देश की सबसे बड़ी पंचायत राज्यसभा एक ऐसी जगह है जहां किसी भी कानून को बनाने के लिए सत्ता पक्ष के पास बहुमत होना जरूरी होता है। इस ताक में सत्ता में बैठी पार्टी हमेशा रहती है कि राज्यसभा में वह मजबूत रहे। इस बार के राज्यसभा चुनाव में भी भाजपा इसी कोशिश में है। असल में चुनाव आयोग ने नौ राज्यों की 12 राज्यसभा सीटों के लिए तीन सितम्बर को चुनाव का ऐलान कर दिया है। इसके बाद तमाम पार्टियां अपनी मजबूती के लिए तैयारी में जुट गई हैं। वहीं वक्फ बोर्ड बिल संशोधन कानून को लेकर बीते दिनों लोकसभा में काफी हंगामा देखने को मिला। इस बिल को सरकार किसी भी तरह पास करना चाहती है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि बिल को ज्वाइंट पार्लियामेंट कमेटी (जेपीसी) के पास भेज तो दिया है, मगर पास कब और कैसे हो सकता है। इसके पीछे सरकार की क्या रणनीति है?

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि सरकार को नवम्बर- दिसम्बर में संसद के अगले सत्र में राज्यसभा में वक्फ संशोधन विधेयक को पारित कराने में कोई कठिनाई नहीं होगी, क्योंकि तब तक एनडीए के पास उच्च सदन में पर्याप्त संख्या बल होने की उम्मीद है। आगामी चुनावों के बाद एनडीए के सदस्यों की संख्या, छह मौजूदा मनोनीत सदस्यों और दो निर्दलीयों के साथ, 117 तक पहुंच सकती है। 237 सदस्यीय सदन में बहुमत के आंकड़े 119 से केवल दो कम, जिसमें जम्मू-कश्मीर और मनोनीत श्रेणी से चार-चार सहित आठ रिक्तियां शामिल हैं। यदि सरकार चार मनोनीत सीटों को भरती है, तो सदन की ताकत 241 हो जाएगी और बहुमत का आंकड़ा 121 होगा। मनोनीत सदस्य अनिवार्य रूप से सरकार के साथ जाते हैं, इसलिए एनडीए की ताकत 117 से बढ़कर 121 हो जाएगी जो कि पूर्ण बहुमत का आंकड़ा है।

जहां तक सवाल है इसके पीछे क्या रणनीति है तो नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने दस साल में पहली बार किसी मसले पर संयुक्त संसदीय समिति का गठन किया है। इस जेपीसी के गठन को लेकर दो तरह के दावे हैं। विपक्षी गठबंधन का दावा है कि लोकसभा में उसकी बढ़ी हुई ताकत की वजह से सरकार इस बिल को पास नहीं करा पाई और उसने मजबूरी में जेपीसी का गठन करने की सहमति दी। दूसरी ओर भाजपा नेता और सोशल मीडिया में दक्षिणपंथी राजनीति का समर्थन करने वाले कार्यकर्ता दावा कर रहे हैं कि एक रणनीति के तहत सरकार ने इस मसले पर जेपीसी बनाने का फैसला लिया है।

रणनीति होने न होने के बीच एक बड़ा सवाल इस विधेयक की टाइमिंग को लेकर है। सरकार को पता है कि लोकसभा में इस विधेयक को पास कराने में कोई समस्या नहीं है क्योंकि उसके पास बहुमत से ज्यादा संख्या है और सहयोगी पार्टियां इसके खिलाफ नहीं हैं। जनता दल यू के राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने बिल का समर्थन करके साबित भी किया। लेकिन राज्यसभा में सरकार के पास बहुमत नहीं है यह भी सरकार को पता है। एनडीए का बहुमत पहले भी नहीं था लेकिन तब भाजपा की अपनी संख्या एक सौ के करीब थी और उसे वाईएसआर कांग्रेस, बीजद आदि का बाहर से समर्थन था। मगर लोकसभा चुनाव के बाद राज्यसभा में भाजपा के आठ सांसद कम हो गए हैं क्योंकि वे लोकसभा सदस्य बन गए। इसके अलावा चार
मनोनीत सांसद भी रिटायर हो गए, जो भाजपा के सदस्य थे। इस तरह भाजपा की संख्या 86 रह गई है। ऊपर से जगन का समर्थन भी अब पहले जैसा नहीं है क्योंकि टीडीपी के साथ भाजपा का तालमेल हो गया है।

लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के दो महीने बाद तक चुनाव आयोग ने राज्यसभा सीटों के उपचुनाव की घोषणा कर तीन सितंबर की तारीख तय की है। चार मनोनीत सीटें भी अभी तक खाली हैं। यानी सरकार राज्यसभा में अपनी संख्या बढ़ाने को लेकर किसी जल्दबाजी में नहीं है। तभी ऐसा लग रहा है कि उसने पहले से तय किया हुआ था कि अगस्त के पहले हफ्ते में बड़ा फैसला करने की परिपाटी जारी रखते हुए वक्फ बिल पेश करेंगे और उसे जेपीसी को भेजेंगे। इस बिल को जेपीसी में भेजने का एक फायदा सरकार को यह होगा कि विपक्ष यह दावा नहीं कर पाएगा कि ऐसे अहम बिल को सरकार ने एकतरफा और मनमाने तरीके से पास कराया है। सबको पता है कि जेपीसी में सत्ता पक्ष का ही बहुमत होता है और उसके हिसाब से ही फैसले भी आते हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि जेपीसी की बैठक में बिल के कुछ प्रावधानों में बदलाव की सिफारिश होगी, जिसमें से कुछ को सरकार मान लेगी और कुछ ठुकरा देगी। जब तक जेपीसी की रिपोर्ट आएगी तब तक राज्यसभा में भाजपा की अपनी संख्या एक सौ तक पहुंच जाएगी और जदयू, टीडीपी, शिवसेना, एनसीपी आदि की मदद से वह बहुमत हासिल कर लेगी। तब तक चार राज्यों के विधानसभा चुनाव भी निपट जाएंगे, जिससे कोई भी सहयोगी पार्टी वोटिंग को लेकर असमंजस की स्थिति में नहीं आएगी।

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