भारत के साथ चल रहे विवाद के बीच चीन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़ा झटका लगा है। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) को वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन (WTO) में यूरोपीय संघ (EU) के साथ जारी विवाद में हार मिली है। चीन का इसके बाद बाजार आधारित अर्थव्यवस्था का दर्जा खत्म हो गया है। पिछले चार साल से यूरोपीयन यूनियन चीन पर बाजार आधारित अर्थव्यवस्था स्वीकार करने का दबाव बना रही थी।
यूरोपीय संघ का तर्क है कि चीन स्टील और एल्युमिनियम सहित अपने ज्यादातर उद्योगों को बहुत अधिक सब्सिडी देता है। इसी वजह से अंतरराष्ट्रीय बाजारों में चीन के उत्पादों की कीमतें कम हो जाती है। अब चीन के विरूद्ध आए इस फैसले के बाद से अब यूरोपीय संघ और अमेरिका दोनों ही चीन के सामान पर भारी-भरकम एंटी-डंपिंग शुल्क लगा सकेंगे। यह शुल्क लगाने से बाजारों में चीन के सामान की कीमतें बढ़ जाएंगी।
अमेरिका (US) के कारोबारी प्रतिनिधि रॉबर्ट लाइटजर ने कहा कि ये डब्ल्यूटीओ में चल रहा सबसे गंभीर विवाद था। उन्होंने बताया कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने खुद डब्ल्यूटीओ से कहा था कि इस मामले में हालात को गंभीरता से परखने के बाद ही कोई फैसला लिया जाए। उन्होंने चेतावनी दी थी कि डब्ल्यूटीओ ने उचित फैसला नहीं दिया तो अमेरिका डब्ल्यूटीओ से बाहर हो जाएगा।
इस फैसले से चीन की अर्थव्यवस्था पर बेहद बड़ा झटका लगेगा। द बीएल की एक रिपोर्ट के अनुसार, हालिया शोध में पता चला है कि सीसीपी संयुक्त राष्ट्र, वर्ल्ड बैंक, आईएमएफ सहित कई अंतरराष्ट्रीय संस्थानों में पहुँच चुका है। ऐसे में डब्ल्यूटीओ का यह फैसला बेहद अहम माना जा रहा है। इसपर जानकारों का कहना है कि इस फैसले के उपरांत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन की साख को जोरदार झटका लगेगा। इसी के साथ ही कोरोना वायरस महामारी फैलाने के लिए चीन के खिलाफ बन रहे माहौल को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और बल मिलेगा।