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आप से टूटी आस, भाजपा पर विश्वास

जिस जनता ने 12 साल में तीन बार लगातार अरविंद केजरीवाल को दिल्ली की ‘कुर्सी’ पर बिठाया आखिर उसी जनता ने बदलाव कर दिखाया। दिल्ली में केजरीवाल ईमानदार राजनीति के नाम पर सत्ता में आए थे। लेकिन वह और उनकी पूरी पार्टी भ्रष्टाचार और घोटालों के आरोपों में बुरी तरह से घिर गई। केजरीवाल की विश्वसनीयता पर उठते सवाल, शीशमहल विवाद, कांग्रेस से गठबंधन न होना, महिला आर्थिक सहायता योजना का लागू न होना, सफाई और पानी की समस्या सहित कई कारण जनता की नाराजगी के रहे। दिल्ली चुनाव ने यह भी साबित किया है कि केवल मुफ्त सुविधाएं देना ही काफी नहीं होता, बल्कि जनता को बुनियादी सुविधाओं की भी आवश्यकता होती है। 27 साल के वनवास बाद दिल्ली में भी डबल इंजन की सरकार बनाकर भाजपा विकास के रास्ते पर आगे बढ़ने का दावा कर रही है

दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपने चुनावी भाषणों में कहा करते थे कि अगर जनता उन्हें जेल में देखना चाहती है तो वो भाजपा को वोट दे सकती है। 8 फरवरी को आए परिणामों में ऐसा ही हुआ जब दिल्ली की जनता ने केजरीवाल पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों पर भी अपना फैसला सुना दिया। आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिनमें से उसके 48 यानी 69 प्रतिशत उम्मीदवार चुनाव हार गए। चुनाव हारने वालों में पार्टी के कई बड़े नेताओं के नाम हैं।

छोटी-सी कार, स्वेटर और मफलर वाली इमेज से निकलकर करोड़ों का शीशमहल खड़ा करने तक केजरीवाल की बदलती छवि को भाजपा ने जनता के सामने रख दिया। जो केजरीवाल मफलर, स्वेटर और सिर पर टोपी पहनकर खुद को आम आदमी बताते थे और कहते थे कि वे कभी सरकारी आवास और गाड़ी तक का उपयोग नहीं करेंगे। इन्हीं केजरीवाल पर सरकारी बंगले को शीशमहल बनाने का आरोप लगा। सरकारी आवास को चमकदार और आलीशान बनाने के लि 45 करोड़ रुपए के खर्च को भाजपा ने इन चुनावों में एक बड़ा मुद्दा बनाया था और बकायदा इसका वीडियो भी जारी किया था।

अरविंद केजरीवाल ईमानदार राजनीति के नाम पर सत्ता में आए थे। लेकिन, वह और उनकी पूरी पार्टी भ्रष्टाचार और घोटालों के आरोपों में बुरी तरह से घिर गई। केजरीवाल समेत पार्टी के कई नेता तिहाड़ जेल में रहे, लेकिन नैतिकता के नाम पर भी कुर्सी नहीं छोड़ी। केजरीवाल ने इस्तीफा भी दिया तो तब जाकर इस्तीफा दिया जब सुप्रीम कोर्ट ने जमानत तो दी, लेकिन ऐसी शर्तें लगा दीं कि न तो मुख्यमंत्री कार्यालय जा सकते हैं और ना ही किसी फाइल पर साइन कर सकते थे। फिर भी इस चुनाव में केजरीवाल खुद को अगले मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट करते रहे थे, यह बात दिल्ली के मतदाताओं को पच नहीं पाई। जिसका नतीजा उनकी हार के रूप में सामने आया है।

अरविंद केजरीवाल के राजनीतिक इतिहास की बात करें तो उन्होंने पहली बार 2011 में अन्ना हजारे के नेतृत्व वाले भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के दौरान प्रसिद्धि हासिल की। हालांकि उनकी भ्रष्टाचार विरोधी छवि को झटका तब लगा जब उन्हें और आप के वरिष्ठ नेताओं को कथित शराब नीति घोटाले में शामिल पाया गया, जिसके चलते वे जेल भी गए। आप सरकार ने 2021 में एक नई शराब नीति शुरू की। इस नई उत्पाद नीति का उद्देश्य शराब बिक्री का निजीकरण कर राजस्व बढ़ाना और शराब माफिया को खत्म करना बताया गया था। हालांकि आरोप लगे कि यह नीति कुछ निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए बनाई गई थी, जिससे वित्तीय अनियमितताएं हुईं। जांच में सामने आया कि आप नेताओं जिनमें केजरीवाल भी शामिल थे, ने इसमें भ्रष्टाचार किया।

उधर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बार दिल्ली चुनाव की कमान अपने हाथ में रखी और प्रदेश में 5 बड़ी रैलियां कीं। इन रैलियों के जरिए उन्होंने 40 सीटों को कवर किया। मोदी का जादू कैसे चला, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इनमें से करीब 30 सीटों पर भाजपा को जीत हासिल हुई। प्रधानमंत्री मोदी ने इस बार हिंदू-मुसलमान और ‘एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे’ से दूर रहते हुए पूरी तरह से विकास और सहूलियतों को अपनी जनसभाओं में जनता के सामने प्रमुखता से रखा। इसका सकारात्मक असर मतदाताओं पर देखने को मिला। प्रधानमंत्री मोदी ने उत्तराखण्ड एवं उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों का हवाला देते हुए स्पष्ट कहा कि भाजपा की जीत पर डबल इंजन की सरकार दिल्ली वालों के विकास में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। क्योंकि केजरीवाल पहले से ही यह कहते आ रहे थे कि केंद्र सरकार उन्हें काम नहीं करने दे रही है। ऐसे में जनता ने यह मन बना लिया कि केंद्र के साथ ही दिल्ली की भी सरकार भाजपा की होगी तो विकास ज्यादा होगा।

दिल्ली में बड़ी तादाद में सरकारी कर्मचारी भी हैं और केंद्र सरकार ने जिस तरह से इस बार के बजट में आयकर में मध्यम वर्ग को बहुत बड़ी रियायत दी है, उसने भी केजरीवाल का सियासी काम तमाम काम करने का काम किया है। दिल्ली में करीब 3.38 करोड़ लोग निवास करते हैं। इनमें एक बड़ी जनसंख्या मध्यम वर्ग की है। करीब 67 प्रतिशत लोग मध्यम वर्ग में आते हैं। चुनाव से ठीक पहले केंद्र सरकार ने बजट में 12 लाख रुपए तक की आय पर टैक्स में शत प्रतिशत छूट देकर इस वर्ग में खुशी की लहर दौड़ा दी। इसी के साथ चुनाव से कुछ ही दिन पहले ही भाजपा ने आठवें वेतन आयोग का गठन करने की घोषणा से सरकारी वर्ग के मध्यम वर्ग को खुशखबरी दे डाली और इन दोनों घोषणाओं की टाइमिंग ऐसी रही कि कुछ ही दिन बाद मध्यम वर्ग को दिल्ली में सरकार चुनने के लिए वोट डालना था। नतीजा भाजपा के पक्ष में आया।

देश के इतिहास में कई मुख्यमंत्री ऐसे रहे जिन्होंने जेल जाने से पहले पद से इस्तीफा दे दिया था। लेकिन अरविंद केजरीवाल ने जेल से ही सरकार चलाने का निर्णय लिया, जिसका खामियाजा उन्हें चुनाव में भुगतना पड़ा। वहीं इसी दौरान जमीन घोटाले में जेल जाने से पहले झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने पद से इस्तीफा दिया था और चुनाव में प्रदेश की जनता ने हेमंत सोरेन के प्रति सहानुभूति दिखाई और उनकी पार्टी ने चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया तो वहीं दूसरी तरफ दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के प्रति वैसी सहानुभूति नहीं देखी गई।

केजरीवाल का जो वोट बैंक कहा गया वह भी उससे खिसक गया। अनुसूचित जाति, झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोग और दिल्ली के ऑटो वालों को केजरीवाल और आम आदमी पार्टी का कट्टर समर्थक माना जाता है। लेकिन इस बार केजरीवाल के इन सभी समर्थकों में नाराजगी देखी जा रही थी। बाल्मीकि समाज के लोगों में जहां रोजगार को लेकर निराशा थी तो वहीं झुग्गी-झोपड़ी वाले रोजमर्रा की दिक्कतों से परेशान थे। बताया जा रहा है कि ऑटो वाले दिल्ली सरकार के विभागों में जारी भ्रष्टाचार से नाराज हो गए थे।

केजरीवाल के कई बयान विवाद खड़ा कर गए। सबसे बड़ा विवाद तब हुआ जब उन्होंने हरियाणा सरकार पर जान-बूझकर दिल्ली को जहरीला पानी भेजने का आरोप लगाया। उन्होंने यह तक कहा कि हरियाणा सरकार दिल्ली में नरसंहार करना चाहती है। इस आरोप पर हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सैनी ने खुद दिल्ली बॉर्डर पर जाकर यमुना का पानी पीकर इस दावे को गलत साबित किया। इससे न केवल उनके विरोधियों को मौका मिला, बल्कि उनके हार्डकोर समर्थक भी नाराज हो गए। क्योंकि दिल्ली के बाहरी इलाकों में अधिकतर हरियाणा के ही लोग निवास करते हैं। हरियाणा के उन्हीं मतदाताओं को केजरीवाल की यह बात दुख पहुंचा गई। जिससे उन्होंने आम आदमी पार्टी के खिलाफ मतदान किया। भाजपा के 48 तो आप महज 22 सीट तक सिमटकर रह गई।

‘आप’ की हार में कांग्रेस का ‘हाथ’
कांग्रेस की अगर बात करें तो यह पार्टी भले ही दिल्ली चुनाव में हार गई। जिसमें उसके 67 उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हो गई। लेकिन, आप का किला ढहाने में कांग्रेस ने भी बड़ी भूमिका निभाई है। कांग्रेस द्वारा 70 सीटों पर उम्मीदवार उतारने से सबसे ज्यादा नुकसान आप का हुआ है। याद रहे कि दिल्ली की 14 ऐसी सीटें हैं, जहां आप के उम्मीदवारों की हार सिर्फ कांग्रेस के वोट काटने के चलते हुई। यानी इन सीटों पर भाजपा से ज्यादा कांग्रेस ने आप को नुकसान पहुंचाया। हालांकि कांग्रेस के वोट शेयर में 2.1 प्रतिशत का मामूली सुधार जरूर हुआ है। लेकिन कहा जा रहा है कि 70 सीटों पर हारने के बाद भी पार्टी ने दिल्ली चुनाव में खेला कर दिया। इसके पीछे गठबंधन न होने का कारण बताया गया। गठबंधन न होने से वोटों का बंटवारा हुआ और भाजपा की आक्रामक चुनावी रणनीति ने आप की हार की पटकथा लिख दी।

कई दौर की बैठकों के बाद भी दिल्ली में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस एक साथ नहीं आ सके। हरियाणा में कांग्रेस बहुत कम अंतर से सरकार बनाने से चूक गई थी, लेकिन इसके बावजूद दिल्ली में दोनों पार्टियां एक साथ नहीं आईं। इससे वोटों का विभाजन हुआ और भाजपा को फायदा मिला। पहले हरियाणा इसके बाद दिल्ली में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने अलग-अलग चुनाव लड़ा। दोनों पार्टी के अलग-अलग चुनाव लड़ने का सीधा फायदा भारतीय जनता पार्टी को हुआ। नतीजन दोनों जगह ही भाजपा की सरकार बन गई। हरियाणा में आप ने कांग्रेस के वोट काटे तो इसके बाद दिल्ली में इसका उलटा देखने को मिला। अगर दिल्ली में आप और कांग्रेस के वोट प्रतिशत को मिलाया जाए, तो उनके पास कुल 49.58 प्रतिशत वोट थे, जो भाजपा के 46.65 प्रतिशत वोट शेयर से ज्यादा हैं। लेकिन गठबंधन न होने के कारण से यह वोट बंट गया, जिससे भाजपा का सत्ता में आने का रास्ता साफ हो गया। हरियाणा में भी भाजपा ने 39.94 प्रतिशत वोट हासिल किए, जबकि कांग्रेस और उसके सहयोगियों को 39.34 प्रतिशत वोट मिले। इस तरह देखा जाए तो महज 0.60 प्रतिशत का अंतर कांग्रेस को सत्ता से दूर ले गया। इसमें आप के 1.8 प्रतिशत वोटों ने निर्णायक भूमिका निभाई। जिस चलते कांग्रेस के लिए राज्य में जीत की संभावना खत्म हो गई।

दिल्ली में आम आदमी पार्टी के चुनाव हारने से अब इंडिया गठबंधन को लेकर चर्चा शुरू हो गई है। इस गठबंधन में शामिल ज्यादातर दलों ने दिल्ली चुनाव में अरविंद केजरीवाल को समर्थन दिया था। जिनमें सपा, टीएमसी, आरजेडी समेत कई दलों का कहना था कि दिल्ली में आप मजबूत स्थिति में है और वो भाजपा को हरा सकती है। इसलिए हम उसे ही अपना समर्थन दे रहे हैं। लेकिन दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की हार के बाद अब सवाल उठ रहे हैं कि इंडिया गठबंधन का भविष्य क्या होगा?

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