के अपने विचार हैं।)