By: दाताराम चमोली
कार्यकारी संपादक
नई दिल्ली। कोरोना महामारी दुनियाभर में दिमागी मरीजों की संख्या भी बढ़ा रही है। भारत में भी यही स्थिति है। इंडियन साइकियाट्रिक सोसायटी के एक अध्ययन के मुताबिक कोरोना वायरस के बाद देश में मानसिक रोगों से पीड़ित मरीजों की संख्या में 15 से 20 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई है। हालत इसलिए भी चिंताजनक है कि जहां दुनियाभर में केवल 1 प्रतिशत हेल्थ वर्कर्स मानसिक स्वास्थ्य की देख-रेख या इलाज में जुटे हैं,
वहीं भारत में तो यह प्रतिशत और भी कम बताया जाता है। विशेषज्ञों के मुताबिक कोरोना वायरस ने दुनियाभर में भय और चिंता का माहौल पैदा किया है। इससे लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है। ऐसे में इसका प्रभाव लंबे समय तक रह सकता है। न्यूराेसाइंटिस्ट, मनाेचिकित्सक और मनाेवैज्ञानिकों की राय है कि इस दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे कि लाेगाें की मानसिक स्थिति पर काेई दुष्प्रभाव न पड़ सके। सभी देशों को इसके लिए उपचार और रिसर्च को बढ़ावा देना होगा।
मानसिक विकार से जुड़े ऐसे मामलों की पूरी दुनिया में एक साथ निगरानी की व्यवस्था होनी चाहिए। हाल ही में ब्रिटेन की एक संस्था ‘लैंसेट साइकेट्री’ ने इस संबंध में एक सर्वेक्षण कराया है। संस्था ने 1,099 लोगों पर अपना सर्वे किया। जिसके बाद वह इस नतीजे पर पहुंची कि लॉकडाउन और आइसोलेशन में रहने से लोगों में कारोबार डूबने, नौकरी जाने और बेघर होने जैसा खौफ पैदा हो गया है। विशेषज्ञों के अनुसार समस्या को नजरअंदाज करने से न केवल लोगों का जीवन, बल्कि समाज भी प्रभावित हुए बैगर नहीं रहेगा। ऐसे लोगों पर नजर रखने की जरूरत है, जो गंभीर रूप से डिप्रेशन में हैं, या उनमें आत्मघाती कदम उठाने के विचार आते हैं।