मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत फिलहाल पार्टी में अपने विरोधियों को जवाब दे सकते हैं कि मेयर की पांच सीटें भाजपा ने जीती हैं। लेकिन नगर पालिकाओं और वार्डों में मिली करारी हार से साफ है कि आगामी लोकसभा चुनाव के लिए उनकी चुनौतियां बढ़ गई हैं। निर्दलियों का बड़ी संख्या में चुनकर आना साबित करता है कि जमीन पर राष्ट्रीय पार्टियों के पांव लड़खड़ाने लगे हैं। खासकर भाजपा के लिए यह स्थिति इसलिए चिंताजनक है कि विधानसभा चुनावों जैसी लहर अब उसके पक्ष में नहीं रही
उत्तराखण्ड में निकाय चुनावों के जो चौंकाने वाले नतीजे आए हैं उससे राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों को आत्ममंथन की जरूरत है। हालांकि भाजपा और कांग्रेस के नेता जीत को अपने-अपने हिसाब से अपने-अपने पक्ष में परिभाषित कर रहे हैं, लेकिन वार्डों में बड़ी संख्या में निर्दलियों का जीतकर आना साबित करता है कि राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय पार्टियों से हटकर जनता राज्य में नए विकल्प के लिए छटपटा रही है।
प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के लिए निकाय चुनाव लिएमस टेस्ट माने जा रहे थे। राजनीतिक पंडितों के मुताबिक वार्डों में जिस तरह बड़ी संख्या में निर्दलीय जीतकर आए हैं उससे स्पष्ट है कि विधानसभा चुनावों के वक्त भाजपा के पक्ष में जो लहर चली थी उसका असर अब जनता के बीच पहले जैसा नहीं रहा। लिहाजा आगामी लोकसभा चुनाव में पार्टी को कड़ी चुनौती से जूझना पड़ सकता है। फिर भी मेयर के पदों पर पार्टी प्रत्याशियों की जीत मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के लिए कुछ राहत पहुंचाने वाली अवश्य है। हालांकि वे अपने गढ़ में नगर पालिका अध्यक्ष पद को बचाने में चूक गए, लेकिन विरोधियों को जवाब दे सकते हैं कि देहरादून के मेयर जैसे प्रतिष्ठत पद पर पार्टी सफल रही है।
देहरादून के मेयर की सीट मुख्यमंत्री की प्रतिष्ठा का सवाल बनी हुई थी। यहां भाजपा के सुनील उनियाल गामा कांग्रेसी उम्मीदवार और पूर्व कैबिनेट मंत्री दिनेश अग्रवाल को रिकॉर्ड मतों से हराने में कामयाब हुए हैं। ऋषिकेश नगर निगम में भाजपा की अनिता ममगांई चुनाव जीतकर पहली मेयर होने का तमगा हासिल करने में सफल रही हैं।
हल्द्वानी से भाजपा के निवर्तमान मेयर जोगेंद्र रौतेला ने कांग्रेस की दिगग्ज और नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश के पुत्र कांग्रेस उम्मीदवार सुमित हृदेश को हराकर फिर से मेयर पद पर कब्जा किया है। तराई के दोनों नगर निगमों पर भाजपा कब्जा करने में सफल रही। रुद्रपुर नगर निगम पर भाजपा के रामपाल तो काशीपुर में ऊषा चौधरी ने जीत हासिल की है। कांग्रेस कोटद्वार औेर हरिद्वार नगर निगम में ही जीत हासिल कर पाई है। जहां कोटद्वार में कांग्रेस की हेमलता नेगी ने जीत हासिल की तो वहीं हरिद्वार में कांग्रेस उम्मीदवार अनिता शर्मा मेयर बनी हैं।
निकाय चुनाव में जीत को भाजपा के लिए एक बड़ी संजीवनी के तौर पर देखा जा सकता है। साथ ही मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत की सरकार के अट्ठारह माह के कार्यकाल पर जनता की मुहर के तौर पर भी निकाय चुनाव को देखा जा रहा है। खास बात यह है कि 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले निकाय चुनाव में जीत हासिल करने से भाजपा में खासा उत्साह देखने को मिल रहा है। माना जा रहा था कि निकाय चुनाव भाजपा सरकार के लिए लिटमस टेस्ट होंगे। लेकिन भाजपा ने निकाय चुनाव में जो संतोषजनक प्रदर्शन दिखाया है उससे इतना तो कहा ही जा सकता है कि कम से कम त्रिवेन्द्र रावत ने अपना यह पहला बड़ा लिटमस टेस्ट पास करने में कामयाबी हासिल की है।
राजनीतिक जानकारां का मानना था कि सरकार के कई फैसले जिन पर कानूनी पेंच औेर पचड़े हुए हैं उनसे सरकार को खास तौर पर शहरी मतदाताओं की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है। हाईकोर्ट के आदेश पर अतिक्रमण हटाने का अभियान रहा हो या मलिन बस्तियों को हटाए जाने का फैसला, सरकार को इनसे खासा असहज होना पड़ा। निकाय चुनावां के समय में नजूल भूमि नीति का निरस्त होना, अस्थाई कर्मचारियों को नियमित करने का मामला या फिर देहरादून के मास्टर प्लान का निरस्त होना, इस तरह के कई मामलों में एक के बाद एक आये फैसलों से सरकार की फजीहत हो रही थी। जनता में सरकार के खिलाफ बड़ी नारजगी का महौल बन रहा था। इसके चलते माना जा रहा था कि निकाय चुनाव में सरकार के खिलाफ मतदाताओं की नाराजगी हार में तब्दील हो सकती है। लेकिन निकाय चुनाव में संतोषजनक प्रदर्शन सरकार के लिए बेहतर अवसर के तौर पर सामने आया दिखाई दे रहा है।
राजनीति की बात करें तो भाजपा के भीतर अपनी ही सरकार के खिलाफ असंतोष था। पार्टी के बड़े-बड़े नेताओं में नाराजगी देखने को मिल रही थी। इसने भी सरकार के खिलाफ माहौल बनाने में कोई कमी नहीं की। निकाय चुनाव में हार का ठीकरा मुख्यमंत्री के सिर फोड़े जाने की सटीक रणनीति भी इन चुनाव में विरोधियों द्वारा अपनाई गई। इस सबके बावजूद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत अपना दमखम बचाये रखने और अपनी सरकार के कामकाम पर जनता की मुहर लगाने में पूरी तरह से कामयाब दिखाई दे रहे हैं।
सरकार के इतर अगर भाजपा की बात करें तो सतही तौर पर भले ही भाजपा के लिए यह निकाय चुनाव संतोषजनक माने जा रहे हैं। लेकिन निर्दलियां ने भाजपा ओैर कांग्रेस दोनों को ही जिस तरह से आईना दिखाया है वह कम से कम भाजपा संगठन के लिए एक चेतावनी है कि आगामी लोकसभा चुनाव में उसे कड़े अनुशासन में रहने के साथ ही सटीक रणनीति बनानी होगी। जिसके लिए भाजपा के संगठन को जाना जाता है। हालांकि भाजपा प्रदेश में निकाय चुनाव में अध्यक्ष पद की सबसे ज्यादा 34 सीटें हासिल करके पहले स्थान पर आई है परंतु कांग्रेस भी 25 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर आई है। इस बार के चुनाव में 23 सीटें निर्दलियां के खाते में आई हैं। निर्दलियां का यह आंकड़ा भाजपा और कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती के तौर पर देखा जा सकता है।
सभासदों और पार्षदों के चुनाव में सबसे ज्यादा निर्दलीय प्रत्याशी जीते हैं। 500 के लगभग निर्दलीय चुनाव जीतकर भाजपा और कांग्रेस के लिए बोडो॰ के गठन में चुनौतियां दे सकते हैं। भाजपा के 307 और कांग्रेस के 166 सभासद और पार्षद प्रत्याशी चुनाव जीत पाये हैं। बसपा 4, आप 2, यूकेडी और सपा को 1-1 सीट पर जीत हासिल हो पाई है।
देहरादून नगर निगम में जहां भाजपा के सुनील उनियाल गामा रिकार्ड मतों से मयर का चुनाव जीते हैं तो वही पार्षद के चुनाव में भाजपा को उम्मीद से कम सीटें मिली हैं। इसी तरह से ऋषिकेश में भी देखने को मिला है। ऋषिकेश में कांग्रेस की मेयर उम्मीदवार तीसरे स्थान पर रही तो पार्षदों के चुनाव में वह पहले स्थान पर आई है। भाजपा के रणनीतिकारों को मंथन करने की जरूरत है कि आखिर ऐसा क्यों हुआ कि जिस सीट पर उनके मेयर प्रत्याशी चुनाव जीतने मे कामयाब रहे है तो वहीं सभासदों और पार्षदों के चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन कमजोर क्यों रहा। अगर भाजपा में दिग्गजां की सीटों की बात करें तो वास्तव में बड़े नेताओं को अपने-अपने क्षेत्रों में झटका मिला है। हरिद्वार मेयर सीट पर भाजपा की बड़ी हार सरकार में दूसरे नम्बर के मंत्री मदन कौशिक की हार मानी जा रही है। यहां कांग्रेस के मुकाबले भाजपा का प्रदर्शन कमजोर रहा है। कोटद्वार में भी भाजपा ने कांग्रेस से मात खाई। यहां कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत और लैंसडान के भाजपा विधायक दिलीप सिंह रावत के प्रदर्शन पर सवाल खड़े होने स्वाभाविक हैं। दुगड्डा नगर पालिका में भी भाजपा की हार हुई है।
गदरपुर से भाजपा की हार शिक्षा मंत्री अरविंद पाण्डे की हार मानी जा रही है तो चिड़ियानौला से भाजपा की उम्मीदवार निर्दलीय उम्मीदवार से चुनाव हार गईं जबकि इस सीट पर कांग्रेस ने कोई प्रत्याशी भी नहीं उतारा था। यह सीट पार्टी प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट के क्षेत्र में आती है। सबसे अधिक चौंकाने वाला परिणाम तो स्वंय मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत की डोईवाला नगर पालिका सीट का रहा। यहां मुख्यमंत्री की खास और सबसे ज्यादा पंसद की उम्मीदवार नगीना रानी को कांग्रेस के उम्मीदवार से हार का सामना करना पड़ा है।
मसूरी के विधायक गणेश जोशी अपने क्षेत्र में भाजपा की दुर्गति होने से नहीं बचा पाये। मसूरी पालिका से भाजपा का सूपड़ा ही साफ हो गया है। यहां अध्यक्ष पद पर निर्दलीय उम्मीदवार अनुज गुप्ता की जीत हुई है। भाजपा का एक सभासद तक चुनाव नहीं जीत पाया है।
रामनगर में हैट्रिक
नौशाद सिद्दीकी
रामनगर में नए परिसीमन के बाद 20 सीटों में से 13 सीटों पर पुरुष और 7 पर महिला प्रत्याशियों ने अपनी जीत दर्ज कराई है। लगातार तीसरी बार जीत दर्ज कराने वाले कांग्रेस प्रत्याशी हाजी मोहम्मद अकरम 13425 मिले हैं। अपनी जीत पर उन्होंने कहा है कि इसका सारा श्रेय ईश्वर और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता को जाता है। साथ ही शहर के अधूरे विकास को पूरा करने का वादा किया है। भाजपा प्रत्याशी रुचि गिरी गोस्वामी को 8064 वोट मिले हैं। गोस्वामी का कहना है कि जनता का फैसला सर आंखों पर। उधर भाजपा से बगावत कर निर्दलीय प्रत्याशी बनी ममता गोस्वामी को 3078 वोट मिले। 883 वोट रद्द हुए हैं और 200 वोटरों ने नोटा का बटन दबाया है। जिसका सीधा अर्थ है कि इनमें से कोई भी प्रत्याशी जनता को पसंद नहीं है। कांग्रेस प्रत्याशी की जीत से कांग्रेस के कद्दावर नेता रंजीत सिंह रावत का राजनीतिक कद और बढ़ गया है। वहीं भाजपा प्रत्याशी के हारने से पार्टी के एक बड़े नेता का राजनीतिक कद घटा है। साथ ही इस हार के कारण भाजपा में गुटबाजी है।