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चुनाव की विश्वसनीयता पर सवाल

  •             प्रियंका यादव/आयशा

 

भारत के दो पड़ोसी देशों पाकिस्तान और बांग्लादेश में लोकतंत्र संकट में बताया जा रहा है। यह आरोप दोनों ही मुल्कों के प्रमुख विपक्षी दल लगा रहे हैं। बांग्लादेश में गत् सप्ताह हुए चुनाव बगैर विपक्ष की सहभागिता के लड़े गए जिसके चलते सत्तारूढ़ बांग्लादेश अवामी लीग भारी बहुमत से यह चुनाव जीत गई है। दूसरी तरफ पाकिस्तान में अगले माह चुनाव होने जा रहे हैं लेकिन प्रमुख विपक्षी दल तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के प्रमुख इमरान खान समेत पार्टी के कई बड़े नेता जेल में बंद हैं। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या बांग्लादेश की तरह ही पाकिस्तान में भी बगैर विपक्ष चुनाव होंगे?

भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश में साल 2024 के पहले ही सप्ताह में हुए आम चुनाव में एक ओर जहां शेख हसीना की सत्ता बरकरार रही, वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान में अगले महीने आठ फरवरी को होने जा रहे चुनाव की चर्चा जोरों पर है। सवाल उठ रहे हैं कि हाल ही में पाकिस्तान लौटे पूर्व प्रधानमंत्री नवाज सत्ता संभालेंगे? इमरान खान के बिना उनकी पार्टी सत्ता के शीर्ष तक पहुंच पाएगी? या बिलावल भुट्टो जरदारी के नेतृत्व वाली पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के हाथ लगेगी हुकूमत?

अगर पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की पार्टी पीटीआई की बात करें तो उसके लगभग 76 फीसदी उम्मीदवारों के ही नामांकन स्वीकार किए गए हैं। ऐसे में कहा जा सकता है कि पाकिस्तान भी बांग्लादेश जैसे चुनाव की राह पर है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि जिस तरह के आरोप बांग्लादेश में शेख हसीना पर लगाए गए कि उन्होंने प्रमुख विपक्षी पार्टी की मुखिया खालिदा जिया को भ्रष्टाचार समेत कई आरोप लगाकर जेल में डाला जिसके बाद उनकी पार्टी ने चुनाव से बहिष्कार कर दिया था। देश में सिर्फ 40 फीसदी वोटिंग हुई ठीक उसी तरह पाकिस्तान में इमरान को जेल में रखा गया है और अब चुनाव आयोग ने पीटीआई के कुल 843 उम्मीदवारों में से 598 उम्मीदवारों के नामांकन स्वीकार किए हैं। अपने राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को हालांकि थोड़ी राहत मिली है, लेकिन साथ ही बड़ा झटका भी लगा है। इमरान खान की पार्टी ‘पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ’ अब अपना चुनाव चिÐ ‘बैट’ फिर से इस्तेमाल कर पाएगी, वहीं इलेक्शन ट्रिब्यूनल ने इमरान खान को चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित करने का चुनाव आयोग का फैसला सही ठहराया है। यानी इमरान चुनाव नहीं लड़ पाएंगे।

दूसरी तरफ पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ का चुनाव में भाग लेने का रास्ता साफ हो गया है। शरीफ के आगामी आम चुनाव में प्रधानमंत्री पद के लिए चुनाव लड़ने को लेकर पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला दिया है। अदालत ने उनके चुनाव लड़ने पर लगे आजीवन प्रतिबंध को हटा दिया। जिसके बाद अब नवाज शरीफ चुनाव लड़ पाएंगे। इस बीच खबर है कि चुनाव पर आतंकी साया भी मंडराने लगा है। ताजा मामला पेशावर से आया है जहां आम चुनाव में प्रचार के दौरान एक उम्मीदवार की गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस घटना से राजनीतिक नेताओं के बीच चिंता बढ़ सकती है। इसके अलावा कई उम्मीदवारों को जान से मारने की धमकी दी गई है। 8 फरवरी को होने वाले चुनाव के पहले और भी कई हमले होने की आशंका जताई जा रही है। यहां तक कि आतंकवादी संगठन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान ने साल 2024 के लिए अपनी कैबिनेट और अनेक स्टेट गवर्नरों की नियुक्ति भी कर दी है। आतंकवादी संगठन ने इसके लिए बाकायदा अपनी-अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर लिस्ट भी जारी कर दी है। आतंकवादी संगठन द्वारा जारी लिस्ट में कहा गया है कि टीटीपी सूरा ने वर्ष 2024 के लिए 130 नेताओं और अधिकारियों की नई नियुक्तियों की घोषणा की गई है।

गौरतलब है कि करीब 24 करोड़ की आबादी वाले पाकिस्तान इस्लामी आतंकवादियों का गढ़ है जो सख्त कानूनों की मांग करता है। आतंकी संगठनों ने 2022 के अंत में पाकिस्तान सरकार के साथ युद्धविराम समझौते को रद्द करने के बाद से हमले तेज कर दिए हैं। तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान आतंकवादी संगठन पूरे को अफगानिस्तान के तालिबान की तर्ज पर अपना राज्य मानता है और अपने राज्य के विभिन्न इलाकों में वह लगातार अपने मंत्री और गवर्नर नियुक्त करता है। साथ ही अनेक इलाकों में कई बार वर्चस्व की लड़ाई में उसके आतंकवादी पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी और सुरक्षा बलों पर भारी पड़ते हैं, जिसके चलते इन इलाकों में इस संगठन का वर्चस्व कायम रहता है। कहा जा रहा है कि बढ़ते आतंकवादी हमलों से 8 फरवरी के चुनाव भी खतरे में पड़ सकता है।

ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि पाकिस्तान में सत्तारूढ़ सरकारों के कार्यकाल पूरा नहीं कर पाने का इतिहास है। पाकिस्तान में सिर्फ 37 साल ही लोकतांत्रिक सरकारें रहीं, जिनमें कुल 22 प्रधानमंत्री हुए, लेकिन इन 22 में से कोई भी प्रधानमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया, पाकिस्तान में अब तक 32 साल सेना ने सीधे तौर पर शासन किया है और लगभग आठ सालों तक यहां की अवाम ने राष्ट्रपति शासन देखा है। क्या इस बार जो सरकार चुनकर बनेगी वह अपना कार्यकाल पूरा कर पाएगी? पकिस्तान के जानकारों की मानें तो सरकारों के कार्यकाल पूरा नहीं कर पाने के पीछे कई कारण हैं। सबसे बड़ा कारण है कि पाकिस्तान की राजनीति में सेना का दखल और पाकिस्तान की जनता का सरकारी संस्थानों पर विश्वास नहीं होना।

वहीं दूसरी तरफ पड़ोसी देश बांग्लादेश में बीते सात जनवरी को हुए बारहवें आम चुनाव के परिणामों में बांग्लादेश अवामी लीग ने प्रचंड जीत दर्ज की है, वहीं पार्टी प्रमुख शेख हसीना ने पांचवीं बार प्रधानमंत्री पद की शपत लेकर इतिहास रच दिया है। शेख हसीना ने बीते दिनों 11 जनवरी को प्रधानमंत्री पद की शपथ लेकर रिकॉर्ड पांचवी बार बांग्लादेश की प्रधानमंत्री बन गई हैं। लेकिन अब बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि संसद में विपक्ष में कौन बैठेगा? क्योंकि दो तिहाई सीट अकेले हसीना की पार्टी ने जीत ली हैं। जानकारों का कहना है कि शेख हसीना की जीत कोई चौंकाने वाली बात नहीं है, क्योंकि कहीं न कहीं इसका अंदाजा सभी को था। मगर इस चुनाव में छिटपुट हिंसा और प्रमुख विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी यानी बीएनपी और उनके सहयोगी दलों द्वारा बहिष्कार के बीच देखा जा सकता है कि जातीय पार्टी से आगे निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत हासिल की। अवामी लीग ने 155 निर्वाचन क्षेत्रों में जीत हासिल की है, जबकि जातीय पार्टी ने महज आठ सीटें हासिल की हैं वहीं 45 सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत हासिल की है।

बीते 7 जनवरी को हुए आम चुनाव में उनकी पार्टी ‘अवामी लीग को 298 सीटों में से 223 सीटों पर बहुमत मिला है। लेकिन उनकी इस जीत पर सवाल भी उठने लगे हैं। यहां तक कि उनकी जीत के खिलाफ विद्रोह शुरू हो गया है। विपक्ष उनकी इस जीत को ‘झूठा’ और ‘बेईमानी’ बताकर उनके इस्तीफे की मांग कर रहा है। हालांकि विपक्षी दलों का यह विद्रोह नया नहीं है। अभी कुछ महीने पहले भी बांग्लादेश में विपक्षी दलों द्वारा उनके खिलाफ रैली निकाली गई थी। इस रैली ने हिंसक रूप धारण कर लिया था जिसके बाद शेख हसीना के आदेश पर सभी को फौरन जेल भेज दिया गया था। हसीना के इस कदम को विपक्ष ने उनकी हार का डर बताया था।

खास बात यह कि बांग्लादेश में मुख्य विपक्षी पार्टी बीएनपी के चुनाव बहिष्कार के बाद हुए चुनाव परिणामों का अंदाजा सभी को था कि अवामी लीग की जीत लगभग है। लेकिन इन चुनावों में केवल 41.8 प्रतिशत नागरिकों ने ही वोटिंग की यानी देश की आधी से अधिक जनसंख्या ने इस चुनाव में हिस्सा नहीं लिया। यहां तक कि चुनाव खत्म होने से एक घंटे पहले तक केवल 27 प्रतिशत ही मतदान हुआ था। ऐसे में चुनाव पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि अगर शेख हसीना देश को लोकतंत्र के रास्ते पर मजबूती से आगे ले जाना चाहती हैं तो उन्हें सबको साथ लेकर चलना होगा। यह भी कहा जा रहा है कि जनता का इस चुनाव से मोहभंग हो चुका था। उनका मानना है कि ये बस नाम भर का चुनाव था, इसका नतीजा क्या आने वाला है वो तो उन्हें पहले से ही पता था। जनता के पास किसी और उम्मीदवार को वोट देने का विकल्प भी नहीं था, क्योंकि ज्यादातर विपक्षी नेता या तो जेल में बंद हैं या जो बाहर हैं उन्होंने आम चुनाव का बहिष्कार किया हुआ था।

गौरतलब है कि कुल 300 सीटों में से 298 सीटों पर हुए मतदान में अवामी लीग ने 223 सीटें जीतीं। दूसरे बड़े राजनीतिक दल जातीय पार्टी को सिर्फ 11 सीटें मिलीं। 65 सीटों पर इंडिपेंडेंट कैंडिडेट जीते हैं। चुनाव में माइनारिटी से आने वाले 14 कैंडिडेट जीते हैं, जिनमें से 12 हिंदू हैं। यह आंकड़े संसद में विपक्ष की ताकत और भूमिका के बारे में सवाल उठा रहे हैं। खासकर तब जब सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बीएनपी ने चुनाव का बहिष्कार किया हो। सत्तारूढ़ पार्टी के निर्दलीय उम्मीदवारों ने अवामी लीग और जातीय पार्टी के मौजूदा सांसदों सहित दर्जनों दिग्गजों पर चौंकाने वाली जीत हासिल की है।

विपक्ष का संकट

अवामी लीग को पूर्ण बहुमत के बीच निर्दलीय उम्मीदवारों की जीत देश की राजनीति में संकट पैदा कर सकती है। बांग्लादेश राजनीति की समझ रखने वालों का कहना है कि बगैर विपक्ष शेख हसीना को सरकार चलाने और उनकी विश्वसनीयता स्थापित करने का संकट आने वाले दिनों में बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता पैदा कर सकता है।

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