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उत्तर भारत में जड़ें जमाने की कोशिश में शिव सेना

नई दिल्ली। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर शिव सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की सक्रियता और इस मुद्दे पर उनका निरंतर  भाजपा को घेरना साफ करता है कि शिव सेना न सिर्फ महाराष्ट्र में अपनी पकड़ मजबूत रखना चाहती है, बल्कि उसकी रणनीति उत्तर भारत में भाजपा के समानांतर खड़े होने की है।
दरअसल, शिव सेना महाराष्ट्र में हिंदुत्व के मुद्दों पर मुखर रहती है।पार्टी को राज्य में इसका सियासी फायदा भी मिला है। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक 1992 में अयोध्या में विवादित ढ़ांचा ढहाए जाने के बाद शिवसेना की छवि कट्टर हिंदूवादी दल की बनी और पार्टी को इसका लाभ मिला। इसका कारण यह था कि जब ढ़ांचा गिरा तो इसका ठीकरा शिवसेना के सिर फोड़ा जाने लगा। इस पर शिवसेना के तत्कालीन प्रमुख बाला साहब ठाकरे ने भाजपा नेताओं से एकदम अलग बिना लाग लपेट के साफ शब्दों में कहा था कि यदि ढ़ांचा गिराने वाले शिव सैनिक थे तो मैं उन्हें बधाई देता हूं। तब न सिर्फ महाराष्ट्र बल्कि उत्तर भारत में भी काफी हद तक शिव सेना का संगठन अपनी जड़ें जमा चुका था। संगठन के कार्यकर्ता जनता की समस्याओं पर धरने -प्रदर्शन भी करते थे, लेकिन बाद के वर्षों में पार्टी का असर कम होने लगा। उत्तर भारत में पहले पार्टी टूटी और फिर उसका जनाधार सिमटता रहा।
राजनीतिक दृष्टि से देखें तो शिव सेना हिंदुत्व के जिस वैचारिक धरातल पर अपनी जड़ें जमाने की कोशिश करती रही है उस पर भाजपा उससे आगे रही। हालांकि महाराष्ट्र और केंद्र में भाजपा को उसकी जरूरत पड़ती रही है, लेकिन यह सच है कि भाजपा की तुलना में उसे हिंदुत्व के मुद्दे का उतना लाभ नहीं मिला। लगता है कि अब शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे को अहसास हो चला है कि वे स्वर्गीय बाला साहब ठाकरे जैसे तेवर अपनाकर ही भाजपा के सामने पार्टी संगठन को मजबूती प्रदान कर सकते हैं। इस बीच अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का मुद्दा उनके लिए शुभ अवसर लेकर आया। वे मंदिर निर्माण के लिए सरकार पर पहले से ही दबाव बना रहे थे कि अयोध्या में साधु-संतों की धर्मसभा ने उन्हें और मुखर होने का मौका दिया। वे बाकायदा हजारों शिव सैनिकों के साथ अयोध्या पहुंचे और वहां कहा कि वे राजनीति करने नहीं आए हैं, बल्कि सोये हुए कुंभकर्ण को जगाने आए हैं। कुंभकर्ण से उनका तात्पर्य केंद्र सरकार है।
 अब यह अलग बात है कि शिव सेना राम मंदिर के मुद्दे पर भाजपा के मुकाबले कितनी बड़ी लकीर खींच पाती है, लेकिन इतना तय है कि फिलहाल शिव सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के तेवरों ने भाजपा को विचलित अवश्य कर दिया है। भाजपा को लग रहा है कि कहीं राम मंदिर पर उद्धव ठाकरे की अति सक्रियता का शिव सेना को सियासी फायदा और भाजपा को नुकसान न हो जाए। उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के इस बयान के खास मायने हैं कि मंदिर आंदोलन में शिवसेना की न तो पहले कोई भूमिका थी और न ही आज धर्म सभा में है।

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