Country

फिर निशाने पर चुनाव आयोग

केंद्रीय चुनाव आयोग की निष्पक्षता को लेकर मोदी युग में विपक्ष लगातार सवाल खड़े कर रहा है। ईवीएम को हैक कर चुनाव नतीजे प्रभावित करने का आरोप लगाने वाले विपक्षी दलों ने इस आम चुनाव के दौरान विभिन्न चरणों में मतदान समाप्त होने के बाद जारी मत प्रतिशत के आकड़ों और 48 घंटों के भीतर जारी किए जाने वाले अंतिम आकड़ों में भारी अंतर को लेकर एक बार फिर से चुनाव आयोग पर आरोपों की झड़ी लगा दी है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर दायर याचिका को खारिज कर दिया है लेकिन आयोग की साख पर सवाल अब भी बरकरार हैं

देश में इन दिनों हो रहे आम चुनाव को लेकर जहां एक तरफ नाना प्रकार के आरोप-प्रत्यारोप माहौल को गर्म किए हुए हैं, वहीं अभी तक हुए छह चरणों के चुनाव में कम मतदान प्रतिशत भी चर्चा का विषय बना हुआ है। राजनीतिक विश्लेषक कम मतदान प्रतिशत को लेकर अपनी-अपनी राय सामने रख रहे हैं तो दूसरी तरफ विपक्षी दल मतदान प्रतिशत के आकड़ों में बदलाव को चुनाव आयोग की संदेहास्पद कार्यशैली से जोड़ आरोप लगा रहे हैं कि मतदान के तुरंत बाद जारी आकड़ों और बाद में जारी अंतिम आकड़ों में भारी अंतर किसी बड़ी साजिश का हिस्सा है। विपक्ष इस मुद्दे को लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक जा पहुंचा। हालांकि आयोग को कोर्ट से राहत जरूर मिल गई है लेकिन आमजन में उसकी निष्पक्षता पर सवाल अब भी खड़े हो रहे हैं। इससे पहले ईवीएम को लेकर राजनीतिक दलों में संदेह बना हुआ था कि मशीन के जरिए मतों को प्रभावित किया जा सकता है। जिसकी ढेरों शिकायतें चुनाव आयोग में की गई लेकिन आयोग ने किसी भी शिकायत पर ध्यान नहीं दिया। मार्च 2023 में एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रटिक रिफार्म ने सुप्रीम कोर्ट में चुनाव से पहले 100 प्रतिशत वीवीपैट मशीन से निकलने वाली पर्ची के मिलान को लेकर याचिका दाखिल की जिसको सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद खारिज कर दिया था और ईवीएम का मामला ठंडे बस्ते में चला गया। अब मत प्रतिशत के आंकड़ों में गड़बड़ी की आशंका के चलते एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रटिक रिफार्म एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट पहुंचा लेकिन उसकी यह याचिका भी खारिज हो गई। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनाव के पांच चरण पूरे हो चुके हैं, दो चरण बचे हुए हैं ऐसे में निर्वाचन आयोग के लिए वेबसाइट पर मतदान प्रतिशत के आंकड़े अपलोड करने के काम में लोगों को लगाना मुश्किल है।

क्या था विवाद
अभी तक चुनाव आयोग द्वारा मतदान होने के 48 घंटे के भीतर फाइनल आंकड़े प्रकाशित किए जाते रहे हैं। लेकिन इस बार वोटिंग खत्म होने और फाइनल आंकड़े प्रकाशित होने में देरी की वजह से चुनाव आयोग की प्रक्रिया पर सवाल उठ रहे हैं। पहले चरण के 10 दिन बीत जाने के बाद राजनीतिक दलों ने असल आंकड़ों की मांग की तो चुनाव आयोग ने 11 दिन बाद पहले चरण का और 4 दिनों के बाद दूसरे चरण के आकड़े जारी किये जो मतदान के दिन जारी किए गए आंकड़े से अलग थे।

गौरतलब है कि जब 19 अप्रैल को पहले चरण के मतदान के बाद ईसीआई ने प्रेस नोट जारी कर 102 सीटों का पर हुए मतदान का अस्थाई आंकड़ा शाम 7 बजे तक 60 प्रतिशत से अधिक का बताया था। इसी तरह 26 अप्रैल को दूसरे चरण के मतदान के बाद ईसीआई ने प्रेस नोट जारी कर 89 सीटों का पर हुए मतदान का अस्थाई आंकड़ा 60.96 प्रतिशत बताया था। लेकिन चुनाव आयोग की और से 30 अप्रैल को एक और प्रेस नोट जारी किया गया जिसमें पहले चरण का मतदान प्रतिशत 66.14 और दूसरे चरण का मतदान प्रतिशत 66.71 दिखाया गया जो पहले और दूसरे मतदान प्रतिशत की तुलना में 6.14 प्रतिशत और 5.75 प्रतिशत अधिक है। 7 मई को तीसरे चरण के 94 सीटों पर मतदान का वोटिंग प्रतिशत 61.45 था जो 4 दिन बाद 65.68 प्रतिशत हो गया यानी 4.23 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। 13 मई को चौथे चरण की 96 सीटों का मतदान प्रतिशत 62.84 था जोकि 17 मई को बढ़कर 69.16 फीसदी हो गए। इसमें भी 6.32 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। पांचवे चरण के लिए 49 सीटों पर मतदान 20 मई को हुआ था जिसका मतदान प्रतिशत 57.47 था 23 मई को फाइनल आकड़ा जारी किया गया जिसमें 62.2 प्रतिशत था। ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि चौथे चरण के चुनाव तक 379 सीटों पर वोट पड़ चुके थे। इन 379 सीटों पर मतदान के दिन जारी आकड़ों की संख्या और ईसीआई द्वारा जारी फाइनल आकड़ों की संख्या में 1.7 करोड़ वोटों का अंतर आ रहा है जिसको लेकर विपक्ष चुनाव आयोग के डेटा पर बवाल कर रहा है।

खड़गे से नाराज हुआ आयोग
इंडिया गठबंधन के सहयोगी कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, माकपा सहित कई दलों ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर मतदान के दिन जारी आकड़ों में देरी को लेकर चिंता व्यक्त की थी। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने निर्वाचन आयोग द्वारा कथित विसंगतियों के मुद्दे पर इंडिया गठबंधन के नेताओं को पत्र लिखकर सामूहिकता, एकजुटता के साथ स्पष्ट रूप से अपनी आवाज उठाने का आग्रह किया था। खड़गे ने इंडिया गठबंधन के नेताओं से आग्रह किया कि वो ऐसी विसंगतियों के खिलाफ अपनी आवाज उठाए और एक जीवंत लोकतंत्र की संस्कृति और सविंधान की रक्षा करें। खड़गे ने पत्र में लिखा कि ‘हमें भारत के निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता सुनिश्चित करनी चाहिए और उसे जवाबदेह बनाना चाहिए। इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट अलायंस के तौर पर लोकतंत्र की रक्षा करना और निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता कार्य प्रणाली की रक्षा करना हमारा सामूहिक प्रयास होना चाहिए। उपरोक्त सभी तथ्य हमें यह प्रश्न पूछने के लिए मजबूर करते हैं क्या यह अंतिम परिणाम में गड़बड़ी करने का प्रयास तो नहीं है।’ जिसके जवाब में निर्वाचन आयोग ने मल्लिकार्जुन खड़गे को पत्र लिखकर कहा कि चुनावी प्रकिया के बीच खड़गे का पत्र बहुत अवांछनीय है और इसे सुचारु, स्वतंत्र, निष्पक्ष चुनाव के संचालन में भ्रम पैदा करने के लिए तैयार किया गया है।

25 मई को दिल्ली में मतदान के दौरान मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा कि चुनावी प्रक्रिया को दूषित करने के लिए झूठे आरोप और शरारती योजनाएं बनाना एक पैटर्न का हिस्सा है जो आलोचनात्मक हैं। इनके जरिए लोगों में संदेह पैदा करने की कोशिश की जा रही है। एक दिन इसके बारे में सबको बताएंगे कि लोगों को किस तरह गुमराह किया जा रहा है। मतदाता को लगता है क्या ईवीएम सही भी हैं या नहीं जिसके चलते वोटिंग पर बुरा असर पड़ रहा है लेकिन खुशी की बात है कि हर जगह मतदान शांतिपूर्ण तरह से चल रहा है फिर चाहे उड़ीसा हो या पश्चिम बंगाल या फिर बिहार।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

आकड़ों में देरी के मामले को लेकर एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रटिक रिफार्म ने 9 मई 2024 को सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की। याचिका में चुनाव आयोग से ‘2024 लोकसभा चुनाव के प्रत्येक चरण की वोटिंग के बाद मतदान केंद्रवार फॉर्म 17 सी भाग-1 में दर्ज आंकड़े और निर्वाचन क्षेत्रवार आंकड़े जारी करने की मांग की थी। साथ ही याचिका में चुनाव आयोग को चुनाव के प्रत्येक चरण के मतदान के समापन के 48 घंटे में वेबसाइट पर मतदान केंद्रवार आंकड़े अपलोड करने का निर्देश जारी करने की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने एडीआर की याचिका पर सुनवाई करते हुए चुनाव आयोग को जवाब दाखिल करने के लिए 1 सप्ताह का समय दिया। 17 मई 2024 को इस मामले में फिर से सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने चुनाव आयोग को 24 मई तक जवाब दाखिल करने का आदेश दिया। जिस पर चुनाव आयोग ने 22 मई को सुप्रीम कोर्ट में 225 पेज के हलफनामे में कहा, ‘अगर याचिकाकर्ता का अनुरोध स्वीकार किया जाता है तो यह न केवल कानूनी रूप से प्रतिकूल होगा, बल्कि इससे चुनावी मशीनरी में भी अराजकता पैदा होगी, जो पहले ही लोकसभा चुनाव में जुटी है।’ चुनाव आयोग ने कहा कि ‘मतदान के दिन ही फॉर्म 17 सी की कॉपी हर प्रत्याशी के एजेंट को दे दी जाती है। इसे वेबसाइट पर अपलोड करने से गड़बड़ी हो सकती है। तस्वीरों के साथ छेड़छाड़ की संभावना है, जिससे व्यापक असुविधा और अविश्वास पैदा हो सकता है।’ जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 24 मई को सुनवाई करते हुए चुनाव आयोग को बड़ी राहत देते हुए मतदान प्रतिशत के आकड़े वेबसाइड पर अपलोड करने के संबंध में कोई निर्देश देने से इनकार कर दिया। कोर्ट में चुनाव आयोग ने कहा था कि उमीदवार या उसके एजेंट के अतिरिक्त फार्म 17 सी किसी अन्य व्यक्ति को देने का कोई कानूनी आदेश नहीं है। याचिकाकर्ता चुनावी अवधि के दौरान एक आवेदन दायर करके एक अधिकार बनाने की कोशिश कर रहा है, जबकि कानून में ऐसा कुछ भी नहीं है।

क्या है फॉर्म 17 सी?

चुनावों में किसी प्रकार की धांधली, वोगस वोटिंग या फिर ईवीएम से छेड़छाड़ रोकने के लिए फॉर्म 17 सी डाले गए वोटों का लेखा-जोखा होता है। चुनाव संचालन नियम, 1961 के 49 एस के मुताबिक, हर बूथ के पोलिंग ऑफिसर का दायित्व होता है कि हर ईवीएम मशीन में कितने वोट पड़े, उसका डाटा हर पार्टी के पोलिंग एजेंट को उपलब्ध कराए और पोलिंग ऑफिसर द्वारा यह डाटा फॉर्म 17 सी में उनके हस्ताक्षर के साथ देना अनिवार्य है। फॉर्म 17 सी में भी दो भाग होते हैं। पहले में दर्ज वोटों का हिसाब होता है तो वहीं दूसरे में गिनती का नतीजा होता है। पहला भाग वोटिंग के दिन भरा जाता है। इसमें बूथ पर इस्तेमाल की जाने वाली मशीन का आईडी नंबर होता है। बूथ पर आवंटित मतदाताओं की कुल संख्या, मतदाता रजिस्टर (फॉर्म 17ए) में दर्ज मतदाताओं की कुल संख्या, कितने टेस्टिंग वोट हटाए जाने हैं और प्रति वोटिंग मशीन में दर्ज कुल वोटों की जानकारी होती है। इस फॉर्म के दूसरे भाग में फाइनल नतीजा होता है, जो काउंटिंग के दिन भरा जाता है।

You may also like

MERA DDDD DDD DD