प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के करीबी नेताओं में शुमार भाजपा के मुख्य राष्ट्रीय प्रवक्ता अनिल बलूनी का राज्यसभा कार्यकाल समाप्त होने वाला है। उनकी जगह सूबे के पार्टी प्रमुख महेंद्र भट्ट अगले राज्यसभा सदस्य चुने गए हैं। साथ ही प्रदेश में बलूनी के सियासी सफर को लेकर चर्चाएं आम हो गई हैं। सबसे अधिक चर्चा पौड़ी लोकसभा सीट पर हो रही है। जहां पहले से ही प्रदेश के दो पूर्व मुख्यमंत्री दावेदार हैं जिनमें से एक वर्तमान में सांसद हैं। वैसे भी भाजपा हमेशा से प्रयोग करने के लिए जानी जाती रही है। पिछले साल पांच राज्यों में हुए चुनावों में पार्टी ने अपने कई केंद्रीय मंत्रियों को विधायक का टिकट देकर चुनाव लड़ाया था। अब कयास लगाए जा रहे हैं कि उत्तराखण्ड में भाजपा अपने दो सांसदों के टिकट काट सकती है। उनकी जगह नए चेहरे मैदान में उतारे जा सकते हैं। इन नए चेहरों में एक चेहरा पूर्व राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी का भी हो सकता है

त्रिवेंद्र सिंह रावत और तीरथ सिंह रावत : पौड़ी लोकसा सीट से टिकट की चाह
पिछले दस साल से उत्तराखण्ड की पांचों लोकसभा सीट भाजपा के पास हैं। पार्टी अगले आम चुनाव हैट्रिक लगाने को उतावली दिख रही है। चर्चा है कि इस बार के चुनाव से पहले भाजपा दो सीटों पर फेरबदल कर सकती है। कयास लग रहे हैं कि भाजपा इस बार नए चेहरों को मौका देने की रणनीति पर विचार कर रही है। इनमे पौड़ी लोकसभा सीट की चर्चा सबसे ज्यादा है। पहाड़ के दिग्गज नेताओ में शुमार रहे एच.एन. बहुगुणा और सेवानिवृत्त मेजर जनरल भुवनचंद्र खंडूरी को संसद भेजने वाली पौड़ी सीट से भाजपा एक नए चेहरे को चुनाव में उतारने की बात कही जा रही है। इस सीट पर प्रदेश के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के नाम पहले से ही चर्चा में हैं। लेकिन अब नई चर्चा भाजपा के मुख्य राष्ट्रीय प्रवक्ता अनिल बलूनी के नाम की भी है। बलूनी के नाम की चर्चा तब से ज्यादा है जब से उनके स्थान पर प्रदेश भाजपा के मुखिया महेंद्र भट्ट राज्यसभा सांसद बने हैं। पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत यहां से वर्तमान में सांसद हैं जबकि पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के भी यहां से चुनाव लड़ने के कयास लगाए जा रहे हैं। खबरें यह भी हैं कि मोदी के करिश्माई चेहरे और बहुसंख्यक हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण के बलबूते भाजपा इस बार अपनी जीत के प्रति ओवर कॉन्फिडेंट है। ऐसे में दो बार चुनाव जीतने वाले मौजूदा सांसदों के खिलाफ एंटी इन्कम्बेंसी लहर को रोकने के मद्देनजर हो सकता है कि पार्टी इस बार उन्हें टिकट न दे। इसके चलते भाजपा नए और युवा चेहरों को तरजीह देना चाहती है।
भाजपा के सूत्रों की मानें तो पौड़ी से पार्टी पूर्व राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी को चुनाव मैदान में उतार सकती है। राज्यसभा सांसद रहते बलूनी की सधी हुई राजनीतिक कोशिशों से भी ऐसा अंदाजा लगाया जा रहा है। शायद यही वजह रही की पौड़ी लोकसभा सीट के 14 विधानसभा क्षेत्रों में उनका सबसे ज्यादा फोकस रहा है। राज्यसभा सांसद के तौर पर बलूनी द्वारा राज्य की बेहतरी के लिए खूब काम किया जाना भी उनका एक प्लस प्वाइंट माना जा रहा है।
याद रहे कि गत लोकसभा चुनाव में भी पार्टी ने पौड़ी और नैनीताल सीट पर नए चेहरे उतारे थे। पौड़ी से तीरथ सिंह रावत और नैनीताल से अजय भटट को टिकट दिया गया था। दोनों मोदी लहर में सवार होकर बड़े अंतर से चुनाव जीते थे। पिछले पांच सालों में अजय भटट केंद्र में मंत्री बनें तो तीरथ सिंह रावत कुछ माह के लिए उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री।
प्रदेश में जब त्रिवेंद्र सिंह रावत की सरकार थी तो उस दरमियान बलूनी के नए-नए राजनीतिक प्रयोग अक्सर समाचार पत्रों की सुर्खियां हुआ करती थी। यहां तक कि उनका कई बार मुख्यमंत्री की दौड़ में शामिल होने को लेकर भी नाम चला था। तब कहा जाने लगा था कि केंद्रीय आलाकमान त्रिवेंद्र सिंह रावत की जगह अनिल बलूनी को मुख्यमंत्री बना सकते हैं। इस दौरान वे दिल्ली में उत्तराखण्ड के लिए अच्छी आवाज बनें थे। भाजपा नेता सुश्री रेखा कंडवाल कहती हैं कि ‘राज्य गठन के बाद राज्यसभा में उत्तराखण्ड का प्रतिनिधित्व करने वाले सभी सांसदों में बलूनी काम करने के मामले में पहले नंबर पर रहे हैं।’ लेकिन इसी दौरान वे अचानक राजनीतिक परिदृश्य से गायब से हो गए। इसका कारण उनका स्वास्थ्य खराब होना था। पिछले दो तीन सालों से अनिल बलूनी स्वास्थ्य कारणों के चलते सक्रिय राजनीति से दूर से हो गए थे। कैंसर जैसी बीमारी को मात देकर अब वह पूरी तरह स्वस्थ हो राजनीतिक मैदान में दो-दो हाथ करने को तैयार हैं। लेकिन उनके सामने फिलहाल दो-दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के होते अपने पौड़ी लोकसभा के टिकट का रास्ता साफ करने की चुनौती भी है।
दिल्ली में मजबूत पकड़ और हाईकमान के बेहद नजदीकी माने जाने वाले अनिल बलूनी को पार्टी ने दोबारा राज्यसभा जाने का मौका नहीं दिया। पार्टी हाईकमान का ये चौंकाने वाला निर्णय माना जा रहा है। राजनीति के जानकार भी समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर बलूनी को दूसरी बार राज्यसभा क्यों नहीं भेजा गया। हालांकि लोगों की मानें तो ये भी पार्टी की रणनीति का एक हिस्सा है। जिस तरह पार्टी ने अनिल बलूनी को राज्यसभा में रिपीट नहीं किया है उससे राजनीति के जानकार उनका तीरथ सिंह रावत का उदाहरण देकर लोकसभा में टिकट पक्का मान कर चल रहे हैं। पौड़ी के राजेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि भाजपा के अनुशासित कार्यकर्ता तीरथ सिंह रावत का विधायकी का टिकट पार्टी ने 2017 में उनके प्रदेश अध्यक्ष रहते ही काट दिया था। टिकट कटने पर रावत पार्टी से सवाल करने के बजाए चुपचाप काम में जुट गए थे। इसके बाद पार्टी ने 2019 में उन्हें लोकसभा का टिकट दिया। यही नहीं बल्कि कुछ समय के लिए तीरथ को प्रदेश का मुख्यमंत्री भी बनाया। राजेंद्र रावत की मानें तो इसी तरह बलूनी का राज्यसभा से हटने के बाद भाजपा उन्हें लोकसभा में चुनाव लड़ाने को तैयार है।
पौड़ी लोकसभा क्षेत्र में सक्रियता से लेकर आम जन के बीच छवि की बात करें तो तीरथ सिंह रावत के बाद अनिल बलूनी दूसरे नंबर पर हैं। पार्टी और पार्टी के बाहर भी राजनीतिक तौर पर अनिल बलूनी निर्विवाद नेता के रूप में पहचान बनाए हुए हैं। लोगों की मानें तो देखने और महसूस होने वाले तमाम मानकों पर बलूनी खरे उतरते हैं। ऐसे में उनका टिकट पौड़ी से ही होने की चर्चा है। हालांकि अभी ये सिर्फ चर्चाएं हैं। इन चर्चाओं को बल देते हुए वरिष्ठ पत्रकार सुनील नेगी कहते हैं कि ‘अनिल बलूनी ने हाल ही में पौड़ी में पर्वतीय संग्रहालय एवं तारामंडल की स्थापना हेतु सांसद निधि से 15 करोड़ रुपए की मंजूरी दी है। पहले भी उन्होंने टाटा की मदद से गढ़वाल में एक कैंसर अस्पताल बनाने का प्रयास किया है, जिसमें गंभीर कोविड समय के दौरान बीमारियों से पीड़ित रोगियों के लिए अच्छी संख्या में ऑक्सीजन कंसंट्रेटर आयात करना भी शामिल रहा है। उन्होंने कई जिला अस्पतालों और अंदरूनी गांवों में आईसीयू की स्थापना के लिए अच्छी धनराशि भी आवंटित की थी। ये अच्छी सेवाएं इस बात का संकेत हैं कि इस बार वे पौड़ी गढ़वाल सीट से अपनी किस्मत आजमाने की पूर्व योजना बना रहे हैं।’
कोटद्वार निवासी यू-ट्यूबर स्वाति नेगी की मानें तो अनिल बलूनी पहले ऐसे सांसद हैं जिन्होंने कोटद्वार की मतदाता सूची से अपना नाम कटवा कर अपने पैतृक गांव में दर्ज करवा कर रिवर्स माइग्रेशन की पहल की है। अनिल बलूनी का पैतृक गांव पौड़ी जिले के विकासखंड कोट का नकोट है। उनका यह गांव घोस्ट विलेज घोषित हो चुका था। इस तरह वहां पर पलायन का नया पैगाम भेजने वाले अनिल बलूनी के इस सार्थक प्रयास की प्रदेश में खूब सराहना हुई थी। स्वाति नेगी के अनुसार बलूनी ने अपने छह साल के कार्यकाल में उत्तराखण्ड को कई सौगातें दीं। इनमें धनगढ़ी का पुल, मसूरी में पेयजल योजना, उत्तरकाशी और कोटद्वार के अस्पतालों में आईसीयू, कर्णप्रयाग अस्पताल में सी आर्म मशीन, ब्लड बैंक रैक और एनेस्थीसिया मशीन, काठगोदाम देहरादून के बीच नैनी दून एक्सप्रेस, टनकपुर इलाहाबाद के बीच त्रिवेणी एक्सप्रेस और कोटद्वार.दिल्ली के बीच ट्रेन संचालन और बोगियों की संख्या वृद्धि उन्हीं की पहल से संभव हो पाई। इन सब विकास कार्यों के कारण अनिल बलूनी की दावेदारी मजबूत मानी जा रही है।
बलूनी का राजनीतिक सफर
अनिल बलूनी शुरुआत से ही बतौर भाजपा कार्यकर्ता राजनीति में सक्रिय रहे हैं। बलूनी ने भाजयुमो के प्रदेश महामंत्री, निशंक सरकार में वन्यजीव बोर्ड उपाध्यक्ष भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता और वर्तमान में राष्ट्रीय मीडिया प्रमुख की जिम्मेदारी सम्भाल रहे बलूनी भाजपा केंद्रीय नेतृत्व के बेहद करीबी बताए जाते हैं। 2002 में उत्तराखण्ड में हुए पहले विधानसभा चुनाव में उन्होंने कोटद्वार सीट से नामांकन कराया था, लेकिन किसी कारण से नामांकन पत्र निरस्त हो गया। बाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 2004 में कोटद्वार से चुनाव लड़ा लेकिन हार गए। दिल्ली में छात्र राजनीति और पत्रकारिता की पढ़ाई के दौरान उनकी संघ के नेताओं से नजदीकियां बढ़ी। संघ के जाने-माने नेता सुंदर सिंह भंडारी जब बिहार के राज्यपाल बने तो उन्होंने बलूनी को अपना विशेष कार्य अधिकारी का दायित्व सौंपा। भंडारी जब गुजरात के राज्यपाल बने तब भी बलूनी उनके ओएसडी थे। इस दौरान बलूनी गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले और मोदी शाह के करीबी हो गए। अमित शाह के 2014 में भाजपा अध्यक्ष बनने के बाद वे पार्टी प्रवक्ता और मीडिया प्रकोष्ठ का प्रमुख बने। अनिल बलूनी अमित शाह के सबसे भरोसेमंद लोगों में शामिल हैं। 2018 में अनिल बलूनी उत्तराखण्ड कोटे से सबसे युवा राज्यसभा सदस्य बने थे।