‘एकात्म मानववाद’ के प्रणेता ‘पंडित दीनदयाल उपाध्याय’ की आज पुण्यतिथि है। दीनदयाल की पुण्यतिथि दिवस के मौके पर जिला केंद्रों में विचार गोष्ठी और अन्य कार्यक्रमों के अलावा गांवों में प्रवास करने के लिए भी कहा गया है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बुधवार को ‘पंडित दीनदयाल उपाध्याय’ स्मृति स्थल पहुंचे। इस दौरान स्मृति स्थल का निरीक्षण कर अधिकारियों से तैयारियों की जांच-पड़ताल की। वह करीब 30 मिनट तक स्मृति स्थल पर रहें।
इस दौरान पत्रकारों से बातचीत में योगी ने कहा कि इस स्मारक से देश-विदेश में क्षेत्र की पहचान बनेगी। गौरतलब है कि ‘पंडित दीनदयाल उपाध्याय’ की स्मृति में पड़ाव इलाके में गन्ना संस्थान की भूमि पर संग्रहालय का निर्माण कराया जा रहा है, जिसका लोकार्पण करने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 16 फरवरी चंदौली पहुंचेंगे। पिछले एक साल से करीब 200 मज़दूर दिन रात मेहनत करके पंडित दीन दयाल उपाध्याय की प्रतिमा को पूरा करने में लगे हैं।
पांच धातु की 63 फीट ऊंची प्रतिमा देश की सबसे बड़ी दीन दयाल उपाध्याय की प्रतिमा है। इसके अलावा वॉल पर उड़ीसा के 30 कारीगर दिन रात मेहनत कर पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जीवन को उकेरने में लगे हैं। भाजपा विधायक और सत्तारूढ़ दल के मुख्य सचेतक अरूण कुमार सिन्हा ने कहा कि उपाध्याय जी के अंदर कई महान व्यक्ति के गुण मौजूद थे।
उन्होंने कहा कि उपाध्याय जी की पुस्तक है ‘एकात्म मानववाद’ जिसका सार है कि अंतिम सिरे पर खड़ा व्यक्ति जब तक आगे के श्रेणी यानि अग्रणी भूमिका में नही होगा तब तक राष्ट्र आगे नही जाएगा और राष्ट्रीयता और राष्ट्रभक्ति का कोई मतलब नहीं है। दीनदयाल उपाध्याय अपने जीवन के प्रारंभिक वर्षों से ही समाज सेवा के प्रति अत्यधिक समर्पित थे।
वर्ष 1937 में अपने कॉलेज के दिनों में वे कानपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.) के साथ जुड़ें। वहां आर.एस.एस. के संस्थापक डॉ. हेडगेवार के साथ विचार-विनिमय के बाद उन्होंने अपना सब कुछ संगठन को समर्पित कर दिया। पटना में दीनदयाल जी की प्रतिम का लगाया जाना इन जैसे महान भारतीय विचारक, अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री, इतिहासकार, संगठनकर्ता और पत्रकार तथा राजनेता को बिहार की ओर से सच्ची श्रद्धांजली की तरह है।
आज भी 51 वर्ष पहले का वह समय चित्रित हो उठता है जब पंडित दीनदयाल उपाध्याय का पटना में इंतजार हो रहा था। लेकिन, वे पटना नहीं पहुंचे। दो दिनों बाद जब उनकी हत्या की खबर पहुंची तो आज की भाजपा और तब के जनसंघ के नेता और कार्यकर्ता बदहवास गिर पड़े थे। 11 फरवरी 1968 की रात में रेलयात्रा के दौरान मुगलसराय जंक्शन के वार्ड में उनकी हत्या कर दी गयी थी। उनके शव को लावारिश बता कर उनकी अंत्येष्टि कर देने की तैयारी थी। इसी बीच कुछ लोगों ने उन्हें पहचान लिया और शोर मचाना शुरू कर दिया था ।