भारत के ज्यादातर घरों में एयर कंडीशनर और रेफ्रिजरेटर में इस्तेमाल होने वाली हाइड्रोफ्लोरोकार्बन यानी एचएफएफसी गैसें इतनी खतरनाक हैं कि यूरोप में इन पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने की तैयारी की जा रही है।
दरअसल, हाइड्रोफ्लोरोकार्बन गैस पर्यावरण और लोगों के स्वास्थ्य के लिए काफी नुकसानदायक है। इसलिए सबसे खतरनाक ग्रीनहाउस गैसों में से एक हाइड्रोफ्लोरोकार्बन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिए यूरोपीय संघ (EU) में एक संधि समझौता हुआ है। EU के सभी 27 सदस्य देश वर्ष 2050 तक इन गैसों के उपयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने पर सहमत हुए हैं। इन गैसों का उपयोग हीटिंग और कूलिंग उपकरणों के अलावा फोम में भी किया जाता है।
फ्लोरीन और हाइड्रोजन परमाणुओं से बनी हाइड्रोफ्लोरोकार्बन गैसें ओजोन परत को नुकसान पहुंचाती हैं जो पृथ्वी को सूर्य के विकिरण से बचाती है। यूरोप में 2023 की शुरुआत से फ्लोराइड युक्त गैसों के उपयोग को धीरे-धीरे बंद करना शुरू कर दिया गया है। इन गैसों में हाइड्रोफ्लोरोकार्बन, पेरफ्लूरोकार्बन, सल्फर हेक्साफ्लोराइड और नाइट्रोजन ट्राइफ्लोराइड शामिल हैं और केवल ‘एफ गैसों’ के अंतर्गत आते हैं।
गौरतलब है कि एल्युमीनियम के उत्पादन के दौरान एफ गैसें बड़ी मात्रा में उत्पन्न होती हैं। इनका उपयोग एयर कंडीशनर, रेफ्रिजरेटर, हीट पंप, एरोसोल और प्रेशर स्प्रे में किया जाता है। एफ गैसें अन्य ग्रीनहाउस गैसों की तुलना में अधिक तापमान अवशोषित करती हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार, F गैसें हमारे वायुमंडल में लगभग 50 हजार वर्षों तक बनी रह सकती हैं। आमतौर पर एफ गैसों के बारे में ज्यादा चर्चा नहीं होती। लेकिन इनका जलवायु पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। क्लोरो-फ्लोरो कार्बन या सीएफसी का उपयोग रेफ्रिजरेटर और एयर कंडीशनर में किया जाता है। यह गैस ओजोन परत को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाती है। सीएफसी से उत्सर्जित क्लोरीन गैस ओजोन के तीन ऑक्सीजन परमाणुओं में से एक के साथ प्रतिक्रिया करती है। क्लोरीन का एक परमाणु ओजोन के 1 लाख अणुओं को नष्ट कर देता है। परिणामस्वरूप ओजोन परत पतली होती जा रही है।
पृथ्वी से 30 मील ऊपर तक का क्षेत्र हमारा वायुमंडल है। ओजोन परत की खोज 1913 में फ्रांसीसी वैज्ञानिक फैब्री चार्ल्स और हेनरी बुसन ने की थी। ब्रिटिश मौसम विज्ञानी जीएमबी डॉब्सन ने नीली गैस से बनी ओजोन परत के गुणों का विस्तार से अध्ययन किया। डॉब्सन ने 1928 और 1958 के बीच दुनिया भर में ओजोन परत निगरानी स्टेशनों का एक नेटवर्क स्थापित किया। ओजोन मापने वाली इकाई डॉब्सन का नाम जीएमबी डॉब्सन के सम्मान में रखा गया था।
किन गंभीर बीमारियों का खतरा है और क्यों?
कई शोध रिपोर्टों में कहा गया है कि ओजोन परत के नष्ट होने से कैंसर, मलेरिया, मोतियाबिंद और त्वचा कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों से पीड़ित मरीजों की संख्या में वृद्धि होगी। वहीं समुद्र तटों के पास रहने वाली आबादी को सबसे ज्यादा नुकसान होगा। ओजोन परत को पृथ्वी की छत्रछाया और पर्यावरण का सुरक्षा कवच भी कहा जाता है। यदि ओजोन परत बहुत पतली हो गई तो पृथ्वी पर जीवन बहुत कठिन हो जाएगा। दरअसल, अगर ओजोन परत बहुत पतली हो जाएगी तो पराबैंगनी किरणें आसानी से धरती तक पहुंच जाएंगी। पराबैंगनी किरणों के हानिकारक प्रभाव से गंभीर बीमारियाँ बढ़ेंगी।
समुद्री जीवन को ख़तरा
वैज्ञानिकों का कहना है कि पराबैंगनी किरणें सीधे धरती पर पहुंचने से और ओजोन परत को नुकसान होने से समुद्री जीवों को भी खतरा होगा। नासा के मुताबिक, ओजोन परत में उत्तरी अमेरिका के आकार से भी बड़ा छेद हो गया है, जो काफी चिंताजनक है। ओजोन परत में पहला छेद अंटार्कटिका के ठीक ऊपर बना। इसलिए क्षेत्र में ग्लेशियरों के पिघलने की दर बढ़ गई है। इससे कई तटीय इलाकों के डूबने का खतरा भी बढ़ रहा है। ओजोन परत के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए संयुक्त राष्ट्र की पहल पर हर साल 16 सितंबर को अंतर्राष्ट्रीय ओजोन दिवस मनाया जाता है।