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अखिलेश सहारे योगी की हिंदू वाहिनी

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहचान एक उग्र हिन्दुत्ववादी नेता के बतौर की जाती है। पूर्वी उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध गोरखपीठ के पीठाधीश्वर आदित्यनाथ ने 2002 में हिंदु युवा वाहिनी की नींव रखी थी। इस वाहिनी का उन्होंने तीव्रता से विस्तार कर अपनी राजनीतिक जमीन को उग्र हिंदुत्व के सहारे मजबूत करने का काम किया। योगी ने 1998 में पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा था। तब उनकी जीत का मार्जिन मात्र 26 हजार वोट रहे। 1999 में दूसरी बार लोकसभा के चुनाव में यह अंतर घटकर केवल नौ हजार रह गया था। 2004 में लेकिन हिंदु वाहिनी के कैडर ने इस अंतर को 1 ़42 लाख तक पहुंचा डाला। 2009 और 2014 के चुनाव तो योगी तीन लाख से ज्यादा वोटों से जीते। योगी के इस संगठन की तेजी से बढ़ रही लोकप्रियता ने भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कान खड़े कर दिए। जानकार बताते हैं कि उन्हें भाजपा आलाकमान और संघ की तरफ से हिंदू युवा वाहिनी को भंग करने के लिए कई बार कहा गया लेकिन योगी नहीं माने। 2017 में मुख्यमंत्री बनने के बाद लेकिन हिंदु युवा वाहिनी की गतिविधियों को योगी ने कम करना शुरू कर दिया। बताया जाता है ऐसा करने के लिए उन्हें संघ की तरफ से कहा गया था। दरअसल संघ और भाजपा किसी भी सूरत में उत्तर भारत पर अपनी पकड़ कमजोर नहीं करना चाहते हैं। महाराष्ट्र में शिवसेना का उभार हमेशा से ही संघ और भाजपा की आंखों में खटकता रहा है। कहा जाता है कि उत्तर प्रदेश की कमान योगी के हवाले करते समय ही यह सहमति योगी और भाजपा के मध्य बन गई थी कि हिंदु युवा वाहिनी को समाप्त कर दिया जाएगा। ऐसा ही हुआ भी है। सीएम बनने के बाद से ही हिंदु वाहिनी की गतिविधियों में योगी ने दिलचस्पी लेनी कम कर दी। नतीजा एक के बाद एक वाहिनी इकाईयों का बंद होना रहा। इसकी शुरुआत 2018 में बलरामपुर, मऊ और आजमगढ़ जिला इकाईयों के भंग होने से हुआ।

इस संगठन के गठन बाद योगी के नंबर दो बन उभरे सुनील सिंह की उपेक्षा की जाने लगी। सुनील हिंदु युवा वाहिनी के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं। बकौल सुनील सिंह मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही योगी ने उन्हें और वाहिनी के अन्य पदाधिकारियों की अनदेखी करनी शुरू कर दी थी। नतीजा धीरे-धीरे वाहिनी के बड़े नेताओं का अन्य राजनीतिक दलों की शरण में जाने का रहा। सुनील सिंह ने भी बदले हालातों से सीख लेकर समाजवादी पार्टी का दामन थामने में अपनी भलाई समझी। सुनील सिंह के साथ हिंदू वाहिनी को पूर्वी उत्तर प्रदेश में मजबूती देने का काम करने वाले सौरभ विश्वकर्मा और चंदन विश्वकर्मा ने भी सपा ज्वाइन करने में देर नहीं लगाई। कभी योगी के अत्यंत विश्वस्त रहे इन तीनों नेताओं के 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान योगी संग मतभेद गहरा गए थे। मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी ने इन नेताओं को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के अंतर्गत गिरफ्तार कर जेल तक पहुंचवा दिया था। अब हालात यह हैं कि इस कट्टर हिंदुवादी संगठन के अधिकांश समर्थक सपाई हो चले हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि योगी इस वाहिनी के चलते भाजपा भीतर अलग पहचान और ताकत रखते थे। अब वाहिनी के छिन्न-भिन्न होने के बाद योगी की इस पहचान और ताकत में भारी कमी आ चुकी है। भाजपा और संघ के लिए जरूरत पड़ने पर योगी को उत्तर प्रदेश की राजनीति से साइड लाइन करना पहले की अपेक्षा ज्यादा आसान हो चला है। कहा तो यहां तक जाने लगा है कि यदि इस बार उत्तर प्रदेश में चुनाव नतीजे भाजपा के मनमाफिक नहीं रहे तो योगी को प्रदेश की राजनीति से साइड लाइन कर किसी खांटी भाजपा नेता को उभारने का काम पार्टी आलाकमान करने का मन बना चुका है।

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