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उमा भारती ने बढ़ाई भाजपा की चिंता

मध्य प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं ,लेकिन राजनीतिक बिसात अभी से बिछाई जा रही है। ऐसे समय में भाजपा की दिग्गज नेता उमा भारती के बगावती रुख चुनाव में भाजपा की चिंता बढ़ा सकती है।

दरअसल,मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने अपने लोधी समाज से यह कहा है कि मैं कभी नहीं कहती हूं कि लोधी हो तो तुम भाजपा को ही वोट दो,हम प्यार के बंधन में बंधे हैं, लेकिन राजनीति के बंधन से आप (लोधी समाज) मेरी तरफ से स्वतंत्र हैं। आप अपना वोट खुद का मान-सम्मान और हित देखकर देना है। इस बयान का वीडियो भी सोशल मीडिया वायरल हो रहा है। इसी वजह से राजनीतिक विशेषज्ञों को लगता है कि अगर मध्य प्रदेश में ऐसा चलता रहा तो भाजपा का सियासी खेल बिगड़ सकता है। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती इसी लोधी समुदाय से आती हैं,जो मध्य प्रदेश से लेकर उत्तर प्रदेश तक भाजपा के कोर वोट बैंक माने जाते है। मंडल और कमंडल की सियासी दौर में लोधी समुदाय ओबीसी का इकलौता वोट बैंक था,जो भाजपा के साथ खड़ा था।

इसके पीछे सबसे बड़ी वजह लोधी समाज से आने वाले भाजपा की दिग्गज नेता कल्याण सिंह और उमा भारती रही है। कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश में तो उमा भारती मध्य प्रदेश में पार्टी का ओबीसी चेहरा थी। दोनों नेता बाद में आपने -आपने प्रदेश के मुख्यमंत्री भी बने है। कल्याण सिंह के बाद उमा भारती लोधी समाज की सबसे बड़ी नेता हैं और उन्हें पार्टी में इस आधार पर महत्व भी खूब मिला, लेकिन अब ऐसा नहीं है। उमा भारती इन दिनों भाजपा में अपना पुराने राजनीतिक कद को हासिल करने के लिए शराबबंदी से लेकर तमाम मुद्दे उठा रही हैं, लेकिन उन्हें राजनीतिक अहमियत नहीं मिल पा रही है। वहीं, उमा भारती के करीबी रिश्तेदार प्रीतम सिंह लोधी को भाजपा से निष्कासित भी कर दिए गए है,उनके भतीजे राहुल लोधी की विधायकी पर सियासी संकट गहराया हुआ है।

प्रीतम सिंह लोधी ने पहले से ही भाजपा के खिलाफ मध्य प्रदेश में मोर्चा खोल रखा है। वो भी अपने लोधी समुदाय को भाजपा से दूरी बनाए रखने की नसीहत दे रहे हैं। इसी वजह से राजनीतिक विशेषज्ञों को लगता है कि प्रीतम सिंह पर भाजपा के एक्शन के बाद से ही लोधी समाज पहले से ही नाराज है। ऐसे में उमा भारती का लोधी समाज के सम्मेलन में यह कहना कि मैं कभी नहीं कहती हूं कि लोधी हो तो तुम भाजपा को ही वोट दो,हम प्यार के बंधन में बंधे हैं, लेकिन राजनीति के बंधन से आप (लोधी समाज) मेरी तरफ से स्वतंत्र हैं। आप अपना वोट खुद का मान-सम्मान और हित देखकर देना है।

उनका यह कहना ही लोधी समाज को भाजपा से दूर कर सकता है,जिसका नुकसान होने वाले विधानसभा चुनाव देखने को मिल सकता है। क्योंकि मध्य प्रदेश में भले ही चार से पांच फीसदी लोधी समुदाय के मतदाता हैं, लेकिन प्रदेश की 232 विधानसभा सीटों में से करीब 5 दर्जन सीटों पर सियासी प्रभाव रखते हैं। ऐसे ही एक दर्जन लोकसभा सीट पर भी वह प्रभावी हैं। मध्य प्रदेश के हौशंगाबाद, जबलपुर, खजुराहो, सागर, नरसिंगपुर, भांदरा, मंडला, छिंदवाडा और दमोह आदि जिलों में लोधी समुदाय बड़ी संख्या में हैं। इसी तरह लोधी महाकौशल, बुंदलेखंड और ग्वालियर-चंबल के इलाके में निर्णायक भूमिका में नजर आते हैं।

भाजपा ने पहली बार साल 2003 में उमा भारती को आगे करके कांग्रेस को सत्ता से बेदखल किया था। इस चुनाव में लोधी समुदाय ही नहीं बल्कि ओबीसी की तमाम जातियों ने एकमुश्त भाजपा के पक्ष में मतदान कर उमा भारती के सिर मुख्यमंत्री का सियासी सजा सजाया था,लेकिन इसके दो साल के अंदर ही भाजपा ने उमा भारती को हटाकर मुख्यमंत्री की कुर्सी शिवराज की झोली में डाल दी,जो अभी तक बरक़रार है। इससे नाराज़ होकर उमा भारती ने भाजपा छोड़ अपनी राजनितिक पार्टी बनाई थी।हालांकि, कुछ दिनों के बाद में वह घर वापसी कर गई थी। फिर उन्होंने केंद्र की राजनीति में अपना कदम रख केन्द्रीय मंत्री बने,लेकिन साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने न तो उन्हें टिकट दिया और न ही वो संगठन में सक्रिय हैं। ऐसे में उमा भारती सियासी हाशिए पर हैं तो उनके करीबी नेताओं का भी कद घटता चला गया। इतना ही नहीं उमा भारती के सबसे करीबी प्रीतम सिंह लोधी को ब्राह्मणों पर टिप्पणी किए जाने के बाद भाजपा से निष्कासित कर दिया गया है। इसके बाद से भी लोधी समाज भाजपा से नाराज चल रहा है। उमा भारती के इस बयान आग में घी डालने का काम कर दिया है,जिसका नुकसान आने वाले विधानसभा चुनाव में देखने को मिल सकता है।

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