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लद गए धर्म की राजनीति के दिन?

आम चुनाव 2024 से पहले देश में कहीं भी कोई चुनाव या उपचुनाव होता था तो ये धारणा बना दी जाती थी कि भाजपा जीत जाएगी। लेकिन इन चुनाव नतीजों और अयोध्या में बीजेपी की हार ने एक चीज साफ कर दी है कि बीजेपी अब अजेय नहीं है जिससे विपक्ष में ये विश्वास जगा है कि बीजेपी को हराया जा सकता है जो अब दिखने भी लगा है। हाल में हुए 13 विधानसभा सीटों के उपचुनाव में भाजपा को करारी हार झेलनी पड़ी। खासकर उत्तराखण्ड की बदरीनाथ विधानसभा सीट भी भाजपा हार गई। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं क्या अब धर्म की राजनीति के दिन लद गए हैं। इन नतीजों को भाजपा के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि इसका असर उत्तर प्रदेश की 10 और बिहार की 4 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में भी देखने को मिल सकता है

आम चुनाव 2024 के बाद सात राज्यों हिमाचल, पंजाब, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, उत्तराखण्ड और बिहार की कुल 13 सीटों पर हुए विधानसभा उपचुनाव में मात्र दो सीटें मध्य प्रदेश की अमरवाड़ा और हिमाचल प्रदेश की हमीरपुर सीट पर ही बीजेपी को जीत मिली है वहीं कांग्रेस पार्टी 4, टीएमसी 4,आम आदमी पार्टी 1, डीएमके 1 और बिहार की चर्चित रुपौली सीट से निर्दलीय उम्मीदवार शंकर सिंह चुनाव जीतने में सफल रहे हैं। उन्होंने जदयू के उम्मीदवार को हराया है। इन नतीजों को भाजपा के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। कयास लगाए जा रहे हैं कि बिहार की चार और उत्तर प्रदेश की 10 विधानसभा उपचुनावों में भी भाजपा को नुकसान हो सकता है। भाजपा की इस हार के कई मायने निकाले जा रहे हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि आमतौर पर उपचुनावों पर राज्य में सत्ताधारी पार्टी का प्रभाव देखने को मिलता है। मोटे तौर पर उसी परंपरा का निर्वहन हुआ है। इन उपचुनावों में हिमाचल प्रदेश के नतीजे अहम हैं क्योंकि यह बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का गृह राज्य है। दो साल पहले जब हिमाचल प्रदेश में चुनाव हुए थे तो कांग्रेस की 68 में से 40 सीटें जीती थी। इसके बाद यहां कुछ महीने पहले ही भाजपा ने सुखविंदर सिंह सुक्खू की सरकार को गिराने के लिए ऑपरेशन लोटस की पूरी तैयारी की गई थी लेकिन वो पूरी तरह से फेल हो गया था।

इन उपचुनावों में दूसरा दिलचस्प नतीजा पश्चिम बंगाल का है। लोकसभा चुनाव में बीजेपी को करारी हार मिली थी वहीं अब विधानसभा उपचुनाव में भी बीजेपी की तीन सीटें ममता बनर्जी के खाते में चली गई हैं। यहां बीजेपी ये दिखाने की कोशिश में रही है कि राज्य में हम मुख्य विरोधी हैं लेकिन इन नतीजों से यह साफ है कि ममता बनर्जी पूरी मजबूती के साथ खड़ी हैं और बीजेपी को कोई जगह नहीं दे रही हैं।

कुछ विश्लेषक ये भी मान रहे हैं कि भले ही ये उपचुनाव बहुत अहम न हों, लेकिन इनका सांकेतिक महत्व जरूर है। 2024 लोकसभा चुनाव से पहले देश में कहीं भी कोई चुनाव या उपचुनाव होता था तो ये धारणा बना दी जाती थी कि बीजेपी जीत जाएगी। लेकिन आम चुनाव नतीजों और अयोध्या में बीजेपी की हार ने एक चीज साफ कर दी है कि बीजेपी अब अजेय नहीं है जिससे विपक्ष में ये विश्वास आया है कि बीजेपी को हराया जा सकता है और उसका असर उपचुनाव के नतीजों में भी देखने को मिला।

असल में लोकसभा चुनाव में जो बीजेपी अबकी बार 400 पार के नारे के साथ चुनावी समर में कूदी थी वो बहुमत के लिए जरूरी 272 सीटों तक नहीं पहुंच पाई और 240 पर सिमट गई। इस चुनाव में विपक्ष एकजुट और मजबूत भी हुआ। जिसका असर अब उपचुनावों में भी देखने को मिला। इन नतीजों ने बीजेपी के लिए एक चेतावनी संदेश भी दिया है कि परिवारवाद और भ्रष्टाचार के खिलाफ नारा बुलंद करने वाली भाजपा ने हाल के वर्षों में कई ऐसे नेताओं को शामिल किया जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं।

भाजपा को देखना होगा कि उसे बाहर से आने वाले और भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे लोगों को कितनी जगह देनी है? उसे सांप्रदायिकता या धु्रवीकरण की राजनीति पर चलना है या नहीं। अब पार्टी में भी यह आवाज उठने लगी है कि एनडीए के लिए यह रणनीति में बदलाव का समय है। ये संदेश इन उपचुनावों के नतीजों में दिखाई दे रहा है। बीजेपी के सामने यक्ष प्रश्न है कि उसे बाहरी दलों से आए लोगों को कितनी जगह देनी है और अपने खुद के काडर को कैसे संतुष्ट करना है। इसके लिए उसे अपनी रणनीति को बदलना पड़ेगा।

इस लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 425 सीटों पर चुनाव लड़ा था। लगभग 24 प्रतिशत उम्मीदवार बाहर की पार्टियों से आए नेता थे यानी हर चौथा उम्मीदवार बाहर की पार्टी का था। यह तब देखने को मिला जो पार्टी अपने आप को काडर बेस पार्टी कहती है ऐसे में काडर क्या करेगा?
उपचुनाव में भी बीजेपी ने ऐसे उम्मीदवारों को टिकट दिए जिन्होंने हाल ही में बीजेपी की सदस्यता ली थी। यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कैबिनेट में भी करीब हर चौथा मंत्री बाहर की पार्टी से है। ऐसे में पार्टी के सामने ये चुनौती है कि वो लंबे समय से पार्टी के साथ जुड़े अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं को कैसे संतुष्ट करें।

नहीं चलेगी धर्म की राजनीति
उत्तराखण्ड की बद्रीनाथ विधानसभा सीट पर हुआ उप चुनाव भी भाजपा हार गई है। यह सीट पहले कांग्रेस के पास थी लेकिन आम चुनाव से ठीक पहले बीजेपी ने कांग्रेसी विधायक को अपने पाले में शामिल करा लिया था। लेकिन मतदाताओं ने लोकसभा में अयोध्या सीट के बाद अब उप चुनाव में बद्रीनाथ सीट पर बीजेपी की धर्म की राजनीति को नकार दिया है।

बीजेपी की सफलता का दौर 2014 में उत्तर प्रदेश से शुरू हुआ था। विश्लेषक मान रहे हैं कि अब ये संदेश जा रहा है कि धर्म की राजनीति के दिन लद गए हैं। सांप्रदायिकता की राजनीति या ट्टाु्रवीकरण की राजनीति में भी बदलाव की जरूरत है। लोकसभा में बीजेपी को अयोध्या, चित्रकूट, प्रयागराज और खाटू श्याम जैसी सीटों पर हाल मिली और अब उपचुनाव में बद्रीनाथ की सीट पर मिली हार का मतलब है कि धर्म की राजनीति से बीजेपी को थोड़ा पीछे हटना पड़ेगा। क्योंकि अब मतदाता की मानसिकता बदल रही है। एक समय पर कांग्रेस के दौर में अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की राजनीति चली फिर वोटरों को वो पसंद नहीं आई तो वे बीजेपी को सत्ता में ले आए। फिर बीजेपी की धर्म की राजनीति का दौर चला। अब ये संकेत हैं कि वोटर का मूड अब बदल रहा है और एनडीए को भी अपनी दिशा बदलने की जरूरत है।

विपक्ष के लिए क्या हैं संकेत

लोकसभा चुनाव के बाद उपचुनावों से एक बात स्पष्ट है कि विपक्ष मजबूत होकर उभरा है। ऐसे में ये और अहम हो गया है कि विपक्ष एकजुट रहे। क्योंकि ये दलों के अस्तित्व का सवाल भी है। जो साथ नहीं चलेगा वो खत्म हो जाएगा। जिस-जिस ने बीजेपी को सीधे या परोक्ष रूप से साथ दिया वो सभी दल हाशिए पर आ गए हैं। जगन रेड्डी बिना कहे केंद्र में बीजेपी का समर्थन करते रहे आज साफ हो गए हैं तो उड़ीसा में नवीन पटनायक 24 साल से सत्ता संभाल रहे थे। हर बात पर बीजेपी को समर्थन करते रहे हैं लेकिन अब उनका भी कोई नाम लेने वाला बचा नहीं। ऐसा ही शिरोमणि अकाली दल के साथ हुआ। जिस पार्टी ने दस साल तक सत्ता संभाली हो आज वह एक सांसद की पार्टी बन कर रह गई है। इससे साफ है कि जो विपक्षी गठबंधन है उन्हें ये पता है कि अगर आप बिखरे तो साफ कर दिए जाओगे। उपचुनाव के बाद यह भावना और मजबूत हो गई है। लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष सरकार की जवाबदेही भी तय करता है। लोकसभा चुनाव का एक संदेश ये भी था कि मतदाताओं ने विपक्ष को मजबूत किया ताकि सरकार सदन में जवाबदेह रहे। उपचुनाव नतीजे इसी का एक ट्रेलर हैं।

ऐसे में इंडिया गठबंधन साथ चले और फोकस एजेंड़ा रखे तो वे बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं। जल्द ही उत्तर प्रदेश में दस और बिहार में चार विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है। अगर इंडिया गठबंधन साथ लड़ता है तो बेहतर नतीजे हो सकते हैं। खासकर उत्तर प्रदेश में अभी बीजेपी पर दबाव बना हुआ है। पार्टी के कार्यकर्ता भी नाराज बताए जा रहे हैं। नेतृत्व पर सवाल उठ रहे हैं। ऐसे में आगामी विधानसभा उपचुनाव, विपक्ष के लिए मजबूत होने का एक और मौका हो सकते हैं। वहीं लोकसभा चुनाव के बाद बिहार विधानसभा की खाली हुई चार सीटों पर होने वाले उपचुनाव को लेकर राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई हैं खबर है कि तरारी, रामगढ़, बेलागंज और इमामगंज में भी उत्तर प्रदेश के साथ ही उपचुनाव तय है।

अब भाजपा ने विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चार सीटों पर होने वाले उपचुनाव में एनडीए की ओर से इंडिया गठबंधन को झटका देने की तैयारी शुरू कर दी है। 2020 के विधानसभा चुनाव में चार में से तीन सीटों पर इंडिया अलायंस का कब्जा था। एक ओर जहां सत्तारूढ़ एनडीए की ओर से चारों सीटों पर कब्जा करने की तैयारी शुरू कर दी गई है। वहीं दूसरी तरफ सात राज्यों की 13 विधानसभा सीटों में से 10 सीटों पर जिस तरह से इंडिया अलायंस को सफलता मिली उसे लेकर बिहार में भी आरजेडी-माले और कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ गया है।

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