भाजपा में तीरथ सिंह रावत का भविष्य हिचकौले खा रहा है। पहले उन्हें चौबट्टाखाल विधानसभा सीट से दूर होना पड़ा तो अब लोकसभा चुनाव लड़ने की संभावनाएं भी खत्म होती दिख रही हैं। पार्टी ने उन्हें हिमाचल का चुनाव प्रभारी बनाकर एक तरह से उनकी दावेदारी नकार दी है

नए साल के पांच दिन पहले जब भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने यह घोषणा की कि उत्तराखण्ड के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष तीरथ सिंह रावत को हिमाचल प्रदेश का चुनाव प्रभारी बनाया जाएगा तो उनके समर्थकों में खुशी और गम के मिले-जुले भाव देखने को मिले। खुशी इसलिए कि रावत को राष्ट्रीय सचिव के साथ ही अब मिशन 2019 के लिए हिमाचल प्रदेश जैसे अहम प्रदेश का प्रभारी बनाया गया है। मतलब यह कि भाजपा आलाकमान का उन पर आज भी विश्वास बरकरार है। वे आलाकमान की लिस्ट में शुमार उन नेताओं में से हैं जो 2019 के लोकसभा चुनाव में जीत दिलाने का दमखम रखते हैं। लेकिन दूसरी तरफ आलाकमान के फैसले से तीरथ सिंह रावत के समर्थकों को जोर का झटका धीरे से लगा है।

दरअसल, तीरथ रावत पौड़ी गढ़वाल लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की पूरी तैयारी कर चुके थे। उन्हें पूरा भरोसा था कि वर्तमान सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री बीसी खण्डूड़ी के स्वास्थ्य कारणों और उम्र फैक्टर के चलते इस सीट पर उनको ही उम्मीदवार बनाया जाएगा। वह अपना टिकट पक्का मानकार चल रहे थे। खुद को चुनाव की तैयारी में व्यस्त किए हुए थे। जनता के बीच उनका निरंतर संपर्क अभियान चल रहा था। क्षेत्र से दुर्गम गांवों तक वह मतदाताओं के बीच जा रहे थे। लोगों की समस्याएं सुनना और उनका निराकरण कराना उनकी प्राथमिकताओं में शामिल था। तीरथ की यह दिनचर्या पिछले करीब दो वर्षों से चली आ रही थी। इससे पौड़ी गढ़वाल लोकसभा क्षेत्र में भी यह चर्चा जोरों पर थी कि भाजपा ने उन्हें संसदीय चुनाव लड़ने के लिए अघोषित रूप से स्वीकøति दे दी है। तीरथ के जनसंपर्क अभियान से कई नेताओं की भी नींद उड़ी हुई थी। लेकिन जब से उन्हें हिमाचल प्रदेश का लोकसभा चुनाव प्रभारी बनाया गया है तब से भाजपा के ऐसे नेता खुश नजर आ रहे हैं। उन्हें लगता कि अब लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए उनके रास्ते का एक कांटा कम हुआ है।


तीरथ सिंह रावत के हिमाचल का चुनाव प्रभारी बनने से जिन नेताओं की बांछें खिल गई हैं उनमें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के पुत्र शौर्य डोभाल के साथ ही सतपाल महाराज, विजय बहुगुणा और हरक सिंह रावत शामिल हैं। ये चारों नेता पौड़ी लोकसभा क्षेत्र से पार्टी के टिकट पर न केवल चुनाव लड़ने की योजना बना रहे हैं, बल्कि अपनी पैरवी के लिए केंद्रीय नेताओं की परिक्रमा भी कर रहे हैं। इस सीट पर कांग्रेस का फिलहाल कोई मजबूत प्रत्याशी मैदान में उतरता नहीं दिखाई दे रहा है। इसके मद्देनजर भाजपा में कई नेता इस सीट से उम्मीदवार बनने को लेकर सक्रिय हैं। इनमें सबसे ज्यादा सक्रिय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के पुत्र शौर्य डोभाल हैं। शौर्य पिछले करीब दो वर्षों से पौड़ी लोकसभा क्षेत्र में मतदाताओं के बीच जा रहे हैं। उन्होंने युवाओं को अपनी ओर आकर्षित करना शुरू कर दिया है। युवाओं को सेना में भर्ती के उद्देश्य वह जगह-जगह ट्रेनिंग कैंप लगा रहे हैं। भर्ती से पूर्व शारीरिक दक्षता में सफल होने का प्रशिक्षण दिलाकर शौर्य युवाओं को नशे से दूर रखने के लिए भी जागरूकता अभियान चला रहे हैं। शौर्य की युवाओं के साथ जुड़ने की इस मुहिम को उनका पार्टी प्रत्याशी बनने का राजनीतिक दांव माना जा रहा है। पौड़ी लोकसभा क्षेत्र में जगह-जगह लगे शौर्य डोभाल के होर्डिंग्स इस बात की पुष्टि करते भी नजर आ रहे हैं। चर्चा है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल भी अपने पुत्र शौर्य डोभाल का राजनीतिक भविष्य अपने गृह प्रदेश उत्तराखण्ड की पौड़ी लोकसभा सीट में देख रहे हैं। डोभाल का मूल निवास भी पौड़ी लोकसभा क्षेत्र में ही पड़ता है।

पौड़ी लोकसभा सीट से कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज का पुराना नाता रहा है। पूर्व में वह यहां से सांसद रह चुके हैं। फिलहाल वह पौड़ी लोकसभा क्षेत्र की चौबट्टाखाल विधानसभा सीट से विधायक हैं। इस विधानसभा सीट से पूर्व में तीरथ सिंह रावत विधायक थे। महाराज के भाजपा में आने से तीरथ का टिकट कट गया। सतपाल महाराज फिलहाल उत्तराखण्ड के पर्यटन मंत्री हैं। वह चाहते हैं कि पौड़ी लोकसभा सीट से उन्हें या उनकी पत्नी पूर्व कैबिनेट मंत्री अमृता रावत को टिकट मिले। प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा भी पौड़ी से चुनाव लड़ने के इच्छुक बताए जाते हैं। बहुगुणा पूर्व में यहां से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं। इसी के साथ प्रदेश के कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत भी पौड़ी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने का मन बनाए हुए हैं। बताया जा रहा है कि हरक सिंह रावत इस सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ने के लिए कांग्रेस से संपर्क बनाए हुए हैं। चर्चा है कि उनकी आजकल भाजपा में दाल कुछ खास नहीं गल रही है। अंदरखाने हरक सिंह रावत मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से रुष्ट चल रहे हैं। हरक के बारे में चर्चित है कि वह एक ऐसे नेता हैं जो एक जगह टिकते नहीं हैं। फिलहाल उनकी कांग्रेस से निकटता की बातें भी राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बनी हुई हैं।

लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए वह क्या गोटियां फिट कर रहे हैं यह तो आने वाला समय ही बताएगा, लेकिन भाजपा से उनकी अंदरखाने चल रही मतभेद की खबरें कोई गुल जरूर खिला सकती हैं। राजनीतिक विश्लेषक नंदन सिंह रावत की मानें तो भाजपा पौड़ी लोकसभा सीट पर कोई चौंकाने वाला निर्णय ले सकती है। विधानसभा चुनाव के दौरान भी चौबट्टाखाल से तीरथ सिंह रावत का टिकट काटकर कांग्रेस से आए सतपाल महाराज को दे दिया गया था। अब तीरथ सिंह रावत पौड़ी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की पूरी तैयारी कर चुके थे और डोर-टू-डोर मतदाताओं से कैम्पेन कर रहे थे तो उन्हें हिमाचल का चुनाव प्रभारी बना दिया गया। यह उन्हें उत्तराखण्ड की राजनीति से दूर करने की रणनीति हो सकती है। जानकार बताते हैं कि कांग्रेस में भी बेशक पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत कभी नैनीताल से तो कभी हरिद्वार से चुनाव लड़ने की तैयारी करते रहे, लेकिन जब से उन्हें राष्ट्रीय महासचिव के साथ ही असम का प्रभारी बनाया गया है तब से उत्तराखण्ड की राजनीति उनके लिए पहले जैसी नहीं रह गई है। ऐसा ही कुछ भाजपा में तीरथ सिंह रावत के साथ हो रहा है। उन्हें हर बार पार्टी बलि का बकरा बना देती है। पहले विधानसभा चुनाव में तो अब लोकसभा चुनाव में उनको टिकट की दावेदारी से दूर किया जा रहा है।

गौरतलब है कि तीरथ सिंह रावतउत्तराखण्ड में भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्रियों के साथ तालमेल बनाकर चलने के लिए जाने जाते रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री बीसी खण्डूड़ी के मुख्यमंत्रित्वकाल के दौरान वह पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद पर विराजमान थे। तब संगठन और सरकार में जितना अच्छा तालमेल था ऐसा आज त्रिवेंद्र सिंह रावत और अजय भट्ट के बीच नहीं दिखाई देता है। इसी के साथ तीरथ सिंह रावत एक समय पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी के करीबी माने जाते थे तो वहीं बाद में उनकी आस्था पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ के साथ जुड़ गई थी। सभी के साथ मिलकर चलना तीरथ सिंह रावत की खासियत रही है। यही वजह है कि आज तक उनकी पार्टी के किसी भी नेता से अनबन नहीं हुई है। तीरथ सिंह रावत 1983 से 1988 तक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक रहे हैं। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् में उत्तराखण्ड के संगठन मंत्री एवं राष्ट्रीय मंत्री भी रह चुके हैं। वह भारतीय जनता युवा मोर्चा उत्तर प्रदेश के उपाध्यक्ष एवं राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य रहे। वह 1997 में यूपी विधान परिषद् के सदस्य निर्वाचित हुए। वर्ष 2000 में नवगठित उत्तराखण्ड के प्रथम शिक्षा राज्य मंत्री रहे। वर्ष 2012 में चौबट्टाखाल विधानसभा क्षेत्र से विधायक निर्वाचित हुए और वर्ष 2013 में उत्तराखण्ड भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बने। फरवरी 2017 में राष्ट्रीय सचिव बनाए गए। लेकिन अब भाजपा में उनकी नाव हिचकौले खाती दिख रही है।

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