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देश में लगभग पचास फीसदी पुलिसकर्मी मुसलमानों को मानते हैं अपराधी

देश के हर दो पुलिसकर्मियों में से एक पुलिसकर्मी मानता है कि मुस्लिमों का अपराध की तरफ स्वभाविक तौर पर झुकाव होता है। यह खुलासा एक सर्वे की रिपोर्ट में हुआ है। सर्वे की रिपोर्ट ‘2019 स्टेटस ऑफ पॉलिसिंग इन इंडिया’ के अनुसार, सर्वे में शामिल कुल पुलिसकर्मियों में से 35 प्रतिशत मानते हैं कि यदि भीड़ किसी गोकशी के मामले में आरोपी को सजा देती है, तो यह स्वभाविक बात है।

सर्वे की रिपोर्ट को रिलीज करते हुए जस्टिस चेलामेश्वर ने पुलिस की कार्यशैली पर कहा कि “एक सक्षम और समर्पित पुलिस अधिकारी पूरा  अंतर पैदा कर सकता है, लेकिन सवाल ये है कि उस पुलिसकर्मी को केस से कैसे जोड़ा जाए।”जस्टिस (रिटायर्ड) चेलामेश्वर ने भी माना कि अदालती कार्रवाई के दौरान उन्होंने भी महसूस किया है कि पुलिस द्वारा कई बार नियमों को दरकिनार कर दिया जाता है। पुलिसकर्मियों को दी जाने वाली ट्रेनिंग पर भी जस्टिस चेलामेश्वर ने सवाल उठाए और कहा कि “हम अपने अधिकारियों को क्या ट्रेनिंग देते हैं?

सिविल और क्रिमिनल प्रोसिजर कोड, द इंडियन पीनल कोड और एविडेंस एक्ट के 6 महीने के कोर्स के काफी नहीं माना जा सकता।”पुलिस को राजनीतिक  दबाव से दूर रखने के उपाय पर जस्टिस चेलामेश्वर ने कहा कि “किसी को  सजा के तौर पर ट्रांसफर कर देना एक समस्या है। यहां तक कि जजों को भी इस समस्या का सामना करना पड़ता है, जबकि वह एक संवैधानिक पद पर हैं, लेकिन वह भी ट्रांसफर की इस समस्या से सुरक्षित नहीं हैं।”

इसी रिपोर्ट के अनुसार 43 प्रतिशत पुलिसकर्मी मानते हैं कि किसी बलात्कार के आरोपी को भी भीड़ द्वारा सजा देना स्वभाविक प्रतिक्रिया है। यह रिपोर्ट पुलिसबल की संख्या और काम करने के हालात को लेकर तैयार की गई है। इस रिपोर्ट को एनजीओ कॉमन कॉज ने सरकार के लोकनीति प्रोग्राम के साथ मिलकर देश की विकसित सोसाइटी के अध्ययन के लिए तैयार किया है। यह रिपोर्ट कल यानी 27 अगस्त मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जे. चेलामेश्वर द्वारा रिलीज की गई थी ।

सर्वे देश के 21 राज्यों और 11000 पुलिस स्टेशन के 12,000 पुलिसकर्मियों और उनके परिजनों से बातचीत के आधार पर तैयार की गई  है।सर्वे में शामिल पुलिसकर्मियों में से 37 प्रतिशत का ये भी मानना है कि छोटे-मोटे अपराध के लिए सजा देने का अधिकार पुलिस को मिलना चाहिए और इसके लिए कानूनी ट्रायल नहीं होना चाहिए।सर्वे में शामिल 72 प्रतिशत पुलिसकर्मियों ने ये भी स्वीकार किया कि प्रभावी लोगों से जुड़े मामलों की जांच में उन्हें ‘राजनीतिक  दबाव’ का सामना करना पड़ता है।

 

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