देश में इस वक्त 9 राज्यों की 19 राज्य सभा सीटों के लिए मतदान चल रहा है। इसमें कांग्रेस भाजपा के दिग्गज नेताओं की सीटों पर सबकी नजरें टिकी हुई हैं। खासकर मध्य प्रदेश में मुकाबला बहुत ही रोचक हो चला है। यहां भाजपा से ज्योतिरादित्य सिंधिया तो कांग्रेस से पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह जैसे बड़े नेता मैदान में हैं। हालांकि सिंधिया की राह में तो कोई बाधा नहीं है, लेकिन दिग्विजय सिंह जिस तरह लगातार भाजपा के निशाने पर हैं, उसे देखते हुए कांग्रेस सजग है।
दिग्विजय की जीत सुनिश्चित करने के लिए कांग्रेस को न सिर्फ अपनी रणनीति बदलनी पड़ी है, बल्कि उसे इसकी कुछ कीमत भी चुकानी पड़ सकती है। राज्य में अनुसूचित जाति के मतदाताओं का एक बड़ा तबका उससे रूठ भी सकता है। क्रॉस वोटिंग का खतरा भांपकर कांग्रेस ने नई रणनीति के तहत तय किया कि 54 विधायक प्रथम वरीयता में दिगिविजय को वोट देंगे, जबकि उनकी जीत के लिए 52 वोट ही पर्याप्त हैं।
बताया जाता है कि कांग्रेस के रणनीतिकारों ने क्रॉस वोटिंग के साथ ही इस बात का भी ध्यान रखा है कि कहीं तकनीकी कारणों से एक-दो वोट रद्द न हो जाएं और बना-बनाया खेल न बिगड़ जाए। लिहाजा पार्टी ने फूंक-फूंककर कदम बढ़ाना ही उचित समझा। राज्य की तीन राज्य सभा सीटों पर इस वक्त मतदान चल रहा है। कांग्रेस के पास 92 विधायक हैं। ऐसे में उसकी एक सीट आसानी से निकल सकती है, लेकिन दूसरे उम्मीदवार फूल सिंह बरैया के लिए 40 विधायकों के मत ही शेष रह जाते हैं।
बसपा, सपा और निर्दलीय विधायक भी उन्हें वोट नहीं देना चाहते। इन विधायकों की संख्या सात है। सिंधिया के साथ भाजपा में गए कुछ विधायकों को कमलनाथ पार्टी के दूसरे प्रत्याशी फूल सिंह बरैया के पक्ष में सहमत कर पाएंगे, इसकी भी गुंजाइश कम ही है। ऐसे में सवाल उठने लगे हैं कि क्या दिगिविजय सिंह खुद आगे बढ़कर पहली वरीयता के वोट बरैया के पक्ष में देने की बात नहीं कर सकते थे।
आखिर अनुसूचित वर्ग को नेतृत्व देने के मामले में उनका कोई फर्ज नहीं बनता है, इस तरह के सवाल कांग्रेस को राज्य की 24 सीटों के लिए होने वाले विधानसभा उपचुनाव में असहज कर सकते हैं। इन 24 सीटों में से 9 सीटें अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं। अनुसूचित जाति वर्ग की 6 सीटें उसी ग्वालियर -चंबल अंचल की हैं जहां से फूल सिंह बरैया आते हैं। विधानसभा चुनाव में इस अंचल में कांग्रेस को भारी सफलता मिली थी।
-दाताम चमोली