Uttarakhand

‘क्या सिल्क्यारा टनल की घटना से सबक लेंगे?’

  •       सुरेश भाई
    लेखक रक्षासूत्र, आंदोलन के प्रेरक हैं।

यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर सिल्क्यारा बैंड के पास ऑल वेदर रोड के लिए निर्माणाधीन सुरंग में भारी भूस्खलन के कारण तीन दर्जन से अधिक लोग पिछले दो दिनों से फंसे हुए हैं। यह एक ऐसा उदाहरण है कि जब लोग अपने घरों में हंसी-खुशी से दीपावली का त्यौहार मना रहे हैं और दूसरी ओर मजदूरों पर इतना दबाव डाला जाता है कि उन्हें अपने घर में
दीपोत्सव मनाने के लिए कोई छुट्टी नहीं मिली है और उनसे इतना जोखिम भरा काम करवाया गया है कि जहां से उन्हें ईश्वर के भरोसे ही बचाया जा सकता है। टनल के अंदर भूस्खलन के कारण फंसे मजदूर किस स्थिति में जी रहे हैं यह तो समय ही बताएगा। लेकिन इस घटना के कारण कुछ सवाल जो खड़े हो रहे हैं उस पर एक बार फिर से हिमालय की संवेदनशीलता को देखते हुए किस तरह के विकास कार्यों की आवश्यकता है जिसे नजरअंदाज करके ऐसी घटनाएं सामने आती रहती है। जब कई जिंदगियां खतरे में पड़ जाती है इसके बाद राहत और बचाव के कार्य तेजी से करने पड़ते हैं।

पहली बात तो यह है कि निर्माण कार्यों में मजदूरों के अधिकार और उनकी जीवन रक्षा के लिए जो उपाय किए जाने चाहिए उसकी अनदेखी बहुत हो रही है। कई स्थानों पर हालात यह है कि बाहरी मजदूरों के द्वारा निर्माण कार्य करवाए जाने से उनके बारे में बहुत सारी सूचनाएं सामने नहीं आ पाती है। जोखिमपूर्ण स्थितियों में ही मीडिया और अन्य के दबाव में सूची तो बाहर आती है लेकिन मजदूरों को काम पर लगाने से पहले उनके बारे में जो जानकारी निर्माणकर्ताओं के पास होनी चाहिए वह नहीं रहती है। टनल निर्माण के कार्य हेतु प्रयोग की जाने वाली ड्रील मशीनों का समुचित उपयोग करने की आवश्यकता है ताकि निर्माण के समय निकलने वाले मलवा को धीरे-धीरे उचित स्थान पर पहुंचाया जा सके।

यदि टनल का निर्माण विस्फोटों से हो रहा है तो वह काम करने वाले मजदूरों के लिए कभी भी जानलेवा साबित हो सकता है। दूसरा टनल निर्माण के लिए उपयुक्त स्थान का चयन भी बहुत जरूरी है। इसके लिए भूगर्भवेत्ताओं की पुख्ता रिपोर्ट होनी जरूरी है। यह इसलिए कि टनल से चूने की मिट्टी अधिकांश मात्रा में निकल रही है। टनल के आगे बने हुए डंपिंग यार्ड में इसके संकेत दिखाई दे रहे हैं। जहां पर बार-बार थोड़ा पानी बढ़ने पर भी भूस्खलन की अधिक संभावनाएं रहती है।

बताते हैं कि टनल का निर्माण थोड़ा पहले हो जाना चाहिए था। लेकिन यहां पर भूस्खलन होता रहता है।यहां के बारे में इस तरह की सूचनाएं पहले भी आती रही है। लेकिन सावधानी के जो उपाय होने चाहिए थे वह भारी निर्माण कार्य के सामने बौना साबित हुआ है जिसके देखते आलवेदर रोड ने उत्तराखण्ड के महत्वपूर्ण पर्वतीय भाग को बुरी तरह प्रभावित किया है। बड़ी मात्रा में जल, जंगल, जमीन, जन को भारी नुकसान का सामना झेलना पड़ रहा है। इसके बावजूद टनल आधारित परियोजनाओं को जमीन पर उतरने के लिए रात दिन प्रयास हो रहा है। हिमालय क्षेत्र में लगातार आ रहे भूकंपों से धरती में दरारें चौड़ी होती जा रही है। धरती को खोखला कर देने से तेज भूकंप के दौरान बड़ी क्षति हो सकती है। इसलिए यह पूछना जरूरी है कि क्या प्रस्तावित एवं निर्माणधीन बड़ी-बड़ी सुरंगों के निर्माण से इस तरह की घटनाएं रुक सकेगी?

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