खालिस्तानी आतंकी निज्जर की हत्या और कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के बयान के बाद से खालिस्तान का मुद्दा फिर गरमा गया है। जिसके कारण कनाडा और भारत के बीच लगातार तनाव बढ़ता जा रहा है। इन्ही तनाव की वजह से कनाडा ने भारत के सभी कैटेगरी के वीजा पर रोक लगा दी गई है। इस बीच यह खबर भी सामने आ रही है कि ख़ालिश्तानीयों पर रोक लगाने के लिए भारत सरकार एक बड़ा कदम उठाने जा रही है।
जिसके तहत भारत सरकार कनाडा, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन में मौजूद खालिस्तानी आतंकियों की पहचान करके उनका ओवरसीज सिटिजनशिप ऑफ इंडिया यानी OCI कार्ड को कैंसिल करने की तैयारी में है। जिसके बाद खालिस्तान का समर्थन करने वाले ये आतंकी भारत वापस नहीं आ पाएंगे। न्यूज एजेंसी IANS ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि भारत सरकार ने विदेश में रह रहे आतंकियों की प्रॉपर्टीज की पहचान करने के आदेश भी दिए हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार भारत सरकार ने खालिस्तान समर्थक पन्नू की चंडीगढ़ और अमृतसर की प्रॉपर्टी को जब्त किया था। कानूनी तौर पर अब ये प्रॉपर्टी सरकार की हो गई हैं।
क्या है OCI कार्ड
OCI कार्ड भारत के ऐसे नागरिकों को सुविधा प्रदान जो विदेशों में रहने लगे हैं उनके लिए एक योजना है। जिसके आधार पर जो लोग 26 जनवरी 1950 के समय या उसके बाद किसी भी समय भारत का नागरिक था, या जो 26 जनवरी 1950 को भारत का नागरिक बनने के योग्य था, या जो व्यक्ति उस क्षेत्र से संबंधित था जो 15 अगस्त, 1947 के बाद भारत का हिस्सा बन गया,या जिस बच्चे के माता-पिता दोनों भारत के नागरिक हैं या माता-पिता में से एक भारत का नागरिक है आदि लोगों ओसीआई कार्ड के के लिए पंजीकरण करा सकते हैं। इस कार्ड के सहायता से विदेश की नागरिकता ले चुके इन लोगों को भारत आने के लिए एकाधिक प्रवेश, बहुउद्देश्यीय जीवन भर वीजा प्राप्त हो जाता है। साथ ही वे भारत में किसी भी अवधि तक रह सकते हैं। इसके अलावा कृषि या वृक्षारोपण संपत्तियों के अधिग्रहण को छोड़कर वित्तीय, आर्थिक और शैक्षिक क्षेत्रों में एनआरआई के साथ समानता।
क्यों बढ़ा विवाद
दरअसल जी-20 सम्मेलन में हिस्सा लेने भारत आए कनाडा के प्रधानमंत्री ‘जस्टिन ट्रूडो’ के निजी विमान ख़राब होने की वजह से दो दिनों तक भारत में ही फंसे रह गए थे। लेकिन उनके स्वदेश पहुंचते ही ख़बर आई कि कनाडा ने भारत के साथ ट्रेड मिशन को रोकने का ऐलान कर दिया है। कनाडाई वाणिज्य मंत्री मैरी एनजी के प्रवक्ता ने शुक्रवार को बताया कि कनाडा ने द्विपक्षीय मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत भी रोक दी है।
वहीं कनाडा संसद के निचले सदन हाउस ऑफ कॉमंस में एक बयान में ट्रूडो ने कहा है कि, ‘कनाडाई सुरक्षा एजेंसियां ऐसे ठोस आरोपों की जांच कर रही हैं कि एक कनाडाई नागरिक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत सरकार के जासूसों का हाथ है। कनाडा की धरती पर एक कनाडाई नागरिक की हत्या में किसी विदेशी सरकार की भूमिका हमारी संप्रभुता का उल्लंघन है जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।
गौरतलब है कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया राज्य के सरी इलाके में हरदीप सिंह निज्जर की एक गुरुद्वारे के सामने गोली मारकर हत्या कर दी गयी थी। भारत सरकार निज्जर को आतंकवादी मानती थी और उन्हें उग्रवादी अलगाववादी संगठन का नेता भी बताती है। हालांकि निज्जर के समर्थक इसे सरासर गलत बताते हैं। ट्रुडो के इस बयान के बाद से ही भारत और कनाडा के बीच तनाव बढ़ गया है।
क्या है खालिस्तान
खालिस्तान का शाब्दिक अर्थ है ”खालसाओं का देश”। सिख समुदाय आज़ादी के पहले से ही खालिस्तान के रूप में एक अलग राष्ट्र की मांग कर रहा है। लेकिन आज़ादी के बाद से खालिस्तान की मांग और प्रबल हो गई। जब भारत को दो टुकड़ों भारत (हिन्दू बहुल क्षेत्र) और पाकिस्तान (मुश्लिम बहुल क्षेत्र) में विभाजित कर दिया गया। इस विभाजन में पंजाब प्रान्त के भी दो टुकड़े हो गए। पंजाब का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान में चला गया और दूसरा हिस्सा भारत के हिस्से में आया। विभाजन के बाद आम जनता को काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ा क्योंकि पाकिस्तान में फसे हिन्दुओं को मुस्लिमों द्वारा और भारत में उपस्थित मुस्लिमों को हिन्दुओं द्वारा प्रताड़ित किया जा रहा था। लेकिन इन सब के बीच पंजाब में रहने वाले सिक्ख समुदाय को अधिक मुश्किलों का सामना करना पड़ा क्योंकि काफी मात्रा में पाकिस्तान में रहने वाले हिन्दू-सिक्खों को भागकर भारत आना पड़ा। जिसके बाद सिक्ख समुदाय को ऐसा एहसास हुआ कि धर्मों की बहुलता के आधार जिस प्रकार भारत और पाकिस्तान का बटवारा हुआ है उसी प्रकार सिक्खों के लिए एक अलग राष्ट्र ‘खालिस्तान’ बनाया जाना चाहिए। इसी के चलते पाकिस्तान से आईएसआई के समर्थन के साथ साल 1947 में पंजाब में खालिस्तान आंदोलन की शुरुआत हुई। जिसके परिणामस्वरूप साल 1950 में अकाली दल के नेतृत्व ‘सूबा’ आंदोलन चलाया जिसके द्वारा उन्होंने अलग प्रान्त की मांग की। लेकिन भारतीय सरकार ने ऐसा करने से साफ़ इंकार कर दिया। लेकिन आंदोलन फिर भी जारी रहा।
अतः साल 1966 में सरकार द्वारा सिक्खों की मांग को मान लिया गया और पंजाब को एक अलग राज्य बनाने का निर्णय देते हुए कहा गया कि पंजाब के अलग होने के बाद भी हिमाचल और हरियाणा भारत का हिस्सा रहेंगे। लेकिन अकालियों अर्थात खालिस्तानी समर्थकों ने इस फैसले को मानने से साफ़ इंकार कर दिया क्योंकि वे चाहते थे की चंडीगढ़ राज्य को भी पंजाब में शामिल कर दिया जाये और पंजाब से निकलने वाली नदियों पर उनके आलावा किसीका अधिकार नहीं होगा जिसका पानी हरियाणा और राजस्थान में भी जल आपूर्ति का साधन है। इस मांग को भारतीय सरकार द्वारा स्वीकार नहीं किया गया। तब से आज तक यह आंदोलन शांत नहीं हो सका है।
साल 1967 में आंदोलन के संस्थापक जगजीत सिंह चौहान को विधानसभा के सदस्य के रूप में चुना गया लेकिन 1969 में हुए विधानसभा चुनाव में वह हार गए। जिसके बाद उन्होंने खालिस्तान का प्रचार करना शुरू कर दिया और अपनी सरकार बनाने के लिए वे 1971 में पाकिस्तान गए जहाँ उन्हें सिक्ख नेता के रूप में चुन लिया गया। इसके बाद उन्होंने अपने समर्थक को जोड़ना शुरू किया और वर्ष1980 में, चौहान ने औपचारिक रूप से आनंदपुर साहिब में नेशनल काउंसिल ऑफ खालिस्तान के गठन की घोषणा की और खुद को इसका अध्यक्ष घोषित कर दिया।
यह भी पढ़ें : क्या खत्म होने वाला है खालिस्तानियों का आतंक !