उत्तराखण्ड की एक बड़ी समस्या है पलायन। एक अनुमान के मुताबिक राज्य के अस्तित्व में आने के बाद से अब तक पैंतीस लाख लोगों ने पलायन किया है। पलायन रोकने के लिए राज्य में इकोटूरिज्म को बढ़ावा देकर रोजगार पैदा करने की कोशिश की जा रही है। इस मामले में सरकार को रास्ता दिखाया है मुनस्यारी के सरमोली गांव ने। इस गांव के दिखाए रास्ते पर चलते हुए अन्य गावों में होम स्टे और पर्यटकों को सामुदायिक स्तर पर सुविधाएं देकर पर्यटन के लिए माहौल बनाने की कोशिश हो रही है। इससे स्थानीय लोगों को न केवल रोजगार मिल रहा है, बल्कि पर्यटकों को भी प्रकृति को नजदीक से देखने- समझने का मौका मिलता है। मॉडल गांव सरमोली में यह सब कुछ दशकों से हो रहा है और इस व्यवस्था की बागडोर स्थानीय महिलाओं के हाथों में है। उनका मानना है कि इस आमदनी की वजह से उनके बच्चों का भविष्य बेहतर हुआ है। रोजगार की समस्याओं के बीच पंचाचुली पर्वत पर बसा मुनस्यारी का सरमोली गांव एक प्रकाश पुंज की तरह रास्ता दिखा रहा है। इस गांव को देश के सर्वश्रेष्ठ पर्यटन गांव के रूप में चुना गया है। केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय द्वारा इस गांव को ‘बेस्ट टूरिज्म विलेज’ पुरस्कार दिया गया। गांव के लोग इस बदलाव का श्रेय सामाजिक कार्यकर्ता और पर्वतारोही मल्लिका विर्दी को देते हैं
जनपद पिथौरागढ़ के मुनस्यारी तहसील का सरमोली गांव इन दिनों चर्चा के केंद्र में है। चर्चा का मुख्य कारण यह है कि इस गांव को देश के सर्वश्रेष्ठ पर्यटन गांव के रूप में चुना गया है। केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय द्वारा यह पुरस्कार दिया गया है। पूरे देश से आए 750 आवेदनों में से इसका चुनाव हुआ। यूं तो इस गांव को सर्वश्रेष्ठ बनाने व चर्चा में लाने के कई कारण हैं लेकिन इनमें से मुख्य है होम स्टे। सरमोली गांव अब होम स्टे के गांव के रूप में जाना जाता है। वर्ष 2003 में यहां पहला होम स्टे बना था। आज गांव के 50 से अधिक परिवार होम स्टे से जुड़े हुए हैं। एक और नाम जिसने इस गांव की न सिर्फ तस्वीर बदली बल्कि यहां के लोगों की तकदीर भी बदल कर रख दी। उन्होंने होमस्टे व समृद्ध सांस्कृतिक
विरासत के साथ ही प्रकृति एवं समुदाय आधारित विकास की अवधारणा को जमीनी स्तर पर उतारने का काम किया, वह नाम है मल्लिका विर्दी का।
मल्लिका के नेतृत्व में यहां की महिलाओं का सशक्तीकरण हुआ जिसने एक लंबी लकीर खींचने का काम किया है। इनके नेतृत्व में सरमोली की महिलाओं ने महिला सशक्तीकरण को जमीन पर उतारा जो अक्सर कागजों या मंचों पर ही उछलता रहा। सरमोली अब सामुदायिक पर्यटन की एक विशेष पहचान बन चुका है। समुद्र तल से 2300 मीटर की ऊंचाई पर स्थित, प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर इस गांव में पर्यटक आते तो पहले भी थे लेकिन उनकी संख्या बेहद कम थी, दूसरा पर्यटकों के रूकने का यहां पर कोई उपयुक्त साधन नहीं था। तब वर्ष 2004 में मल्लिका विर्दी ने गांव में होम स्टे की तरफ जो कदम बढ़ाए वे फिर रूके नहीं।
आज गांव में तीन दर्जन से अधिक होम स्टे स्थित हैं जो महिलाओं की आजीविका के साथ गांव वालों के रोजगार का मुख्य साधन बन चुका है। सिर्फ महिलाएं ही नहीं स्थानीय स्तर पर दुकानदार, गाइड, टैक्सी वाले भी यहां रोजगार पा रहे हैं। मल्लिका के नेतृत्व क्षमता व दूरदर्शिता को देखते हुए गांव वालों ने उन्हें अपने वनों की रक्षा का दायित्व भी सौंप दिया। इसके चलते वह दो बार गांव की वन सरपंच चुनी गई। उनकी प्रकृति आधारित सामुदायिक अवधारणा की तरफ गांव की महिलाओं ने एक बार कदम बढ़ाया तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। जिसने यहां की महिलाओं को मुफलिसी भरे दिनों से उबार कर आर्थिक रूप से सशक्त बना दिया। वे न सिर्फ आर्थिक रूप से सशक्त हुई, बल्कि सामाजिक व नेतृत्व क्षमता की दृष्टि से भी उनमें उल्लेखनीय सुधार हुआ। विर्दी ने वर्ष 2016 में ‘हिमालयन अर्क’ नाम से एक गैर सरकारी संगठन शुरू किया और गांव की तस्वीर को नया रूप देने में जुट गई।
इसी सरमोली गांव की सीमा पर जंगल के पास एक मैसूर कुंड हुआ करता था जो अनदेखी के चलते विलुप्ति के कगार पर पहुंच गया था।
बाद में सामुहिक सहभागिता से इस कुंड को पुनर्जीवित किया गया। अब इस कुंड के पास यहां के जंगल में मेला लगता है जिसमें फोटो प्रदर्शनी, पर्यटन व स्थानीय हस्तशिल्प की प्रदर्शनी लगती है। सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं। पिछले एक दशक से अधिक समय से लगातार यहां ‘वन कौथिक’ का आयोजन किया जा रहा है जिसमें आस-पास के दर्जनभर वन पंचायतें भाग लेती हैं। यहां हिमालयन मैराथन दौड़ का आयोजन भी होता है। वर्ष 2007 से मैसर वन कौथिक के साथ हिमालय कला सूत्र नामक प्रकृति और संस्कृति उत्सव का भी आयोजन लगातार हो रहा है। यहां ‘हिमाल कला’ का भी कई वर्षों से लगातार आयोजन किया जा रहा है। इस हिमाल कला सूत्र में पक्षी उत्सव, पारंपरिक भोजन उत्सव, दमाऊ, ढौल नगाड़ा उत्सव व खलिया चैलेंज जैसे कार्यक्रम आयोजित होते हैं।
ग्रामीण महिलाओं के साथ मल्लिका विर्दी
देखा जाए तो आज इस गांव के पास क्या नहीं है। यहां रोजगार उपलब्ध है। यहां पर्यावरण मेला लगता है। इसके अलावा बर्ड बाचिंग होती है। प्रकृति व सामुदायिक आधारित पर्यटन को नए पंख लगे हैं। गांव के पास अपनी एक समृद्ध सांस्कृतिक परंपराएं हैं। गुणवत्तापूर्ण जीवनशैली है। स्थानीय खेती है। स्थानीय शिल्प है। साथ ही यह गांव देश-दुनिया से जुड़ा है। गांव की खुशबू, यहां की विरासत, संस्कृति दूर-दूर तक पर्यटकों के जरिए अपनी यात्रा कर रही है। यह देशी-विदेशी पर्यटकों की पसंदीदा जगहों में से एक बन चुका है। आज जिस तरह से उत्तराखण्ड के लिए पलायन एक गंभीर चुनौती बन चुका है। पर्यटक बार-बार न सिर्फ यहां आना पंसद करते हैं, बल्कि रूकना भी पंसद करते हैं। यहां का हस्तशिल्प पर्यटकों की पहली पंसद है। यहां अपनी समृद्ध लोककला है तो प्रकृति संरक्षण का भाव पैदा होता है।
यहां विलुप्त होती सामुदायिक सहभागिता को जिंदा रखने के प्रयास हैं, जो कभी पूरे पहाड़ी गांवों की पहचान हुआ करती थी। पहाड़ों में सारे काम सामूहिक सहभागिता से ही संपन्न होते थे। जिला मुख्यालय पिथौरागढ़ से सरमोली गांव की दूरी 128 किमी. है। यह एक ग्राम पंचायत है। 122.75 हेक्टेयर भौगोलिक क्षेत्रफल में यह गांव फैला है। इस गांव की जनसंख्या 848 है। जिसमें 403 पुरुष व महिलाओं की संख्या 445 है। गांव की साक्षरता दर 76.06’ है। जिसमें 81.89 प्रतिशत पुरुष व 70.79 प्रतिशत महिलाएं साक्षर हैं। इसके आस-पास दरकोट, सुरिंग, प्लांयटी, बुंगा, जैती, रांथी, दरांती आदि गांव स्थित हैं। ये सभी गांव पर्यटन की दृष्टि से भरपूर संभावनाआंे वाले गांव हैं लेकिन पर्यटन का सिरमौर बनने का सेहरा सरमोली के ही सिर सजा। यह अनुकरणीय है, जिसे प्रदेश के गांव-गांव लागू कर पलायन की समस्या से निजात तो पाया ही जा सकता है।
यह पुरस्कार सरमोली गांव के सभी निवासियों का सम्मान है। खासकर उन लोगों का जो समुदाय आधारित विकास पर विश्वास रखते हैं। मुझे लगता है कि गांव को पुरस्कार मिला क्योंकि हमारा पर्यटन मॉडल क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत पर आधारित था। प्राकृतिक परिदृश्य व जीवनशैली इसकी मुख्य वजह रही है। 750 आवेदनों में से सरमोली का चयन वाकई महत्वपूर्ण है।
मल्लिका विर्दी, सामाजिक व पर्यावरण कार्यकर्ता