Uttarakhand

भारत-नेपाल साहित्य सम्मेलनप्रगतिशील चेतना का संवाहक है साहित्य

भारत-नेपाल साहित्य सम्मेलन

तीसरा भारत-नेपाल अंतरराष्ट्रीय साहित्य सम्मेलन एवं काव्य गोष्ठी का आयोजन नगर निगम सभागार पिथौरागढ़ में पिछले महीने 12 अक्टूबर को आयोजित हुआ। इसमें भारत व नेपाल के दो दर्जन से अधिक साहित्यकारों व कवियों ने भाग लिया। सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य दोनों देशों के साहित्यकारों को साझा मंच प्रदान करना रहा, ताकि दोनों देशों के रोटी-बेटी के सम्बंधों को मजबूती प्रदान करने के साथ ही सांस्कृतिक व साहित्यक आदान-प्रदान के जरिए मैत्रीय सम्बंधों को मजबूती दी जा सके।

भारत-नेपाल साहित्यक सम्मेलन के पहले सत्र में ‘साहित्य में जनवाद’ विषय पर चर्चा हुई। जिसमें वक्ताओं ने कहा कि जनवाद या जनवादी साहित्य आमजन का जीवन प्रवाह है। यह आम आदमी के जीवन को अभिव्यक्त करता है। उनमें नव चेतना लाने का काम करता है। जनवाद में जनता का पक्ष, सामाजिक चेतना, विद्रोह एवं संघर्ष, मानवता व समतावाद की बात होनी चाहिए। वक्ताओं ने कहा कि भारत में जनवादी कवि नागार्जुन ने प्रगतिशील चेतना/पूंजीवादी व्यवस्था व सामाजिक विषमताओं का विरोध किया है। कबीरदास ने समानता व समरसता की बात की है। धूमिल ने जनचेतना को जगाया है। अदम गोंडवी वंचितों व गरीबों के हक में लड़े हैं। इसी तरह नेपाल में भी भानुभक्त आचार्य, लक्ष्मी प्रसाद देवकोटा, गुरूप्रसाद नैथानी, लेखनाथ पौडियाल, माधवप्रसाद घिमिटे, मोतीराम भट्ट ने नेपाली साहित्य को सींचने का काम किया तो परिजात ने उसे
लोकप्रियता दिलाई। अब नए साहित्यकार अपने अभियान में जुटे हैं। जिस तरह से नेपाल में साहित्य को लेकर काम हो रहा है वह सुकून देता है।
सम्मेलन में वक्ताओं ने कहा कि दोनों देशों के साहित्यकार उन मुद्दों पर समान रूप से पैरवी कर सकते हैं जो दोनों देशों की जनता को समान रूप से प्रभावित करती है। जैसे नशा, जेंडर, भू्रण हत्या, जलवायु परिवर्तन, डिजिटल लत आदि। आज जो मुद्दे हाशिए पर चल गए हैं, उन्हें उठाना होगा। उनकी पैरवी करनी होगी। लेखकों, साहित्यकारों को एक शक्तिशाली आवाज के रूप में सामने आना होगा। लेखकों को मानवीय संवेदनाओं के साथ ही सरोकारों को भी प्राथमिकता देनी होगी। एक बार फिर कविताओं, कहानियों को जनवादी बनाना होगा। इनके माध्यम से प्रभावशाली हस्तक्षेप करना होगा। अगर बुद्धिजीवी, साहित्यकार, विचारक, इतिहासकार, पत्रकार चुप्पी साधता है तो समझो सब कुछ खतरे में है। सम्मेलन में भारत व नेपाल के साहित्यक सम्बंधों पर भी सार्थक चर्चा हुई। जिसमें वक्ताओं ने कहा कि भारत व नेपाल एक सभ्यता व संस्कृति के निकटस्थ पड़ोसी देश रहे हैं। उनके बीच प्राचीन ऐतिहासिक, परम्परागत, सामाजिक-सांस्कृतिक एवं आर्थिक सम्बंध रहे हैं। आवागमन के लिए खुली सीमाएं हैं। जन-जन के बीच वैवाहिक व गहरे सांस्कृतिक सम्बंध हैं। यहां सांझी संस्कृति, इतिहास, साहित्य व भाषा है। भारत के पांच प्रान्त व नेपाल के 4 प्रदेशांे की सीमाएं इससे आपस में जुड़ी हैं। 185 किलोमीटर की खुली सीमा है। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि समय-समय पर ऐसे कार्यक्रम आयोजित हों जो दोनों देशों के मैत्रीय सम्बंधों को मजबूत आधार प्रदान करें।
इस दौरान नेपाल से सुदूर पश्चिम प्रज्ञा प्रतिष्ठान के उपकुलपति डाॅ. टी.एन.जोशी, डाॅ. गोविन्द आचार्य, कल्पना खरेटा, लोकप्रिय देवड़ा गायक मंजू गिरी, गजल लेखिका गंगा विष्ट, डाॅ. जनार्दन आचार्य, रमेश जोशी, तीर्थराज पाण्डेय, तिलक सिंह पेला, किरण आचार्य, कृष्ण सिंह पेला, गणेश नेपाली, कल्पना खरेल, हेमंत विवश उपस्थित रहे। इस दौरान पुरुष साहित्यकारों को ज्योतिषाचार्य, जयदेव अवस्थी व महिला साहित्यकारों को हरूली आमा स्मृति सम्मान प्रदान किया गया। उल्लेखनीय है कि सोरघाटी पिथौरागढ़ में होने वाला यह दूसरा आयोजन था। ज्ञान प्रकाश संस्कृत पुस्तकालय समिति पिथौरागढ़ में इस सम्मेलन की आधारशिला रखी थी। इसके बाद दूसरा सम्मेलन नेपाल में आयोजित हुआ। तीसरा सम्मेलन फिर से पिथौरागढ़ में आयोजित किया गया। दो दिवसीय इस कार्यक्रम में दोनों देशों के भाषिक, सांस्कृतिक, धार्मिक व ऐतिहासिक विषयों पर खुलकर चर्चा हुई। दोनों देशों के कवियों ने विभिन्न संदर्भों पर सुंदर काव्य पाठ किया।

बात अपनी-अपनी

भारत-नेपाल साहित्य सम्मेलन से दोनों देशों के सांस्कृतिक व साहित्यक सम्बंध प्रगाढ़ होंगे। भारत-नेपाल के बीच सदियों से रोटी-बेटी का जो अटूट सम्बंध रहा है, उसे मजबूती मिलेगी। यह सम्मेलन न सिर्फ सांस्कृतिक और
साहित्यिक जुड़ाव को गहराई देगा, बल्कि दोनों देशों के बीच भावनात्मक सेतु को भी मजबूत करेगा।
कल्पना देवलाल, मेयर, नगर निगम, पिथौरागढ़

यह सम्मेलन एक मैत्रीय समागम था। हमारी सांझी साहित्यक सम्पदा रही है। दोनों तरफ विपुल मात्रा में साहित्य का सृजन हो रहा है। दोनों देशों में हो रहे साहित्य सृजन के आदान-प्रदान के साथ ही दोनों देशों के मैत्रीय सम्बंधों को मजबूती प्रदान करना हमारा उद्देश्य है। मेरा मानना है कि लेखन हमेशा उद्देश्यपूर्ण होना चाहिए। लेखन ऐसा होना चाहिए जो समुदाय को प्रगतिशील बनाए, उसे एक नई दृष्टि देने में कामयाब हो।
डाॅ. पीताम्बर अवस्थी, साहित्यकार एवं कार्यक्रम संयोजक

यह भारत-नेपाल की साझा सांस्कृतिक एकता और साहित्यक सौहार्द का उज्जवल प्रतीक रहा। यह एक ऐतिहासिक आयोजन था। इसमें दोनों देशों के प्रतिनिधियों ने अपने विचारों के जरिए इसे भावनात्मक ऊंचाई प्रदान की। यह सम्मेलन एक साहित्यक कार्यक्रम ही नहीं, बल्कि दो राष्ट्रों के बीच आत्मीयता और संस्कृति का सेतु बना। इस सम्मेलन में शब्द और भावना ने एकाकार होकर भारत-नेपाल की साझा सांस्कृतिक चेतना को प्रज्वलित किया।
डाॅ. देवेन्द्र प्रसाद भट्ट, वरिष्ठ साहित्यकार, नेपाल

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