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बघेल से वाड्रा तक : दांव-पेंच या कानून का न्याय?

चैतन्या बघेल को कोर्ट में पेशी के लिए ले जाती पुलिस

छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बेटे चैतन्य बघेल की गिरफ्तारी और प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा पर ईडी की चार्जशीट ने एक बार फिर से केंद्रीय जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली को बहस का मुद्दा बना डाला है। राहुल गांधी इसे ”दस साल का राजनीतिक प्रतिशोध” बता रहे हैं, शरद पवार केंद्रीय जांच एजेंसियों के कथित दुरुपयोग को लोकतंत्र पर हमला मानते हैं और अंतरराष्ट्रीय मीडिया एजेंसियां जैसे ‘रॉयटस’ इसे भारत में जांच एजेंसियों के राजनीतिक हथियार बनने का संकेत कह चुकी हैं। क्या यह भ्रष्टाचार विरोधी कार्रवाई है या सत्ता का शक्ति प्रदर्शन?

भारत में राजनीति और जांच एजेंसियों का सम्बंध दशकों से चर्चा में रहा है लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार के आने के बाद इनकी भूमिका पर गम्भीर सवाल उठने लगे हैं। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई), इनकम टैक्स विभाग, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी), ये सब नाम सिर्फ संस्थाएं नहीं, अब राजनीतिक विमर्श का हिस्सा बन गए हैं। हाल की दो घटनाओं ने इस बहस को नया उबाल दिया है। ये दो ताजा प्रकरण हैं छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बेटे चैतन्य बघेल की ईडी द्वारा गिरफ्तारी और कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा पर ईडी द्वारा दायर की गई चार्जशीट।

छत्तीसगढ़ में कथित शराब घोटाले की जांच में ईडी ने चैतन्य बघेल को गिरफ्तार किया है। आरोप है कि 2019 से 2022 के बीच सरकारी अधिकारियों, राजनेताओं और शराब कारोबारियों के गठजोड़ ने एक सिंडिकेट बनाकर 2,100 करोड़ रुपए से अधिक की अवैध कमाई की। इस सिंडिकेट में हर शराब खेप पर रिश्वत, बेहिसाब शराब की बिक्री और बाजार में हिस्सेदारी तय करने जैसे कई अनियमितताएं रहीं। ईडी के मुताबिक चैतन्य बघेल इस अवैध कमाई के लाभार्थी रहे। 18 जुलाई की सुबह 6 बजे, 12 सदस्यीय ईडी टीम भारी पुलिस बल के साथ भिलाई स्थित बघेल निवास पहुंची। इस दौरान कांग्रेस कार्यकर्त्ता सड़कों पर उतर आए, नारेबाजी की, बैरिकेड तोड़े और पुलिस को अतिरिक्त बल तैनात करना पड़ा।

भूपेश बघेल ने तुरंत तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि ”आज विधानसभा का आखिरी दिन था। रायगढ़ के तमनार में अडानी के लिए पेड़ काटने का मुद्दा उठाना था, साहेब ने मेरे घर ईडी भेज दी। हम न डरेंगे, न झुकेंगे और सच्चाई की लड़ाई लड़ेंगे।” उल्लेखनीय है कि मार्च 2025 में भी उनके घर पर छापे पड़े थे, जब ईडी को 32-33 लाख रुपए नकद मिले थे, जिसे बघेल ने संयुक्त परिवार और खेती-बाड़ी से आया पैसा बताया था।

इसी समय, दिल्ली में रॉबर्ट वाड्रा पर ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग केस में चार्जशीट दायर की। मामला 2008 में हरियाणा के शिकोहपुर गांव की 3.53 एकड़ जमीन की खरीद से जुड़ा है। आरोप है कि वाड्रा की कम्पनी ने फर्जी घोषणा देकर जमीन खरीदी। ईडी ने वाड्रा और उनकी कम्पनियों की 43 सम्पत्तियां जब्त कर ली है, जिनकी अनुमानित कीमत 37 करोड़ रुपए है। वाड्रा को अप्रैल 2025 में लगातार तीन दिन तक पूछताछ का सामना करना पड़ा था। वाड्रा ने बयान जारी कर कहा है कि ”यह सिर्फ राजनीतिक साजिश है, मैं हमेशा कानून का पालन करता आया हूं और सच सामने आएगा।”

राहुल गांधी ने भी इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। राहुल का कहना है कि ”मेरे जीजा रॉबर्ट वाड्रा को दस साल से परेशान किया जा रहा है। यह चाजज़्शीट उसी साजिश की कड़ी है। मैं रॉबर्ट, प्रियंका और उनके बच्चों के साथ खड़ा हूं।” कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा, ”यह मोदी सरकार की घटिया कोशिश है, जो हर बार की तरह असफल होगी।” कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा सरकार जांच एजेंसियों का इस्तेमाल विपक्ष को दबाने के लिए कर रही है।

महत्वपूर्ण यह है कि इस आरोप में कांग्रेस अकेली नहीं है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) प्रमुख शरद पवार सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं कि ”ईडी भाजपा की सहायक पार्टी बन चुकी है। विपक्षी नेताओं में डर का माहौल बनाने के लिए ईडी का इस्तेमाल हो रहा है। कार्रवाई के आदेश भाजपा कार्यालय से आते हैं।” शरद पवार के इस बयान को विपक्षी राजनीति में बार-बार उद्धृत किया जाता है।

अंतरराष्ट्रीय मीडिया भी इस स्थिति पर नजर रख रहा है। मार्च 2024 में ‘रॉयटस’ ने एक रिपोर्ट में लिखा ”2014 के बाद से ईडी ने 100 से अधिक विपक्षी नेताओं पर कार्रवाई की है। आलोचकों का कहना है कि एजेंसी का इस्तेमाल राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने के लिए हो रहा है।” राइट्स’ की रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि भाजपा के सत्ता में आने के बाद विपक्षी नेताओं पर ईडी के मामलों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है, जबकि सत्तारूढ़ दल के शीर्ष नेताओं के खिलाफ शायद ही कोई बड़ी कार्रवाई हुई हो।

इतना ही नहीं, विपक्ष के 14 दलों ने मार्च 2024 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर दावा किया कि ईडी की 95 फीसदी कार्रवाइयां विपक्षी नेताओं के खिलाफ केंद्रित हैं। याचिका में कहा गया कि जांच एजेंसियां अपनी निष्पक्षता खो रही हैं, जिससे लोकतंत्र की संस्थाओं पर जनता का भरोसा डगमगा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में ईडी की गिरफ्तारी और शक्तियों पर सुनवाई करते हुए कहा, ”ईडी कोई पवित्र गाय नहीं है, इसकी भी न्यायिक समीक्षा हो सकती है।”

भाजपा प्रवक्ता इन आरोपों को खारिज करते हुए कहते हैं कि कानून अपना काम कर रहा है। उनका कहना है, ”अगर विपक्षी नेता निर्दोष हैं तो जांच से क्यों डरते हैं? भाजपा के कई नेताओं के खिलाफ भी जांच चल रही है, लेकिन वे इसे राजनीतिक मुद्दा नहीं बनाते।” भाजपा नेताओं का यह भी कहना है कि कांग्रेस और उसके सहयोगी भ्रष्टाचार की सच्चाई को राजनीतिक रंग देने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि खुद को शहीद के तौर पर पेश किया जा सके।

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल की गिरफ्तारी कांग्रेस के लिए स्थानीय सहानुभूति जुटाने का अवसर बन सकती है। बघेल को जमीनी नेता माना जाता है, जिनकी पिछड़ी जातियों में मजबूत पकड़ है, वहीं रॉबर्ट वाड्रा का मामला राष्ट्रीय स्तर पर गांधी परिवार को घेरे में लाना भाजपा की रणनीति का हिस्सा है, जिससे 2029 के आम चुनाव तक कांग्रेस को भ्रष्टाचार का चेहरा बताया जा सके।

इतिहास गवाह है कि जांच एजेंसियों पर सवाल कोई नई बात नहीं है। इंदिरा गांधी के आपातकाल में विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारियां, राजीव गांधी के बोफोर्स घोटाले, अटल बिहारी वाजपेयी के तहलका कांड,
मनमोहन सिंह के शासन में 2जी और कॉमनवेल्थ घोटाले, हर सरकार पर यह आरोप लगे कि उसने या तो एजेंसियों का दुरुपयोग किया या भ्रष्टाचार पर आंख मूंद ली। मोदी सरकार ने अपनी पहचान ‘क्लीन इमेज’ वाली सरकार के रूप में बनाई, लेकिन विपक्ष का आरोप है कि इस सरकार ने जांच एजेंसियों को राजनीतिक प्रतिशोध के औजार में बदल दिया है।

सिर्फ राजनीतिक गलियारों में ही नहीं, मीडिया में भी इस पर चचाज़् जारी है। बड़े मीडिया घराने विभाजित दिखते हैं, कुछ इसे भ्रष्टाचार पर कड़ा प्रहार मानते हैं तो कुछ इसे लोकतंत्र का कमजोर पड़ना। सोशल मीडिया पर भी जनता बंटी हुई है। कुछ लोग कहते हैं ”चोरों को जेल में डालना चाहिए” तो कुछ लिखते हैं ”सिर्फ विपक्ष पर ही क्यों कार्रवाई?”

विपक्षी दलों के साझा मंच ‘इंडिया अलायंस’ के नेताओं का मानना है कि यह दौर ”अघोषित इमरजेंसी” जैसा है, जहां लोकतंत्र की आवाज को दबाया जा रहा है। राहुल गांधी ने एक सभा में कहा, ”वे समझते हैं कि हम डर जाएंगे, मगर कांग्रेस की आत्मा डर से बड़ी है।”

कुल मिलाकर, छत्तीसगढ़ से लेकर दिल्ली तक की घटनाएं सिर्फ कानूनी सवाल नहीं उठातीं, बल्कि लोकतंत्र, संस्थाओं की स्वतंत्रता और राजनीति की नैतिकता पर भी बहस खड़ी करती हैं। विपक्ष इसे लोकतंत्र पर हमला बता रहा है, भाजपा इसे भ्रष्टाचार पर कार्रवाई कह रही है और जनता के सामने अब बड़ा सवाल यही खड़ा है, सच क्या है और कौन तय करेगा?

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