बिहार की राजनीति कभी स्थिर नहीं रही और शायद यही इसकी जीवंतता है। नीतीश कुमार, जो 2005 से समय-समय पर एनडीए और महागठबंधन के बीच राजनीतिक ‘पेंडुलम’ बनकर झूलते रहे हैं, अब खुद ही असहज महसूस कर रहे हैं। अंदरूनी सूत्रों की मानें तो भाजपा के कुछ रणनीतिकार ‘महाराष्ट्र माॅडल’ को बिहार में दोहराने की सम्भावनाएं टटोल रहे हैं। 2005 में जिस नीतीश ने लालू प्रसाद की सत्ता को उखाड़ फेंका था, आज उसी नीतीश को गठबंधन में खुद की उपयोगिता पर सफाई देनी पड़ रही है। सम्राट चैधरी, जो भाजपा में आक्रामक भाषण शैली और सामाजिक समीकरणों के कारण लोकप्रिय हो रहे हैं, धीरे-धीरे भाजपा के चेहरे के रूप में स्थापित किए जा रहे हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि बिहार की राजनीति एक बार फिर करवट बदलती है या नहीं।

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