Editorial

स्वागत! नवयुग के नवल वर्ष

मेरी बात

वर्ष 2023 कुछ मधुर, बहुत सारी कटु स्मृतियों को छोड़ अब अतीत बन गया है। जाते-जाते ढ़ेर सारी आशंकाएं तो कुछ सकारात्मक संभावनाएं भी हमारी झोली में डाल गया है। मेरे निजी अनुभव इस बात के गवाह हैं कि आशंकाओं के भंवर जाल में उलझना नकारात्मक ऊर्जाओं को हमारी तरफ आकर्षित करता है और हमें किसी भी प्रकार की गलत प्रवृत्ति के खिलाफ हथियार डालने के लिए प्रेरित कर हमे निर्बल और विवेकहीन बना डालता है। इसलिए सोच को सकारात्मक रखना बेहद जरूरी है ताकि हम स्वयं के लिए, अपने परिवार के लिए, अपने समाज के लिए, अपने राष्ट्र के लिए और समूची मानवता के लिए कुछ सार्थक कर पाएं। अमेरिकी अभिनेत्री ल्यूसिल डेसरी बॉल जिन्हें 13 बार प्राइमटाइम एमी पुरस्कारों के लिए नामांकित किया गया था और पांच बार उन्हें यह पुरस्कार मिला था, सकारात्मकता की बाबत एक बड़ी खूबसूरत बात कहती हैं- ‘One of the things I learned the hard way was that it doesnot pay to get discouraged. Keeping busy and making optimism a way of life can restore your faith in yourself’ (एक चीज जो मैंने अपने कठिन समय में सीखी वह यह कि हतोत्साहित होने से कोई फायदा नहीं होता। खुद को व्यस्त रखना और आशावादी दृष्टिकोण को जीवन जीने का तरीका बनाना, आपका खुद पर विश्वास बहाल कर सकता है।) तो चलिए 2023 जो कुछ सकारात्मक संभावनाएं हमारे भविष्य की बाबत, हमारे राष्ट्र और समाज की बाबत, हमें देकर विदा हुआ है, उस पर पहले चर्चा करते हैं ताकि हौसला कायम रहे खुद पर, अपने समाज पर और अपने राष्ट्र पर।

सबसे बड़ी सकारात्मक बात भारत के आर्थिक प्रगति मार्ग पर निरंतर आगे बढ़ने की है। ऐसा अनुमान अर्थशास्त्री लगा रहे हैं कि यदि भारत अपनी आर्थिकी की वर्तमान रफ्तार को बनाए रखता है तो 2047 तक वह विकसित राष्ट्र बन जाएगा। विश्व बैंक के अनुसार ऐसे देश जिनकी प्रति व्यक्ति वार्षिक राष्ट्रीय आय (Annual per capita Gross National Income) 13,846 डॉलर हो, विकसित उच्च आर्थिकी वाले राष्ट्रों में आते हैं। इसके बाद दूसरी श्रेणी उन तेजी से उभर रहे राष्ट्रों की है जिनकी प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय आय 4,466 से 13,845 डॉलर है। तीसरी श्रेणी में निम्न आर्थिकी वाले राष्ट्र हैं जहां यह राष्ट्रीय आय 1,136 से 4,465 डॉलर है। भारत वर्तमान में निम्न आर्थिकी वाला राष्ट्र है जहां प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय आय मात्र लगभग 2023 डॉलर है। यानी प्रति व्यक्ति आय 14,000 रुपया प्रति माह है। यह औसत आय है जिसमें प्रतिमाह खरबों की कमाई करने वाले धन्ना सेठ और मात्र कुछ सौ रुपए कमाने वाला कतार में खड़ा अंतिम आदमी शामिल है। जब यह औसत आय बढ़कर 98,000 रुपया प्रतिमाह पहुंच जाएगी तब भारत विकसित राष्ट्रों में शामिल हो जाएगा। 2047 तक यानी 24 बरस बाद ऐसा होने की संभावना है। इस सकारात्मकता के पीछे यह सद्भावना काम कर रही है कि 1947 से 2014 तक, 67 बरस की लंबी यात्रा बाद भारत 2 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था वाला राष्ट्र बन पाया था। मोदी युग की शुरुआत के बाद इस आर्थिक प्रगति की यात्रा में भारी तेजी आई और 2024 के अंत में हम 4 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जाएंगे। इसके बाद अगले पांच सालों में लगभग 2 ट्रिलियन डॉलर की वृद्धि कर 6 ट्रिलियन डॉलर वाली अर्थव्यवस्था बन हर पांच वर्ष में लगातार 2 ट्रिलियन डॉलर की वृद्धि दर्ज करते हुए 2047 तक विकसित राष्ट्र का दर्जा पाने में सफल रहेंगे। हालांकि इसमें बहुत सारे किंतु-परंतु शामिल हैं। इस राष्ट्रीय आय का सीधा संबंध किसी भी देश की जनसंख्या पर निर्भर करता है। जिस तेजी से हमारी जनसंख्या में वृद्धि हो रही है 2047 तक संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुमान अनुसार हम 166 ़8 करोड़ की जनसंख्या वाला राष्ट्र होंगे। विश्व बैंक के वर्तमान मानकों अनुसार इस जनसंख्या के साथ हम अपनी वर्तमान आर्थिक विकास दर को बरकरार रखने के बावजूद प्रति व्यक्ति 13,846 डॉलर प्रति वर्ष की आय का लक्ष्य शायद ही हासिल कर पाएं। फिर भी यह एक सकारात्मक दृष्टिकोण है जो 2023 हमें देकर विदा हुआ है। मोदी सरकार ‘विकसित भारत’ का लक्ष्य हासिल करने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूती देने का लगातार काम कर रही है। साथ ही गरीबी रेखा से नीचे रह रहे नागरिकों को बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य भी इस सरकार ने तय कर रखे हैं। प्रधानमंत्री आवास योजना के जरिए करोड़ों बेघरों को छत देना, सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण करना, हर घर बिजली-गैस कनेक्शन पहुंचाना और सर्वशिक्षा अभियान को गति प्रदान करना आदि मोदी सरकार के इरादे यदि धरातल पर उतर पाने में सफल रहते हैं तो निश्चित ही अगले 25 बरसों में हम विकसित राष्ट्र बन पाने में सफल हो सकते हैं। आर्थिकी के इन आंकड़ों को हमें सौंप विदा हो चुके 2023 ने लेकिन कई ऐसी आशंकाओं को भी हमें सौंपा है जिन्हें हम बीते कुछ वर्षों के दौरान लगातार सच में बदलते देख रहे हैं। यदि इन आशंकाओं का निवारण नहीं किया गया तो 2047 का मंजर पूरी तरह उल्टा भी हो सकता है। बीते कई वर्षों की भांति गत् वर्ष भी भारतीय लोकतंत्र की जड़ों को कमजोर करने के नाम रहा। सत्ता पक्ष का अहंकार लोकतांत्रिक मूल्यों की खुली अवहेलना करने और आम नागरिक के जीवन के हर पहलू पर पूरी तरह कब्जा करने और अपनी सोच अनुसार उसको संचालित करने की मनोवृत्ति का सबसे बड़ा कारण बन उभरा है। 2014 में मोदी सरकार के केंद्र की सत्ता में काबिज होने के बाद से ही हम आम भारतीय को संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों का निरंतर क्षरण होते देख रहे हैं। फिर चाहे वह कृषि कानूनों का मसला हो या फिर अभियक्ति की आजादी सरीखी लोकतंत्र की बुनियादी शर्त, सभी पर अंकुश लगाने का काम 2023 में भी जारी रहा है। विश्वविद्यालयांे में छात्र-छात्राओं को अपनी बात कहने से रोका जा रहा है, राज्यपालों के जरिए चुनी गई सरकारों के कामकाज को प्रभावित किया जा रहा है, हर संवैधानिक संस्था को कमजोर होते हम देख रहे हैं। सबसे ज्यादा चिंता का विषय ‘यूएपीए’ सरीखे कानूनों के दुरुपयोग का और केंद्रीय जांच एजेंसियों के जरिए प्रतिरोध के स्वरों को दबाए जाने का है। स्वतंत्र और निष्पक्ष मीडिया अब नहीं के बराबर रह गया है। तमाम बड़े अखबरों और न्यूज चैनलों का चारण-भाट बन कर रह जाना लोकतंत्र के स्वास्थ पर भारी आघात समान है। एक तरफ केंद्र की सरकार ‘बेटी पढ़ाओं-बेटी बचाओ’ का अभियान छेड़ती है तो दूसरी तरफ बृजभूषण सिंह सरीखों को संरक्षण देती नजर आती है। हमारी महिला पहलवानों का राष्ट्रीय पुरस्कारों को लौटा देना, धरने पर बैठना इत्यादि 2023 में ही तो घटित हुआ। सत्ता विरोधी पत्रकारों के यहां पुलिस की, ईडी की छापेमारी और आतंक निरोधी कानून के तहत उनकी गिरफ्तारी, मणिपुर में महीनों तक हिंसा का तांडव और देश के प्रधानमंत्री की उस पर गहरी चुप्पी, धर्म के साथ-साथ जातिय संघर्षों में तेजी आना इत्यादि ऐसी घटनाएं हैं जो आने वाले भारत के प्रति नाना प्रकार की दुश्चिंताओं को जन्म दे एक विकसित और आत्मनिर्भर भारत के स्वपन को खंड़ित करने का काम कर रही हैं। हम संसदीय व्यवस्था वाला राष्ट्र हैं। संसद लोकतंत्र का एक सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ है जहां तय की गई नीतियों भविष्य के भारत की दिशा तय करती हैं। वर्तमान समय में संसद पूरी तरह पंगु हो चली है। विपक्ष सरकार के हर फैसले पर हंगामा खड़ा कर देता है तो सत्ता पक्ष भी सदन में अपनी संख्या बल को आधार बना विपक्ष की आशंकाओं और आपत्तियों को सिरे से खारिज करने में देर नहीं लगाता है। 2023 में तो ऐसा तानाशाहीपूर्ण व्यवहार पराकाष्ठा में जा पहुंचा। वर्ष के अंतिम सत्र के दौरान पहले तो 18 दिसंबर के दिन एकमुश्त 72 विपक्षी सांसदो को लोकसभा से निलंबित करने का ‘रिकॉर्ड’ बनाया गया और फिर आने वाले तीन दिनों में निलंबित सांसदों का आंकड़ा 146 पहुंच गया। यह निश्चित ही स्वस्थ लोकतांत्रिक परंपराओं के विपरीत है और भविष्य के भारत में लोकतंत्र के बने रहने, फलने-फूलने की सद्इच्छा के ठीक उलट है। कवि दुष्यंत कुमार की एक गजल है- ‘तुम्हारे पांव के नीचे कोई जमीन नहीं/कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यकीन नहीं/मैं बे-पनाह अंधेरों को सुबह कैसे कहूं/मैं इन नजरों का अंधा तमाशबीन नहीं।’ मेरे साथ भी यही संकट है। एक तरफ सकारात्मक सोच को हर कीमत पर बनाए रखने की जिद है ताकि नकारात्मकता से निजात मिल सके तो दूसरी तरफ बे-पनाह अंधेरों का सच मुंह बाए सामने खड़ा है जिससे मुंह चुराना शुतुरमुर्ग की भांति रेत के ढेर में मुंह छिपाने समान है। फिर भी मनुष्य निर्मित ईश्वर के प्रति अविश्वास का भाव रखने वाले मुझ सरीखों के पास उम्मीद का दिया जलाए रखने के लिए सकारात्मक ऊर्जा के सिवा और कोई सहारा है ही नहीं। इसलिए इस ऊर्जा को हाजिर-नाजिर मानते हुए आप सभी को एक स्वर्णिम कल की आकांक्षा लिए नव वर्ष की समस्त अशेष शुभकामनाएं।

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