आगामी लोकसभा चुनाव तैयारियों के बीच लखनऊ पुलिस ने ऐसा कांड कर डाला कि सरकार के चेहरे पर हवाईयां नजर आने लगी हैं। हवाईयां इसलिए कि सत्ता विरोधी दलों ने इसे मुद्दा बना लिया है। विपक्षी दल एक-एक करके भुक्तभोगी परिजनों से मिलने जा रहे हैं और हर तरह की मदद का आश्वासन भी दे रहे हैं। हालांकि राज्य सरकार ने इस शूटआउट से उपजे संकट से उबरने के लिए प्रभावित परिवार के सदस्यों को लगभग 30 लाख रुपए, पत्नी को नगर निगम में सरकारी नौकरी और बच्चों की आजीवन पढ़ाई का जिम्मा लेकर कुछ हद तक विरोधियों के मंसूबों पर पानी फेरने की कोशिश की है लेकिन इस शूटआउट ने न सिर्फ यूपी पुलिस की छवि पर बट्टा लगाया है अपितु प्रदेश मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी कटघरे में ला खड़ा किया है, मुख्यमंत्री को इसलिए कि उन्होंने सत्ता में आते ही पुलिस को खुली छूट देते हुए कह रखा है कि गोली का जवाब गोली से दिया जाए लेकिन यूपी पुलिस शायद इसका अर्थ कुछ और लगा बैठी और निर्दोषों को अपनी गोलियों का निशाना बनाना शुरु कर दिया।
राजधानी लखनऊ के गोमती नगर थानान्तर्गत हाल ही में घटी इस घटना (विवेक तिवारी हत्याकांड) की व्यापकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस घटना को लेकर अब तक कई मोर्चे खुल गए हैं। पुलिस कर्मियों के रूप में एक मोर्चा कथित हत्यारे पुलिसकर्मी प्रशांत चैधरी की वकालत और उसे बचाने की भरपूर कोशिश कर रहा है तो दूसरी ओर पत्रकारों का एक वर्ग पुलिस की छवि को गुण्डागर्दी से जोड़कर प्रचारित-प्रसारित कर रहा है। मृतक विवेक तिवारी से सहानुभूति रखने वाला एक वर्ग ऐसा भी है जो इस शूटआउट के बाद यूपी पुलिस की छवि को सुधारने की वकालत कर रहा है तो वहीं इस शूटआउट से बड़ा फायदा बटोरने की कोशिश में यूपी की सियासी पार्टियां भी जोर-शोर से जुटी हुई हैं।
कथित हत्यारे पुलिसकर्मी प्रशांत चैधरी को बचाने के लिए यूपी पुलिस की सरगर्मी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कुछ पुलिसकर्मी अनुशासन को ताक पर रखकर सोशल मीडिया से लेकर चाय की दुकानों पर झुण्ड के रूप में एकत्र होकर अपने अधिकारियों को ही गरिया रहे हैं और कह रहे हैं कि यदि अधिकारी चाह ले तो प्रशांत चैधरी को बचाया जा सकता है। पुलिसकर्मी तर्क दे रहे हैं कि इस घटना (सिपाही प्रशांत चैधरी को जेल भेजे जाने और उसे नौकरी से बर्खास्त किए जाने) से पुलिसकर्मियों के हौसले पस्त होंगे और कानून व्यवस्था चरमरा जायेगी। कथित हत्यारे पुलिसकर्मी प्रशांत चैधरी को बचाने का जुनून ऐसा कि एक ही दिन में मुकदमे की पैरवी के लिए पुलिसकर्मियों ने आपसे में चंदा जोड़कर प्रशांत चैधरी की सिपाही पत्नी के खाते में पांच लाख से ज्यादा की रकम ट्रांसफर कर दी। कहा तो यह भी जा रहा है कि कुछ उन अधिकारियों ने भी मोटी रकम चंदे के रूप में गुप्त रूप से दी है जो यह नहीं चाहते कि प्रशांत चैधरी को सजा मिले और पुलिस की छवि दागदार हो। स्थिति यह है कि सोशल मीडिया पर आरोपी सिपाही के खिलाफ कुछ भी लिखते ही कुछ पुलिसकर्मी तुरंत अभद्र टिप्पणी पर उतर आते हैं। स्थिति की गंभीरता और संवेदनशीलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कुछ पुलिसकर्मी अनुशासन की परवाह किए बगैर विद्रोह पर उतारू हैं।
इसी बीच घटना की सत्यता परखने के लिए घटना का नाट्य रूपांतरण भी किया जा चुका है और इस नाट्य रूपांतरण में भी सिपाही प्रशांत चैधरी को ही आरोपी माना गया है। कहा जा रहा है कि वसूली के लिए मशहूर यूपी पुलिस ने अपनी आदत के अनुसार वसूली के दौरान विवेक तिवारी नाम के ऐसे शख्स की गोली मारकर हत्या कर दी जिसका कोई आपराधिक रिकाॅर्ड नहीं था। घटना के नाट्य रूपांतरण के बाद यह साबित हो गया कि आरोपी सिपाही ने सामने से आ कर सीधे बाइक खड़ी की थी और अपनी 9 एमएम की पिस्टल से फिल्मी अंदाज में गोली चलाई। गोली चलने से पहले ना तो विवेक और सिपाहियों के वाहनो के बीच कोई टक्कर हुई थी और ना ही कोई झगड़ा। नाट्य रूपांतरण के बाद कहा जा रहा है कि सड़क पर धीरे-धीरे गुजर रही विवेक की गाड़ी जब नहीं रुकी तो हमेशा हेकड़ी में रहने वाले आरोपी सिपाही प्रशांत ने नौसिखिये तरीके से अपनी 9एमएम की पिस्टल निकाल गोली चला दी और वो गोली विवेक को जा लगी।
हालांकि नाट्य रूपांतरण के बाद यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि पुलिस की वसूली की आदत ने ही विवेक तिवारी नाम के युवक की जान ले ली और एक हंसता-खिलखिलाता परिवार गम में डूब गया। इस सबके बावजूद साथी पुलिसकर्मी प्रशांत चैधरी को बचाने के लिए इतने उतावले हो उठे हैं कि वे अब मृतक विवेक तिवारी की पत्नी को ही अपशब्द कहने लगे हैं। पुलिसकर्मियों का एक फर्जी संगठन तो लगातार इस विषय पर आग उगल रहा है और सिपाही प्रशांत चैधरी के पक्ष में माहौल बना रहा है।
इस कांड में मीडिया की भूमिका अत्यंत प्रभावी भूमिका में नजर आ रही है। वह शुरुआती दौर से ही सिपाही प्रशांत चैधरी को आरोपी मानकर कार्रवाई को लिए सरकार पर दबाव बना रहा है। कुछ मीडियाकर्मियांे ने तो कोर्ट का फैसला आने से पहले ही प्रशांत चैधरी को हत्यारा साबित कर दिया है। यह दीगर बात है कि प्रथम दृष्टया प्रशांत चैधरी ही हत्यारोपी है लेकिन कोर्ट का फैसला आने से पूर्व मीडिया द्वारा हत्यारा लिखा जाना न तो तर्कसंगत है और न ही मीडिया की भूमिका के अनुकूल।
इस घटन से सर्वाधिक लाभ यदि कोई उठा रहा है तो वह सत्ता विरोधी दल हैं। सत्ता विरोधी दल इस घटना को लेकर सरकार की जमकर खिंचाई कर रहा है। कोई वर्दी में गुण्डाराज कह रहा है तो कोई सीधे तौर पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को ही कटघरे में खड़ा कर रहा है और कह रहा है कि मुख्यमंत्री की शह पर ही यूपी की खाकी इतनी निरंकुश हो चली है कि उसे अच्छे और बुरे के बीच का अंतर तक ज्ञात नहीं रहा।
फिलहाल इस घटना को लेकर यूपी की राजधानी लखनऊ का माहौल काफी गर्म है। दावा किया जा रहा है कि आगामी वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव में इस मुद्दे को और हवा दी जायेगी। अब प्रश्न यह उठता है कि सत्ताधारी दल इस समस्या कैसे निपटेगा और क्या इस घटना को लेकर क्या सफाई देगा यह तो भविष्य के गर्त में लेकिन इस घटना को लेकर इतना जरूर कहा जा सकता है कि बिगडै़ल हो चुकी यूपी की खाकी को सही राह दिखाना अब सरकार की प्रमुख जिम्मेदारी बन चुकी है ताकि भविष्य में कोई और विवेक बिगडै़ल पुलिसकर्मी की गोली का शिकार न बन जाए।

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