भारतीय जनता पार्टी के भीतर इन दिनों राष्ट्रीय अध्यक्ष पद को लेकर गहरी सरगर्मी है। नड्डा युग अपने समापन की ओर बढ़ रहा है और पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में बदलाव की पटकथा लगभग तैयार मानी जा रही है। कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह, जो संगठनात्मक संतुलन और भविष्य की चुनावी रणनीतियों को लेकर बेहद सजग रहते हैं, अब दक्षिण भारत से एक प्रभावशाली और अनुशासित नेता को यह पद सौंप सकते हैं। इससे पहले भी 2005 में जब अटल-आडवाणी युग का धीरे-धीरे पटाक्षेप हो रहा था, तब भाजपा ने नितिन गडकरी जैसे अपेक्षाकृत कम चर्चित पर कुशल संगठनकर्ता को अध्यक्ष बनाकर चैंकाया था। आज फिर पार्टी ऐसा ही कुछ कर सकती है – प्रहलाद जोशी, बीएल संतोष या भूपेंद्र यादव जैसे नाम हवा में तैर रहे हैं। संकेत यही हैं कि भाजपा अब भावनाओं से अधिक संगठन कौशल और सांस्कृतिक सामंजस्य को तरजीह देगी।
क्या दोहराया जाएगा आडवाणी युग का अंतकाल?
