खालिस्तान समर्थकों और देश की सरकार के बीच स्वतंत्रता के बाद से ही शुरू हुआ विरोध अब तक शांत नहीं हो पाया है जो धीरे – धीरे विदेशों तक फैल रहा है। हाल ही में अमेरिका में एक रिपोर्ट सामने आई थी जिसके अनुसार भारत खालिस्तान का समर्थन करने वाले “सिख फॉर जस्टिस” संगठन के प्रमुख गुरपतवंत सिंह पन्नू को मारने की साजिश रच रही थी जिसे अमेरिका सरकार ने नाकाम कर दिया। जिसके बाद अमेरिका ने दावा करते हुए कहा है कि निखिल गुप्ता और भारत सरकार में अधिकारी CC-1 (अमेरिका द्वारा दिया गया कोड नेम) ने इस विफल साजिश को देने का प्रयास किया था।
अमेरिका का कहना कहना है कि “न्यूयॉर्क में भारतीय मूल के एक अमेरिकी नागरिक की हत्या की विफल साजिश में भारतीय अधिकारी की भागीदारी थी। ” अमेरिका ने स्पष्ट रूप से पन्नू का नाम तो नहीं तो नहीं लिया है लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार यह बात पन्नू के लिए ही कही गयी है। रिपोर्ट्स के अनुसार CC-1 ने निखिल गुप्ता को पन्नू की मौत का जिम्मा सौंपा था। जिसके लिए पन्नू के एक हिटमैन के सहारे पन्नू को खत्म करने की कोशिश की लेकिन यह हिटमैन अमेरिका का ख़ुफ़िया खबरी था जिसने अमेरिका सरकार तक यह जानकारी पहुंचाई। फिलहाल अमेरिकी ने निखिल गुप्ता पर मुकदमा दर्ज कर लिया है, उसे जून में चेक रिपब्लिक में गिरफ्तार किया गया था और उसके अमेरिका को प्रत्यार्पण की प्रक्रिया चल रही है।
समाचार रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका यह भी कह रही है कि यही आरोपी हरदीप सिंह निज्जर के मर्डर की प्लानिंग में भी शामिल थे। हालांकि, अमेरिका द्वारा लगाए गए आरोपों पर जवाब देते हुए भारत सरकार ने पन्नू मामले में जांच का ऐलान कर दिया है। भारत सरकार ने बुधवार को कहा कि उसने इस मामले की जांच के लिए 18 नवंबर को एक उच्च-स्तरीय जांच समिति का गठन किया था। 22 नवंबर को अपनी पहली प्रतिक्रिया में, भारत ने यह नहीं बताया था कि एक पैनल पहले से ही अमेरिकी अधिकारियों की ओर से साझा की गई साजिश के बारे में दी गई जानकारी की जांच कर रहा है।
क्या है खालिस्तान
खालिस्तान का शाब्दिक अर्थ है ”खालसाओं का देश”। सिख समुदाय आज़ादी के पहले से ही खालिस्तान के रूप में एक अलग राष्ट्र की मांग कर रहा है। लेकिन आज़ादी के बाद से खालिस्तान की मांग और प्रबल हो गई। जब भारत को दो टुकड़ों भारत (हिन्दू बहुल क्षेत्र) और पाकिस्तान (मुश्लिम बहुल क्षेत्र) में विभाजित कर दिया गया। इस विभाजन में पंजाब प्रान्त के भी दो टुकड़े हो गए। पंजाब का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान में चला गया और दूसरा हिस्सा भारत के हिस्से में आया। विभाजन के बाद आम जनता को काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ा क्योंकि पाकिस्तान में फसे हिन्दुओं को मुस्लिमों द्वारा और भारत में उपस्थित मुस्लिमों को हिन्दुओं द्वारा प्रताड़ित किया जा रहा था।
लेकिन इन सब के बीच पंजाब में रहने वाले सिक्ख समुदाय को अधिक मुश्किलों का सामना करना पड़ा क्योंकि काफी मात्रा में पाकिस्तान में रहने वाले हिन्दू-सिक्खों को भागकर भारत आना पड़ा। जिसके बाद सिक्ख समुदाय को ऐसा एहसास हुआ कि धर्मों की बहुलता के आधार जिस प्रकार भारत और पाकिस्तान का बटवारा हुआ है उसी प्रकार सिक्खों के लिए एक अलग राष्ट्र ‘खालिस्तान’ बनाया जाना चाहिए। इसी के चलते पाकिस्तान से आईएसआई के समर्थन के साथ साल 1947 में पंजाब में खालिस्तान आंदोलन की शुरुआत हुई। जिसके परिणामस्वरूप साल 1950 में अकाली दल के नेतृत्व ‘सूबा’ आंदोलन चलाया जिसके द्वारा उन्होंने अलग प्रान्त की मांग की। लेकिन भारतीय सरकार ने ऐसा करने से साफ़ इंकार कर दिया। लेकिन आंदोलन फिर भी जारी रहा।
अतः साल 1966 में सरकार द्वारा सिक्खों की मांग को मान लिया गया और पंजाब को एक अलग राज्य बनाने का निर्णय देते हुए कहा गया कि पंजाब के अलग होने के बाद भी हिमाचल और हरियाणा भारत का हिस्सा रहेंगे। लेकिन अकालियों अर्थात खालिस्तानी समर्थकों ने इस फैसले को मानने से साफ़ इंकार कर दिया क्योंकि वे चाहते थे की चंडीगढ़ राज्य को भी पंजाब में शामिल कर दिया जाये और पंजाब से निकलने वाली नदियों पर उनके आलावा किसीका अधिकार नहीं होगा जिसका पानी हरियाणा और राजस्थान में भी जल आपूर्ति का साधन है। इस मांग को भारतीय सरकार द्वारा स्वीकार नहीं किया गया। तब से आज तक यह आंदोलन शांत नहीं हो सका है।
साल 1967 में आंदोलन के संस्थापक जगजीत सिंह चौहान को विधानसभा के सदस्य के रूप में चुना गया लेकिन 1969 में हुए विधानसभा चुनाव में वह हार गए। जिसके बाद उन्होंने खालिस्तान का प्रचार करना शुरू कर दिया और अपनी सरकार बनाने के लिए वे 1971 में पाकिस्तान गए जहाँ उन्हें सिक्ख नेता के रूप में चुन लिया गया। इसके बाद उन्होंने अपने समर्थक को जोड़ना शुरू किया और वर्ष1980 में, चौहान ने औपचारिक रूप से आनंदपुर साहिब में नेशनल काउंसिल ऑफ खालिस्तान के गठन की घोषणा की और खुद को इसका अध्यक्ष घोषित कर दिया।
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