•             संजय चौहान

 

वर्ष 2015 का वह साल जब जनपद चमोली के वीणा में सरकारी विद्यालय पर बंदी की तलवार लटक रही थी। छात्रों की संख्या सिर्फ 15 ही रह गई थी। ऐसे में शिक्षिका कुसुम लता गड़िया का इस स्कूल में आगमन हुआ। कुसुम लता स्कूल में आते ही अपने अभिनव प्रयोग शुरू कर दिए। उनके प्रयासों से इस विद्यालय को बेहतरीन स्कूलों में गिना जाने लगा है। इस स्कूल में गड़िया ने अपनी मेहनत एवं अपने वेतन के कुछ अंश को खर्च कर लर्निंग कॉर्नर, पेंटिंग से इस तरह सजाया है जिसकी हर कोई तारीफ करता है। स्कूल में ऑनलाइन पढ़ाई से लेकर तमाम शैक्षणिक, सांस्कृतिक एवं खेलकूद आदि क्षेत्रों में यहां के छात्र बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते आए हैं। विगत वर्षों में यहां के छात्र-छात्राओं ने योग, खेलकूद, विज्ञान महोत्सव आदि में राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिभाग किया। प्रत्येक वर्ष इस स्कूल के छात्र छात्रवृत्ति परीक्षाओं में सफल होते आ रहे हैं। शिक्षिका गड़िया के द्वारा स्कूल की दीवारों पर क्यूआरकोड का नया प्रयोग किया है जिसकी देशभर में सराहना की जा रही है

यह पहाड़ की उस शिक्षिका के भगीरथ प्रयासों की दास्तान है जिन्होंने अपनी जिद, जुनून, मेहनत और ललक से शिक्षा के मंदिर की तस्वीर बदल कर रख दी है। उस शिक्षिका का नाम है कुसुम लता गड़िया जिनके शिक्षा का वीणा मॉडल आज लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बना हुआ है।

25 सालों से जला रही हैं शिक्षा की अलख
सीमांत जनपद चमोली के थराली ब्लाक के जोलाकोट (बुढजोला) निवासी और शिक्षिका कुसुम लता गड़िया की तरह यदि सभी शिक्षक शिक्षिकायें अपने विद्यालय में गुणवत्तापरक शिक्षा को लेकर कुछ अभिनव प्रयोग करें तो सूबे की शिक्षा व्यवस्था पूरे देश मे सबसे अब्बल पायदान पर होगी। कुसुम लता वर्तमान में चमोली जनपद के पोखरी ब्लॉक राजकीय प्राथमिक विद्यालय वीणा में शिक्षिका के पद पर कार्यरत हैं। उनके प्रयासों चलते पहाड़ के दूरस्थ गांव में स्थित ये सरकारी विद्यालय लोगों के मध्य आकर्षण का केंद्र बना हुआ है, क्योंकि पांच साल पहले छात्र संख्या बेहद कम होने के कारण इस विद्यालय पर कभी बंदी की तलवार लटकी हुई थी। लेकिन 2015 में इस विद्यालय में तैनात हुई शिक्षिका कुसुम लता गड़िया ने न केवल अपनी जिद, जुनून और मेहनत से अभिभावकों का विश्वास जीता अपितु धीरे-धीरे विद्यालय की छात्र संख्या में भी बढ़ोतरी होती गई। आज उक्त विद्यालय बेहतर शिक्षा और अन्य गतिविधियों के लिए जनपद ही नहीं प्रदेश स्तर पर अपनी पहचान बना पानें में सफल साबित हुआ है। शिक्षिका कुसुम लता गड़िया की जिद, मेहनत और ललक का परिणाम है कि लोगों का भरोसा सरकारी स्कूल के प्रति बढ़ा है। पहाड़ के गांव में स्थित यह विद्यालय शहरों के नामी गिरामी विद्यालयों से हर क्षेत्र में मीलों आगे है।
गुणवत्तापरक शिक्षा और शैक्षणिक गतिविधियों पर विशेष जोर

पहाड़ों के गांवों में आज भी नौनिहालां को गुणवत्तापरक शिक्षा मय्यसर नहीं हो पाती है। जिस कारण से पहाड़ से लोगों का सबसे ज्यादा पलायन शिक्षा के लिए हुआ है। लेकिन शिक्षिका कुसुम लता गड़िया के प्रयासों से आज रा.उ.प्रा.वि. वीणा गुणवत्ता परक शिक्षा का केंद्र बन चुका है। शिक्षिका ने विद्यालय में लर्निंग कॉर्नर, पेंटिंग, टीएलएम, ऑनलाइन क्लासेज, वाल पेंटिंग, पोस्टर अभियान के जरिए छात्र छात्राओं को गुणवत्ता परक शिक्षा से जोड़ा है। कुसुम लता का मानना है कि शिक्षा बेवजह थोपी नहीं जानी चाहिए, बल्कि रुचिकर शिक्षा से ही छात्र छात्राओं को बेहतर शिक्षा दी जा सकती है। इसके अलावा विद्यालय में शिक्षा के लिए स्वस्थ माहौल होना बेहद जरूरी है। उनके द्वारा समय-समय पर विद्यालय में अन्य शैक्षणिक गतिविधियां और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी संचालित किए जाते हैं। इसके पीछे उद्देश्य है कि छात्रों को एक बेहतर मंच मिले और वे खुलकर सामने आयें जिससे उन्हें खुद पर विश्वास और भरोसा हो सकें। विगत दिनों विद्यालय में आयोजित प्रवेशांक/स्वागत दिवस और पोषण दिवस के आयोजन ने हर किसी को मंत्रमुग्ध कर दिया था। हर किसी ने इन आयोजनों की भूरी-भूरी प्रशंसा की। कोरोनाकाल में कुसुम लता ने स्कूल के छात्र छात्राओं को ऑनलाइन पढ़ाई कराई जबकि विभिन्न राज्यों के विद्यालयों के लिए पाठ्यक्रमों का ऑनलाइन लर्निंग वीडियो भी बनाई। ताकि छात्र-छात्राओं को पढ़ने के लिए बेहतर मौका मिले। बेहतर शिक्षा के लिए कुसुम लता को विभिन्न अवसरों पर राज्य से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक दर्जनों सम्मान भी मिल चुके हैं। लेकिन वे कहती हैं कि मैं अपने कार्य और जिम्मेदारी का भलीभांति निर्वहन कर रही हूं जो सबसे बड़ा पुरस्कार है। आत्मसंतुष्टि ही मेरे लिए सबसे बड़ा सम्मान है।

‘क्यूआरकोड’ के जरिए शिक्षा के मॉडल की सराहना…

कोरोनाकाल को कैसे अवसर में बदला जा सकता है, ये सीखना है तो रा.उ.प्रा.वि. वीणा की शिक्षिका कुसुम लता गड़िया से सीखा जा सकता है। जिन्होंने लॉकडाउन में दिन रात एक करके, इंटरनेट की खाक छानकर स्कूल की बेजान दीवारों पर ‘क्यूआरकोड’ के जरिए शिक्षा की एक नई परिभाषा गढ़ी है। वीणा उत्तराखण्ड का पहला विद्यालय है जहां क्यूआरकोड का प्रयोग शिक्षण को रुचिकर और सुगम बनाने में किया गया। शिक्षा के वीणा मॉडल की हर जगह प्रशंसा हो रही है।

ये होता है क्यूआरकोड…
अधिकतर विद्यालयों की दीवारों पर बने चित्र मात्र चित्र ही बनकर रह जाते और उससे सम्बन्धित जानकारियों से छात्र अनभिज्ञ रह जाते हैं या बहुत कम जानकारी उस चित्र से सम्बन्धित छात्रों के पास होती है। लेकिन अब विद्यालय की प्रत्येक शिक्षण/सीखने की सामग्री (ज्स्ड) और चित्रों पर क्यूआरकोड लगाया गया है जिसे गूगल लेंस से स्कैन करते ही उस चित्र से सम्बन्धित वीडियो मोबाइल पर शुरू हो जाता है। क्यूआरकोड से शिक्षण रूचिकर तो होता ही है साथ ही बाहरी ज्ञान से छात्रों को जोड़ने में सफलता मिलती है। रा.उ.प्रा.वि. वीणा के प्रत्येक सामान पर भी क्यूआरकोड लगाया गया है।

पर्यावरण संरक्षण और स्वच्छता की दीक्षा

शिक्षा के वीणा मॉडल में न केवल आखर ज्ञान और गुणवत्ता परक शिक्षा मिलती है अपितु यहां पर सामूहिक सहभागिता के जरिए छात्र छात्राओं और ग्रामीणों को पर्यावरण संरक्षण और स्वच्छता की दीक्षा भी दी जाती है। शिक्षिका कुसुम लता गड़िया द्वारा प्रत्येक सप्ताह और विशेष पर्वों पर विद्यालय प्रांगण से लेकर गांव, पनघट, जल स्रोतों सहित विभिन्न जगहों पर स्वच्छता अभियान चलाया जाता है वहीं पर्यावरण संरक्षण की महत्ता को विद्यालय व गांव में समय-समय पर जागरूकता अभियान और वृक्षारोपण भी किया जाता है। विगत दिनों पेड़ वाले गुरूजी धन सिंह घरिया के सहयोग और प्रोत्साहन से विद्यालय परिसर और गांव में वृक्षारोपण किया गया था। इस दौरान महिलाओं द्वारा पारम्परिक लोकगीतों के संग वृक्षारोपण को सफल बनाया गया। इसके अलावा विद्यालय में स्थानीय जड़ी बूटियों का एक संग्रह बनाया गया है जिस पर क्यूआर कोड भी लगाया गया है। क्यूआरकोड स्केन करते ही उस प्लान्ट से सम्बन्धित पूरी जानकारी मोबाइल पर देख सकते हैं, ये जानकारी टैक्स और विडियो के रूप में छात्रों को प्राप्त होगी। शिक्षिका कुसुम लता का मानना है कि छात्रों को पर्यावरण संरक्षण और स्वच्छता की जानकारी होनी चाहिए तभी वे इनके फायदे और हानियों से भली भांति परिचित होंगे।

‘शिक्षा के जरिए ही समाज में बदलाव लाया जा सकता है’

कुसुम को सम्मानित करते तत्कालीन भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट और पूर्व शिक्षा मंत्री अरविंद पाण्डेय

शिक्षिका कुसुम लता गड़िया से शिक्षा को लेकर लंबी बातचीत हुई। बकौल कुसुम लता, मेरे कार्य से जब मेरे छात्र-छात्राओं के चेहरे पर मुस्कान होती है तब जाकर सुकून मिलता है। शिक्षा के जरिए समाज में बदलाव लाया जा सकता है। शिक्षक की समाज निर्माण में अहम भूमिका होती है। इसलिए हमारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी होती है कि हम कैसी शिक्षा देते हैं। मैं विगत 25 बरसों से नौनिहालों को शिक्षा दे रही हूं। मेरे लिए मेरे परिवार से भी बढ़कर मेरा विद्यालय है। आज का दौर डिजिटल शिक्षा का दौर है, इसलिए चुनौती बहुत बढ़ गई है। हमें हर रोज अपडेट होना पडेगा। मुझे खुशी है कि मुझे हर स्तर पर सहयोग मिला है चाहे वो भागचंद केशवानी सर, शिक्षक सत्येंद्र भंडारी सर, पेड़ वाले गुरुजी धन सिंह घरिया जी हो या हमारे शिक्षा महकमे के अधिकारी, मेरे सहयोगी शिक्षक व अभिभावक, ग्रामीण सबने मुझे हमेशा प्रोत्साहन दिया। मेरी प्रेरणा मेरी मां, बेटी और परिवार हैं जिनके सहयोग और भरोसे के बिना कुछ भी संभव नहीं था। आज जब पीछे मुड़कर देखती हूं तो बहुत सुकून और खुशी मिलती है कि मैं कुछ कर सकी हूं। हर माता-पिता को बेटे ही नहीं, बल्कि बेटियों को भी बेहतर शिक्षा देनी चाहिए। आज बेटियां भी ओलम्पिक से लेकर विशाल नीले आसमान तक हर क्षेत्र में अपनी सफलता का परचम लहरा रही हैं। उन्हें ऊंची उड़ान भरने दो। शिक्षा पर बेटा और बेटी दोनों का बराबर अधिकार है। मुझे खुशी है कि पहाड़ में बेटियों को भी बेटे के बराबर अधिकार और अवसर दिया जा रहा है।

कुसुम लता को प्रतिष्ठित शैलेश मटियानी पुरस्कार

शिक्षा विभाग की ओर से शैलेश मटियानी राज्य शैक्षिक पुरस्कार की घोषणा कर दी गई है। शिक्षिका कुसुम लता गड़िया का भी चयन ‘शैलेश मटियानी राज्य शैक्षिक पुरस्कार-2023’ के लिए हुआ है। शिक्षा का वीणा मॉडल आज लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बना हुआ है। राज्य में शिक्षा के उन्नयन एवं गुणात्मक सुधार हेतु उत्कृष्ट कार्य करने वाले 17 शिक्षकों को ‘शैलेश मटियानी राज्य शैक्षिक पुरस्कार-2023’ मिलेगा। प्रारम्भिक शिक्षा के 11 शिक्षकों, माध्यमिक के 5 और प्रशिक्षण संस्थान के एक शिक्षक को ये सम्मान मिलेगा।

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