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देहरादून का ट्रैफि क जाम स्मार्ट सिटी का अधूरा सपना

कैप्शन - सहस्त्रधारा रोड पर पार्किंग
करोड़ों रुपए खर्च होने के बावजूद देहरादून में स्मार्ट सिटी का सपना अधूरा रह गया है। सड़कें चैड़ी हुईं, मगर उन पर ही पार्किंग बन गई, ट्रैफिक प्रबंधन की योजनाएं कागजों में सिमट गईं और शहर की जनता आज भी रोजाना घंटों जाम में फंसी रहती है। प्रशासन की घोषणाओं और मुख्य सचिव की फटकार के बावजूद जमीनी बदलाव नदारद हैं
 
देहरादून को स्मार्ट सिटी बनाने के लिए केंद्र सरकार ने लगभग 1,500 करोड़ रुपए की भारी-भरकम धनराशि दी थी। इससे उम्मीद जगी थी कि यह पहाड़ी राजधानी देश के आधुनिक शहरों की कतार में खड़ी होगी – जहां बेहतर ट्रैफिक मैनेजमेंट, मल्टीलेवल पार्किंग, हरित क्षेत्र, स्वच्छ पेयजल व्यवस्था, स्मार्ट लाइटिंग और डिजिटल सुविधाओं से सुसज्जित एक नया देहरादून दिखेगा। लेकिन हकीकत यह है कि डेडलाइन बीत चुकी है, बजट का बड़ा हिस्सा खर्च हो चुका है और शहर की हालत जस की तस है।

देहरादून में सड़कों को चैड़ा करने का काम इस भरोसे में किया गया था कि इससे यातायात का दबाव कम होगा, लेकिन उल्टा हुआ। जैसे-जैसे सड़कें चैड़ी हुईं, उनके किनारे अवैध पार्किंग की कतारें लग गईं। राजपुर रोड, सहस्रधारा रोड, चकराता रोड, ईसी रोड, कांवली रोड, कारगी रोड, रिंग रोड – कहीं भी चले जाइए, आपको फुटपाथ पर दुकानें, सड़क के किनारे कारों की लम्बी लाइन और गलियों में खड़े स्कूटर-बाइक मिलेंगे। हालत यह हो गई है कि प्रशासन खुद सड़कों को पार्किंग बना बैठा है, जैसे दून अस्पताल और आपातकाल भवन के सामने एमडीडीए की शुल्क- आधारित पार्किंग।

28 अप्रैल 2025 को मुख्य सचिव आनंदवर्धन ने हालात का निरीक्षण किया और नाराजगी जताई – ‘‘क्या सड़कों को वाहन खड़ा करने के लिए चैड़ा किया गया है?’’ उन्होंने 10 प्रमुख चैराहों के सुधार, डीपीआर तैयार करने और यातायात प्रबंधन की ठोस योजना बनाने के निर्देश दिए। लेकिन तीन महीने बीतने के बाद भी सुभाष रोड, सचिवालय, पुलिस मुख्यालय, दून अस्पताल, घंटाघर क्षेत्र में स्थिति जस की तस बनी हुई है। स्कूलों की छुट्टी के समय दो-दो घंटे तक ट्रैफिक जाम रहता है और पुलिसकर्मी हाथ जोड़कर व्यवस्था सम्भालते नजर आते हैं।
पूर्व मुख्य सचिव एस.एस. संधु के कार्यकाल में भी ऐसी ही कोशिशें हुईं – ई-एजुकेशन, इंफोर्समेंट, इंजीनियरिंग, बेहतर ट्रैफिक प्लानिंग, अवैध पार्किंग पर चालान, शराब के ठेकों पर लगने वाले वाहनों की जब्ती – लेकिन योजनाएं कागजों में उलझकर रह गईं।

सहस्रधारा रोड इसका जीता-जागता उदाहरण है। पर्यावरण प्रेमियों के विरोध के बावजूद इसे डबल लेन किया गया, करोड़ों रुपए पेड़ों के ‘स्थानांतरण’ में खर्च हुए, लेकिन नतीजा? पेड़ सूखकर ठूंठ बन गए और सड़क के दोनों ओर अवैध पार्किंग की कतारें खड़ी हो गईं। छह नम्बर पुलिया पर नगर निगम ने आधी सड़क पर फल-सब्जी मंडी बसा दी, रिंग रोड पर सरकारी कार्यालयों और वाहन मरम्मत की दुकानों ने सड़क कब्जा ली।
स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट का असली मतलब है नागरिकों को बेहतर जीवनशैली देना, तकनीक से ट्रैफिक, जल, सीवेज, ऊर्जा जैसी सुविधाओं का कुशल प्रबंधन करना और भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए प्लानिंग करना। लेकिन देहरादून में मल्टीलेवल पार्किंग, भूमिगत पार्किंग, सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा, रिंग रोड और बाईपास का दबाव घटाने जैसी योजनाएं या तो कागजों में हैं या आधी-अधूरी हैं।

शहर में हर साल 20 प्रतिशत की दर से वाहन बढ़ रहे हैं, लेकिन सड़कें, पार्किंग, सार्वजनिक परिवहन, फुटपाथ – कुछ भी उस अनुपात में नहीं बढ़ा। प्रशासनिक लचरता, राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी और नागरिकों की उदासीनता मिलकर इस समस्या को विकराल बना रही हैं।

हल की दिशा में पहला कदम होगा – पार्किंग की समुचित व्यवस्था। सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) के तहत मल्टीलेवल और भूमिगत पार्किंग स्थल विकसित करने होंगे। पब्लिक ट्रांसपोर्ट को सुधारा जाना चाहिए ताकि लोग निजी वाहन छोड़कर बस, ई-रिक्शा, साइकिल जैसी व्यवस्थाओं का इस्तेमाल करें। सख्त कानूनों का पालन कराना होगा – अवैध पार्किंग पर चालान, जब्ती, दुकान सीलिंग जैसी कार्रवाइयां की जाएं। साथ ही स्मार्ट सिग्नलिंग, लाइव ट्रैफिक अपडेट, सीसीटीवी निगरानी जैसे डिजिटल ट्रैफिक मैनेजमेंट सिस्टम लागू करने होंगे।
पर्यावरणीय संतुलन भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। स्मार्ट सिटी का मतलब पेड़ काटना या उन्हें नाम के लिए ‘स्थानांतरित’ करना नहीं, बल्कि हरियाली बढ़ाना, सौर ऊर्जा, रेन वाटर हार्वेस्टिंग और प्रदूषण नियंत्रण का समावेश करना है।

आखिरी और सबसे जरूरी बात – केवल शासन-प्रशासन पर दोष मढ़कर हम आगे नहीं बढ़ सकते हैं लेकिन जब तक आम लोग खुद यातायात नियमों का पालन नहीं करेंगे, सड़क पर पार्किंग नहीं छोड़ेंगे और सार्वजनिक संसाधनों की रक्षा में अपनी भूमिका नहीं निभाएंगे, तब तक कोई सरकार, कोई योजना, कोई परियोजना शहर को स्मार्ट नहीं बना सकती।

देहरादून की कहानी सिर्फ इस एक शहर की नहीं, बल्कि पूरे देश के उन दर्जनों शहरों की है, जहां करोड़ों रुपए के स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट तो आए, लेकिन जमीन पर हालात वैसे के वैसे रहे। असली बदलाव तभी होगा जब हम सभी मिलकर ‘सड़क पर पार्किंग नहीं, पार्किंग में वाहन’ का मंत्र अपनाएंगे और शहर को सचमुच स्मार्ट बनाने की ओर कदम बढ़ाएंगे।

बात अपनी-अपनी

देहरादून में पार्किंग की बहुत बड़ी समस्या है, सड़कें चैड़ी हो रही हैं लेकिन उन पर पार्किंग होने लगती हैं, इससे पब्लिक को परेशानी हो रही है। प्रशासन को इसके लिए निरंतर कार्यवाही करनी चाहिए। आज स्थिति यह हो गई है कि हर सड़क पर पार्किंग होना और जाम लगना आम बात हो गई है। इसका एक बड़ा कारण यह है कि शहर में पार्किंग के लिए जमीन नहीं है, जो भी पार्किंग बनवाई गई है वे फुल हो जाती हैं। अभी परेड ग्राउंड में वर्टिकल पार्किंग बनवाई गई है और कुछ स्थानों पर काम भी हो रहा है। अफगान हाउस में बहुत बड़ी पार्किंग का काम शुरू हुआ था लेकिन उसमें कोर्ट से स्टे के कारण काम रूका हुआ है। मुझे लगता है कि जल्द ही इसको भी सुलझा लिया जाएगा।

खजान दास, विधायक, राजपुर

सड़कें चौड़ी हो रहीं हैं तो उनमें पार्किंग होने लगती है, ऐसे कब तक और कहां तक सड़कें चैड़ी होंगी? इसके लिए नए पार्किंग स्थलों का निर्माण करने की जरूरत है। साथ ही अवैध अतिक्रमण और अवैध पार्किंग पर नियमित कार्यवाही होनी चाहिए। निजी पार्किंग को बढ़ावा देने की जरूरत है जिससे आम पब्लिक को फायदा होगा। सरकार कितनी भी पार्किंग स्थल बनाए फिर भी समस्या कम नहीं हो रही है, इसके लिए प्रयास हो रहे हैं और काम भी हो रहा है। सार्वजनिक परिवहन को और मजबूत करने का प्रयास किया जा रहा है, इससे कुछ हद तक समस्या दूर हो सकती है।

विनोद चमोली, विधायक, धरमपुर

विधानसभा, सचिवालय, मंत्री, विधायकों के आवास और महत्वपूर्ण कार्यालय देहरादून में होने की वजह से यहां जनसंख्या का दबाव प्रदेश के किसी और शहर से कहीं अधिक है। जहां एक तरफ विकास के नाम पर पेड़ों का अंधाधुंध कटान हो रहा है, वहीं लगातार ग्रामीण अंचलों से लोग पलायन करके देहरादून के आस-पास बस रहे हैं जिसकी वजह से गाड़ियों की आवाजाही कई गुना बढ़ गई है। जाम के झाम से लोग इतने परेशान हैं कि देहरादून के पुराने दिन याद करते हैं जब पेड़ों से घिरा हुआ था और यहां का मौसम भी सुहाना था। आज हालात यह हैं कि जहां-तहां अवैध पार्किंग हो रही है। राज्य और केंद्र की भाजपा सरकार देहरादून और दिल्ली के बीच की समय अवधि कम करने वाले हाईवे की बात तो कर रही है लेकिन उस दबाव को मैनेज करने का उनके पास कोई विकल्प नहीं है। पार्किंग की सुविधा न होने की वजह से लोग अवैध रूप से वाहन पार्क कर रहे हैं। बढ़ती जनसंख्या का दबाव झेलने के लिए देहरादून में इंफ्रास्ट्रक्चर है कहां? कई इलाकों में बाॅटल नेक होने की वजह से घंटों जाम से जूझना पड़ रहा है। दिक्कत यह है कि डबल इंजन सरकार को बराबरी तो जापान और अमेरिका की करनी है लेकिन उनकी सोच और समझ साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण में अटकी हुई है, इसलिए विकास के बारे में तो वह सोच ही नहीं पाते।

गरिमा दासौनी, प्रदेश प्रवक्ता, उत्तराखण्ड कांग्रेस

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