Uttarakhand

बैजनाथ मंदिर जहां गूंजती है दिव्यता की प्रतिध्वनि

बैजनाथ मंदिर न केवल उत्तराखण्ड की धार्मिक पहचान है, बल्कि यह एक प्रमुख पर्यटन स्थल भी है। देश-विदेश से लोग यहां दर्शन और अनुभव के लिए आते हैं। इसकी वास्तुकला, पौराणिकता और आध्यात्मिक ऊर्जा लोगों को खींच लाती है। बैजनाथ मंदिर का निर्माण 12वीं-13वीं शताब्दी में कत्यूरी राजाओं द्वारा करवाया गया था। कत्यूरी वंश उस समय उत्तराखण्ड के सबसे शक्तिशाली और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध राजवंशों में से एक था। यह क्षेत्र उनकी राजधानी भी रहा और उन्होंने यहां एक ऐसा मंदिर समूह बनवाया जो आज भी स्थापत्य और आस्था का उत्कृष्ट उदाहरण है। जब मैं मंदिर परिसर में घंटों बैठी रही तो ऐसा लगा जैसे समय थम गया हो। कोई बाहरी शोर नहीं, केवल भीतर की आवाजें, ईश्वर, प्रकृति और आत्मा का वह सूक्ष्म संगम जिसे केवल महसूस किया जा सकता है। बैजनाथ मंदिर सिर्फ ईंट-पत्थरों की रचना नहीं, यह एक अनुभूति, एक ध्वनि, एक श्रद्धा है, जिसे मैंने अपने पूरे मन से जिया। ‘यदि आप कभी आत्मा की शांति और इतिहास की गहराई को एक साथ महसूस करना चाहें तो बैजनाथ जरूर आइए। यहां नजरें नहीं, आत्मा दर्शन करती है।’ कुल मिलाकर बैजनाथ न केवल एक ऐतिहासिक तीर्थ है, बल्कि यह देवभूमि की आत्मा को स्पर्श करने वाला स्थल भी है। यहां की शांति, मंदिरों की सघनता और गोमती नदी के तट पर बसी यह धार्मिक नगरी एक अलग ही आध्यात्मिक ऊर्जा से युक्त लगती है

उत्तराखण्ड के बागेश्वर जनपद के गरुड़ ब्लाॅक में स्थित बैजनाथ मंदिर न केवल एक प्राचीन धार्मिक स्थल है, बल्कि यह एक ऐसी दिव्य अनुभूति का केंद्र भी है, जिसे शब्दों में पिरोना कठिन है। जब मैं पहली बार इस मंदिर परिसर में पहुंची तो वहां की शांति, प्रकृति और पुरातनता ने मुझे ऐसा बांधा कि लगा जैसे आत्मा का कोई खोया हुआ टुकड़ा मुझे वापस मिल गया हो।

 
इतिहास की गहराइयों से, बैजनाथ मंदिर का गौरवशाली अतीत
 
बैजनाथ मंदिर का निर्माण 12वीं-13वीं शताब्दी में कत्यूरी राजाओं द्वारा करवाया गया था। कत्यूरी वंश उस समय उत्तराखण्ड के सबसेशक्तिशाली और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध राजवंशों में से एक था। यह क्षेत्र उनकी राजधानी भी रहा और उन्होंने यहां एक ऐसा मंदिर समूह बनवाया जो आज भी स्थापत्य और आस्था का उत्कृष्ट उदाहरण है।
 
वास्तुकला और मंदिर का समूह
 
यह मंदिर नागर शैली की वास्तुकला में निर्मित है, जो उस युग की शिल्प कला का एक शानदार उदाहरण है। मंदिर केवल एक मुख्य मंदिर नहीं, बल्कि 18 छोटे-बड़े मंदिरों का एक सम्पूर्ण समूह है। हर मंदिर एक अलग देवी या देवता को समर्पित है और सभी में स्थापित मूर्तियां गहरी धार्मिक अनुभूति और शिल्प कौशल का समावेश करती हैं।
 
शिव-पार्वती की विशेष उपस्थिति

मुख्य मंदिर में भगवान बैजनाथ (शिव) और मां पार्वती की अष्टधातु से निर्मित दिव्य प्रतिमाएं स्थापित हैं। यह मंदिर उन विरले स्थानों में से एक है जहां शिव और पार्वती की मूर्तियां एक साथ विराजमान हैं। श्रद्धालु मानते हैं कि यही वह स्थान है जहां भगवान शिव और मां पार्वती का पाणिग्रहण (विवाह) सम्पन्न हुआ था।
 
गोमती नदी और प्रकृति का संगम

मंदिर परिसर के पास गोमती नदी कल-कल करती बहती है जो इस स्थल की पवित्रता को और भी बढ़ा देती है। मंदिर की स्थिति समुद्र तल से लगभग 1,125 मीटर की ऊंचाई पर है, जहां पहुंचते ही पर्वतीय शीतल हवाएं तन और मन दोनों को शुद्ध करती हैं। मंदिर के चारों ओर फैली हरियाली, पहाड़ी फूलों की सुगंध और नदी की लहरों की मधुर ध्वनि एक गूंज-सी रचती है- जैसे प्रकृति स्वयं आराधना कर रही हो।
 
अनोखा टेढ़ा मंदिर, एक रहस्य

इस मंदिर समूह में एक विशेष आकर्षण है, एक टेढ़ा मंदिर जो प्राकृतिक आपदा या भूगर्भीय हलचल के कारण थोड़ा झुक गया है। किंतु आज भी वह मंदिर अडिग खड़ा है। यह केवल एक स्थापत्य चमत्कार नहीं, बल्कि यह आस्था की स्थिरता और श्रद्धा की अडिगता का प्रतीक है।
 
चमत्कार और लोकविश्वास

स्थानीय निवासियों और मंदिर के पुजारियों का मानना है कि यहां साक्षात भोलेनाथ दर्शन देते हैं। कई भक्तों ने यहां आकर चमत्कारों का अनुभव किया है, जिनका उल्लेख कई यू-ट्यूब वीडियो और लोककथाओं में भी मिलता है। न्याय की देवी के समान, यहां सच्चे मन से की गई प्रार्थनाएं कभी व्यर्थ नहीं जातीं।
 
सांस्कृतिक उत्सव और मेलों का केंद्र

हर वर्ष नवरात्रों के पश्चात विजयादशमी के दिन यहां एक विशाल मेला लगता है, जिसमें दूर-दराज से श्रद्धालु आते हैं। लोक कलाकार, पूजा-पाठ, भंडारे और धार्मिक अनुष्ठान, यह सब मंदिर को केवल एक तीर्थ नहीं, बल्कि जीवंत सांस्कृतिक केंद्र बना देते हैं।
 
पर्यटन और धार्मिक महत्व
 
बैजनाथ मंदिर न केवल उत्तराखण्ड की धार्मिक पहचान है, बल्कि यह एक प्रमुख पर्यटन स्थल भी है। देश-विदेश से लोग यहां दर्शन और अनुभव के लिए आते हैं। इसकी वास्तुकला, पौराणिकता और आध्यात्मिक ऊर्जा लोगों को खींच लाती है।
 
अनुभव की कलम से

जब मैं मंदिर परिसर में घंटों बैठी रही तो ऐसा लगा जैसे समय थम गया हो। कोई बाहरी शोर नहीं, केवल भीतर की आवाजें, ईश्वर, प्रकृति और आत्मा का वह सूक्ष्म संगम जिसे केवल महसूस किया जा सकता है। बैजनाथ मंदिर सिर्फ ईंट-पत्थरों की रचना नहीं, यह एक अनुभूति, एक ध्वनि, एक श्रद्धा है, जिसे मैंने अपने पूरे मन से जिया।

‘यदि आप कभी आत्मा की शांति और इतिहास की गहराई को एक साथ महसूस करना चाहें तो बैजनाथ जरूर आइए। यहां नजरें नहीं, आत्मा दर्शन करती है।’

कुल मिलाकर बैजनाथ न केवल एक ऐतिहासिक तीर्थ है, बल्कि यह देवभूमि की आत्मा को स्पर्श करने वाला स्थल भी है। यहां की शांति, मंदिरों की सघनता और गोमती नदी के तट पर बसी यह धार्मिक नगरी एक अलग ही आध्यात्मिक ऊर्जा से युक्त लगती है।

कत्यूरी राजवंश द्वारा 12वीं-13वीं शताब्दी में निर्मित यह मंदिर समूह नागर शैली की वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। पत्थरों की बारीक नक्काशी, सुगठित शिखर और दीवारों पर उत्कीर्ण प्रतिमाएं उस युग की शिल्प प्रतिभा का प्रमाण हैं। यह मंदिर समूह मुख्यतः भगवान शिव को समर्पित है, जिन्हें यहां बैजनाथ के रूप में पूजा जाता है।

मुख्य मंदिर में स्थापित भगवान शिव और देवी पार्वती की प्रतिमाएं पत्थर से निर्मित हैं और इनमें से अधिकांश की शिल्प शैली कत्यूरीकालीन है। यह तथ्य भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा भी प्रमाणित है। यहां की मूर्तियों की एक विशेषता उनका सौम्य भाव, मुद्राओं की सुंदरता और धार्मिक प्रतीकात्मकता है जो तत्कालीन स्थापत्य और मूर्तिकला की पराकाष्ठा को दर्शाती हैं।

मंदिर के सामने से बहती गोमती नदी जो इस क्षेत्र की एक स्थानीय हिमालयी नदी है, इस स्थल की पवित्रता और सुंदरता को और बढ़ा देती है। यह गोमती नदी उत्तराखण्ड की एक छोटी लेकिन सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण नदी है, जो आगे चलकर बागेश्वर में सरयू नदी से संगम करती है। मंदिर परिसर की सीढ़ियां सीधे नदी के घाट तक जाती हैं, जहां श्रद्धालु जल आचमन और ध्यान करते हैं।

बैजनाथ मंदिर के चारों ओर का वातावरण, हरे-भरे वृक्ष, शांत पर्वतीय हवाएं, पक्षियों की चहचहाहट, एक ऐसा अनुभव प्रदान करती हैं जो केवल किसी तपोभूमि में ही सम्भव है। सुबह और संध्या की आरती के समय जब मंदिर परिसर में घंटियां बजती हैं, तब वहां उपस्थित हर व्यक्ति एक गूढ़ दिव्यता को अनुभव करता है- जैसे ईश्वर स्वयं इस ध्वनि में प्रकट हो गए हों।

यह मंदिर केवल पूजा का स्थान नहीं, बल्कि एक जीवंत सांस्कृतिक केंद्र भी है। यहां साल भर धार्मिक उत्सव, स्थानीय मेले और भजन-कीर्तन होते रहते हैं जो इसे जनमानस से जोड़ते हैं। स्थानीय लोग इसे मात्र मंदिर नहीं, बल्कि अपने जीवन का हिस्सा मानते हैं।

बैजनाथ में आकर केवल दर्शन नहीं होते यहां मन थमता है, विचार शांत होते हैं और आत्मा भीतर झांकती है। यह मंदिर केवल शिल्प या इतिहास नहीं, बल्कि जीवंत आस्था का वह केंद्र है जहां हर बार आने पर कुछ नया अनुभव होता है, एक मौन संवाद ईश्वर से, प्रकृति से और स्वयं से।
 
क्रमशः (लेखिका पत्रकार हैं, उत्तराखण्ड के मंदिरों पर विशेष रूप से लिखती हैं तथा इन धार्मिक स्थलों की बाबत यू-ट्यूब के जरिए अपनी बात सामने रखती हैं।)

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