चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकी ं मायावती 2017 में विधानसभा और 2019 में सपा संग गठबंधन के बावजूद अपनी पार्टी को मिली हार से भारी सकते में हैं। एक तरफ तो वे खुले तौर पर गठबंधन की विफलता का ठिकरा सपा पर फोड़ रही हैं तो बसपा में अपनी पकड़ मजबूत करने की नीयत से वंशवाद की राह पर चल चुकी हैं। 23 जून को पार्टी के प्रदेश मुख्यालय पर संगठन के नेताओं व पदाधिकारियों की बैठक में एक बड़ा फैसला लिया गया। उन्होंने अपने छोटे भाई आनंद कुमार को एक बार फिर उपाध्यक्ष और भतीजे आकाश आनंद को नेशनल को-ऑर्डिनेटर बनाने का एलान किया है। ये वही आनंद कुमार है जिन्हें एक बार बसपा का अध्यक्ष बनाने के बाद मायावती ने उन्हें पद से हटा दिया था। ऐसा करके मायावती संदेश दिया था कि उनके परिवार को कोई भी सदस्य उनकी विरासत नहीं संभालेगा। हालांक अभी आधिकारिक तौर पर कोई जानकारी नहीं दी गई है। अपने आपको परिवारवाद से दूर रखने वाली बसपा अध्यक्ष मायावती का यह फैसला परिवारवाद का स्पष्ट उदाहरण पेश करता प्रतीत होता है। परिवारवाद पर अक्सर हमलावर रही बसपा अध्यक्ष मायावती ने अब परिवारवाद के रास्ते ही अपनी राजनीतिक विरासत को बढ़ानेकी शुरुआत कर दी है। स्मरण रहे मायावती ने सार्वजनिक तौर पर यह घोषणा की  थी कि उनके परिवार से कोई भी व्यक्ति बसपा में कभी पद नहीं लेगा।
बहरहाल अब यह देखा जाना बाकी है कि दलितों की मसीहा होने का दावा करने वाली मायावती बसपा के सिकुड़ते जनाधार को वापस ला पाने में सफल होती है या नहीं। इतना स्पष्ट है कि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को मायावती का परिवार प्रेम खास सुहा नहीं रहा है।

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