बांग्लादेश में शेख हसीना के तख्तापलट बाद अल्पसंख्यक हिन्दू समाज को इस्लामी कट्टरपंथी ताकतें निशाने पर लेने में जुट गई हैं। स्वामी विवेकानंद द्वारा स्थापित इस्कॉन संगठन के नेता चिन्मय दास की ढाका में गिरफ्तारी ने यह प्रमाणित करने का काम किया है कि वहां अंतरिम सरकार कट्टरपंथी ताकतों के इशारे पर काम कर रही है
बांग्लादेश में इस्कॉन प्रमुख चिन्मय दास की गिरफ्तारी देश-विदेश में चर्चा का विषय बनी हुई है। स्वामी विवेकानंद द्वारा स्थापित रामकृष्ण मिशन के प्रमुख स्वामी पूर्णात्मानंद ने बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस को पत्र लिख चिन्मय दास की रिहाई जल्द से जल्द सुनिश्चित करने का आग्रह किया है। उल्लेखनीय है कि 25 नवंबर को देशद्रोह के आरोप में ढाका मेट्रोपोलिटन पुलिस के डिटेक्टिव ब्रांच ने हिंदू पुजारी चिन्मय दास को गिरफ्तार किया था। अगले दिन 26 नवंबर को चटगांव की अदालत द्वारा उनकी जमानत नामंजूर करते हुए उन्हें हिरासत में भेज दिया गया।
चिन्मय कृष्ण दास ब्रह्माचारी समेत 18 अन्य लोगों पर देशद्रोह का आरोप लगाया गया है। आरोप है कि 25 अक्टूबर को उन्होंने चटगांव के न्यू मार्केट चौराहे पर राष्ट्रीय ध्वज के ऊपर एक केसरिया ध्वज फहराने का अपराध किया है। दरअसल ललदीघी मैदान में एक रैली के दौरान इस्कॉन से संबंधित एक धार्मिक ध्वज को बांग्लादेश के राष्ट्रीय ध्वज के ऊपर फहराया गया, जिसे अपमान और देश की संप्रभुता के प्रति अपमानजनक कृत्य करार दिया जा रहा है और बांग्लादेश पुलिस इसे देश में अराजकता फैलाने के उद्देश्य से किए गए राष्ट्रद्रोही गतिविधियों के रूप में देख रही है। इस घटना की तस्वीरें सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुई जिसके आलोचनाओं के परिणामस्वरूप झंडे को हटा दिया गया था। 30 अक्टूबर को इस्कॉन के खिलाफ इस बाबत मुकदमा दर्ज कराया गया था। चिन्मय कृष्ण दास ब्रह्माचारी जो इस्कॉन के चटगांव प्रभाग के संगठन सचिव के अलावा हिन्दू जागरण मंच के चटगांव विभाग के समन्वयक अजय दत्ता और चटगांव में प्रभातक इस्कॉन मंदिर के प्रधान सहित 15-20 अन्य लोगों को आरोपी बनाया गया है। अदालत में सुनवाई के दौरान इन अभियुक्तों की तरफ से वकीलों ने पैरवी नहीं करने का निर्णय से मामले को उलझा दिया है। अमेरिका ने इसे मानवाधिकारों का उल्लंघन करार देते हुए कहा है कि धार्मिक आजादी और मौलिक मानवाधिकार की रक्षा करना जरूरी है। अमेरिका बार-बार इस बात पर जोर देता रहा है कि गिरफ्तार लोगों को समुचित पैरवी का मौका दिया जाना चाहिए।
चिन्मय दास की गिरफ्तारी के बाद बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिन्दू और बहुसंख्यक मुसलमानों के बीच हिंसा में बढ़ोत्तरी हुई है। 26 नवंबर को सुनवाई के दौरान अदालत परिसर में पुलिस और इस्कॉन प्रमुख के समर्थकों के बीच झड़प हुई थी। चिन्मय दास को इस हिंसा के लिए भी जिम्मेदार ठहराते हुए मुख्य आरोपी बनाया गया है। इस मामले में 164 पहचाने गए व्यक्तियों और 400-500 अज्ञात लोगों को नामजद किया गया है। यह शिकायत हिफाजत-ए- इस्लाम बांग्लादेश के इनामुल हक द्वारा दर्ज कराई गई है। उनके द्वारा लगाए गए आरोपों अनुसार 26 नवंबर को अदालत में चिन्मय दास के समर्थकों ने उन पर हमला किया। इस हमले में उनके दाहिने हाथ में फ्रैक्चर और सिर में चोटें आईं हैं। उन्हें स्थानीय लोगों ने बचाया और चटगांव मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती कराया गया। इसके अतिरिक्त 27 नवंबर को भी पुलिस ने कोतवाली थाने में तीन और मामले दर्ज किए, जिनमें सैकड़ों अज्ञात व्यक्तियों के साथ कई नामजद आरोपी भी शामिल हैं। वहीं, एक और व्यवसायी ने 28 नवंबर को रांगाम सिनेमा हाल के पास अपने ऊपर हमले का मामला दर्ज कराया था।
चिन्मय दास का वकीलों ने किया बहिष्कार
गौरतलब है कि चटगांव अदालत में 3 दिसंबर को चिन्मय दास की सुनवाई के दौरान उनकी तरफ से कोई वकील पेश नहीं हुआ था। कहा जा रहा है कि धमकियों के कारण चिन्मय दास की तरफ से कोई वकील सामने आया ही नहीं। हालांकि मीडिया रिपोर्ट्स अनुसार चटगांव बार एसोसिएशन ने किसी वकील को धमकी दिए जाने की बात से इनकार किया है। चिन्मय दास को हिरासत में लेते हुए उनके समर्थकों द्वारा विरोध प्रदर्शन किया गया था। जेल ले जाने के लिए पुलिस को करीब साढ़े तीन घंटा का समय लगा था।
इसी दौरान हुई हिंसा में वकील सैफुल इस्लाम आलिफ की मौत हो गई और कम से कम 30 अन्य लोग घायल हो गए। कई मीडिया रिपोर्ट्स सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सैफुल को हिंदू धर्मगुरु चिन्मय दास का वकील बताया जा रहा था, जो कि गलत सूचना थी। सैफुल इस्लाम आलिफ चटगांव बार एसोसिएशन के सदस्य और असिस्टेंट पब्लिक प्रासिक्यूटर थे। पेशी के दौरान हुई हिंसा, तोड़फोड़ और एडवोकेट सैफुल इस्लाम आलिफ की मौत के बाद दायर मामले में 70 हिंदू वकीलों को अभियुक्त बनाया गया है। इनमें दास की जमानत याचिका दायर करने वाले वकील भी शामिल हैं। इसके अतिरिक्त ऐसे वरिष्ठ हिंदू वकीलों के नाम इसमें शामिल हैं, जो इस्कॉन प्रमुख दास के पक्ष में अदालत में बहस कर सकते हैं।
चटगांव बार एसोसिएशन ने अपने सदस्यों से एडवोकेट सैफुल इस्लाम की हत्या और इससे संबंधित किसी भी मामले में शामिल नहीं होने का अनुरोध किया है। चिन्मयदास से संबंधित किसी भी मामले को लेकर वकीलों से केस लेने से मुस्लिम संगठनों द्वारा मना किया जा रहा है। अंदेशा है कि इसी वजह से इन मामलों में अभियुक्तों की जमानत के लिए वकालतनामा पेश करने वाले वकीलों को दबाव और धमकी का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि बार एसोसिएशन के अध्यक्ष निजामुद्दीन का दावा है कि किसी भी वकील को न तो धमकी दी गई है और न ही उसकी सुरक्षा को कोई खतरा है।
3 दिसंबर को भी चिन्मय दास की सुनवाई से पहले वकीलों द्वारा अदालत परिसर में प्रदर्शन किया गया था। वकीलों ने हमला, तोड़फोड़ और हत्या के मामलों में दास को आरोपी न बनाने को लेकर विरोध जताया है। इस दौरान चिन्मय दास की और से कोई वकील न पेश होने पर सरकार की ओर से उन्हें वकील मुहैया कराया गया। सरकारी वकील ने अदालत से अगली तारीख देने की अपील की थी। इस अपील और चिन्मय दास की और से किसी वकील के मौजूद नहीं रहने के कारण अदालत ने इस मामले की अगली सुनवाई 2 जनवरी को करने का फैसला लिया है।