आयुष्मान खुराना अभिनीत फिल्म ‘विक्की डोनर’ कई लोगों ने देखी होगी। इस फिल्म ने इनफर्टिलिटी और स्पर्म डोनेशन जैसे गंभीर विषय को उठाया है। आयुष्मान खुराना स्पर्म डोनर की भूमिका में है। वह भारतीय युवा की तरह सोचता है। स्पर्म डोनेट करने पर समाज में उसकी बदनामी होगी। बिन शादी के ही वह बाप बन जाएगा। जैसे सवालों से वह लड़ता है। मगर यह बात वर्ष 2012 (विक्की डोनर रिलीज वर्ष) की है। 2018 के युवाओं की सोच बदली है। अब युवा खुद गूगल पर ‘स्पर्म बैंक’ या ‘स्पर्म कलैक्शन सेंटर’ सर्च कर रहे हैं। सेंटर पर अपना स्पर्म डोनेट करने पहुंच भी रहे हैं। इसमें कॉलेज में पढ़ने वाले छात्रों की संख्या ज्यादा है। ये स्पर्म डोनेट कर पॉकेट खर्च के लिए पैसा कमा रहे हैं। भारत में स्पर्म डोनर की संख्या तेजी से बढ़ रही है। हालांकि अभी भी कई ऐसे हैं जो पुरानी भारतीय सोच को ही सही मानते हैं।
कन्यादान, गौदान, रक्तदान को महादान माना गया है। मगर जो कपल्स मां-बाप नहीं बन सकते उनके लिए स्पर्म डोनेशन ही महादान है। दुनियाभर की तरह भारत में भी इनफर्टिलिटी तेजी से बढ़ रहा है। यदि इनफर्टिलिटी का दर यहां इसी तेजी से बढ़ता रहा तो दुनिया का सबसे युवा कहा जाने वाला भारत कुछ दशकों में बूढ़ों का देश हो जाएगा। इसलिए भी स्पर्म डोनेशन जरूरी माना जाने लगा है। बायोलॉजिक्ल कमी की वजह से कोई कपल संतान सुख नहीं प्राप्त कर सकता। डोनर उसे वह सुख दे सकता है।
निःसंतान जोड़े को संतान सुख देने वाले एक ऐसे ही युवा से मुलाकात हुई। उसकी सोच आधुनिक है। फिर भी वह अपना नाम गुप्त रखना चाहता है। उसे समाज का नहीं परिवार का डर है। उसकी उम्र वहीं कोई 22 साल होगी। एक प्राइवेट कॉलेज से इंजीनियरिंग कर रहा है। वह कहता है, ‘मेरे उम्र में सेक्स करने की जिज्ञासा आम बात है। पर इसका मतलब यह कतई नहीं है कि आप किसी के भी साथ सेक्स कर लेंगे। निम्न मध्यवर्गीय परिवार में शादी से पहले सेक्स करना आसान नहीं होता।
कमोबेश यही स्थिति लड़कियों की भी होती है। लड़कों के पास हस्तमैथुन एक विकल्प है। लड़कियों के पास भी विकल्प होगा। पर जब पहली बार स्पर्म डोनेट किया तो लगा मैं कल तक इसे बर्बाद कर रहा था। स्पर्म डोनेशन के बारे में मैंने अखबार में एक रिपोर्ट पढ़ी थी। इससे पहले मैंने रक्तदान तो सुना था, लेकिन स्पर्म डोनेशन शब्द शायद पहली बार पढ़ा था।’
मेरी जिज्ञासा बढ़ी। मैंने उस रिपोर्ट को पूरा पढ़ा। उस रिपोर्ट से ही पता चला कि हमारे देश में ऐसे लाखों दंपती हैं जो स्पर्म की गुणवत्ता में कमी के कारण बच्चे पैदा नहीं कर पा रहे हैं। मुझे ये पता चला कि दिल्ली के जिस इलाके में मैं रहता हूं, वहीं मेरे घर के पास स्पर्म डोनेशन सेंटर है। मेरे मन में ख्याल आया कि क्यों न जाकर देखा जाए। मैं गोरा हूं। मेरी कद-काठी भी ठीक है। बास्केटबॉल खेलता हूं। मैंने स्पर्म कलेक्शन सेंटर जाकर स्पर्म देने का प्रस्ताव रखा। वहां बैठे डॉक्टर मुझे देखकर मुस्कुराए। वे मेरी पर्सनैलिटी से ख़ुश दिखाई दिए। लेकिन यहां मसला केवल मेरे लुक का नहीं था। मैं अपने स्पर्म बेचने गया था। इसलिए मुझे यह साबित करना था कि बाहर से जितना सुंदर हूं अंदर से भी उतना ही तंदुरुस्त हूं या नहीं। डॉक्टर ने मेरा ब्लड सैंपल लिया। एचआईवी, डायबिटीज और कई तरह की बीमारियों की जांच की गई। सब पर मैं खरा उतरा। जांच के तीसरे दिन मुझे बुलाया गया। मुझसे एक फॉर्म भरवाया गया। उसमें गोपनीयता की शर्तें दी गई थीं। इसके बाद मुझे प्लास्टिक का एक छोटा सा कंटेनर दिया गया और वॉशरूम का रास्ता बताया गया। उस पहली दफा डोनेशन के बाद ये सिलसिला चल पड़ा। मैं अपना नाम लिखा प्लास्टिक का कंटेनर वॉशरूम में छोड़ता और पैसे (400रु) लेकर निकल जाता। मुझे ये ख्याल तसल्ली देता कि मेरे स्पर्म डोनेट करने से कोई मां बन सकती है। पहली बार के समय ही मुझे बताया गया कि स्पर्म डोनेट करने में तीन दिन का समय होना चाहिए। मुझे लगता है मेरे जीवन पर इसका एक सकारात्मक असर पड़ा। अब लगता है कि स्पर्म्स को यूं ही बर्बाद नहीं करना चाहिए। अब घर पर पहले की तरह हर दिन हस्तमैथुन करने की आदत छूट गई है। मैं कोई गलत काम नहीं कर रहा पर मैं इस बारे में सबको नहीं बता सकता। इसका मतलब ये कतई नहीं है कि मैं किसी से डरता हूं। लेकिन मुझे नहीं लगता कि समाज इतना परिपक्व है कि वो इसे संवेदनशीलता से समझे। मेरे मन में कोई अपराध बोध नहीं है पर लोगों के बीच इसे बताना भी खतरे से खाली नहीं है।
मैं अपने माता-पिता को भी इसके बारे में नहीं बता सकता क्योंकि उन्हें इससे झटका लगेगा। हालांकि दोस्तों के बीच ये विषय नया नहीं है। दिक्कत परिवार और रिश्तेदारों के बीच है। मुझे अपनी गर्लफ्रेंड को भी बताने में कोई दिक्कत नहीं है। संभवतः वह इसे सही ढंग से ही लेगी। पत्नियां ज्यादा पजेसिव होती हैं और वो नहीं चाहेंगी कि उनका पति शौक से जाकर किसी को स्पर्म दे। मैं अपनी पत्नी को ये बात नहीं बताना चाहूंगा। वैसे भी स्पर्म खरीदने वाले अविवाहित लड़कों को प्राथमिकता देते हैं।
मुझे पता है कि स्पर्म डोनर की मेरी पहचान उम्र भर साथ नहीं रहेगी। क्योंकि उम्र भर स्पर्म भी नहीं रहेगा। मुझे पता है कि यह पहचान मेरी मां के लिए शर्मिंदगी की वजह होगी और कोई लड़की शादी करने से इनकार कर सकती है। लेकिन क्या मेरी मां या मेरी होने वाली बीवी को ये पता नहीं होगा कि इस उम्र के लड़के हस्तमैथुन भी करते हैं। अगर स्पर्म डोनेशन को शर्मनाक मानते हैं तो हस्तमैथुन भी शर्मनाक है। लेकिन मैं मानता हूं कि दोनों में से कोई शर्मनाक नहीं है।
  1. रांची में सिर्फ एक ही रजिस्टर्ड स्पर्म बैंक है। यहां हर साल लगभग 1000 लोग स्पर्म डोनेट करते हैं।
  1. बिहार के पटना में संचालित एक प्राइवेट स्पर्म बैंक की मानें तो हर महीने करीब 500 डोनर्स स्पर्म डोनेशन के लिए पहुंच रहे हैं।
  1. छत्तीसगढ़ के रायपुर में भी स्पर्म डोनर की संख्या सौ के करीब पहुंचने वाली है।
  1. पंजाब में कुल 40 आईवीएफ सेंटर हैं। जिनमें अकेले जालंधर में 25 सेंटर हैं।
  1. हैदराबाद के एक स्पर्म बैंक में अब स्पर्म डोनेट करने के लिए रोज 10 कॉल्स आते हैं।
  1. राजकोट में हर साल 300-400 लोग रेग्युलर बेसिस पर स्पर्म डोनेट करते हैं। यहां के एक स्पर्म बैंक में हर साल 3-4 हजार कपल्स को संतान सुख देने के लिए स्पर्म की डिमांड करते हैं।
  1. गाजियाबाद की डॉक्टर सौजन्या अग्रवाल के मुताबिक हर महीने 15-20 कपल्स स्पर्म की डिमांड लेकर आते हैं।
  1. महिलाओं में पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। यह खामी महिलाओं में बांझपन के लिए भी जिम्मेदार है। करीब तीन साल पहले एक बहुराष्ट्रीय पैथोलॉजी लैब ने इस पर एक अध्ययन किया था। पीसीओएस के सबसे अधिक मामले 15 से 30 साल की महिलाओं में सामने आते हैं। देश के पूर्वी क्षेत्र की 25.88 फीसदी महिलाओं में पीसीओएस के लक्षण पाए गए थे। पश्चिमी भारत (19.88 फीसदी), उत्तर भारत (18.62 फीसदी) और दक्षिण (18 फीसदी) का स्थान है।
  1. चीन में ऑनलाइन शॉपिंग की सबसे बड़ी कंपनी अलीबाबा की ‘ताऊबाऊ’ नामक वेबसाइट पर स्पर्म की ऑनलाइन खरीदारी शुरू की तो वहां के 7 स्पर्म बैंकां में से केवल एक बैंक पर ही 72 घंटों में करीब 22 हजार लोगों ने रजिस्ट्रेशन करा लिया था।

‘सकारात्मक है बदलाव’

आईवीएफ और इनफर्टिलिटी विशेषज्ञ एवं इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के सदस्य डॉ अनूप गुप्ता से बातचीत
क्या स्पर्म डोनेशन को लेकर भारत में युवा की सोच बदली है?
यदि आप युवाओं की बात करें तो कुछ बदलाव आया है। कुछ में जागरूकता के कारण आया होगा तो कुछ युवा खासकर कॉलेज के छात्र पैसे के लिए भी स्पर्म डोनेशन करते होंगे। लेकिन यह सकारात्मक है। भारतीय सोच बदलने में अभी समय लगेगा। आप इतना समझ लें जिस घर में डोनेशन के स्पर्म से किलकारियां गूंजी होंगी, यदि उस परिवार को स्पर्म डोनेट करने को कहें तो संभवतः वह मना कर देगा।
क्या स्पर्म डोनेट करना कानूनी रूप से वैध है?
सौ फीसदी वैध है। इसमें कोई गैर कानूनी नहीं है। केवल उसके रूल्स आपको फॉलो करने होंगे। इसके अलावा रजिस्टर्ड स्पर्म कलैक्शन सेंटर पर ही डोनेट करना चाहिए। क्योंकि कई शहरों में फर्जी सेंटर भी खुल गए हैं।
स्पर्म का भारत कितना बड़ा मार्केट है?
हम इसे मार्केट नहीं कह सकते। यह समाज के लिए जरूरी है। जैसे-जैसे देश में इनफर्टिलिटी बढ़ेगी, वैसे-वैसे स्पर्म की जरूरत भी बढेगी। यह आवश्यकता है। दूसरा स्पर्म खरीदा नहीं जाता, बल्कि डोनेट किया जाता है।
मगर उसके लिए पैसे तो दिए जाते हैं?
एक तरह से कहा जाए तो वह उसकी कीमत नहीं होती, बल्कि डोनर को ट्रांसपोर्टेशन आदि के लिए राशि दी जाती है। नहीं तो क्यों कोई आपके पास आएगा।
इनफर्टिलिटी क्या भारत की बड़ी समस्या बनती जा रही है?
बहुत बड़ी। लोगों के रहन-सहन, खान-पान, भाग-दौड़, तानव इसका मुख्य कारण है। यह बहुत तेजी से बढ़ रहा है।

स्पर्म डोनर्स के लिए रूल्स

  • डोनर की उम्र 21-45 साल के बीच होनी चाहिए
  • डोनर को एचआईवी, हैपेटाइटिस-बी और सी, हाइपरटेंशन, यौन संक्रमित रोग, कोई जेनेटिक समस्या नहीं होनी चाहिए।
  • स्पर्म बैंक डोनर्स की उम्र, लंबाई, स्किन, आंखों का कलर, वजन, उसकी फैमिली की मेडिकल हिस्ट्री का पूरा ब्यौरा रख सकते हैं।
  • इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) की गाइडलाइंस के अनुसार, किसी को किडनी, ब्लड या स्पर्म डोनर के बदले कुछ नहीं दिया जा सकता
  • आईसीएमआर के अनुसार, स्पर्म डोनर्स से सिर्फ स्पर्म बैंक संपर्क कर सकते हैं। कोई भी फर्टिलिटी क्लिनिक सिर्फ बैंक से ही स्पर्म ले सकते हैं। किसी भी क्लिनिक या कपल को स्पर्म डोनर के बारे में कोई जानकारी नहीं होनी चाहिए।
  1. स्पर्म डोनर और कपल की पहचान बिल्कुल गुप्त रखी जाती है। अगर किसी की भी पहचान खुले तो इसे गंभीर अपराध माना जाता है।

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