पूर्व कैबिनेट मंत्री और धनौल्टी विधायक प्रीतम सिंह पंवार से ‘दि संडे पोस्ट’ के विशेष संवाददाता कृष्ण कुमार ने उत्तराखण्ड के मुख्य मुद्दों पर बातचीत की
उत्तराखण्ड राज्य 24वें वर्ष में प्रवेश कर चुका है। इन वर्षों में आप उत्तराखण्ड को कहां पाते हैं?
उत्तराखण्ड राज्य हमें संघर्ष के दम पर मिला, प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी जी के आशीर्वाद से हमारा यह राज्य बना। राज्य बनने के पीछे यह अवधारणा थी कि उत्तर प्रदेश में रहते हमारा विकास नहीं हो पा रहा था, जिससे पलायन बहुत ज्यादा हो रहा था। राज्य बनने के बाद निश्चित तौर पर बहुत सारे विकास के कार्य हुए हैं। आज अगर हम उत्तर प्रदेश के साथ होते तो उतना विकास कभी नहीं हो पाता जितना अलग राज्य बनने के बाद हुआ है। आज हम यह कह सकते हैं कि हम बेहतर स्थिति में हैं।
इस दौरान राज्य कर बेहतरी का काम क्या हुआ है जिनको आप उपलब्धि मानते हैं?
अगर हम उपलब्धियों की बात करें तो बहुत सारी सफलता हमने हासिल की हैं। प्रदेश में विकास हुआ है और हो रहा है। खास तौर पर पर्वतीय क्षेत्रों की बात करें तो पहाड़ी क्षेत्रों में बहुत विकास हुआ है। पहले सड़कां की बहुत बड़ी दिक्कत थी। आज पूरे पहाड़ी क्षेत्र में सड़कों का जाल बिछ चुका है। नए-नए हाईवे भी बने हैं। जबकि पहले ऐसा नहीं था। आज प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना से हर गांव जुड़ चुका है। पीने का पानी, बिजली की सुविधाएं गांव-गाव में पहुंच चुकी है। शिक्षा और स्वास्थ्य में भी बहुत काम हुआ है। प्राथमिक से लेकर माध्यमिक तक बहुत स्कूल खुले हैं। उच्च शिक्षा के केंद्रों में भी इजाफा हुआ है। पर्यटन की दृष्टि से बहुत काम राज्य में हुआ है और हो रहा है, लेकिन अभी भी कुछ समस्याएं हैं जिनको दूर करने का प्रयास किया जा रहा है।
इन वर्षों में आपको ऐसा भी लगा हो कि उत्तराखण्ड के लिए अगर ऐसा होता तो ज्यादा बेहतर होता?
देखिए, रोजगार के क्षेत्र में काम ज्यादा बेहतर होता तो प्रदेश में युवाओं को रोजगार से ज्यादा से ज्यादा जोड़ा जा सकता था। रोजगार के साधन तो बढ़े हैं। लेकिन हमारे पर्वतीय क्षेत्रों में उद्योग के लिए काम किया जाता तो इससे न सिर्फ पहाड़ के युवाओं को अपने ही घरों में रोजगार मिलता, बल्कि पलायन पर रोक लगती। पलायन तो पहले भी था लेकिन अब भी हो रहा है इसको रोकने के लिए अगर राज्य बनने के बाद से सही काम होता तो आज स्थिति ज्यादा बेहतर होती। आज राज्य में उद्योग लगे हैं। लेकिन पर्वतीय क्षेत्रों में बड़े उद्योग नहीं लग पाए। हालांकि पहाड़ों में कहीं-कहीं छोटे-छोटे उद्योग तो जरूर लगे हैं लेकिन उससे पलायन की समस्या हल नहीं हो पा रही है। पर्यटन के क्षेत्र में और ज्यादा काम करने की आवश्यकता है। हमारे यहां आज भी कई ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें पर्यटन को बहुत बेहतर तरीके से बढ़ाया जा सकता है। वहां काम होना चाहिए।
सक्रिय राजनीति में आपको 35 वर्ष का समय हो चुका है। इन वर्षों में राजनीति में क्या अंतर देखने को मिला है?
हां, राजनीति में बहुत अंतर तो आया है। फर्क इस बात से है कि जब पहले चुनाव होते थे तो नेता और मतदाता के बीच प्रेम प्यार का व्यवहार होता था। नेता जो बात करते थे उस पर अमल भी करते थे लेकिन आज वैसा देखने को नहीं मिलता। आज की राजनीति महज हार-जीत के बीच सिमट कर रह गई है। मैं खुद अपने 2002 और 2022 के चुनाव की बात करूं तो अंतर तो आया है। इसमें राजनीति का स्तर गिर रहा हो यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन फर्क तो जरूर आया है।
मतदाताओं के रुख मे भी अंतर महसूस होता है?
हां, मतदाता हो या राजनेता दोनां में फर्क तो आया है। वह फर्क कैसे आया है यह आप ज्यादा जानते हैं। मैं इसमें नहीं जाने वाला।
प्रदेश में मूल निवास और भू कानून की मांग बड़े जोर-शोर से उठाई जा रही है। इसके लिए लगातार आंदोलन हो रहे हैं इस पर आपका क्या विचार है?
निश्चित तौर पर इस मांग का मैं समर्थन करता हूं। राज्य बनाने की अवधारणा थी कि पहाड़ी राज्य बनेगा और पहाड़ के लोगों के हित और अधिकारों को संरक्षण मिलेगा। यही सभी दिक्कतें उत्तर प्रदेश में थी जिसके लिए अलग राज्य की मांग उठी थी। राज्य बनने के बाद हम मूल निवासी होने का लाभ नहीं ले पा रहे हैं तो कहीं न कहीं दुर्भाग्यपूर्ण तो है। मूल निवास और भू कानून दोनों ही बहुत जरूरी है। मुख्यमंत्री धामी जी की सरकार इस पर काम कर रही है।
कांग्रेस की विजय बहुगुणा सरकार ने ही मूल निवास व्यवस्था को हटाकर पूरी तरह से स्थाई निवास की व्यवस्था लागू की थी तब आप सरकार में कैबिनेट मंत्री थे। आपने तब इसका विरोध क्यों नहीं किया?
देखिए, राजनीति में कई गलतियां होती हैं। आज दिक्कतें आ रही हैं तो निश्चित तौर पर हमसे गलतियां तो हुई हैं। मैं इसे स्वीकार कर रहा हूं। अब इसे सुधारने का समय है, जिसे सुधारा जाएगा।
2012 में पीडीएफ संगठन बनाया गया था। इसके तहत सरकार में आप कैबिनेट मंत्री थे। तब आरोप लगते थे कि पीडीएफ द्वारा तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा और बाद में हरीश रावत सरकार पर दबाव बना कर अपना हित साधने का काम किया था। इससे राजनीतिक अस्थिरता का वातावरण बन चुका था?
पीडीएफ ने कभी भी राजनीतिक अस्थिरता का माहौल नहीं बनाया। सरकार अल्पमत में थी तो कुछ अन्य दलां और निदर्लीय विधायकों द्वारा सरकार को समर्थन दिया गया ताकि सरकार स्थिर तरीके से काम करे इसके लिए सरकार में भागीदारी की गई। पीडीएफ का एजेंडा प्रदेश का विकास और अपने क्षेत्र की जनता के लिए बेहतर काम करने का रहा जिसमें हम सफल रहे।
आप उक्रांद से भाजपा में शमिल हुए तो इसका क्या कारण है। क्या आप भाजपा में आने के बाद कुछ बेहतर काम कर पाए हैं?
मैंने भाजपा में शामिल होने का निर्णय बहुत सोच-समझ कर लिया था। आज जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी काम कर रही है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी जिस तरह से ‘सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास’ की अवधारणा पर काम कर रहे हैं मैं इससे बहुत प्रभावित हूं। निदर्लीय कब तक रहेंगे और अपने क्षेत्र के लिए कितना काम कर पाए यह सोच कर मैंने भाजपा को अपनाया जिसका परिणाम यह हुआ कि मेरे क्षेत्र में विकास के काम निरंतर हो रहे हैं। पहले भी होते थे लेकिन जिस थीम पर प्रधानमंत्री जी काम कर रहे हैं उसी थीम पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जी भी काम कर रहे हैं और इसका फायदा मेरे क्षेत्र की जनता को पहुंच रहा है।
क्या कारण है कि आज का मतदाता निर्दलीयों पर तो भरोसा कर रहा है लेकिन क्षेत्रीय दलों पर अपना भरोसा नहीं कर पा रहा है?
राज्य बनने के बाद परिस्थितियां कुछ ऐसी बनी कि क्षेत्रीय दल पनप नहीं पाए। इसके कई कारण हो सकते हैं। मैं उस पर नहीं जाना चाहता हूं लेकिन मुझे लगता है कि आने वाले समय में भी क्षेत्रीय दलों को प्रदेश की राजनीति में कोई खास महत्व नहीं मिलने वाला है।
आपके क्षेत्र में आज भी कई ऐसी समस्याएं हैं जो वर्षों से चली आ रही है। पेयजल और सत्यों में डिग्री कॉलेज की घोषणा पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत द्वारा की गई थी लेकिन आज तक इस क्षेत्र के लिए एक भी डिग्री कॉलेज नहीं मिल पाया है?
पेयजल की समस्या की बात है तो हमारे यहां जल जीवन मिशन के तहत प्रत्येक गांव में पेयजल की उपलब्धता हो गई है या कहीं-कहीं काम चल रहा है। जहां बड़ी पम्पिंग योजनाओं की आवश्यकता थी वह भी स्वीकृत हो चुकी है। जिसमें आनंद चौक पपिंग योजना, बनाली पम्पिंग योजना, सुरकंडा पम्पिंग योजनाएं हैं। इन योजनाओं से सैकड़ां गांवां को पीने का पानी मिलेगा। कुछ तो शुरू हो चुकी हैं और कुछ पर काम चल रहा है। कैम्पटी की तरफ कांडी पम्पिंग योजना जिसकी लम्बे समय से मांग की जा रही थी उस पर भी काम चल रहा है। सत्यों सकलाना डिग्री कॉलेज के लिए जमीन की बात चल रही है। इसके लिए गांव वालां ने ही जमीन देनी है जिसकी उपलब्धता हो चुकी है। अब जल्द ही काम होगा।
आपका क्षेत्र पर्यटन और धार्मिक क्षेत्र से जुड़ा है। मुख्य सड़क पर भारी जाम और अव्यवस्था बनी रहती है। इससे कैसे निजात मिलेगी?
चम्बा और धनौल्टी मार्ग को दो लेन का करने का प्रस्ताव पास हो चुका है जो बाटाघाट से चम्बा तक डबल लेन होनी है। इसके लिए बजट भी आ चुका है। जल्द ही इस पर टेंडर की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी।
सुरकंडा रोपवे बनने से यात्रियों का सुरकंडा मंदिर में आवागमन बहुत बढ़ा है। लेकिन देहरादून कद्दुखाल मोटर मार्ग पर सबसे ज्यादा यातायात देखने को मिल रहा है इसके चोड़ीकरण की मांग भी वर्षों से की जा रही है जिस पर काम नहीं हो पाया है?
कुमाल्डा कद्दुखाल मोटर मार्ग वास्तव में बहुत संकरा है। इसकी डीपीआर भारत सरकार को भेज दी गई है। उम्मीद है इस पर जल्द ही निर्णय हो जाएगा।
पेयजल की समस्या की बात है तो हमारे यहां जल जीवन मिशन के तहत प्रत्येक गांव में पेयजल की उपलब्धता हो गई है या कहीं-कहीं काम चल रहा है। जहां बड़ी पम्पिंग योजनाओं की आवश्यकता थी वह भी स्वीकृत हो चुकी है। जिसमें आनंद चौक पंपिंग योजना, बनाली पम्पिंग योजना, सुरकंडा पंपिंग योजनाएं हैं। इन योजनाओं से सैकड़ां गांवां को पीने का पानी मिलेगा। कुछ तो शुरू हो चुकी हैं और कुछ पर काम चल रहा है। कैम्पटी की तरफ कांडी पम्पिंग योजना जिसकी लम्बे समय से मांग की जा रही थी उस पर भी काम चल रहा है। सत्यों सकलाना डिग्री कॉलेज के लिए जमीन की बात चल रही है।
आपकी विधानसभा फल पट्टी क्षेत्र में है। लेकिन आज इस क्षेत्र में उद्यान खत्म हो रहे हैं। पूर्व में प्रदेश सरकार ने सेव के बागीचां का भूमिधरी का अधिकार देने के लिए योजना बनाई लेकिन उस पर काम रोक दिया गया। आज कई सेव के बगीचां में अवैध तरीके से होटल और रिसोर्ट खड़े हो चुके हैं। इस पर कोई ठोस नीति क्यों नहीं बनाई गई है?
इसमें कई समस्याएं हैं कुछ को पट्टे मिले हुए हैं कुछ के पट्टे निरस्त हो गए हैं। कइयों के पट्टों के नाम परिवर्तन होने हैं यह तो मेरे संज्ञान में है लेकिन भूमिधरी दिए जाने की बात मेरे संज्ञान में नहीं है और न ही सरकार इसको भूमिधरी दे सकती है। मुझे लगता है कि कभी यह वन भूमि रही होगी और इसको फल पट्टी के लिए सरकार ने दिया होगा। इसलिए संभव है कि भूमिधरी का अधिकार नहीं दिया जा सकता।
उत्तराखण्ड के कौन से ऐसे पांच मुद्दे हैं जो आपको सबसे ज्यादा समझ में आते हैं कि इन पर अगर काम किया जाए तो राज्य की बेहतरी के लिए हो सकते हैं?
पहला तो शिक्षा का क्षेत्र है जिस पर हमें बेहतर शिक्षा और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने का काम करना होगा। आज हर कोई चाहता है कि उसके बच्चे को बेहतर शिक्षा मिले। दूसरा स्वास्थ्य के क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा काम करने की आवश्यकता है। आज हर नागरिक को बेहतर शिक्षा और बेहतर स्वास्थ्य चाहिए। हालांकि स्वास्थ्य के मामले में आज स्थिति पहले से बेहतर तो है लेकिन विशेषज्ञ चिकित्सकों को पहाड़ में भेजने की आवश्यकता है। सरकार इस पर काम कर रही है लेकिन मुझे लगता है इस पर ज्यादा काम करना चाहिए।
तीसरा पलायन को रोकना बहुत जरूरी है। पलायन हमारी बड़ी समस्या रही है। राज्य बनने से पहले भी और उसके बाद भी पलायन कम नहीं कर पाए हैं। इससे सबसे ज्यादा दबाव शहरों और महानगरां में पड़ रहा है। पहाड़ के शहरों में भी इसका भारी दबाव है। मैदानी नगरों-महानगरों में ही नहीं पहाड़ के नगरों में भी जनसंख्या का भारी दबाव होने लगा है। आज उत्तरकाशी जैसे नगर में हर कोई बसने का प्रयास कर रहा है। पलायन हो रहा है तो रिवर्स पलायन भी हो रहा है। लेकिन इसके लिए पहाड़ों में उद्योग और पर्यटन को ज्यादा बढ़ाने की जरूरत है। चौथा मुद्दा कनेक्टिविटी को बढ़ाने की जरूरत है। इसके लिए संचार के साथ-साथ सड़कों को सुरक्षित और सभी के लिए सुलभ बनाने की जरूरत है। पांचवा मुद्दा हमारा प्रदेश सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। हमारे राज्य की सीमा नेपाल और तिब्बत-चीन से लगी हुई है इसके लिए हमें अपने सीमांत क्षेत्रों में अधिक से अधिक बसावटें करने की आवश्यकता है। सीमांत क्षेत्रों में ज्यादा से ज्यादा विकास कार्यों की जरूरत है जिससे राज्य के साथ ही देश की सीमा भी सुरक्षित रह सके।
रोजगार के क्षेत्र में काम ज्यादा बेहतर होता तो प्रदेश में युवाओं को रोजगार से ज्यादा से ज्यादा जोड़ा जा सकता था। रोजगार के साधन तो बढ़े हैं लेकिन हमारे पर्वतीय क्षेत्रों में उद्योग के लिए काम किया जाता तो इससे न सिर्फ पहाड़ के युवाओं को अपने ही घरों में रोजगार मिलता, बल्कि पलायन पर भी रोक लगती। पलायन तो पहले भी था लेकिन अब भी हो रहा है इसको रोकने के लिए अगर राज्य बनने के बाद से सही काम होता तो आज स्थिति ज्यादा बेहतर होती। आज राज्य में उद्योग लगे हैं लेकिन पर्वतीय क्षेत्रों में बड़े उद्योग नहीं लग पाए। हालांकि पहाड़ों में कहीं-कहीं छोटे-छोटे उद्योग तो जरूर लगे हैं लेकिन उससे पलायन की समस्या हल नहीं हो पा रही है। पर्यटन के क्षेत्र में और ज्यादा काम करने की आवश्यकता है। हमारे यहां आज भी कई ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें पर्यटन को बहुत बेहतर तरीके से बढ़ाया जा सकता है। वहां काम होना चाहिए
प्रीतम सिंह का सफर
जीवन परिचय : जन्म 16 जनवरी 1966। जन्म स्थान दशज्यूला
जौनपुर, टिहरी गढ़वाल, उत्तराखण्ड
शिक्षा : स्नातक।
राजनीतिक यात्रा : वर्ष 1985 से उत्तराखण्ड राज्य निर्माण तक उत्तराखण्ड राज्य निर्माण के संघर्ष में अहम भूमिका निभाई। उत्तराखण्ड आंदोलन बाटाघाट मसूरी काण्ड में पुलिस लाठीचार्ज में घायल होकर दून अस्पताल देहरादून में भर्ती। राज्य निर्माण आंदोलन में अनेकों बार जेल यात्राएं की। 1993 निदेशक जिला सहकारी बैंक उत्तरकाशी। 1996 सदस्य क्षेत्र पंचायत चिन्यालीसौड उत्तरकाशी। वर्ष 1998 सदस्य क्षेत्र पंचायत सामाजिक कार्यकर्ता चिन्यालीसौड, उत्तरकाशी। 1999-2002 अध्यक्ष जिला सहकारी बैंक उत्तरकाशी।
जनप्रतिनिधि के रूप में : 2002-2007 विधायक विधानसभा क्षेत्र यमुनोत्री (उत्तराखण्ड क्रांति दल)/सदस्य अनुसूचित जाति-जनजाति एंव विमुक्त जाति समिति सदस्य सरकारी आश्वासन समिति। 2012-17 विधायक, यमनोत्री विधानसभा क्षेत्र (उत्तराखण्ड क्रान्ति दल)/ उत्तराखण्ड सरकार में कैबिनेट मंत्री में आवास, शहरी विकास, पशुपालन, राजीव गांधी शहरी आवास, मत्स्य पालन, उद्यान, चारागाह विकास, कारागार, नागरिक सुरक्षा एवं होमगार्ड का दायित्व। 2017-2022 तक विधायक, धनौल्टी विधानसभा क्षेत्र (निर्दलीय)। इस दौरान विधान सभा के सदस्यों के वेतन तथा भत्तों से सम्बन्धित तदर्थ समिति के सभापति का दायित्व (2017-18)। 08 सितम्बर 2021 को भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण की। 10 मार्च 2022 को विधानसभा क्षेत्र धनौल्टी से भाजपा के विधायक निर्वाचित।
उपलब्धियां : सुरकंडा रोपवे का निर्माण, सुवाखोली भवान
उत्तरकाशी मोटर मार्ग का चौड़ीकरण। धनौल्टी चम्बा मोटर मार्ग का डबल लेन स्वीकृत। कुमाल्डा कद्दुखाल मोटर मार्ग की डीपीआर भारत सरकार को भेज दी गई है। पेयजल के लिए आनंद चौक पम्पिंग योजना, बनाली पम्पिंग योजना, सुरकंडा पम्पिंग योजना और कांडी पम्पिंग योजनाएं स्वीकृत करवाई।
विजन : बेहतर शिक्षा और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, स्वास्थ्य के क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा काम करना, पलायन को रोकना, कनेक्टिविटी को बढ़ाना, सीमांत क्षेत्रों में ज्यादा से ज्यादा विकास कार्य कराना, जिससे राज्य के साथ ही देश की सीमा भी सुरक्षित रहे।
निश्चित तौर पर इस मांग का मैं समर्थन करता हूं। राज्य बनाने की अवधारणा थी कि पहाड़ी राज्य बनेगा और पहाड़ के लोगों के हित और अधिकारों को संरक्षण मिलेगा। यही सभी दिक्कतें उत्तर प्रदेश में थी जिसके लिए अलग राज्य की मांग उठी थी। राज्य बनने के बाद हम मूल निवासी होने का लाभ नहीं ले पा रहे हैं तो कहीं न कहीं दुर्भाग्यपूर्ण तो है। मूल निवास और भू-कानून दोनों ही बहुत जरूरी हैं। मुख्यमंत्री धामी जी की सरकार इस पर काम कर रही है। राजनीति में कई गलतियां होती है। आज दिक्कतें आ रही हैं तो निश्चित तौर पर हमसे गलतियां तो हुई हैं। मैं इसे स्वीकार कर रहा हूं कि हमारी तरफ से गलतियां हुई हैं। अब इसे सुधारने का समय है, जिसे सुधारा जाएगा
पेयजल की समस्या की बात है तो हमारे यहां जल जीवन मिशन के तहत प्रत्येक गांव में पेयजल की उपलब्धता हो गई है या कहीं-कहीं काम चल रहा है। जहां बड़ी पम्पिंग योजनाओं की आवश्यकता थी वह भी स्वीकृत हो चुकी है। जिसमें आनंद चौक पंपिंग योजना, बनाली पम्पिंग योजना, सुरकंडा पंपिंग योजनाएं हैं। इन योजनाओं से सैकड़ां गांवां को पीने का पानी मिलेगा। कुछ तो शुरू हो चुकी हैं और कुछ पर काम चल रहा है। कैम्पटी की तरफ कांडी पम्पिंग योजना जिसकी लम्बे समय से मांग की जा रही थी उस पर भी काम चल रहा है। सत्यों सकलाना डिग्री कॉलेज के लिए जमीन की बात चल रही है।
जब मैंने भाजपा में शामिल होने का निर्णय लिया तो बहुत सोच-समझ कर लिया था। आज जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी काम कर रही है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी जिस तरह से सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास की अवधारणा पर काम कर रहे हैं मैं इससे बहुत प्रभावित हूं। निदर्लीय कब तक रहेंगे और अपने क्षेत्र के लिए कितना काम कर पाए यह सोच कर मैंने भाजपा को अपनाया जिसका परिणाम यह हुआ कि मेरे क्षेत्र में विकास के काम निरंतर हो रहे हैं। पहले भी होते थे लेकिन जिस थीम पर प्रधानमंत्री जी काम कर रहे हैं उसी थीम पर मुख्यमंत्री धामी जी भी काम कर रहे हैं और इसका फायदा मेरे क्षेत्र की जनता को पहुंच रहा है।