इक्कीस जुलाई को उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफा ने पूरे देश को चैंका दिया। उनके इस कदम से राजनीतिक हलकों में सभी लोग स्तब्ध रह गए। विपक्ष लगातार सवालों से सरकार पर हमला बोल रहा है, वहीं सवाल उठ रहे हैं कि इसके पीछे की वजह क्या है? क्या इसका इस साल के अंत में होने वाले बिहार विधानसभा चुनावों से कोई लेना-देना है? बहरहाल कारण जो भी हों, अब सवाल ये उठता है कि भारत का अगला उपराष्ट्रपति कौन होगा? मीडिया, सोशल मीडिया और राजनीतिक गलियारों में कई नामों को लेकर अटकलें तेज हैं जो भारत के अगले उपराष्ट्रपति बन सकते हैं। इस रेस में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत, केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय मंत्री और जेडीयू के राज्यसभा सांसद रामनाथ ठाकुर, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, सिक्किम के राज्यपाल ओम माथुर, साथ ही कांग्रेस नेता और सांसद शशि थरूर के नामों पर भी खूब चर्चा हो रही है। इस रेस में जेडीयू सांसद हरिवंश नारायण सिंह के नाम की भी चर्चा जोरों पर है। इस बीच चर्चा यह भी है कि क्या राजस्थान से फिर किसी को ये दायित्व दिया जा सकता है।

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मौजूदा राजनीतिक समीकरणों में ये थोड़ा मुश्किल लगता है कि राजस्थान से ही किसी को उपराष्ट्रपति का जिम्मा दिया जा सकता है। बिहार चुनाव को देखते हुए अन्य राज्य से भी किसी का नाम आगे किया जा सकता है, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि राजस्थान से किसी भी नाम को सिरे से खारिज कर दिया जाए। सिक्किम के राज्यपाल और राजस्थान की राजनीति में बड़ा कद रखने वाले ओम माथुर, पूर्व सीएम वसुंधरा राजे, पंजाब के राज्यपाल और लम्बे अरसे तक राजस्थान भाजपा में राजनीति करने वाले गुलाबचंद कटारिया और मौजूदा राज्यसभा सांसद घनश्याम तिवारी ये वो नाम हैं, जिन्हें भी उपराष्ट्रपति की रेस में राजस्थान के लिहाज से मजबूत माना जा सकता है।
कटारिया को इस दौड़ में मजबूत दावेदार माना जा रहा है। कटारिया की संघ के साथ निकटता उनके लिए प्लस प्वाइंट मानी जा रही है। कटारिया बीजेपी सरकार में गृहमंत्री रह चुके हैं। इसके अलावा राजनीति का उनके पास लम्बा अनुभव है, ऐसे में उनके नाम को लेकर भी दावेदारी की जा रही है।
राजस्थान के बीजेपी के दिग्गज नेता और राज्यसभा सांसद घनश्याम तिवारी राज्यसभा में उपसभापति की जिम्मेदारी भी सम्भाल चुके हैं।
बीजेपी की सरकार में शिक्षा, ऊर्जा और कई विभागों में तिवारी मंत्री रह चुके हैं। इधर बीते दिनों तिवारी ने अपने परिवार के साथ पीएम मोदी से मुलाकात की थी। सियासत में अब इस मुलाकात को उपराष्ट्रपति की दावेदारी से जोड़कर देखा जा रहा है, वहीं संघ से उनकी नजदीकी होने के कारण भी उन्हें उपराष्ट्रपति का दावेदार माना जा रहा हैं तो राजस्थान में दो बार की मुख्यमंत्री रह चुकी भाजपा नेता वसुंधरा राजे के नाम को लेकर भी चर्चा है, उन्हें भी उपराष्ट्रपति के दावेदार के तौर पर देखा जा रहा है। वसुंधरा राजे के पास लम्बा राजनीतिक अनुभव है।
वर्तमान में वह बीजेपी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी हैं। भाजपा केंद्रीय नेतृत्व ने इस बार विधानसभा चुनाव में उनकी जगह नए विधायक भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री के तौर पर जिम्मेदारी सौंपी। इधर, सियासी गलियारों में अटकलें लगाई जा रही हैं कि प्रदेश की राजनीति से हटकर वसुंधरा राजे को अब केंद्र में बड़ी जिम्मेदारी सौंपने की तैयारी है।
उपराष्ट्रपति को लेकर राजस्थान के नेताओं में सिक्किम के राज्यपाल ओम माथुर का नाम भी प्रमुख माना जा रहा हैं। बीजेपी के वरिष्ठ राजनीतिज्ञ ओम माथुर पार्टी में कद्दावर नेता के तौर पर जाने जाते हैं। संघ के प्रचारक और गुजरात प्रभारी के तौर पर ओम माथुर ने पार्टी को काफी मजबूत किया। राजस्थान के पाली जिले के रहने वाले ओम माथुर वर्तमान में सिक्किम के राज्यपाल हैं। ऐसे में ओम माथुर को भी अगले उपराष्ट्रपति के दावेदार के तौर पर प्रमुख माना जा रहा है।
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि धनखड़ के इस्तीफे के बाद जो राजनीतिक हलचल तेज हुई है, उसमें राजस्थान के नेताओं की भूमिका निर्णायक हो सकती है। बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व किस दिशा में फैसला करता है यह आने वाले दिनों में स्पष्ट हो जाएगा। हालांकि यह साफ है कि चाहे गुलाबचंद कटारिया हों, घनश्याम तिवारी हों, वसुंधरा राजे या ओम माथुर हों या जेडीयू के राज्यसभा सांसद रामनाथ ठाकुर हर कोई अपने-अपने अनुभव और राजनीतिक हैसियत के दम पर इस दौड़ में मजबूती से खड़ा है।

सरगोशियां

चुनाव नया मिशन पुराना

चिराग पासवान बिहार में नीतीश कुमार सरकार पर कानून-व्यवस्था को लेकर लगातार हमलावर हैं। हाल ही में उन्होंने कहा कि राज्य में हालात भयावह हो गए हैं और उन्हें ऐसी सरकार का समर्थन करने पर अफसोस है। यह बयान तब आया है जब उनकी पार्टी एलजेपी एनडीए में शामिल है और केंद्र में वह स्वयं मंत्री हैं। चिराग की यह रणनीति ऐसे समय में सामने आई है जब बिहार विधानसभा चुनाव करीब हैं। उनके बयान और तेवर यह संकेत दे रहे हैं कि वे 2020 की तरह फिर से नीतीश विरोधी मिशन मोड में लौट सकते हैं। उस समय चिराग ने जेडीयू के खिलाफ उम्मीदवार उतारकर बीजेपी को अप्रत्यक्ष रूप से फायदा पहुंचाया था। इस बार भी वह सीट शेयरिंग में अधिक हिस्सेदारी के लिए एनडीए पर दबाव बना रहे हैं। एलजेपी की वर्तमान विधानसभा में कोई सीट नहीं है, जबकि बीजेपी-जेडीयू 100 से ज्यादा सीटों पर लड़ने की योजना बना रहे हैं। ऐसे में छोटे दलों में एलजेपी, हम, आरएलएम के हिस्से में सीमित सीटें ही आ सकती हैं। चिराग की नजर मुख्यमंत्री पद पर भी है और वे खुद को सम्भावित चेहरा बनाने की कोशिश में हैं। इसके साथ ही वे रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर की खुलकर तारीफ कर रहे हैं। यदि एनडीए में बात नहीं बनी तो चिराग प्रशांत किशोर के साथ नए राजनीतिक विकल्प की तलाश कर सकते हैं। चिराग पासवान की रणनीति प्रेशर पाॅलिटिक्स के जरिए एनडीए में अपनी स्थिति मजबूत करने की है। लेकिन नीतीश पर सीधा हमला और प्रशांत किशोर की तारीफ इस बात के संकेत हैं कि चिराग सम्भावित ‘प्लान बी’ भी तैयार कर रहे हैं। अब निगाहें सीट शेयरिंग के फार्मूले और एनडीए के अंतर्गत दलों की एकता पर टिकी हैं।

जदयू में भीतरघात के संकेत

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार के जन्मदिन पर उपेंद्र कुशवाहा ने उन्हें ‘‘उम्मीद’’ बताते हुए अप्रत्यक्ष रूप से नीतीश को सियासी विरासत सौंपने की सलाह दी। इससे जदयू में हलचल तेज हो गई है और प्रदेश की राजनीति में निशांत की सम्भावित एंट्री की चर्चाएं फिर से गर्म हो गई हैं। लेकिन जदयू के भीतर ही पार्टी लाइन से इतर आवाजें सुनाई दे रही हैं। सघन मतदाता पुनरीक्षण पर सांसद गिरिधारी यादव और विधायक डाॅ. संजीव ने विरोध जताया है। पार्टी के अंदर अब विभिन्न नेताओं के गुट स्पष्ट रूप से सामने आने लगे हैं। इनमें ललन सिंह, संजय झा, विजय चैधरी और अशोक चैधरी के अलग-अलग गुट बताए जा रहे हैं। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि जदयू में संगठनात्मक असंतुलन और नीतीश की घटती सक्रियता के बीच, निशांत कुमार को आगे लाने की मांग और सम्भावनाएं तेज जरूर हो गई हैं लेकिन सबसे अहम सवाल यह है कि क्या नीतीश वंशवाद के अपने विरोधी रुख से हटकर बेटे को विरासत सौंपेंगे? क्या नीतीश अपने सिद्धांतों से हटकर वंशवादी
राजनीति को स्वीकार करेंगे? इस पर अभी भी सस्पेंस कायम है। सम्भव हैकि वे संसदीय राजनीति से संन्यास के बाद ही कोई फैसला लें। गौरतलब है कि नीतीश कुमार हमेशा से वंशवाद के विरोधी रहे हैं और कर्पूरी ठाकुर को अपना आदर्श मानते हैं। निशांत की राजनीति में कोई विशेष रुचि नहीं रही है। हालांकि हालिया घटनाएं इसे बदलती दिख रही हैं। पार्टी समर्थकों ने समय-समय पर उनके समर्थन में पोस्टर लगाए हैं, लेकिन नीतीश ने अब तक इस पर स्पष्ट रुख नहीं अपनाया है।

क्या गुल खिलाएंगे तेजप्रताप

तेज प्रताप यादव ने हाल ही में अपने बयान से बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है। मुजफ्फरपुर में उन्होंने कहा कि ‘‘मैं महुआ से चुनाव लड़ रहा हूं, ये तय है। तेजस्वी आज भी मेरे अर्जुन हैं।’’ यह बयान उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के साथ-साथ लालू परिवार के अंदरूनी रिश्तों की जटिलता को भी उजागर करता है। हालांकि पार्टी से निष्कासित होने और ‘टीम तेज प्रताप यादव’ नामक अलग संगठन बनाने के बावजूद तेज प्रताप का तेजस्वी के प्रति समर्थन यह दिखाता है कि वे परिवार से अलग नहीं होना चाहते। यह रुख उन्हें साधु यादव और सुभाष यादव जैसे लालू के अन्य बागी रिश्तेदारों से अलग बनाता है जिन्होंने सार्वजनिक रूप से परिवार और पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोला था। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि तेज प्रताप अपने बयानों में तेजस्वी को अर्जुन और खुद को कृष्ण बताते रहे हैं। प्रेम सम्बंधों को लेकर परिवार से उपजी दूरी और पार्टी से निकाले जाने के बावजूद उन्होंने कभी तेजस्वी या लालू यादव के खिलाफ तीखा बयान नहीं दिया। जहां साधु और सुभाष यादव की बगावत आरजेडी के लिए नुकसानदायक साबित हुई वहीं तेज प्रताप यादव की रणनीति पारिवारिक मर्यादा और राजनीतिक आत्मसम्मान के बीच संतुलन साधने की कोशिश दिखती है। वह राजनीति में अपनी अलग पहचान बनाने की कोशिश तो कर रहे हैं, लेकिन परिवार को राजनीति से ऊपर रखते हैं। अब देखना है कि तेज प्रताप की यह ‘कृष्णनीति’ आने वाले चुनाव में क्या गुल खिलाती है।

प्रतीक भूषण का बढ़ेगा पद

अपने विवादित बयानों और राजनीतिक सक्रियता के लिए चर्चित पूर्व भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह की मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से हाल ही में हुई मुलाकात के बाद अब उनके दोनों बेटे सांसद करण भूषण सिंह और गोंडा सदर विधायक प्रतीक भूषण सिंह ने भी मुख्यमंत्री योगी से मुलाकात की है। इस मुलाकात की तस्वीरें सामने आने के बाद सियासी अटकलें और तेज हो गई हैं। कहा-सुना जा रहा है कि आगामी मंत्रिमंडल विस्तार में वह अपने बेटे प्रतीक भूषण के लिए मंत्री पद की मांग कर सकते हैं। इन मुलाकातों के बाद बृजभूषण समर्थकों में उत्साह साफ दिख रहा है। उन्हें उम्मीद है कि जल्द ही प्रतीक भूषण को मंत्रिमंडल में स्थान मिल सकता है। हालांकि अंतिम निर्णय भाजपा नेतृत्व और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लेना है, लेकिन संकेत यही हैं कि कुछ ‘बड़ा फैसला’ जल्द सामने आ सकता है। गौरतलब है कि यह मुलाकात करीब 31 महीने बाद हुई, जिसने राजनीतिक अटकलों को जन्म देने का काम किया है। बृजभूषण सिंह ने इस मुलाकात को सामान्य बताया तो वहीं योगी आदित्यनाथ ने वे और उनके गुरु से अपने 56 साल पुराने रिश्तों का हवाला दिया। लेकिन चर्चा यहीं नहीं थमी। राजनीतिक विश्लेषक इन मुलाकातों को बृजभूषण की रणनीति का हिस्सा मान रहे हैं। माना जा रहा है कि जब बृजभूषण सिंह से इस बाबत मीडिया ने सवाल किया तो उन्होंने कहा, ‘इस तरह के फैसले मुख्यमंत्री और पार्टी नेतृत्व की प्राथमिकताओं पर आधारित होते हैं। मंत्री बनना न तो किसी व्यक्ति की इच्छा से तय होता है, न ही केवल जनता की पसंद से।

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