भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को सबसे ज्यादा भय पार्टी के मार्गदर्शक मंडल से लगता है। मोदी युग में गठित किए गए इस पार्टी फोरम में लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी सबसे पहले भेजे गए थे। पार्टी के इन दोनों संस्थापकों को राजनीति से रिटायर करने की नीयत से ही यह फोरम टीम मोदी ने बनाया था। इस मार्गदर्शक मंडल की पिछले छह बरस में एक भी बैठक का न होना इस बात की पुष्टिकरता है। इस मार्गदर्शक मंडल में आडवाणी और जोशी के साथ नरेंद्र मोदी और राजनाथ सिंह सदस्य हैं। पार्टी नेताओं के मध्य खासी चर्चा रहती है कि कब राजनाथ सिंह को मंत्री पद छोड़ इस फोरम का स्थाई सदस्य बनाया जाएगा।
इन दिनों एक नया नाम इस मंडल के सदस्य के तौर पर उभर रहा है। यह नाम के कर्नाटक के वर्तमान मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा का। पार्टी सूत्रों का दावा है कि भाजपा के इस क्षत्रप को पार्टी के भीतर से ही कमजोर किए जाने के प्रयास हो रहे हैं। पिछले दिनों येदियुरप्पा के बेटे पर भ्रष्टाचार के आरोप इसी स्कीम का अंग बताए जा रहे हैं। जानकारों का दावा है कि येदियुरप्पा को उनके मंत्रिमंडल का विस्तार करने की इजाजत भी इसी के चलते नहीं दी जा रही है। जानकार यह भी दावा करते घूम रहे हैं कि तीन नवंबर को दो विधानसभा सीटों पर होने जा रहे उपचुनाव के नतीजे यदि भाजपा के पक्ष में नहीं आते तो येरियुरप्पा की कुर्सीका जाना तय है। हालांकि सीएम समर्थकों का कहना है कि पार्टी विधायकों का पूरा समर्थन होने के चलते येदियुरप्पा को हटाया जाना आसान नहीं है।