‘लो चित्र शलभ सी पंख खोल,
उड़ने को है कुसमित धाती।
यह है अल्मोड़े का बसंत,
खिल उठी निखिल पर्वत घाटी’
उक्त पंक्तियां हिंदी के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत ने अल्मोड़ा शहर के सौंदर्य को लेकर लिखी थीं। तब अल्मोड़ा शायद बसंत ऋतु में एक रंग-बिरंगी तितली-सा प्रतीत होता हो। लेकिन दुर्भाग्यवश अगर कविवर आज के गंदगी से अटे पड़े अल्मोड़ा को देख लेते तो उनके अंदर के सारे कुसुम खिलने से पहले ही मुरझा जाते

दो नवम्बर 1919 को दैनिक ‘नवजीवन’ में महात्मा गांधी ने सार्वजनिक स्थलों पर सफाई की बाबत लिखा- ‘स्वच्छता आजादी से ज्यादा जरूरी है… किसी को भी सड़कों पर थूकना या अपनी नाक साफ नहीं करनी चाहिए। कुछ मामलों में थूक इतना हानिकारक होता है कि कीटाणु दूसरों को संक्रमित कर देते हैं। 2 अक्टूबर 2014 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गांधी जयंती के अवसर पर राष्ट्रव्यापी स्वच्छता अभियान की शुरुआत करते हुए कहा कि ‘स्वच्छ भारत अभियान राजनीति से परे है, यह राजनीति से नहीं बल्कि देशभक्ति से प्रेरित है।’ प्रधानमंत्री ने लोगों से ‘न मैं गंदगी करूंगा, न मैं गंदगी करने दूंगा’ का संकल्प लेने को भी कहा। 20 जून 2022 को उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपने कैबिनेट मंत्रियों को जिलों का प्रभार सौंपा ताकि प्रशासन चुस्त-दुरुस्त और चैकस रहे। अल्मोड़ा जनपद के प्रभारी मंत्री बने धन सिंह रावत। रावत प्रदेश के स्वास्थ्य एवं शिक्षामंत्री भी हैं और जब कभी भी नेतृत्व परिवर्तन की बात उठती है तो वे हमेशा ‘सीएम इन वेटिंग’ की कतार में आगे खड़े नजर आते हैं। 105 साल पहले स्वच्छता पर गांधी के विचार, 2014 में प्रधानमंत्री का राष्ट्रव्यापी स्वच्छता अभियान और 2024 में उस अभियान की हकीकत को प्रदेश की सांस्कृतिक नगरी का दर्जा पाए अल्मोड़ा से समझा जा सकता है जहां की एक सड़क किनारे गांधी हतप्रभ से नजर आते हैं, खड़े हुए नहीं बल्कि बैठे हुए। नजर आती है प्रधानमंत्री की राष्ट्रव्यापी स्वच्छता अभियान की सच्चाई और प्रभारी मंत्री धन सिंह रावत की काहिली, नगर पालिका के दावों का झूठ और सांस्कृतिक शहर के नागरिकों के संस्कार। ‘दि संडे पोस्ट’ टीम ने शहर के चप्पे-चप्पे पर पैनी नजर डाली तो चारों ओर गंदगी का साम्राज्य देखा।
नगर पालिका के निवर्तमान अध्यक्ष प्रकाश चंद जोशी गंदगी के सफाए के मद्देनजर दावा करते हैं कि शहर में सभी कुडेदानांे को अंडरग्राउंड कर दिया गया है। पालिका के कर्मचारी दिन ही नहीं रात के समय में भी इन कूड़ेदानों की सफाई कर रहे हैं। शहर की सफाई को दुरुस्त करने के लिए मोबाइल डस्टबिन गाड़ियां चलाई गई हंै जो डोर-टू-डोर कूड़े-कचरे को उठाकर शहर से दूर डालकर आती हैं।
लेकिन ‘दि संडे पोस्ट’ ने जो हकीकत इन कुड़ेदानों की देखी तो कचरा जहां कुडे़दान के अंदर होना चाहिए था वहीं वह बाहर बिखरा पड़ा है। कुत्ते और बंदरों ने कचरों से खाने की वस्तुएं ढूंढ़ कर रही-सही कसर पूरी कर दी है। कई कुडे़दानों पर बंदर और कुत्ते पाए गए।
साहित्यिक मिजाज के शहर अल्मोड़ा की ख्याति देश ही नहीं दुनिया में है। यहां से निकली हुई प्रतिभाओं ने अल्मोड़ा का नाम देश दुनिया में रोशन किया है। अल्मोड़ा का नाम सुनकर दूरदराज से पर्यटक यहां आते हैं। दूर से ही देखने पर यह शहर अपने नाम की तरह ही बड़ा सुंदर लगता है। लेकिन जैसे ही शहर के नजदीक आते हैं तो शहर की सुंदरता पर प्रश्नचिन्ह लगने लगते हैं। जब शहर के अंदर प्रवेश किया जाता है तो सुंदर नजारों के साथ ही वह दृश्य दिखाई पड़ते हैं जिससे अल्मोड़ा की छवि पर्यटकों के मन में गहरे दाग छोड़ जाती है। शायद यही वजह है कि आज जो पर्यटक अल्मोड़ा शहर में रहने की इच्छा लिए आता है वह कसार देवी या बिनसर की तरफ कूच कर जाता है।
पिथौरागढ़-चंपावत से आने वाले पर्यटकों को सबसे पहले गंदगी का सामना चिड़ियाघर के नजदीक लगे कुड़े के ढेरों से करना पड़ता है। कहने को तो यहां शहर के कूड़े का डंपिंग जोन बनाया गया है। लेकिन डंपिंग जोन में कम और बाहर गंदगी ज्यादा बिसरी पड़ी है। यह गंदगी अपनी बदबू से यहां आने जाने वाले लोगों को शर्मसार कर देती है।
इसके बाद जैसे ही शहर में एंट्री करते हैं तो एनटीडी पर जहां बागेश्वर और रानीखेत का बाईपास बनाया गया है वहां पर्यटकों का स्वागत गंदगी से होता है। चीनाखान को जाने वाले गोपालधारा मार्ग पर देखने पर लगता है कि पिछले कई दिन से सफाई नहीं हुई है। कूड़े का ढेर जहां तहां बिखरा हुआ है। आईटीआई में अध्यापक हनी वर्मा का कहना है कि स्कूल मार्ग पर जगह-जगह गंदगी होने से लोगों को आवागमन में परेशानी हो रही है। एडम्स, विवेकानंद शिशु मंदिर जैसे स्कूल इस मार्ग पर हैं। लेकिन कई -कई दिनों से सफाई नहीं होने से लोगों का घर से बाहर निकलना दूभर हो जाता है। धारनौला में कई जगह कूड़े के ढेर शहर की सुंदरता पर ग्रहण लगाते दिखाई देते हैं।
कहने को तो माल रोड में विभिन्न स्थानों पर कूड़ेदान बना रखे हैं। पालिका वाहनों के जरिए कूड़ेदानों से कूड़ा उठाती भी है, लेकिन कई बार कूड़ेदानों से कूड़ा बाहर फैला रहता है। जिसे वहीं छोड़ दिया जाता है। समय पर सफाई नहीं होने से नालियों में गंदगी रहती है। कई स्थानों पर घरों से निकलने वाले गंदे पानी की निकासी की व्यवस्था नहीं है। पानी की लाइनें नालियों से होकर जा रही हैं, लेकिन उन्हें नहीं हटाया जा रहा। एमईएस से एसएसजे परिसर को जाने वाले पैदल रास्ते के नीचे गंदगी डाली जा रही है।
लिंक रोड में टैक्सी स्टैंड के पास गंदगी का अंबार लगा हुआ है। पानी निकासी की व्यवस्था नहीं होने से गंदा पानी सड़क में बहता रहता है। कीचड़ के चलते वाहन चालकों, यात्रियों और स्थानीय लोगों को दिक्कतें होती हैं। मालरोड में डायट गेट के समीप भी कूड़े का नियमित उठान नहीं होने से लोगों को दिक्कतें होती हैं। अल्मोड़ा की शान कहे जाने वाले पटाल बाजार की स्थिति बहुत दयनीय है इस बाजार में कहीं भी कोई डस्टबिन नहीं दिखाई देता है लेकिन गंदगी और कूड़ेदानों के ढेर जगह-जगह लगे दिख जाते हैं।
लावारिस जानवर कूड़ेदानों से कूड़ा फैलाते रहते हैं। औपचारिकता निभाते हुए शहर के कई स्थानों पर विशेष सफाई अभियान चलाए गए थे, लेकिन स्थिति अब फिर से खराब होने लगी है। लोगों का कहना है कि काफी संख्या में स्वच्छक कर्मचारी होने के बावजूद सफाई व्यवस्था दुरुस्त नहीं होना पालिका प्रशासन की उदासीनता को दर्शाता है।

छात्रा अनिता पाण्डे कहती हैं कि ‘कूड़ेदान बना देने मात्र से तब तक कोई लाभ नहीं होगा, जब तक उसके निस्तारण पर कार्य नहीं किया जाएगा। सरकार द्वारा हर घर में कूड़े के डिब्बे दिए गए हैं, जिनमें जैविक व अजैविक अपशिष्ट को रखा जाना है। इस कूड़े को ले जाने के लिए सफाई कर्मचारी आते हैं, पर अधिकतर लोग डिब्बों में किसी भी प्रकार का कूड़ा डाल देते हैं। कई लोगों द्वारा इन कूड़े का प्रयोग पानी व राशन तक के लिए किया जा रहा है। शहर को साफ रखने के लिए जो कूड़ेदान बनाए गए हैं, वह आवारा जानवरों के अड्डे बन रहे हैं। कई जानवर इस गंदगी को खाते हैं, जिनसे उनके पेट में प्लास्टिक चली जाती है और फिर उनकी बीमारी या मौत का कारण बन जाती है। दूसरी ओर, कूड़ा सड़ने से निकलने वाली दुर्गंध न केवल वातावरण को दूषित कर रहा है, बल्कि आस-पास के लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डाल रहा है। अल्मोड़ा वह शहर है जिसे वर्ष 2018 में देश के दूसरे सबसे स्वच्छ छावनी क्षेत्र में शामिल किया गया था। लेकिन आज स्थिति इसके बिल्कुल विपरीत है आज अगर सर्वे कराया जाए तो अल्मोड़ा गंदगी में पहले स्थान पर आएगा। यह तब है जब अल्मोड़ा में सरकार की उत्तराखण्ड प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट भी लागू है।’
राजेंद्र सिंह बिष्ट कहते हैं ‘उत्तराखण्ड प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट योजना तभी संभव है, जब लोग स्वयं पर्यावरण के प्रति गंभीर और जागरूक हों। फिर समाज को इसके प्रति जागरूक किया जाना चाहिए। सिर्फ कूड़ेदान लगाना या वितरित करने से कार्य नहीं चलेगा। इनका प्रयोग व कूड़े का निस्तारण आवश्यक है, वरन् एक ढेर को हटाकर कहीं दूसरी जगह ढेर बनाना व्यर्थ है।’

स्वच्छ भारत मिशन को आईना दिखाता अल्मोड़ा का यह दृश्य
अध्यापक कल्याण मनकोटी के अनुसार ‘यह विडंबना है कि अल्मोड़ा, जो कभी पहाड़ों में सबसे सुनियोजित शहरों में से एक था, अब एक नागरिक अव्यवस्था में तब्दील हो गया है। जब चंद राजा कल्याण चंद ने 1560 के दशक में अपनी राजधानी काली-कुमाऊं से अल्मोड़ा स्थानांतरित की तो अल्मोड़ा व्यवस्थित योजना के साथ बसा कुमाऊं का पहला शहर बन गया था। शहर की परिकल्पना हर संभव जरूरत को ध्यान में रखकर की गई थी। लेकिन समय के साथ बढ़ती आबादी और अनियोजित विकास ने अल्मोड़ा को एक और ऐसे शहर में बदल दिया है, जहां हर जगह कूड़ा-कचरा फैला हुआ दिखाई देता है।’
साथ ही मनकोटी कहते हैं कि ‘अल्मोड़ा की स्थिति भी अन्य शहरों से अलग नहीं है। प्रबंधन की कमी साफ तौर पर दिखती है, लेकिन केवल अधिकारियों को दोष देना उचित नहीं है। गंदगी के लिए स्थानीय निवासी भी उतने ही जिम्मेदार हैं।’
बात अपनी-अपनी
हमने वर्ष 2013 से 2018 तक शहर में पूरा ध्यान सफाई व्यवस्था पर लगाया। दो करोड़ में अंडरग्राउंड डस्टबिन लगाए गए। पहले कचरा कूड़ा बाहर पड़ा रहता था लेकिन अंडरग्राउंड डस्टबिन के बाद इस पर अंकुश लगाया जा सका। शहर में सफाई व्यवस्था को बनाए रखने के लिए मोबाइल डस्टबिन गाड़ियां लगाई हुई हैं। ये गाडियां रानीधारा, ढूंगाखोला, पांडेखोला तोगा, खोलटा बाजार, बेस अस्पताल आदि स्थानों तक चल रही है। यह गाड़ियां डोर-टू-डोर कूड़े-कचरे को उठाकर शहर से बाहर डालती है। हमारी सफाई व्यवस्था को सुचारू करने के लिए 180 कर्मचारी हैं। इस कार्यकाल में हमने शहर के लिए 21 करोड़ का डैनेज सिस्टम लगवाने का प्रस्ताव सरकार के पास रखा है जिसे सरकार ने मंजूर कर लिया है। फिलहाल इस डैनेज सिस्टम को चालू करने का जिम्मा सिंचाई विभाग के ऊपर है। शहर में हर दिन करीब 10 टन कचरा निकलता है। घर-घर जाकर कचरा एकत्र करने की सुविधा है और एक ठोस अपशिष्ट उपचार संयंत्र भी है, लेकिन इन सुविधाओं के बावजूद कचरा प्रबंधन ठीक से नहीं हो पा रहा है क्योंकि शहर का विस्तार अनियमित तरीके से हो रहा है और इसे साफ रखने के लिए उन्हें नागरिकों के सहयोग की आवश्यकता है। हमने शहर के बाहर चिड़ियाघर के पास एक ठोस अपशिष्ट उपचार संयंत्र बनाया है। यह सूखे और गीले कचरे को अलग करता है। सूखे कचरे को संपीड़ित करके पुनः उपयोग किया जाता है। जबकि गीले कचरे को खाद में रिसाइकिल किया जाता है। हमने संयंत्र से रिसाइकिल किए गए उत्पादों को बेचकर नगर पालिका की आय में बढ़ोतरी की है। नगर पालिका के अधिकारियों ने शहर के कचरा प्रबंधन में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास किया है, फिर भी हमारे पास बुनियादी ढांचे का अभाव है। हमने अपशिष्ट प्रसंस्करण संयंत्र के लिए 5 हेक्टेयर भूमि की मांग की थी, लेकिन हमें केवल 0.9 हेक्टेयर भूमि ही मिली।
प्रकाश चंद्र जोशी, निवर्तमान अध्यक्ष, नगर पालिका अल्मोड़ा
नगर पालिका के बहुत से कर्मचारी शहर की सफाई में लगे रहते हैं। ये कर्मचारी प्रतिदिन शहर के कूड़े को उठाते हैं और शहर से बाहर डंपिंग ग्राउंड पर डालकर आते हैं। अगर कहीं पर कोई कूड़ा-कचरा दिखाई देता है तो उसकी फोटो खींचकर कोई भी हमें भेज सकता है। हम इसकी जांच कराएंगे। शहर की गंदगी के लिए जिम्मेदार अधिकारी हो या कर्मचारी उनके खिलाफ कार्रवाई होगी।
विनीत तोमर, जिलाधिकारी, अल्मोड़ा
शहर की सफाई-व्यवस्था बेहतर बनाने के लिए पालिका के कर्मचारी गम्भीरता से काम कर रहे हैं। शहर की सफाई नियमित की जा रही है। अगर सफाई मामले में कहीं कोई चूक हो रही है तो मैं स्वयं निरीक्षण करूंगा।
भरत त्रिपाठी, ईओ, नगर पालिका, अल्मोड़ा
शहर की सफाई जब तक सही थी तब तक कि पालिका अध्यक्ष खुद देखरेख कर रहे थे लेकिन पिछले कई महीनों से पालिका का प्रशासक प्रशासन है। जिलाधिकारी के ही देखरेख में सब काम हो रहे हैं। ऐसे में अगर शहर की सफाई नहीं हो रही है तो इसका जिम्मेदार पालिका के साथ ही प्रशासन भी है।
त्रिलोचन जोशी, पूर्व उपाध्यक्ष, बीस सूत्रीय कार्यक्रम एवं क्रियान्वयन समिति