राजस्थान में भाजपा की सरकार भले ही हाल ही में सत्ता में आई हो, लेकिन अंदरखाने की हलचलों ने राजनीतिक तापमान काफी बढ़ा दिया है। ताजा गपशप यह है कि पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के कामकाज पर सीधी टिप्पणी कर संगठन और सरकार दोनों को असहज कर दिया है। सूत्रों के मुताबिक वसुंधरा राजे ने हाल में एक निजी बैठक में साफ तौर पर कहा कि ‘प्रदेश सरकार जनता से दूर होती जा रही है’ और ‘नीतिगत फैसलों में अनुभवी नेताओं की अनदेखी हो रही है।’ इसे लेकर पार्टी में सुगबुगाहट तेज है कि क्या राजे खेमा फिर से सक्रिय होकर अपना दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है? राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह तल्खी अचानक नहीं आई है। याद कीजिए – जब विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण हुआ था, तब वसुंधरा राजे गुट खुलकर नाराज था। कई वरिष्ठ नेताओं को किनारे कर नए चेहरों को टिकट देना भाजपा के भीतर एक गहरी नाराजगी का कारण बना था। कानाफूसी यह भी है कि वसुंधरा समर्थक कुछ विधायक मुख्यमंत्री के निर्णयों से नाखुश हैं और गुपचुप ढंग से संगठन के बड़े नेताओं से मुलाकात कर रहे हैं। कुछ पुराने वफादारों को संगठन में कोई खास भूमिका न दिए जाने से भी बेचैनी बढ़ी है। भाजपा हाईकमान के लिए यह स्थिति असहज है क्योंकि वह राजस्थान में सत्ता स्थिरता दिखाना चाहता है, खासकर 2029 के आम चुनाव को ध्यान में रखते हुए। यह भी रोचक है कि राजस्थान में भाजपा सरकार बनने के बाद वसुंधरा राजे ने अपेक्षाकृत कम सार्वजनिक कार्यक्रम किए हैं, और उनकी दूरी साफ दिख रही है। एक वर्ग यह भी मान रहा है कि यदि सरकार के खिलाफ जनता में असंतोष बढ़ता है, तो राजे खेमा उसे एक अवसर की तरह देख सकता है। अब सवाल यह है क्या भाजपा राजस्थान में भी वही गलती दोहराएगी जो उसने पहले मध्यप्रदेश और उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन की जल्दबाजी से देखी थी?या फिर भाजपा शीर्ष नेतृत्व समय रहते सब कुछ साधने की कोशिश करेगा?

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