वर्ष 2008 में दिल्ली में हुई पत्रकार सौम्या विश्वनाथन की हत्या केस में सभी आरोपियों को दोषी साबित करने में भले ही 15 सालों का समय लगा हो, लेकिन आखिरकार वे दोषी करार दिए गए हैं। गत सप्ताह 18 अक्टूबर को दिल्ली की साकेत कोर्ट ने सभी आरोपियों को दोषी करार दिया है। इन्हें ‘मकोका’ कानून के तहत 26 अक्टूबर को सजा सुनाई जाएगी। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश रवींद्र कुमार पांडे ने बचाव और अभियोजन पक्ष की दलीलें पूरी होने के बाद 13 अक्टूबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था
ईश्वर को किसी से वैर नहीं।
उनके घर देर है अंधेर नहीं।।
सखे सब्र इम्तेहान लेती है।
वक्त मित्रों का पहचान देती है।
बहुरूपिए मिल जाएंगे कई,
मौका परस्तों की खैर नहीं।
ईश्वर के घर देर है अंधेर नहीं।।
कवि रुपेश कुमार मिश्र की ये पंक्तियां पत्रकार सौम्या विश्वनाथन हत्याकांड में दोषी पाए गए सभी आरोपियों पर सटीक बैठती हैं। वर्ष 2008 में एक युवा पत्रकार सौम्या की हत्या के बाद देशभर में विरोध-प्रदर्शनों की बाढ़ आ गई थी। देश की राजधानी में महिलाओं की असुरक्षा के मुद्दे ने केंद्र और दिल्ली सरकार को भारी संकट में डालने का काम किया था। गत् सप्ताह 18 अक्टूबर को इस मामले में आरोपी पाए गए चार अभियुक्तों को दिल्ली की एक अदालत ने हत्या का दोषी करार दे ‘ईश्वर के घर देर है, अंधेर नहीं’ को चरितार्थ करने का काम किया है।
साकेत स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश रवींद्र कुमार पाण्डे ने अपने फैसले में कहा कि पेश साक्ष्यों व गवाहों के बयानों पर यह साबित हुआ है कि आरोपी रवि कपूर, अमित शुक्ला, अजय कुमार और बलजीत मलिक ने विश्नाथन से लूटपाट करने के इरादे से हत्या की थी। उन्हें धारा 302 और 34 के तहत दोषी ठहराया गया है। अदालत ने पांचवें आरोपी अजय सेठी को आपत्तिजनक वाहन को अपने पास रखने के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 411 के तहत दोषी ठहराया है। अदालत ने फैसला सुनाया कि उसने संगठन को मदद भी की और संगठित अपराध से अर्जित संपत्ति पर भी कब्जा किया और उसे भी मकोका के तहत दोषी ठहराया गया है। लेकिन सवाल उठ रहे हैं कि न्याय मिला तो है लेकिन 14-15 सालों के इंतजार के बाद आया है ऐसा क्यों हुआ? इसको समझने के लिए पहले सौम्या विश्वनाथन की हत्या की कहानी को समझना जरुरी है।
महज 25 वर्षीय सौम्या विश्वनाथन ‘हेडलाइंस टुडे’ में बतौर प्रोड्यूसर काम करती थी। ‘हेडलाइंस टुडे’ वही चैनल है जिसका नाम बाद में बदलकर ‘इंडिया टुडे टीवी’ कर दिया गया। इस चैनल में सौम्या का काम था क्राइम की खबरों को प्रोड्यूस करना। 30 सितंबर 2008 की रात सौम्या ने अपना काम समेटा और रात 3 बजे सौम्या की गाड़ी दफ्तर से घर की ओर निकली। रात 3 बजकर 32 मिनट पर सौम्या ने अपने मोबाइल से अपने पापा एमके विश्वनाथन को फोन कर बताया कि वो वसंत कुंज के नेल्सन मंडेला रोड तक पहुंच गई है, 5 मिनट में वह घर पहुंच जाएगी। इतना कहकर सौम्या ने फोन काट दिया। लेकिन सौम्या घर नहीं पहुंची। रात 3 बजकर 40 मिनट के आस-पास लोगों ने उसी नेल्सन मंडेला रोड पर डिवाइडर के पास एक कार पलटी हुई देखी। कार वही थी-सफेद रंग की मारुति जेन। लोगों ने ड्राइवर की सीट पर देखा तो सौम्या पड़ी हुई थी। उनके सिर से बहुत सारा खून बह रहा था। तुरंत पुलिस को 100 नंबर पर कॉल करके सूचित किया गया। पुलिस आई, सौम्या को एम्स अस्पताल लेकर गई। लेकिन अस्पताल पहुंचने में देर हो चुकी थी।
डॉक्टरों ने सौम्या को मृत घोषित कर दिया था। इसके बाद सौम्या का पोस्टमार्टम हुआ जिसमें सिर के पीछे के हिस्से में गोली धंसी हुई मिली। यानी सौम्या का एक्सीडेंट नहीं, बल्कि कत्ल किया गया था। पुलिस ने एफआईआर में अनजान लोगों के खिलाफ धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया। अब जांच की दिशा बदल चुकी थी। जानकार बताते हैं कि हत्या की बात सामने आते ही दिल्ली पुलिस ने 4 एंगल से केस की जांच शुरू की। पहला क्या ये रोड रेंज का केस था? ऐसे केस दिल्ली में आम हैं जहां दो गाड़ी चलाने वालों ने तैश में आकर एक-दूसरे पर हमला कर दिया। दूसरा क्या ये छेड़छाड़ से जुड़ा केस था? तीसरा क्या ये लूट का केस था? चौथा क्या ये प्रोफेशनल या पर्सनल किस्म की दुश्मनी का केस था?
पुलिस ने अपनी जांच के लिए सौम्या के दफ्तर में भी पूछताछ की। सौम्या के कॉल डीटेल निकाले। पुलिस को कोई सुराग नहीं मिला। न कोई ऐसी लीड मिली, जिसे पकड़कर पुलिस आगे बढ़ सके। पुलिस ने आम लोगों से भी गुहार लगाई कि अगर किसी ने सौम्या के कत्ल की वारदात को देखा है तो वो आकर मिलें लेकिन कहीं से कोई मदद नहीं मिली।
साल खत्म हो नया वर्ष 2009 लग गया। दिल्ली पुलिस की जांच अटकी रही। मार्च का महीना आया और दिल्ली में एक और मर्डर हुआ 18 मार्च 2009 को। 28 साल की जिगिशा घोष एक कॉल सेंटर में काम करती थीं। उन्होंने अपनी शिफ्ट पूरी की और कंपनी की कैब से वसंत विहार घर गईं। वो जिस समय कैब से उतरीं, उस समय पर वो फोन पर अपने दोस्त से बात कर रही थी। उसी समय उनके पास तीन लोग आए और रास्ता पूछने लगे। जैसे ही जिगिशा ने उन्हें रास्ता बताना चाहा, तीनों ने उसे पकड़ा और अपनी गाड़ी में खींच लिया। उन्होंने उसे लूटा, एटीएम कार्ड का पिन भी जबरदस्ती उगलवा के उसे गोली मारी और पीट- पीटकर मार डाला। इसके बाद उन्होंने जिगिशा की लाश को सड़क के किनारे फेंक दिया। उनकी लाश तीन दिन बाद बरामद हुई। पुलिस ने जांच शुरू की, आस-पास लगे सीसीटीवी कैमरे में एक ग्रे कलर की कार बार-बार आवाजाही करती दिखाई दी। पुलिस ने भी नोटिस किया कि जिगिशा के एटीएम कार्ड से कैश निकाला जा रहा है, खरीददारी की जा रही है। पुलिस ने उन जगहों पर दबिश दी, जहां एटीएम कार्ड इस्तेमाल हुआ था। एक हफ्ते के अंदर पुलिस ने 4 लोगों को पकड़ लिया।
जब इन लोगों से पुलिस ने पूछताछ की तो इन्होंने जिगिशा की हत्या की बात स्वीकार ली। इस घटना की जांच कर रही पुलिस की टीम को शक हुआ कि ये घटना इन लोगों द्वारा की गई पहली वारदात नहीं हो सकती। इनके हिस्से और भी ऐसे अपराध हो सकते हैं। फिर पुलिस ने जिगिशा कांड के आरोपियों से एक राउंड और पूछताछ की तो आरोपियों ने एक और मर्डर की बात कुबूल की कि ‘हमने 30 सितंबर 2008 को भी एक लड़की को नेल्सन मंडेला रोड पर मारा था।’ जब ये आरोपी सौम्या विश्वनाथन की बात कर रहे थे तब पुलिस ने इनकी निशानदेही पर एक और आदमी को अरेस्ट किया और फिर सौम्या के मर्डर केस में कुल पांच आरोपी अजय सेठी, रवि कपूर, अमित शुक्ला, बलजीत मलिक और अजय कुमार नामजद किए गए। जब हत्यारे पकड़ में आए तो उन्होंने मर्डर की कहानी बताई कि मर्डर की रात वो अपनी सैंट्रो कार में बैठे थे। उन्होंने सौम्या की गाड़ी देखी। वो सड़क पर बहुत आराम से चल रही थी न बहुत तेज स्पीड, न बहुत धीमे। जिस जगह सौम्या की कार गिरी पड़ी मिली थी, उस जगह से 3-4 रेड लाइट पहले सौम्या की कार का हत्यारों ने पीछा करना शुरू किया। उनका इरादा सौम्या को लूटने का था। कार की स्पीड देखते हुए लूटने का काम आसान लग रहा था। ये लोग अपनी कार सौम्या की कार के बगल में लेकर चलने लगे। गाड़ी रोकने का इशारा किया तो सौम्या ने ये देखकर कार की स्पीड तेज कर दी, हत्यारों ने भी अपनी कार की स्पीड बढ़ा दी।
जब सौम्या नहीं रुक रही थी तो उसने अपने साथियों से कहा कि वो निशाना लगाकर दिखाएगा। रवि ने सौम्या की कार पर पहली गोली चलाई वो गोली कार की पिछली नंबर प्लेट से टकराकर निकल गई। फिर रवि ने एक और गोली चलाई ये गोली कार का पीछे वाले विंडग्लास को तोड़ते हुए सौम्या के सिर के पिछले हिस्से में घुस गई। हत्यारे अब भी भागे नहीं, बल्कि आगे से यू-टर्न लेकर वापस आए और फिर सौम्या की गाड़ी के पास अपनी कार रोकी लेकिन जब उन्होंने देखा कि उसके सिर से खून बह रहा है और वो होश में नहीं है तो वो घबरा गए और फिर वहां से भाग निकले। बाद में उन्होंने टीवी चैनलों और अखबारों में सौम्या की तस्वीरें देखीं, जिसके बाद उन्हें मालूम हुआ कि उन्होंने एक पत्रकार का खून किया है।
इस केस को कवर करने वाले पत्रकारों का कहना है कि जिस रवि कपूर ने गोली चलाई थी, वो दिल्ली पुलिस का खबरी भी था। जब सितंबर 2008 में सौम्या केस की जांच शुरू हुई थी तो वो पुलिस की टीम के साथ मौका-ए-वारदात पर आवाजाही कर रहा था। साथ ही दूसरी जांच गतिविधियों में भी शामिल था। 6 फरवरी 2010 को पांचों आरोपियों के खिलाफ मकोका, हत्या, डकैती के तहत आरोप तय किए गए और इसी के साथ आता है केस में बड़ा सवाल कि जब आरोप 2010 में तय हुए तो ऐसा क्या हुआ कि न्याय आने में इतने साल लग गए। 18 अक्टूबर 2023 के दिन पांचों आरोपियों को दोषी करार दिया गया। इस बीच 14 साल तक एक पत्रकार के मां-बाप कचहरी के चक्कर लगाते रहे। ये सवाल तब और बड़ा हो जाता है जब इन्हीं लोगों को जिगिशा घोष मर्डर केस में साल 2016 में दोषी करार दिया गया था और रवि कपूर और अमित शुक्ला को निचली अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी। साल 2018 में जस्टिस एस मुरलीधर और जस्टिस आईएस मेहता की बेंच ने इनकी फांसी की सजा को उम्र कैद में तब्दील कर दिया था तो सौम्या के केस में क्यों इतना समय लगा?
सौम्या केस में कुल 320 बार सुनवाई हुई। अभियोजन पक्ष ने 23 अप्रैल 2010 से सबूत पेश करने शुरू किए और ये सबूत पेश करना 17 मई 2023 तक जारी रहा। इस केस में प्रासिक्यूटर पक्ष के वकील भी लंबे समय तक गायब रहे। सीनियर प्रासिक्यूटर राजीव मोहन को इस केस का स्पेशल प्रासिक्यूटर नियुक्त किया गया था। लेकिन साल 2016 तक वो कई मौकों पर कोर्ट में तारीख पर ही नहीं आ पाए और आखिर में उन्होंने इस्तीफा दे दिया। फिर कोर्ट ने कई सारे नोटिस दिए, तब भी प्रासिक्यूटर को नियुकत नहीं किया जा सका।
एक आरोपी बलजीत मलिक ने फरवरी 2019 में कोर्ट में अर्जी लगाई कहा कि ट्रायल तेज किया जाए। 9 साल में 88 में से 45 गवाहों की ही गवाही हुई है। इसी महीने सौम्या के माता-पिता दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल से मिले और स्पेशल प्रासिक्यूटर को जल्द से जल्द नियुक्त करने की मांग की। इस दौरान एक स्पेशल प्रासिक्यूटर की अनुपस्थिति में बहुत सारे वैकल्पिक प्रासिक्यूटर केस को साकेत कोर्ट में प्रेजेंट करते रहे। मार्च 2022 में आरोपियों की कोर्ट में गवाही शुरू हुई, जो मई 2023 तक जारी रही। फिर इस केस की सुनवाई कर रहे जज का भी रूटीन ट्रांसफर हो गया। 1 सितंबर 2023 को स्पेशल मकोका जज रवींद्र कुमार पाण्डेय ने केस की सुनवाई शुरू की। रोज दो घंटे केस की हियरिंग हुई। रोज सुनवाई के समय सौम्या के मां और पिता कोर्ट में न्याय की राह देखते रहते और अब जाकर 18 अक्टूबर को कोर्ट में दोष सिद्ध हो गया।