अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने अपने विशेष दूत द्वारा तालिबान के साथ किए गए शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया है। टाइम पत्रिका द्वारा बुधवार को एक खबर में लिखा गया कि पोम्पिओ ने अफगानिस्तान पर अमेरिका के विशेष दूत खलीलजाद द्वारा तालिबान के साथ नौवें दौर की वार्ता के बाद किए समझौते पर हस्ताक्षर से इंकार कर दिया है। अमेरिका ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उसमें अल-कायदा के खिलाफ लड़ाई के लिए अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना की मौजूदगी अथवा काबुल में अमेरिकी समर्थित सरकार के संबंध में कुछ भी स्पष्ट नहीं है। अफगानिस्तान, यूरोपीय संघ और ट्रंप प्रशासन के हवाले से लिखी गयी इस खबर के अनुसार, समझौता अल-कायदा के खिलाफ लड़ने के लिए अमेरिकी बलों की अफगानिस्तान में मौजूदगी, काबुल में अमेरिका समर्थित सरकार के स्थायित्व और यहां तक कि अफगानिस्तान में लड़ाई के अंत तक की गारंटी नहीं देता है। खलीलजाद के साथ समझौते के दौरान मौजूद रहे एक अफगान अधिकारी का कहना है, ‘‘कोई भी पुख्ता तरीके से बात नहीं कर रहा है। सब कुछ अब आशा पर आधारित है। कहीं कोई विश्वास नहीं है। विश्वास का तो कोई इतिहास भी नहीं है। तालिबान की ओर से ईमानदारी और भरोसे का कोई इतिहास ही नहीं है।’’ टाइम पत्रिका के अनुसार, तालबिान ने पोम्पियो से ‘इस्लामिक एमाइरेट्स ऑफ अफगानिस्तान’ के साथ हस्ताक्षर करने को कहा है।
इससे पहले तालिबान के साथ समझौते को लेकर बातचीत कर रहे अमेरिका के विशेष दूत जालमे खलीलजाद ने काबुल में अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी से मुलाकात की थी। इस बातचीत का मकसद अफगानिस्तान में अमेरिका की 18 साल की जंग को खत्म करना था। यह समझौता तालिबान की ओर से सुरक्षा की गारंटी देने के बदले में अमेरिकी फौजियों की वापसी पर भी केंद्रित था। अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने पहले भी कहा था कि उन्हें उम्मीद है कि अफगानिस्तान में 28 सितंबर को होने वाले चुनाव से पहले तक शांति समझौते को अंतिम रूप दे दिया जाएगा परन्तु अब स्थिति कुछ और ही नज़र आ रही है।