दिल्ली के निजामुद्दीन में तबलीगी जमात के मरकज में अब तक 24 कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं। मरकज में देश के 19 राज्यों और 16 अन्य देशों से इस्लामिक प्रचारक आए थे। इसमें लगभग ढाई हज़ार लोग शामिल हुए थे। 13 से 15 मार्च तक मरकज में एक आयोजन रखा गया था। वे लोग इसी आयोजन में शामिल होने आए थे। बताया जाता है कि आयोजन खत्म होते ही कुछ लोग चले गए। कुछ वहीं रुके रहें। रुके हुए उन्हीं लोगों में से 24 लोग संक्रमित पाए गए हैं। बाकी के 1548 लोगों को क्वॉरेंटाइन किया गया है। जब मरकज में संक्रमित जमातियों के होने की खबर आई तो दिल्ली सहित पूरे देश में हड़कंप मच गया। वैसे भी जब मामला इस्लाम और मुसलमान से जुड़ा हो तो लोगों के कान अधिक खड़े हो जाते हैं। ऊपर से मीडिया चैनलों के हेडलाइंस आग में घी डालने का काम कर रहा है। गौर करें तो कल से चलाए जा रहे तमाम खबरिया चैनलों के हेडलाइंस- ‘कोरोना जिहाद’, ‘मौलाना आया बम लाया’, ‘जानलेवा अधर्म’ हैं।
सिर्फ इतना ही नहीं बसों में जब इन्हें बिठाकर हॉस्पिटल ले जाया जाने लगा तब ये तक कहा जाने लगा कि वे लोग जानबूझ कर बस की खिड़की से बाहर थूक रहे हैं ताकि वायरस फैल जाएं। मीडिया और कुछ नेताओं को इसमें साजिश दिखी। बीजेपी सांसद मनोज तिवारी ने यहां तक कह डाला कि ये साजिश थी इनकी। जानबूझ कर संक्रमित लोगों को बुलाया गया ताकि इसे फैलाया जा सके। अब जेहन में सवाल यह उठता है कि क्या हिंदुओं को इस वायरस ने संक्रमित नहीं किया। क्या इससे पहले किसी भी हिन्दू को कोरोना संक्रमण नहीं हुआ। और हुआ तो क्या हिन्दूओं से कोरोना नहीं फैला सकता। क्या यह जादुई ताकत सिर्फ मुसलमानों में हैं।
या फिर कनिका कपूर विदेश से आने के बाद साजिश के तहत बीजेपी नेता की पार्टी में गईं ताकि यह वायरस देश में फैल जाए। तो फिर कनिका के इस षड्यंत्र के पीछे किस संगठन का हाथ था। इसके जवाब में कुछ लोग कहेंगे कि कनिका के मामले में भी सख्ती की गई। उनपर केस दर्ज किया गया। अब सवाल ये उठता है कि जितना छीछालेदर मरकज मामले में हुई क्या उस मामले में हुई। क्या उस मामले को भी धर्म के चश्मे से देखा गया। फिलहाल कोरोना वायरस से जितना डर नहीं लग रहा, उससे कहीं ज्यादा डर मीडिया की खबरों से लग सकता है। मीडिया द्वारा फैलाये जा रहे वायरस लोगों के दिमाग में बड़ी आसानी से भरा जाता है।
एक और सवाल ये कि आखिर ये मरकज क्या है और तबलीग जमात किसे कहते हैं? आईये इसे समझते हैं:
मरकज़ मतलब सेंटर होता है। और तबलीग का मतलब है अल्लाह और कुरान, हदीस की बात दूसरों तक पहुंचाना। जमात का मतलब है ग्रुप। कहा जाता है कि 75 साल पहले मेवात के मौलाना इलियास साहब ने मरकज की स्थापना की थी। मकसद था भारत के अनपढ़ मुसलमानों में बढ़ती जहालत को खत्म करके उनको इस्लाम के बताए गए रास्ते और नमाज की तरफ लाया जाएं ताकि कोई भटके नहीं। लोग नमाज पढ़ें, रोजे रखें और बुराइयों से बचें, सच्चाई अख्तियार करें। इसके अलावा वहां लोगों को सिखाया जाता है कि खुद को कैसे साफ रखना, खाने-पीने, उठने बैठने का सही तरीका कुरान और हदीश की रौशनी में क्या है। पड़ोसियों के साथ मुसलमानों का व्यवहार कैसा होना चाहिए। वगैरह। इन कामों से मरकज़ को इतनी प्रसिद्धि मिली कि वह धीरे-धीरे पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हो गया। दुनियाभर से लोग इस जमात का हिस्सा बनने लगे और भारत इसका केंद्र के रूप में स्थापित हो गया।
यह जमात तीन दिनों से लेकर चालीस दिनों या उससे अधिक दिनों के लिए निकलता है। इसे चिल्ले पर निकलना भी कहते हैं। मरकज में किसी भी तरह की दुनियावी बातों की पूरी तरह पाबंदी होती है। ये जानकर आश्चर्य होगा कि यह पूरे देश में जब कभी किसी भी तरह का नुकसान होता है तो वो सरकार के बजाय अपने आप को कसूरवार ठहराते हैं। तबलीगी जमात के लोग हर साल एक आयोजन रखते हैं जिसमें अपने देश के अलावा अनेक देशों के विदेशी नागरिक भी शिरकत करते हैं। जमात के सारे गतिविधियों की जानकारी गृह मंत्रालय के पास होती है। यही वजह है कि विदेशी नागरिकों को बड़ी आसानी से जमात में आने-जाने के लिए वीजा मिल जाता है। कुल मिलाकर ये एक अमनपरस्त जमात है।
मामले के पूरे परिदृश्य को समझें:
पहला मामला: निजामुद्दीन के मरकज से तेलंगाना वापस लौटे व्यक्ति में से छह लोगों की मौत हो गई। यह बात बीते सोमवार की बात है।
दूसरा मामला- तमिलनाडु में मंगलवार को 45 लोगों में कोरोना वायरस की पुष्टि हुई। कोरोना से पीड़ित ये सभी लोग तबलीगी जमात में शामिल हुए थे।
तीसरा मामला- जमात में से एक बूढ़े व्यक्ति की तबियत खराब होने पर हॉस्पिटल ले जाया गया। जहां कोरोना पॉजिटिव पाया गया। उसके बाद उनमें 24 लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए। जोकि निजामुद्दीन के मरकज में थे।
जिसके बाद पूरे सोशल मीडिया में कोरोना जिहाद शुरू हो गया। दिल्ली पुलिस की तरफ से मरकज के सदस्यों से पूछताछ शुरू हो गई। कई लोग कह रहे हैं कि विदेशों ये लोग खास मकसद से आते हैं अथवा आए थे। ऐसे लोगों को ये बात ख्याल में रखना चाहिए कि जब कोई वीजा के लिए या एयरपोर्ट पर आता है तो इसकी सारी जानकारी सरकार लेती है। एयरपोर्ट पर उनके आने-जाने-ठहरने के बारे में पूछा जाता। किन जाना-आना है इसकी भी पूछताछ की जाती है। उसके बाद एंट्री मिलती है।
तबलीगी जमात ने इस मामले पर क्या कहा?
-तमाम सवालों के बीच मरकज़ ने कहा कि निज़ामुद्दीन स्थित उसके मुख्यालय में दुनियाभर से लोग आते हैं। जब भारी संख्या में लोग मरकज में ही थे तभी ‘जनता कर्फ्यू’ का ऐलान हो गया। उसी दिन मरकज को बंद कर दिया गया। बाहर से किसी को भी नहीं आने दिया गया। जो लोग मरकज में रह रहे थे, उन्हें घर भेजने का इंतजाम किया जाने लगा। उसके बाद 21 मार्च को देशभर में ट्रेनों समेत सभी यातायात के साधनों को रद्द किया जाने लगा। इसके कारण लोग मरकज़ में ही फंसे रह गए।
-मरकज ने आगे कहा, “इसके बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री की ओर से 23 से 31 मार्च तक लॉकडाउन का एलान कर दिया गया और लोग बाहर नहीं जा सके। फिर भी तमाम कोशिशों के बाद 1500 लोगों को उनके इलाक़ों की ओर भेजा गया। इसके बाद प्रधानमंत्री ने पूरे देश में कंप्लीट लॉकडाउन की घोषणा कर दी।”
-मकरज ने बताया कि 24 मार्च को हज़रत निज़ामुद्दीन पुलिस स्टेशन के एसएचओ की ओर से नोटिस जारी किया गया और मरकज़ की ओर से उसी दिन उसका जवाब दिया गया कि कई लोगों को भेजा जा चुका है और 1000 लोग अभी भी फंसे हुए हैं। जिसमें विदेशी नागरिक भी हैं। इसके अलावा एसडीएम से भी गुजारिश की गई कि वाहन पास जारी किया जाएं ताकि बचे हुए लोगों को वापस भेजा जा सके। हमने 17 गाड़ियों के नंबर सूची भी एसडीएम को भेजी। लेकिन अभी तक इसकी अनुमति नहीं मिली है।
-25 मार्च को तहसीलदार और एक मेडिकल की टीम आई और मरकज में रह रहे लोगों का जांच किया।
-26 मार्च को हमें एसडीएम के ऑफिस में बुलाया गया। डीएम से भी मुलाकात कराई गई। हमने उन्हें फंसे हुए लोगों की जानकारी दी और कर्फ्यू पास मांगा।
-27 मार्च को 6 लोगों की तबीयत खराब होने की वजह से मेडिकल जांच के लिए ले जाया गया।
-28 मार्च को एसडीएम और डब्लयूएचओ की टीम 33 लोगों को जांच करने के लिए ले गई, जिन्हें राजीव गांधी कैंसर अस्पताल में भर्ती कराया गया।
-28 मार्च को एसीपी लाजपत नगर के पास से नोटिस आया कि हम गाइडलाइंस और कानून का उल्लंघन कर रहे हैं। इसका पूरा जवाब दूसरे ही दिन भेज दिया गया।
-30 मार्च को अचानक यह खबर सोशल मीडिया में फैल गई कि कोराना के मरीजों की मरकज में रखा गया है और टीम वहां रेड कर रही है।
-मरकज ने कहा कि हमने लगातार पुलिस और अधिकारियों को जानकारी दी कि हमारे यहां लोग रुके हुए हैं। वह लोग पहले से यहां आए हुए थे। उन्हें अचानक इस बीमारी की जानकारी मिली। हमने किसी को भी बस अड्डा या सड़कों पर घूमने नहीं दिया और मरकज में बन्द रखा जैसा कि प्रधानमंत्री का आदेश था। हमने ज़िम्मेदारी से काम किया। हमने किसी भी नियम का उल्लंघन नहीं किया है। हम अपने 100 सालों के इतिहास में हमेशा नियमों का पालन किया है। ये सारी बातें मरकज का कहना है।
पुलिस का पक्ष क्या है?
पुलिस अधिकारियों की तरफ से मंगलवार को एक वीडियो जारी किया गया। जिसे एएनआई के द्वारा ट्वीट किया गया जो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। इस वीडियो में पुलिस द्वारा जमात के लोगों से पूछा जा रहा है कि अब तक कितने लोग और कहां-कहां लोग मरकज में ठहरे हुए हैं। साथ ही दिल्ली पुलिस जमातियों को मरकज बिल्टिंग जल्द-से-जल्द खाली कर देने और ऐसा न करने पर कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दे रही है।
वीडियो में एक पुलिस के अधिकारी कहता हुआ दिखता है, “आप लोगों को आगाह करने के बाद और वार्निंग देने के बाद भी आप लोग एक साथ हैं। सारे रिलीजन प्लेसेस बंद हैं। ये सब आप सबकी सुरक्षा के लिए किया गया है। फिर भी आप लोग नहीं सुन रहे। अब ये नोटिस आपको दे रहा हूँ, मोहम्मद रसाल के नाम पर। इसके बाद भी इसपर अमल नहीं करते हैं तो मैं आप पर स्ट्रीक एक्शन लूंगा।”
फिर मरकज के लोग कहते हैं, “सर हमने 1500 लोगों को भेजा है 2500 में से।”
पुलिस अधिकारी फिर पूछता है, “अभी कितने हैं?”
मरकज से आए लोगों में एक व्यक्ति कहता है, “अभी 1000 लोग और हैं। आप कर्फ्यू पास दें दे। हम इन्हें भेज देंगे।”
उसके बाद पुलिस अधिकारी कहता है कि आप एसडीएम से बात कर लें। बाकी जो भी बातें हैं उसे आपलोग इस तीन मिनट छह सेकंड के वीडियो में सुन सकते हैं। यह वायरल वीडियो 23 मार्च का है।
#WATCH Delhi Police release a video of its warning to senior members of Markaz, Nizamuddin to vacate Markaz & follow lockdown guidelines, on 23rd March 2020. #COVID19 pic.twitter.com/2evZR6OcmB
— ANI (@ANI) March 31, 2020
पुलिस अधिकारी से मिलने के बाद 25 मार्च को मरकज से जुड़े मौलाना युसफ ने एसडीएम को चिट्ठी लिखी।
चिट्टी में क्या लिखा था?
24 मार्च को आपकी चिट्ठी मिली थी। हम मरकज को बंद करने की कोशिश कर रहे हैं। हमने 23 मार्च तक 1500 से ज्यादा लोगों को यहां से बाहर निकाला है। यहां अभी भी हजार से अधिक लोग हैं। आपके निर्देशों के मुताबिक़, हमने एसडीएम से कांटेक्ट किया है ताकि गाड़ियों के लिए पास मिल सके और हम बाकी लोगों को भी भेज सकें। एसडीएम ऑफिस से 25 मार्च की सुबह 11 बजे मीटिंग तय है। आपसे गुजारिश है कि काम को जल्दी से निपटाने के लिए आप एसडीएम से संपर्क करें। हम आपके निर्देशों पर चलने को तैयार हैं। सहयोग के लिए आपका शुक्रिया करते हैं और आगे आपके निर्देशों के तहत काम करने को तैयार हैं।
इस चिट्ठी का जवाब 28 मार्च को लाजपत नगर के एसीपी ने मरकज के प्रमुख मोहम्मद साद को दी। जो इस प्रकार है-
भारत सरकार के लॉक आर्डर के आदेश और दिल्ली सरकार के धारा 144 के बावजूद निज़ामुद्दीन के मरकज में कई लोग जमा हुए हैं। कई अथॉरिटी ने अपने आर्डर में बताया है कि 4 लोगों से ज्यादा के जमा होने की मनाही है। आपको आदेश का पालन करने को कहा गया लेकिन इसका ठीक से पालन नहीं किया गया है।
इमरजेंसी जैसे हालात को देखते हुए आपको एक बार फिर से कानून के नियमों को फॉलो करने का निर्देश दिया जाता है। लोगों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए आप पर लीगल कारवाई की जा सकती है, महामारी रोग अधिनियम 1957 की धारा 188, 269 और 270 के तहत।
यह मामला 28 मार्च का था। फिलहाल मरकज में जमात के आयोजकों के खिलाफ आईपीसी की धारा 269, 270, 271 और 120 बी के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है। इस मामले की जांच क्राइम ब्रांच को सौंप दी गई है।
असल राजनीति क्या है?
अब सवाल यह है कि मरकज के बार-बार कहने के बावजूद कर्फ्यू पास न देने की प्रशासन की क्या खास वजह रही होगी। क्या दिल्ली पुलिस की चूक नहीं है इस प्रकरण में। जब उन्हें पता था कि हज़ारों की संख्या में लोग वहां हैं तो क्यों नहीं सख्त कार्रवाई की गई। क्यों वक्त रहते उन्हें वहां से नहीं निकाला गया। क्यों सिर्फ नोटिस हाथ में थमा कर बैठ गए। बाकी बचे लोगों को घर भेजने या कहीं और शिफ्ट करने की कोशिश क्यों नहीं की गई। जब देश लॉकडाउन है तो उन्हें नोटिस मात्र देने से कैसे काम चल सकता था? कहीं ऐसा तो नहीं कि प्रशासन कार्रवाई ने नाम पर सिर्फ फाइल्स घुमा रही थी। ताकि जब सवाल उठे तो अपनी जिम्मेदारियों से पीछा छुड़ा सके।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि कोरोना संक्रमण के बीच इतना बड़ा धार्मिक आयोजन कैसे सम्भव हुआ। कैसे विदेशियों को वीजा मिल गया। जबकि समूचे विश्व में कोरोना को लेकर दहशत व्याप्त था। भारत में कोरोना संक्रमण का पहला मामला जनवरी के अन्तिम सप्ताह में ही दिख गया था। मरकज में 13-15 मार्च तक आयोजन था। यह भी देखना होगा कि क्या 13 से 15 मार्च तक देश के बाकी सभी धार्मिक स्थल बंद थे। इसका सीधा-सा जवाब है-नहीं। 16 मार्च को सिद्धिविनायक मंदिर बंद नहीं था। कालेश्वर मंदिर बंद नहीं हुए थे। शिरडी साई बाबा मंदिर तक बंद नहीं हुए थे। 18 मार्च तक वैष्णव मंदिर के द्वार खुले थे। 20 मार्च को विश्वनाथ मंदिर के पट खुले हुए थे।
जबकि ये सभी मंदिरों में लाखों के भीड़ हर रोज जुटती है। क्या इतनी भीड़ से वायरस का डर नहीं था। इसका पहला डर बना 19 तारीख को। जब पहली बार प्रधानमंत्री ने सोशल डिस्टेंसिंग की बात की। उसके बाद ‘जनता कर्फ्यू’ का ऐलान किया। उस शाम सैकड़ों की भीड़ ताली-थाली पीट रही थी। दिनभर लोग घरों में रहे शाम होते-होते घरों से सैकड़ों की तादाद में बाहर निकल गए। हालांकि, प्रधानमंत्री ने ये कहा था कि जो जहां है वहीं रुक जाएं। ये सब देख किसी ने भी अंदाज़ा नहीं लगाया होगा कि 2 दिनों के बाद पूरा देश कंप्लीट लॉकडाउन कर दिया जाएगा। 24 मार्च के दिन से लोग लॉकडाउन का पालन करने लगे। जो जहां था वहीं ठहर गया। चाहे वो मरकज के लोग हो, वैष्णो देवी मंदिर या मजनू का टीला गुरुद्वारे के लोग। सभी ने केवल और केवल प्रधानमंत्री के निर्देशों का पालन किया है।
गुरुद्वारा मजनू का टीला साहिब में दिल्ली की अलग अलग जगहों से इकट्ठा हुए पंजाब के लोगों में से 205 को दिल्ली सरकार ने नेहरू विहार स्कूल में शिफ़्ट कर दिया है
हमने दिल्ली और पंजाब सरकार से विनती की थी कि इन लोगों को उनके घरो तक पहुँचाया जाए ताकि इस इकट्ठ से #Covid19 का ख़तरा न फैले pic.twitter.com/exxWhorez6— Manjinder Singh Sirsa (@mssirsa) April 1, 2020
अब ऐसे में धर्म के नाम पर जो राजनीति की जा रही है उसकी क्या इस वक़्त जरूरत थी। एक धर्म को लेकर साजिश की बू आने लगती है राजनेताओं को। वहीं हिन्दू धर्म में माता वैष्णव देवी की दर्शन के लिए गए लगभग 450 लोगों को ‘फंसे’ हुए शब्दों से नवाजते हैं। हाई कोर्ट से निर्देश दिया जाता है कि तीर्थयात्रियों को होटलों से निकाला न जाए और उन्हें उचित सुविधाएं मुहैया कराई जाएं। वहीं दिल्ली के मजनू का टीला गुरुद्वारा में लगभग 400 सिख श्रद्धालु पाएं गए जिन्हें आज बुधवार को वहां से निकाला गया। इसमें विदेशी श्रद्धालु भी थे।
J&K:Over 400 people from Bihar who came on pilgrimage trip to Vaishno Devi request Bihar&UT govts to provide them transportation to their hometowns.A tourist says, "We're paying for accommodation but they are asking us to vacate now.People among us are sick&have children at home" pic.twitter.com/57DUPqThb1
— ANI (@ANI) March 28, 2020
राजनीतिज्ञों का ये दोहरा मापदंड क्यों? आखिर इस मामले में एक ही कौम को क्यों टारगेट किया जा रहा है। न्याय तो हर धर्म हर व्यक्ति के साथ होना चाहिए। मैं ये नहीं कहती कि जो हुआ या हो रहा है वो सही है। जो हुआ वो निदंनीय है। इस पूरे मामले से सख्ती से पेश आने की ज़रूरत है और बिना हिन्दू-मुसलमान किए दोषियों की शनाख्त कर कठोर कार्रवाई करने की ज़रूरत है। ताकि किसी देश में आए इस आपदा के समय किसी भी पक्ष से ऐसी लापरवाही की गुंजाइश न रहे।