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त्रिपक्षीय वार्ता में शिरकत कर सकता है भारत

अफगानिस्तान में स्थायी शांति बहाली और नई व्यवस्था में तालिबान को शामिल करने को लेकर अमेरिका, रूस और चीन की अगुआई में होने वाली बातचीत में भारत भी हिस्सा ले सकता है। भारतीय विदेश मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ हुई बातचीत में इन तीनों देशों ने न सिर्फ यह माना कि अफगानिस्तान के सुरक्षित भविष्य के लिए भारत की भूमिका अहम होगी ,बल्कि इन देशों ने तालिबान को लेकर भारत के विचार को भी सही  ठहराया है।

पिछले हफ्ते भारत दौरे पर आए अमेरिका के विशेष प्रतिनिधि जाल्मी खलीलजाद और चीन के विशेष प्रतिनिधि डेंग शियाजुन ने आगामी वार्ताओं में भारत को भी शामिल करने की बात कही है। जबकि अफगानिस्तान के हालात पर रूस से बातचीत करने के लिए एक उच्चस्तरीय दल मास्को रवाना हुआ है जहां इस बारे में विस्तार से बात होगी। दरअसल, अफगानिस्तान के अंदरूनी हालात से भारत के सुरक्षा हित इतने गहरे जुड़े हुए हैं कि इस मामले में भारतीय कूटनीति फिलहाल कोई रिस्क लेने को तैयार नहीं है।

भारत उन सभी पक्षों के साथ लगातार संपर्क बनाए हुए है जो अफगानिस्तान में व्यवस्था परिवर्तन को लेकर विचार- विमर्श कर रहे हैं। पिछले चार महीनों से भारत इस बारे में अमेरिका, रूस, चीन, ईरान और यूरोपीय संघ के साथ अलग-अलग स्तर पर बात कर रहा है। इसके अलावा अफगानिस्तान सरकार और वहां के विभिन्न राजनीतिक दलों के साथ भी लगातार संपर्क बनाकर रखा गया है। हालांकि तालिबान के साथ भारत ने अभी तक किसी तरह की बातचीत शुरू नहीं की है।

 भारत सरकार का फैसला है कि हम तालिबान से बात नहीं करेंगे। हां, अगर सभी पक्षों के बीच बनी सहमति के बाद तालिबान अफगानिस्तान की नई व्यवस्था में शामिल होता है और वह अंतरराष्ट्रीय कायदे-कानून के मुताबिक काम करता है तो उस व्यवस्था से जरूर बात की जाएगी। अफगानिस्तान में स्थायी शांति बहाली के लिए अमेरिकी नेतृत्व में तालिबान से सीधी बात हो रही है। इसके अलावा अमेरिका, रूस और चीन की अगुआई में एक अन्य बातचीत हो रही है जिसका उद्देश्य अफगानिस्तान में नई व्यवस्था कायम करने से जुड़े तमाम मुद्दों को सुलझाना है।

अफगानिस्तान में भविष्य को लेकर भारत जो शर्तें अभी तक रखता आ रहा है उसे अब व्यापक समर्थन मिल रहा है। मसलन, सभी देश अब यह स्वीकार कर रहे हैं कि एक स्थायी, मजबूत और सर्वमान्य व्यवस्था के बाद ही अफगानिस्तान से अंतरराष्ट्रीय सेना वापस बुलाई जाए। नई व्यवस्था इस तरह की हो जो अफगानिस्तान के भीतर पिछले कुछ वर्षों में आई राजनीतिक स्थिरता को और आगे बढ़ाए। इसमें समाज के सभी वर्गों को सुरक्षा दी जाए।

भारत के लिए यह संतोष की बात है कि अमेरिका और तालिबान के बीच अब तक हुई छह बैठकों में यह बहुत ही अहम मुद्दा रहा है।  पिछले हफ्ते नई दिल्ली में तालिबान और अफगानिस्तान पर हुई द्विपक्षीय वार्ता में चीन ने यह इच्छा जताई कि वह भारत के साथ मिलकर अफगानिस्तान के प्रशासनिक और आर्थिक ढांचे को मजबूत करेगा। अगले दो दिनों तक रूस और भारत के बीच होने वाली अफगान वार्ता में भी भावी सहयोग का मुद्दा बहुत अहम रहेगा।

भारत की यह मांग कि अफगानिस्तान में स्थापित होने वाली नई व्यवस्था में हिंसा और आतंकवाद का कोई महत्व नहीं होना चाहिए, को भी व्यापक समर्थन मिलने लगा है। भारत का इस मांग पर सबसे ज्यादा जोर है क्योंकि अफगानिस्तान में तालिबान शासन के दौरान अलकायदा समेत पाकिस्तान समर्थित तमाम आतंकवादी संगठनों (जैश-ए-मुहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा आदि) को खूब बढ़ावा मिला था। अमेरिका, यूरोपीय संघ, ईरान और रूस ने भी भारत के साथ द्विपक्षीय वार्ताओं में इस मांग को जायज बताते हुए इसे अफगानिस्तान के सुरक्षित भविष्य के लिए जरूरी ठहराया है। यह पाकिस्तान के लिए बड़ा झटका है क्योंकि वह लगातार कहता रहा है कि अफगानिस्तान में भारत की कोई भूमिका नहीं है।

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