कांवड़ यात्रा, जो शिव भक्ति और आस्था का पवज़् मानी जाती है, आज अराजकता का दूसरा नाम बनती जा रही है। हरिद्वार से मेरठ, मुजफ्फरनगर से दिल्ली तक सड़क जाम, दुकानों में तोड़-फोड़, राहगीरों की पिटाई और पुलिस पर पथराव जैसी घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं। उत्तराखण्ड सरकार ने नकली साधुओं को पकडऩे के लिए ऑपरेशन ‘कालनेमी’ जैसी कार्रवाई जरूर शुरू की, लेकिन सवाल उठता है कि जो असली हुड़दंगी कांवडिय़ों की भीड़ में छिपकर कानून का मजाक उड़ा रहे हैं, दुकानदारों को आतंकित कर रहे हैं, उन पर कड़ी कार्रवाई क्यों नहीं हो रही? क्या धामी सरकार और योगी सरकार केवल दिखावटी कदम उठाकर पवित्र धार्मिक आयोजनों को हिंसक भीड़ के हवाले छोड़ रही हैं? क्या हिंदू धर्म का यह विकृत रूप हमारी सामूहिक चुप्पी से और मजबूत हो रहा है?
दिव्या भारती
कांवड़ यात्रा भारत के सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में से एक है, जो सावन महीने में हरिद्वार, ऋषिकेश, देवघर, उज्जैन जैसे तीर्थों से लाखों लोग गंगाजल लाकर शिवलिंग पर चढ़ाते हुए पूरी श्रद्धा से मनाते हैं। लेकिन बीते वर्षों में खासकर 2025 में, यह यात्रा आस्था से अधिक अराजकता, शक्ति-प्रदर्शन और हिंसा का मंच बनती दिख रही है। हरिद्वार, ऋषिकेश, मुजफ्फरनगर, मेरठ, दिल्ली, गाजियाबाद, शाहदरा, हर जगह से कांवड़ यात्रा के दौरान हिंसा, तोड़-फोड़, धमकाने और कानून को ठेंगा दिखाने की घटनाएं सामने आई हैं।
स्कूल बस में तोड़-फोड़ करते कांवडिय़ा
14 जुलाई 2025 की रात हरिद्वार के हरकी पैड़ी क्षेत्र में एक चश्मे की दुकान पर दो कांवडिय़ों ने हमला कर दिया। यह विवाद इस बात पर शुरू हुआ कि उन्होंने दुकान से चश्मा लेना चाहा, पर किसी बात को लेकर बहस हो गई। सीसीटीवी फुटेज में स्पष्ट दिखा कि मुकेश उर्फ झंडू और मुकेश उर्फ काणा, दोनों हरियाणा के फतेहाबाद निवासी, डंडे लेकर दुकान में घुसे, शीशे तोड़े, सामान तोड़ा और उपद्रव मचाया। पुलिस ने बाद में दोनों को गिरफ्तार किया, लेकिन प्रश्न उठता है कि जब इस घटना के पहले कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो चुके थे, स्थानीय पुलिस को इसकी भनक क्यों नहीं लगी? दुकानदारों ने कहा कि कांवडिय़ों की भीड़ इतनी अधिक थी कि वे डरे हुए थे, कोई शिकायत तक दर्ज नहीं कर पाया।
उसी रात दिल्ली-हरिद्वार हाईवे पर भी अराजकता का नजारा दिखा। कुछ कांवडिय़ों ने मामूली विवाद के बाद रास्ता जाम कर दिया, पुलिस ने जब हस्तक्षेप किया तो उन पर पथराव कर दिया गया, जिसमें एक
पुलिस कर्मियों घायल हो गया। क्या यह कानून का सीधा उल्लंघन नहीं? क्या सड़कों पर जाम लगाना, पथराव करना, पुलिस कमिर्यों को चोट पहुंचाना भारतीय दंड संहिता के तहत दंडनीय अपराध नहीं? उत्तराखण्ड पुलिस ने बाद में दो कांवडिय़ों को गिरफ्तार किया, लेकिन यह स्पष्ट नहीं कि भीड़ में शामिल अन्य लोगों की पहचान क्यों नहीं की गई?
मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश की घटना और भी चिंताजनक है। 11 जुलाई को एक युवक की बाइक हल्की सी एक कांवड़ से टकरा गई। वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि उस पर दर्जनों कांवड़िए टूट पड़े, उसे बेरहमी से पीटा गया, उसकी बाइक तोड़ी गई। यह घटना केवल व्यक्तिगत हिंसा नहीं थी, यह समाज में धार्मिक भीड़ के आतंक का प्रतीक थी। पुलिस मौके पर पहुंची, युवक को अस्पताल पहुंचाया, मामला शांत हुआ लेकिन क्या दोषियों को गिरफ्तार किया गया? क्या भीड़ में शामिल चेहरों की पहचान की गई? नहीं।
मेरठ में एक स्कूल बस पर हमला हुआ। ड्राइवर की गलती इतनी थी कि उसकी बस कांवड़ियों की कतार में हल्की सी घुस गई। गुस्साए कांवड़ियों ने बस के शीशे तोड़ दिए, ड्राइवर को पीटा, बच्चों में दहशत फैल गई। बच्चों के माता-पिता का कहना था कि उनके बच्चों को ‘शिवभक्तों’ से अब डर लगता है। क्या यही हिंदुत्व की शिक्षा है? क्या यही शिवभक्ति का स्वरूप है?
दिल्ली के शाहदरा में, 10 से 12 जुलाई के बीच, एक ई-रिक्शा चालक ने लगभग 1 किलोमीटर सड़क पर कांच के टुकड़े बिछा दिए, जिससे न सिर्फ कांवड़ियों को, बल्कि अन्य राहगीरों, मोटरसाइकिल सवारों, साइकिल चालकों, आम नागरिकों को खतरा हुआ। पुलिस ने एफआईआर दर्ज की, ई-रिक्शा चालक को पकड़ा, लेकिन प्रश्न यह है कि इतने बड़े पैमाने पर यह घटना हुई कैसे? क्या सड़क सुरक्षा महज मजाक बनकर रह गई है?
उत्तराखण्ड सरकार ने इस साल ऑपरेशन ‘कालनेमी’ शुरू किया है, जिसमें लगभग सौ से अधिक नकली साधुओं को गिरफ्तार किया गया। यह एक सकारात्मक पहल है, लेकिन असली चुनौती तो उन असली कांवडिय़ों से है जो धार्मिक जोश में मर्यादा भंग कर रहे हैं। नकली साधुओं को पकड़ना सरल है। लेकिन हजारों की भीड़ में से असली उपद्रवियों को पकड़ना प्रशासन के लिए चुनौती है और वही चुनौती हर साल टाल दी जाती है।
अब मूल प्रश्न उठता है कि धामी और योगी सरकारों की भूमिका क्या है? दोनों राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है, जो हिंदुत्व को अपनी विचारधारा का केंद्र मानती है। दोनों ही मुख्यमंत्रियों की छवि ‘सख्त प्रशासक’ की बताई जाती है। फिर कांवड़ यात्रा में होने वाली हिंसा पर चुप्पी क्यों? क्यों प्रशासन केवल सड़कों की सजावट, डीजे व्यवस्था, हेलीकॉप्टर से पुष्प वर्षा जैसी चीजों में व्यस्त रहता है, जबकि दुकानदार, राहगीर, स्कूली बच्चे और यहां तक कि पुलिसकर्मी भी हिंसा के शिकार होते हैं?
कांवडिय़ों का हुड़दंग : कार पर डंडा मारते
पुलिस के भीतर से जो बातें निकलती हैं, वे और भी चिंताजनक हैं। कई सिपाही और अधिकारी मानते हैं कि वे धार्मिक भीड़ के सामने असहाय हो जाते हैं। उन्हें ऊपर से निर्देश होते हैं कि ‘धार्मिक भावनाओं को ठेस न पहुंचे’, यानी छोटी-मोटी घटनाओं पर आंख मूंद लो। जब शीर्ष नेतृत्व ही यह संदेश देता है कि कांवड़ यात्रा के दौरान सख्ती नहीं करनी, तब निचला अमला क्या कर सकता है?
हर साल मीडिया में वही दृश्य आते हैं- कांवडिय़ों के डीजे पर नाचने के वीडियो, सड़कों पर भगवा रंग में रंगी हिंसा, दुकानों पर हमला, सड़क जाम, गाडिय़ों में तोड़-फोड़ और पुलिस-प्रशासन की लाचारगी। कुछ गिरफ्तारियां होती हैं, कुछ दिनों तक बहस चलती है, फिर सब भूल जाते हैं। अगले साल वही दोहराया जाता है।
ध्यान देने वाली बात यह है कि इस तरह की घटनाएं केवल प्रशासन की विफलता नहीं दर्शाती, यह समाज के भीतर फैल रही कट्टरता और अराजकता का भी संकेत हैं। जब धर्म का उपयोग सामाजिक शक्ति प्रदर्शन के लिए होने लगता है, तब उसकी आत्मा मरने लगती है। हिंदू धर्म अहिंसा, क्षमा और संयम की बात करता है, वह भीड़ के हाथों में हिंसा और डर का पर्याय बनता जा रहा है।
महादेव का अर्थ है- विनाश और सृजन, लेकिन विनाश का अर्थ है अहंकार का नाश, हिंसा का नहीं। जब कांवड़ियों के जत्थे रास्ते रोककर, दुकानें तोड़कर, राहगीरों को पीटकर अपने ‘भक्त’ होने का दावा करते हैं तो वे शिव की महिमा का नहीं, अपनी क्रूरता का प्रदशज़्न कर रहे होते हैं।
अब समय आ गया है कि हम यह समझें, शिवभक्ति का मतलब क्या है? क्या यह डीजे की धुनों पर नाचना, शराब पीकर सड़कों पर झूमना, कानून की धज्जियां उड़ाना, दुकानें तोड़ना, बसों पर हमला करना है? क्या भक्ति केवल शक्ति प्रदर्शन का साधन बन गई है?
ट्रैफिक नियमों की धज्जियां उड़ते कांवड़िया
धामी और योगी सरकारों को यह तय करना होगा कि वे किस प्रकार के हिंदुत्व का प्रतिनिधित्व करना चाहती हैं- उसका जो समाज में प्रेम, शांति, अनुशासन, और आस्था का संदेश देता है या उसका जो युवाओं को भीड़ में बदलकर अराजकता फैलाता है? हिंदू धर्म की महिमा उसके संयम, उसके विचारों की गहराई, उसके सार्वभौमिक प्रेम में है, न कि उसकी भीड़ के डर में। अगर कांवड़ यात्रा को हिंसक तत्वों से मुक्त नहीं किया गया तो वह भविष्य में केवल भय और अव्यवस्था का प्रतीक रह जाएगी। धर्म तभी सुंदर होता है, जब वह दूसरों के जीवन में शांति लाए, न कि उन्हें डराए।