Uttarakhand

कम मतदान : सकते में धामी सरकार

प्रदेश में हुए कम मतदान को लेकर चुनाव आयोग चिंतित है। सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा समीक्षा बैठक कर इसका जायजा ले रही है। सूबे के सीएम पुष्कर सिंह धामी ने बकायदा शासन को इस बाबत जांच करने के आदेश दिए हैं। पिछले लोकसभा और इस लोकसभा चुनाव का आकलन करें तो प्रदेश में 2019 के मुकाबले इस बार मतदान प्रतिशत गिरने के साथ ही मतदान बहिष्कार में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। 2019 में जहां 10 स्थानों पर चुनाव का बहिष्कार हुआ था, वहीं इस बार यह आंकड़ा 25 को पार कर गया है

जसपाल नेगी

देश में लोकसभा चुनाव 2024 का प्रथम चरण समाप्त हो चुका है। प्रथम चरण में 21 राज्यों के 102 लोकसभा सीटों पर मतदान हुआ है जिसमें उत्तराखण्ड सहित 10 हिमालयी राज्य भी शामिल थे। उत्तराखण्ड लगभग 56 प्रतिशत मतदान के साथ सबसे कम संख्या में मतदान वाला राज्य रहा। जो राज्य सरकार व चुनाव आयोग की उम्मीद और दावों पर खरा नहीं उतरा है।

कम मतदान को लेकर राजनीतिक विशेषज्ञों के विश्लेषण पर कई कारण सामने आए हैं जिसमें प्रमुख कारण रहा स्थानीय मुद्दों की राज्य सरकार द्वारा अनदेखी उत्तराखण्ड में कई जगहों पर बड़ी संख्या में चुनाव बहिष्कार किया गया जिनमंे अकेले चकराता विधानसभा के ही 12 गांव हैं। यहां के ग्रामीणों ने तीन दशक से अधिक समय से पक्की सड़क की मांग को लेकर चुनाव बहिष्कार किया है। चुनाव बहिष्कार का ऐसा ही एक मामला पुरोला विधानसभा क्षेत्र का सामने आया है जहां बड़कोट तहसील अंतर्गत कई ग्राम पंचायतों ने लगभग 10-15 वर्षों से सड़क की मांग पूरी न होने के चलते चुनाव बहिष्कार किया तो वहीं और भी कई ऐसे मुद्दे हैं जिसके चलते बड़ी संख्या में उत्तराखण्ड में ग्रामीणों द्वारा चुनाव बहिष्कार किया गया।

स्थानीय लोगों का कहना है कि यह चुनाव बहिष्कार सरकारों के विकास के दावों की पोल खोल रहा है। यह मांग कोई एक सप्ताह, एक महीना, एक वर्ष की नहीं बल्कि पिछले दो दशकों से है और इस दौरान केंद्र और राज्य में दोनों ही प्रमुख पार्टियों की सरकारें रही हैं जो चुनाव के दौरान जनता के बीच जाकर अपने-अपने विकास के दावे करती हैं और ग्रामीणों द्वारा यह चुनाव बहिष्कार उनके विकास के दावों की पोल खोलते हुए उन्हें आईना दिखा रहा है।

वहीं ग्राम पंचायत खांसी के अंतर्गत एक छोटा कस्बा दोनि विगत कई वर्षों से राजस्व ग्राम की मांग कर रहा है। यह कस्बा सरकार द्वारा संचालित की गई योजनाओं से वंचित है और मूलभूत सुविधाओं के लिए जूझ रहा है। जिसके चलते ग्रामीणों ने पूर्ण रूप से लोकसभा चुनाव का बहिष्कार किया। दोनि गांव के दानू सिंह कहते हैं कि ‘लोकतंत्र में चुनाव बहिष्कार एक बहुत बड़ी चिंता का विषय है क्योंकि चुनाव बहिष्कार का सीधा मतलब लोकतंत्र पर विश्वास कम हो जाना है। आखिर कब वो दिन आएगा जब देश में हर चुनाव जाति धर्म से ऊपर उठकर विकास के मुद्दों पर लड़ा जाएगा और जनता सरकारों के काम से खुश होकर 100 प्रतिशत मतदान करेगी। वर्तमान स्थिति देखकर तो ऐसा नहीं लगता लेकिन भविष्य की संभावना को भी नकारा नहीं जा सकता क्योंकि उम्मीद पर तो दुनिया कायम है।’

चमोली जनपद में आठ गांवों के ग्रामीणों ने मतदान से दूरी बनाए रखी। निजमुला घाटी के ईराणी गांव में मात्र एक ग्रामीण का वोट पड़ा। पाणा, गणाई, देवराड़ा, सकंड, पंडाव, पिनई और बलाण गांव में ग्रामीणों ने मतदान नहीं किया। कर्णप्रयाग के संकड, आदिबदरी के पड़ाव, नारायणबगड़ के मानूर और बेड़गांव के ग्रामीण भी रहे मतदान से दूर। थराली के देवराड़ा और देवाल के बलाड़ में मतदान का पूर्ण बहिष्कार किया गया।

गढ़वाल लोकसभा क्षेत्र के ही एक अन्य गांव में चुनाव बहिष्कार हुआ। जिस गांव ने लोकसभा चुनाव में मतदान का बहिष्कार किया। इसका नाम डुमक है। इस गांव में साल 2007-08 में 32 किलोमीटर लंबा रोड प्रोजेक्ट शुरू हुआ था। यह सड़क प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत बन रही थी लेकिन अभी तक पूरी नहीं हुई है। सड़क कार्य के अधूरे होने से गांव वाले नाराज हैं और उन्होंने इस बार के चुनाव का बहिष्कार कर दिया है। ग्रामीणों का कहना है कि अभी तक सिर्फ 50 फीसदी ही रोड बनी है। जिसके निर्माण में करीब 15 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं।

सूबे में साल 2022 में विधानसभा चुनाव हुए थे। उससे पहले चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने भी इस गांव का दौरा किया था। अब वो मुख्य चुनाव अधिकारी हैं। उनके दौरे के बाद पोल पैनल ने दूर-दराज तक पहुंचने वाले पोलिंग अधिकारियों का मानदेय दोगुना कर दिया था। बताया जाता है कि उन्होंने उस वक्त ग्रामीणों की रोड की समस्या सुनी थी और उसे लेकर आश्वासन भी दिया था। उन्हें उस वक्त यहां के पोलिंग स्टेशन तक पहुंचने में तीन दिन लगे थे। लेकिन अभी तक इस गांव में रोड नहीं पहुंची है। गांव के पूर्व प्रधान प्रेम सनवाल कहते हैं कि ‘हमें अभी तक इस प्रोजेक्ट के प्रोग्रेस के बारे में कोई जानकारी नहीं है। अब अधिकारी कह रहे हैं कि वो फिर से सर्वे करेंगे। हम इससे परेशान हो चुके हैं इसलिए हमने लोकसभा चुनाव का बहिष्कार करने का रास्ता चुना।’ वहीं पीएमजीएसवाई के एग्जुकेटिव इंजीनियर का कहना है कि पत्थरों के धंसाव और कटाव के कारण नया सर्वे कराया गया है और क्लियरेंस के बाद काम फिर शुरू होगा।

लंबे समय से सड़क की मांग कर रहे पाबौ ब्लाॅक के चैड़ तल्ला और मल्ला के ग्रामीणों ने भी लोकसभा चुनाव में मतदान नहीं किया। यहां ग्रामीणों को पहले अफसरों ने मनाने की भरपूर कोशिश की लेकिन कोई असर नहीं रहा और इस पोलिंग बूथ पर कोई भी वोटर वोट देने नहीं आया।

पोलिंग बूथ पर 2 वोट जो पड़े वह दोनों ही ईडीसी की थी। पौड़ी विधानसभा के इस पोल पर कुल 308 वोटर हैं। ग्रामीणों की मानें तो पाबौ से चैड़तल्ला तक के लिए सड़क है, लेकिन मल्ला चैड़ की दूरी इससे 3 किलीमोटर है। मल्ला चैड़ के सीकूखाल से सड़क आई है लेकिन मांग के बावजूद दोनों सड़कों को लिंक नहीं किया जा सका और न ही इनका डामरीकरण हुआ। बताया गया कि मल्ला चैड़ के ग्रामीणों को रसद लेने के लिए तल्ला चैड़ आना पड़ता है। ऐसे में उन्हें 3 किलोमीटर की पैदल खड़ी चढ़ाई चढ़कर जाना पड़ता है। यहां बरसात में कई बार रोड बंद हो जाती है।

ग्रामीणों के लिए एक और दिक्कत यह भी है कि पाबौ ब्लाॅक का अधिकतर हिस्सा श्रीनगर विधानसभा में चला गया है। इस ब्लाॅक की केवल खातस्यूं पट्टी ही पौड़ी विधानसभा में है। इस गांव में जिला निर्वाचन अधिकारी के निर्देश पर ग्रामीणों को समझाने के लिए पौड़ी से मुख्य कृषि अधिकारी अमेंद्र चैधरी भी पहुंचे। उन्होंने ग्रामीणों को काफी देर तक समझाया। लेकिन वे वोट देने के लिए तैयार नहीं हुए। गांव के निवासी कुलदीप गुंसाई का कहना है कि ‘2 फरवरी को सेक्टर मजिस्ट्रेट ने उनकी नाराजगी और मतदान के बहिष्कार की रिपोर्ट भी दे दी थी लेकिन फिर भी कोई हल नहीं निकाला जा सका। इस मौके पर ग्राम प्रधान सुनील चैहान, रविंद्र नेगी, सिताब सिंह, राजेंद्र सिंह गुसाई, कुलदीप गुंसाई आदि ने नारा दिया कि ‘रोड नहीं तो वोट नहीं।’

वहीं चैबट्टाखाल विधानसभा के डवीलाखाल और बग्याली में भी ग्रामीण वोट देने नहीं आए। डवीलाखाल पोलिंग बूथ पर शाम करीब 4 बजे तक कोई वोट नहीं पड़ा। यहां दमदेवल कडरी सड़क के डामरीकरण नहीं होने से नाराज ग्रामीण वोट देने नहीं आए। इस बूथ पर दो वोट ईडीसी के ही पड़े। यहां 680 वोटर थे। मौके पर सेक्टर मजिस्ट्रेट से लेकर बीडीओ भी पहुंचे लेकिन ग्रामीण नहीं माने। इसी विधानसभा के बग्याली बूथ पर केवल 8 वोट पड़े। यहां कुल 660 वोटर थे। यहां सड़क निर्माण नहीं होने से नाराज ग्रामीण वोट देने नहीं आए। बताया गया कि चुनाव के भी ग्रामीणों की कई दौर की वार्ता हुई थी। लेकिन उसके बावजूद भी कोई हल नहीं निकाला जा सका। यमकेश्वर विधानसभा के गंगा भोगपुर पोलिंग बूथ पर भी केवल एक वोट ही पड़ा। इस बूथ पर 1273 मतदाता हैं।

प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मतदान बहिष्कार पर लोगों की नाराजगी को गंभीरता से लेते हुए रिर्पोट तलब की है। उन्होंने मुख्य सचिव आर.के. सुधांशु को सभी गांवों की नाराजगी की वजह तलाशने के साथ ही उसका प्रभावी समाधान करने के निर्देश दिए हैं। इसी के साथ मुख्यमंत्री धामी ने जिला प्रशासन से मतदान बहिष्कार करने वाले गांवों का ब्यौरा मांगा है। अब देखने वाली बात यह होगी कि आने वाले समय में चुनाव बहिष्कार करने वाले ग्रामीणों की समस्या का समाधान सरकारी मशीनरी कितनी त्वरित गति से करती है। जिससे आने वाले चुनावों में ग्रामीणों को अपने क्षेत्र के विकास के लिए अपनी मांगों को लेकर चुनाव बहिष्कार कर सरकार से अपनी नाराजगी जाहिर न करनी पडे़।

बात अपनी-अपनी

पिछले 10 साल से केंद्र और 7 साल राज्य में भाजपा की सरकार है। ये सरकार बड़ी-बड़ी बातें तो करती है, लेकिन आज भी प्रदेश के तमाम ग्रामीण क्षेत्रों में सुविधाओं का अभाव बना हुआ है, जिसके चलते लोग चुनाव बहिष्कार पर उतर आए हैं। ये बातें भाजपा सरकार के विकास की पोल खोल रही है।

मथुरा दत्त जोशी, कांग्रेस प्रदेश उपाध्यक्ष

भाजपा हमेशा से ही हर समस्या का समाधान करने में आगे रहती है, जिन जगहों से चुनाव बहिष्कार की बातें सामने आई हैं इस संबंध में हमारी सरकार ने जांच कमेटी बना दी है। जो भी उनकी समस्याएं होंगी उनका समाधान किया जाएगा। कभी-कभार तकनीकी दिक्कतों के चलते समस्याओं का समाधान नहीं हो पाता, लेकिन लोगों को मतदान करना चाहिए था।

महेंद्र भट्ट, प्रदेश अध्यक्ष भाजपा

You may also like

MERA DDDD DDD DD