Uttarakhand

प्रकाश करते रहेंगे पंत

उत्तराखण्ड की राजनीति में प्रकाश पंत एक ऐसे सफल राजनेता रहे जो दलगत राजनीति से ऊपर उठा हो। बीस वर्ष के राजनीतिक जीवन में प्रकाश पंत ने जितना विशाल अनुभव हासिल किया उतना शायद ही कोई राजनेता कर पाया हो। पृथक उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद अंतरिम सरकार में विधानसभा अध्यक्ष के तौर पर पंत ने जिस तरह से संसदीय कार्यों का निर्वाह किया वह कोई नेता शायद ही कई वर्षों के राजनीतिक अनुभव के बाद कर सके। भाजपा सरकार के लिए सदन में उन्हें एक मजबूत दीवार माना जाता रहा। उन्होंने विपक्ष को संसदीय कार्यों के अनुभव के चलते कभी सरकार पर हावी नहीं होने दिया।
निश्ांक सरकार के समय जब प्रदेश की राजनीति में सिटूरजिया भूमि घोटाले प्रकरण में सरकार सड़क से लेकर सदन तक बुरी तरह से घिरी हुई थी, तब भी प्रकाश पंत संसदीय कार्यमंत्री के रूप में जिस तरह विपक्ष को साधने में कामयाब रहे, वह अपने आप में एक अलग राजनीतिक शैली रही है। विपक्ष को भी मानना पड़ा कि पंत के तरकश के तीरों से वह पार नहीं पा सकता।
मौजूदा त्रिवेंद्र रावत सरकार के दो वर्ष के कार्यकाल को ही लें तो सदन में सरकार के मंत्रियां के कमजोर होमवर्क के चलते विपक्ष सरकार पर हावी होता रहा। उसकी काट के लिए सरकार को प्रकाश पंत को आगे करना पड़ा कि हैरानी इस बात की है कि मंत्रियों के कमजोर होमवर्क पर उन्हें अध्यक्ष की फटकार सुननी पड़ी कि वे विधायकों के सवालां पर संतुष्ट जबाब नहीं दे पाते हैं। वहीं प्रकाश पंत ससदीय कार्यमंत्री होने के चलते विपक्षी और अपने विधायकों के सवालों के संतोषजनक दबाव देकर उन्हें शांत करते थे। संसदीय कार्यमंत्री, पेयजल, वित्त, आबकारी बाह्य सहायातित योजनाओं तथा पर्यटन आदि बड़े विभागों का लंबा अनुभव रखने वाले प्रकाश पंत प्रदेश की राजनीति में सबसे अधिक सरल मंत्री माने जाते रहे हैं। राजनीतिक हलकां में उनके लिए यह भी कहा जाता था कि वे अपने कार्य के चलते हर मुख्यमंत्री के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन जाते हैं। हर मुख्यमंत्री के बदले जाने के बाद पकाश पंत को मुख्यमंत्री बनाए जाने की चर्चाएं सबसे ज्यादा हुई हैं। एक तरह से प्रकाश पंत उत्तराखण्ड की राजनीति में मुख्यमंत्री पद के बड़े दावेदार माने जाते रहे। 2007 में भाजपा की खण्डूड़ी सरकार के समय मुख्यमंत्री खण्डूड़ी के साथ शपथ लेने वाले एक मात्र नेता प्रकाश पंत ही थे। यही नहीं खण्डूड़ी की विदाई के समय निश्ांक और प्रकश पंत दो नाम ही दौड़ में थे। हालांकि निंशक को मुख्यमंत्री बनाया गया, लेकिन प्रकाश पंत का नाम जिस तेजी के साथ चर्चाओं में आया वह अपने आप में साफ करता है कि प्रकाश पंत प्रदेश की राजनीति की एक बड़ी धुरी हैं। इनके बगैर प्रदेश की राजनीति हो ही नहीं सकती। 2017 में एक बार फिर से यही देखने को मिला। प्रचंड बहुमत से भाजपा जीती तो प्रकाश पंत और त्रिवेंद्र रावत के बीच मुख्यमंत्री पद को लेकर मुकाबला बना। त्रिवेंद्र रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया लेकिन प्रकाश पंत को सरकार में दूसरे नंबर का स्थान मिला।
एक मंत्री के रूप में अपने विभागों की जितनी बारीकियां प्रकाश पंत जानते थे उतना शायद ही किसी मंत्री ने जानने का प्रयास किया होगा। प्रदेश की राजनीति में सदन के भीतर के इतिहास को कभी ख्ांगाला जाएगा तो प्रकाश पंत ही एक मात्र ऐसे राजनेता के तौर पर देखे जाएंगे जिनके विभागों के सवालों पर सत्ता और विपक्ष का कोई विधायक मुखर हुआ हो या फिर उनको सही जबाव नहीं मिला हो।
वित्त मंत्री के नीरस पद को कैसे उत्साह में बदला जा सकता है, यह प्रकाश पंत जैसा मंत्री ही जान सकता था। जनता से सीधा संवाद करके बजट पर राय जानने के लिए फेसबुक लाइव कार्यक्रम चलाना ओैर जनता से सीधा संपर्क करने के लिए मोबाइल एप से जुड़ना  अनूठा प्रयास था। प्रकाश पंत का ही शगल था कि उनके साथ हजारों लेग एक दिन में जुड़ जाते थे। आज प्रकाश पंत प्रदेश की राजनीति में एक बड़ा शून्य छोड़ गए हैं। मंत्री पद पर काम कैसे किया जाता है और किस तरह से योजनाओं का क्रियान्वयन किया जाता है। इस पर प्रकाश पंत एक बहुत बड़ी लकीर छोड़ गए हैं। आने वाले समय में उनके अनुभव भावी पीढ़ी के राजनेताओं को प्रकाश दिखाते रहेंगे।
श्रद्धा सुमन
आज की राजनीति में प्रकाश पंत जी जैसे राजनेता मिलना बहुत मुश्किल है। राजनीति में वे सच्चे अजातशत्रु रहे हैं। जाना उत्तराखण्ड के लिए अपूरणीय क्षति है।
किशोर उपाध्याय, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कांग्रेस  
प्रकाश पंत जी जेसे नेता का मिलना बहुत मुश्किल है। सदन में एक बार मेंने विपक्षी विधायक होने के नाते उन पर आरोप लगाये थे। वे इतने व्यथित हो गए थे कि त्याग पत्र देने की बात तक कह गए थे। उन्हांने बड़ा दिल दिखाया और यह माना कि मैं सही हूं और जो गलती हुई है उसे सुधारने की बात उन्होंने सदन में कह दी। इतना साफ और बड़े दिल का राजनेता शायद ही उत्तराखण्ड की राजनीति में कोई और हुआ हो मुझे नहीं लगता।
करण महरा, विणायक एवं उप नेता सदन
प्रकाश पंत जी को संसदीय कार्यों का जितना विशाल अनुभव था उतना शायद ही किसी को होगा। नये और युवा विधायकों को जिस तरह से वे संसदीय कार्यों का ज्ञान और जानकारी देते थे वह अविस्मरणीय है। मेरे जिले के वे प्रभारी मंत्री थे और उनके सानिध्य में मैंने जितना अनुभव लिया और क्षेत्र के विकास के लिए उनसे सहयोग मांगा उससे ज्यादा ही मुझे मिला है। अब यह कमी हम को बहुत खलेगी।
महेंद्र प्रसाद भट्ट, विधायक बदीनाथ
पंत जी के निधन से प्रदेश की राजनीति में एक बहुत बड़ा शून्य आ गया है।
योगेश भट्ट, वरिष्ठ पत्रकार
प्रकाश पंत जी जैसे ईमानदार और सच्चे राजनेता का यूं चले जाना उत्तराखण्ड के लिए बहुत बड़ा नुकसान है। आने वाले समय में इस नुकसान का असर प्रदेश की राजनीति और प्रदेश के विकास पर पड़ सकता है।
मनमोहन लखेड़ा, अध्यक्ष उत्तराखण्ड श्रमजीवी प्रत्रकार यूनियन 
प्रकाश पंत जी जैसे सरल, मिलनसार और खुशदिल राजनेता का मिलना मुश्किल है। उनका ऐसे समय में चले जाना प्रदेश के लिए बहुत बड़ी क्षति है।
डॉ आनंद सुमन सिंह, संपादक सरस्वती सुमन पत्रिका
प्रकाश पंत जी जैसे विद्वान और अनुभवी नेता को जनता के बीच हमेशा याद रखा जाएगा।
सुरेंद्र सिंह आर्या, वरिष्ठ पत्रकार

आपको नमन भैया…

श्वेता मासीवाल


(लेखिका सामाजिक कार्यकर्ता)

कभी-कभी शब्द भावनाओं के साथ न्याय नहीं करते। बस एक छोटा सा वाक्य सब कुछ कह जाता है।
सुदीप भैया की अकस्मात मौत के 3-4 घंटे के अंदर ही भाईसाहब का फोन आया-श्वेता तुम कहां हो? मैं परिवार से दूर दिल्ली में रहती थी, ये भैया जानते थे।
मेरे टूटे-फूटे जवाब के बाद भैया ने सिर्फ इतना ही कहा- हम सब पहुंच रहे हैं।
उस भयावह रात में दिल्ली से रामनगर सफर करते हुए जिन जिन लोगों ने मुझे फोन किया – बड़ी-बड़ी बातें कहीं। लेकिन पूरी दृढ़ता के साथ सिर्फ दो वाक्य में बहुत कुछ कह देने की क्षमता प्रकाश भाईसाहब में ही थी।
और अगले दिन भैया को घर से ले जाने के बाद बस बैठकर यही कहा- हम हैं तुम्हारे साथ। हमेशा।
वैसे तो कई लोग आए गए, लेकिन भैया के बाद पिछले 7 वर्षों में कुछ ही ने उस वक्त कही बातों का मान रखा। भैया निःसंदेह उन बहुत कम लोगों में से एक थे। असामयिक भाई को खो देने के बाद उस इनसिक्योर फेज में बहुत कम लोगों की बात पर यकीन होता था।

ना जाने कितनी यादें हैं।

नारायण दत्त तिवारी जी वाले उपचुनाव में लगभग सभी राजनेता रामनगर में ही प्रवास कर रहे थे। और रात रात तक घर में भोजन चलता रहता था। मुझे कुछ-कुछ याद है। भाईसाहब का स्वास्थ्य कुछ ठीक नहीं था- शायद पीलिया हुआ था।
उस बीच एक बार बहुत रात को घर आये और मां से लौंकी की सब्जी बना देने का आग्रह किया।  साथ में बलराज भाईसाहब भी थे। रात के 1 बजे परोसी गई लौकी की सब्जी का मोल भैया ने अंत तक चुकाया। उस वक्त परिहास में भैया ने मुझसे कहा श्वेता तुमने दो दाढ़ी वाले भाइयों को मनचाहा भोजन कराया है- तुम आगे जाओगी।
बहुत बाद में जब मैं दिल्ली में फिल्म्स का काम करती थी, भैया पर्यटन मंत्री थे। उनका दिल्ली आना हुआ और मैंने संपर्क किया- कुछ बचकाने से ही सही लेकिन कुछ आइडियाज थे पर्यटन संबंधित, चूंकि उसी क्षेत्र में काम कर रही थी मैं अपनी टीम को भैया से मिलवाना चाहती थी। भैया ने मुझे अपनी टीम के साथ उत्तराखंड निवास दोपहर का समय दिया – लेकिन संयोग से अचानक नेतृत्व परिवर्तन हुआ और भैया को तुरंत दिल्ली से दून निकलना था।
फोन करके बोले, क्षमा बहन अभी निकलना पड़ रहा है, बाद में मिलता हूं।
इस फोन की कोई विशेष आवश्यकता नहीं थी, वो कद में काबीना मंत्री थे और मैं सिर्फ एक युवा कार्यकर्ता की बहन। लेकिन उस समय की राजनीति में जिन्होंने स्नेह और पारिवारिक रिश्तों की गरिमा बनाए रखी थी, उन में से वो एक थे।
और हाल ही में मैंने उन्हें फोन करके एक औषधि और मां के विषय में बताया तो एक लंबी चुप्पी साधी और मां के विषय में कुछ नहीं पूछा। ये मेरे लिए अप्रत्याशित था। मैंने भी किसी औषधीय शोधकर्ता से मिलने के लिए समय मांगा था। भाईसाहब उनसे मिले भी और उनकी यथासंभव मदद भी की।
लेकिन मां के लिए चुप्पी मुझे थोड़ी खली। शायद भैया तब तक अपनी बीमारी के विषय में जानते थे। या नियति कुछ और चाहती थी।
 शायद उनके लिए इस विषय में बात करना आसान नहीं था।
आज मां भी नहीं है, मां के आंगन में आग्रह करके लौकी बनवाने वाले भैया भी चले गए।
उनकी सरल जनाधार वाली विराट राजनीति के विषय में तो बहुत सी बातें अब होंगी- लेकिन उत्तराखण्ड की राजनीति से आज एक अच्छा इंसान चला गया। बड़े कद की राजनीति में भी इंसानियत बरकरार रखने वाले – वो शायद एक ही थे। कद जितना बड़ा, उतने ही सहज और सरल।
मुझे ये भी लगता था है कि ये उत्तराखण्ड का दुर्भाग्य था कि दरअसल मुख्यमंत्री पद के योग्य भाईसाहब को न्याय नहीं मिला। अपनी जनता, अपने लोगों से सीधा संवाद – अपने लोगों का निजी  सुख दुख में साथ देना- कलयुग में शायद ऐसे लोगों की आवश्यकता किसी और दुनिया में ज्यादा है!
रही बात राजनीति की तो उत्तराखण्ड में स्नबा ठल बींदबम की मेजोरिटी में स्मंकमत इल बीवपबम पद उपदवतपजल में वो एक कद्दावर नाम रखते थे।।
और अभी इससे पहले की पूर्णरूपेण सत्ता पर उच्चतर पद पर बैठकर अंतिम व्यक्ति के हितों की बात होती, इस से पहले ही भाईसाहब चल दिए। ईश्वर आपको अपने चरणों मे स्थान दे। आपका मुस्कुराता हुआ चेहरा लोगों के हृदय में सदैव अंकित रहेगा। आपके द्वारा किए गए कार्य भी याद किए जाएंगे। लेकिन जो काम अभी बाकी थे, जो मुकाम अभी बाकी थे- उसका नुकसान झेलना थोड़ा कठिन होगा। एक और असामान्य बात आपको जन नायक बनाती थी। जहां उत्तराखण्ड बनते ही स्थानीय नेताओं ने परिवार के हितों को सर्वोपरि रखा, आपके परिवार की सादगी वैसी ही रही जैसे प्रथम दिवस थी। आपकी पुत्री की उपलब्धियां, आपके संस्कारां की सबसे बड़ी रसीद है। देश सेवा में अपनी निःस्वार्थ सेवाएं देने का जज्बा वही रखते हैं, जिनके परिवारों के संस्कार उच्च स्तरीय होते हैं। और ये बात आपको यहां के बाकी नेताओं से अलहदा करती थी।
पिथौरागढ़ ही नहीं, कुमाऊं ही नहीं पूरा उत्तराखण्ड आज  मायूस है। एक तो आपके जाने का दुख और फिर आपके न होने का वैक्यूम जिसको भर पाना असंभव है। 
आपको नमन भैया। 
आपका जाना न जाने कितने लोगों के लिए निजी क्षति होगा।

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