Editorial

परशेप्शन मैनेजमेंट पर केंद्रित होती राजनीति

गत् सप्ताह प्रति दिन प्रातः होने वाली हमारी संपादकीय बैठक में कार्यकारी संपादक दाताराम चमोली जी ने एक बात कही जो भारतीय राजनीति की वर्तमान दशा और दिशा पर बड़ा प्रश्नचिन्ह लगाती है। चमोली जी का कहना था कि राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर क्यों भला हरेक राजनीतिक दल के लिए इतने महत्वपूर्ण हो चले हैं? क्या इसलिए कि अब राजनीति जनसरोकारों से दूर परशेप्शन मैनेजमेंट तक सीमित होकर रह गई है? या फिर इसलिए कि भाजपा, कांग्रेस, तृणमूल समेत सभी बड़े दलों का शीर्ष नेतृत्व-बौद्धिक स्तर पर रसातल में पहुंच चुका है? बहुत गहरी और वाजिब बात दाताराम जी ने कही। मैं समझता हूं पीके का इन
राजनीतिक दलों के लिए अपरिहार्य होना दोनों ही कारणों के चलते है। जनसरोकार अब मात्र आंडबर बन कर रह गए हैं। राजनीति का उद्देश्य किसी भी तरीके से सत्ता पर काबिज होना भर रह गया है। इसलिए राजनीति में अब सारा ‘खेला’ जातीय समीकरण बनाना, लोकलुभावन जुमले ईजाद करना, छल-बल सहारे सत्ता पाने के लिए संख्या बल जुटाने का बन चुका है जिसमें वैचारिक समझ और प्रतिबद्धता, जनहित और लोक कल्याण की नीति इत्यादि का कोई किरदार नहीं बचा है। इसलिए प्रशांत किशोर सबके लाडले हैं, सबके लिए अनिवार्य बन चुके हैं। उन्हें महारत है परशेप्शन बनाने और उसका मैनेजमेंट करने में। 2012 में उन्होंने गुजरात भाजपा या यूं समझिए तत्कालीन मुख्यमेंत्री नरेंद्र मोदी के लिए सफलतापूर्वक इस काम को अंजाम तक पहुंचाया। पीके का मोदी संग जुड़ना न केवल मोदी के लिए लाभकारी रहा, पीके स्वयं भी इससे खासे लाभान्वित हुए। 2012 में उनकी रणनीति मोदी को विकास का ब्रांड एबेस्डर बनाने की रही जो आगे चल कर 2014 में बतौर भाजपा पीएम कैंडिडेट भी मोदी के पक्ष में माहौल तैयार करने में काम आई। 2012 में भाजपा की लगातार राज्य विधानसभा चुनाव में तीसरी बार जीत के पीछे पीके का ब्रांड मैनेजमेंट एक बड़ा फैक्टर रहा। इसके बाद मोदी और पीके ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। मोदी परशेप्शन मैनेजमेंट का खेला समझ गए थे इसलिए 2014 के आम चुनाव में उन्होंने पीके को साथ रखा। परशेप्शन मैनेजमेंट यानी किसी की बाबत धारणा तैयार करना, उसको स्थापित करना प्रशांत किशोर भलीभांति जानते हैं। ‘चाय पर चर्चा’ उन्हीें का खेला था जिसने नरेंद्र भाई दामोदर दास मोदी को आम आदमी से जोड़ा। सच और झूठ का इस मैनेजमेंट से कोई रिश्ता नहीं होता। इसका लक्ष्य केवल पशेप्शन तैयार करने का है। न तो इसमें गांधी के ‘पवित्र साधन और पवित्र साध्य’ थ्यौरी का कोई महत्व है, न ही इस खेला के कोई नियम होते हैं। इसलिए वाकई मोदी कभी किसी रेलवे प्लेटफार्म में चाय बेचते थे या नहीं इसका भले ही कोई प्रमाण हो या न हो, पीके ने अपना काम कर दिखाया। इसके बाद दोनों का रिश्ता टूट गया। पीके ने भाजपा विरोधी दलों की रणनीति का जिम्मा उठा लिया तो दूसरी तरफ मोदी स्वयं परशेप्शन मैनेजेंट के मास्टर हो गए। ‘चाय पर चर्चा’ और ‘56 इंच का सीना’ भले ही पीके द्वारा गढ़े गए जुमले हों, मोदी ने इस खेल की मास्टरी हासिल करने में देर नहीं लगाई। ‘मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिम गवर्नमेंट’, ‘स्कैम’ यानी एस से समाजवादी, सी से कांग्रेस, ए से अखिलेश, एम से मायावती, ‘हर खाते में पंद्रह लाख’, ‘गधे की तरह काम करने वाला पीएम’, ‘मैं बनारस का बेटा मुझे मां गंगा ने बुलाया है’, ‘अच्छे दिन आने वाले हैं’, ‘बहुत हुआ भ्रष्टाचार, अबकी बार मोदी सरकार’, ‘सबका साथ, सबका विकास’, आदि-आदि सभी बगैर पीके मोदी सरकार के वे जुमले हैं जिनका भले ही जनता जनार्दन से कोई रिश्ता नहीं नजर आता हो, मोदी के लिए, उनके व्यक्तित्व के विकास के लिए इन जुमलों ने परशेप्शन की जमीन तैयार की। 2014 के बाद से ही देश में जनसरोकारी राजनीति से विचार समाप्त हुआ और ‘अनुभूति’ ने पूरी तरह से ‘सच’ को दफन कर डाला। प्रधानमंत्री मोदी के गत् सप्ताह वाराणसी दौरे के दौरान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तारीफों के पुल जो पीएम ने बांधे परशेप्शन मैनेजमेंट की नवीनतम कड़ी है। प्रधानमंत्री ने योगी आदित्यानाथ को पिछले साढ़े चार बरस के दौरान शानदार सरकार चलाने, उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने के लिए एक नहीं कई बार सराहा। बकौल प्रधानमंत्री योगी सरकार ने कोविड महामारी की दूसरी लहर को सफलतापूर्वक रोकने का ‘उल्लेखनीय’ कार्य किया। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में आयोजित जनसभा में पीएम ने कहा कि 2017 से पहले राज्य के लिए जो कुछ भी केंद्र सरकार ने करना चाहा तब सत्तारूढ़ सपा सरकार ने उसे होने नहीं दिया। योगी के आते ही सब कुछ बदल गया। योगी को कड़ी मेहनत करने वाला मुख्यमंत्री बताते हुए पीएम ने उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था, स्वास्थ्य व्यवस्था, विकास कार्यों और भ्रष्टाचार से उत्तर प्रदेश को मुक्त करने के लिए ‘मुक्त कंठ’ से योगी की तारीफों के पुल बांध डाले। यह 6 माह बाद राज्य विधानसभा चुनावों के लिए भाजपा की ‘परशेप्शन मैनेजमेंट’ रणनीति का हिस्सा साफ नजर आ रहा है। कुछ अर्सा पहले तक मोदी-योगी, योगी-शाह के रिश्तों में आई तल्खी की खबरें चला करती थीं यहां तक कहा जाने लगा था कि कोविड महामारी को सही तरीके से हैंडल न कर पाने के चलते भाजपा आलाकमान योगी आदित्यनाथ को हटा किसी अन्य की उत्तर प्रदेश में ताजपोशी कराने का मन बना चुका है। ऐसा करने का कुछ प्रयास भी किया गया। योगी पर मोदी के विश्वस्त अरविंद शर्मा को अपने मंत्रिमंडल में शामिल करने, उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाने के लिए जोर डाला गया। हठी योगी लेकिन दबाव में आए नहीं। उत्तर प्रदेश भाजपा विधायक दल में खास समर्थन न होते हुए भी भाजपा नेतृत्व योगी को हटाने अथवा ज्यादा दबाव बनाने में उस परशेप्शन के चलते कमजोर नजर आया जिसे स्वयं उसने ही गढ़ा था। परशेप्शन है योगी को हिंदुत्व का चेहरा बनाया जाना। इसमें कोई शक नहीं धर्मरूपी अफीम चाट अपना विवेक खो चुका देश योगी को पीएम मोदी के बाद हिन्दुत्व का सबसे विश्वसनीय चेहरा मानने लगा है। योगी की इस इमेज बिल्ंिडग में भाजपा की परशेप्शन मैनेजमेंट टीम का बड़ा हाथ रहा है। अब अपनी ही गढ़ी प्रतिमा का खंडन भाजपा करे तो कैसे करे? झकमार ­­कर ही सही 2022 के विधानसभा चुनावों तक योगी को झेलना पार्टी आलाकमान की मजबूरी है। इसलिए योगी सरकार की विफलताओं पर बजरिए ‘अनुभूति रणनीति’ मोदी ने उनकी तारीफों का कसीदा पढ़ा। आने वाले महीनों में इसके इर्द-गिर्द ही भाजपा की रणनीति टिकी रहेगी। अन्यथा कौन नहीं जानता कि योगी सरकार के खाते में सफलता का कोई एकाउंट है ही नहीं, चौतरफा हाहाकार- चित्कार मात्र है। पीएम ने कोविड़ मैनेजमेंट के लिए योगी जी को जमकर सराहा। वे भूल गए पारुल खक्कर नामक गुजराती कवियत्री को जिसने पिछले ही दिनों गंगा में बहते शवों पर कविता लिखी। वही कविता जो गुजरात से निकल देश-विदेश तक मोदी सरकार की भारी किरकिरी का कारण बनी। मोदी भूल गए योगी सरकार के उस वायदे को जिसने लाखों बेरोजगारों को सरकारी नौकरी मिलने की आस दी थी। भूल गए 24 घंटा बिजली का वायदा जो योगी के ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा ने 2018 में सरकार के एक बरस पूरे होने पर किया था। उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या ने गड्ढा रहित सड़कों का जाल उत्तर प्रदेश में बिछाने का वायदा किया था, प्रधानमंत्री यदि थोड़ा समय निकाल कर अपने संसदीय क्षेत्र का भ्रमण कर लेते तो बिजली, सड़क और रोजगार के वायदों का सच उन्हें नजर आ जाता। कानून व्यवस्था का हाल सरकार बहादुर पर लग रहे फर्जी पुलिस इन्काउंटरों से, केंद्र सरकार के ही संगठन नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों से, हाथरस में दलित छात्रा की बलात्कार बाद हत्या से, भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर द्वारा 17 बरस की लड़की संग बलात्कार से और उसे सजा मिलने के बाद तमाम लोकतंत्रिक मूल्यों और नैतिकता को ताक में रखकर प्रदेश भाजपा द्वारा उसकी पत्नी को जिला पंचायत का अध्यक्ष बनाए जाने से समझा जा सकता है।

सवाल लेकिन इस सबको न समझते हुए योगी आदित्यनाथ को एक सफल मुख्यमंत्री बनाने की कवायद का है जिसकी शुरुआत स्वयं प्रधानमंत्री ने की है। इस सवाल का जवाब तलाशेंगे तो ‘परशेप्शन मैनेजमेंट’ का खेल और पीके सरीखे रणनीतिकारों का महत्व तो समझ में आएगा ही, वर्तमान में राजनीति को अलविदा कह चुके या जबरन बाहर कर दिए गए जनकारों की दुर्दशा का कारण भी स्पष्ट हो उठेगा।

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