पिचहत्तर बरस का भारत/भाग-76
शेख मुजीबुर और जुल्फीकार अली भुट्टो के मध्य समझौता न होते देख राष्ट्रपति जनरल याहया खान ने नई संसद का सत्र न बुलाने का फैसला ले लिया जिसके विरोध में अवामी लीग ने आम हड़ताल की घोषणा कर दी। पूरे पूर्वी पाकिस्तान में इस हड़ताल चलते जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया। जनरल याहया खान ने पाकिस्तानी सेना को मैदान में उतार दिया जिससे हालात ज्यादा बिगड़ गए। शेख मुजीबुर रहमान ने अब आर-पार की लड़ाई का आह्नान कर डाला। 25 मार्च, 1971 के दिन पाक सेना इस आंदोलन का केंद्र बन चुके ढाका विश्वविद्यालय परिसर में घुस गई। ढाका पुलिस और वहां तैनात अर्ध सैनिक बल भी इस बीच मुजीब के पक्ष में जा चुके थे। पाक सेना ने विश्वविद्यालय के साथ-साथ ढाका पुलिस मुख्यालय को भी अपने कब्जे में ले लिया। 26 मार्च को शेख मुजीबुर ने इस सैन्य कार्रवाई का विरोध करते हुए पूर्वी पाकिस्तान को स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया। मुजीबुर इसके बाद गिरफ्तार कर लिए गए। जनरल याहया खान ने उन्हें गद्दार घोषित करते हुए नेशनल अवामी लीग पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दे माहौल को और ज्यादा गर्मा दिया। पाकिस्तानी सेना की कार्रवाई से घबराए बंगाली हिंदुओं और मुसलमानों ने भारत में शरण लेनी शुरू कर दी। सरकारी आंकड़ों के हिसाब से अगस्त, 1971 तक अस्सी लाख शरणार्थी भारत आ चुके थे। भारत अब खुले तौर पर शेख मुजीबुर रहमान के आंदोलन को समर्थन देने लगा। भारतीय खुफिया एजेंसी ‘रॉ’ (रिसर्च एंड एनालिसिस विंग) इस दौरान पूर्वी पाकिस्तान में अपना खुफिया तंत्र खासा मजबूत कर चुका था। स्थानीय बंगालियों और शेख मुजीबुर समर्थक सशस्त्र लड़ाकू दल ‘मुक्ति वाहिनी’ को रॉ ने प्रशिक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका इस दौरान अदा की। रॉ के निदेशक रामनाथ राव को आज भी बांग्लादेश में बेहद सम्मान के साथ याद किया जाता है।
पाकिस्तान सरकार ने भारत पर उसके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने और पूर्वी पाकिस्तान में ‘देशद्रोही’ तत्वों को समर्थन देने की बात अंतरराष्ट्रीय पटल पर रखनी शुरू कर दी। चीन ने इसे भारत के खिलाफ एक सुनहरा अवसर मानते हुए पाकिस्तान को भरोसा दिलाया कि जरूरत पड़ने पर चीन उसकी मदद के लिए तैयार है। पाकिस्तानी राष्ट्रपति जनरल याहया खान को चीन के प्रधानमंत्री याओ उन लाई ने अप्रैल, 1971 में एक पत्र लिख यह आश्वासन दिया। चीनी प्रधानमंत्री ने अपने इस पत्र में लिखा कि ‘यदि भारत अपनी साम्राज्यवादी विस्तार नीति तहत पाकिस्तान पर हमला करने की जुर्रत करता है तो चीन की सरकार और चीन की जनता, हमेशा की तरह पाकिस्तान के साथ खड़े रहेंगे और पाकिस्तान को उसकी अखंडता और स्वतंत्रता बनाए रखने में समर्थन देंगे। अमेरिकी सरकार भी अब इस मुद्दे पर सक्रिय हो चली थी। जुलाई, 1971 में अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हेनरी किसिंजर भारतीय नेताओं संग बातचीत करने दिल्ली आ पहुंचे। उन्होंने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को स्पष्ट तौर पर कहा कि यदि भारत और पाकिस्तान के मध्य फिर से युद्ध होता है तो अमेरिका भारत की मदद नहीं करेगा। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रिचंड निक्सन का सुझाव पूरी तरह से पाकिस्तान की तरफ था। निक्सन का मानना था कि पाकिस्तानी स्पष्टवादी हैं जबकि भारतीय बेहद चालाक, इतने की अमेरिकी भी उनकी चालबाजी का शिकार हो जाते हैं। निक्सन किसी भी सूरत में बंगाली शरणार्थियों की आड़ में भारत को पाकिस्तान का बंटवारा करने से रोकने का मन बना चुके थे।
इंदिरा लेकिन अमेरिकियों की सोच से कहीं ज्यादा ‘चालाक’ निकलीं। पाकिस्तान के पक्ष में अमेरिका को जाते देख उन्होंने तुरंत ही सोवियत संघ संग एक ऐसा करार कर डाला जिसमें एशिया के इस भू-भाग में सारे राजनीतिक समीकरण एक झटके में बदल गए। अगस्त, 1971 में भारत और सोवियत संघ के मध्य एक ऐतिहासिक संधि पत्र जिसे ‘भारत-सोवियत शांति, मैत्री और सहयोग ‘संधि कहा गया, पर हस्ताक्षर कर सभी को चौंका दिया। यह भारत की घोषित गुटनिरपेक्ष नीति से हटकर की गई संधि थी जिसके अनुच्छेद VIII बेहद महत्वपूर्ण और पाकिस्तान के पक्ष में खड़े चीन और अमेरिका के लिए स्पष्ट संदेश देने वाले थे। इन अनुच्छेदों में कहा गया-अनुच्छेद आठ (Article VIII): In accordance with the traditional friendship established between the two countries each of the High Contracting Parties solomnly declares that it shall not enter into or participate in any military alliance directed against the other party. Each High Contracting Party undertakes to abstain from any aggression against the other Party and to prevent the use of its territory for the Commission of any act which mignt inflict military damage to the other High Contracting Party (दोनों राष्ट्र अपनी परम्परागत मित्रता के आधार पर यह घोषित करते हैं कि दोनों ही किसी एक के खिलाफ बनने वाले किसी सैन्य गठबंधन का हिस्सा नहीं बनेंगे। दोनों ही यह भी घोषणा करते हैं कि किसी एक के खिलाफ होने वाले अतिक्रमण का वह हिस्सा नहीं बनेंगे एवं अपनी धरती का इस्तेमाल किसी को भी ऐसे
कार्य के लिए नहीं करने देंगे जिससे किसी भी उच्च अनुबंधित पक्ष को सैन्य नुकसान उठाना पड़े।
अनुच्छेद नौ (Article IX) : Each High Contracting Party undertakes to abstain from providing any assistance to any third party that engages in arrned conflict with the other party. In the event of either party being subjected to an attack or a threat there of, the High Contracting Parties shall immediately enter in to mutual consultations in order to remove such threat and to take appropriate essertive measure to ensure peace and the security of their countries. (प्रत्येक उच्च अनुबंधित पक्ष ऐसे किसी तीसरे पक्ष को कोई भी सहायता न देने के लिए वचनबद्ध जो दूसरे पक्ष के साथ सशस्त्र संघर्ष में लिप्त हो। ऐसी किसी भी अवस्था में जब किसी भी पक्ष के खिलाफ कोई हमला करता है अथवा ऐसा करने की साजिश करता है तो दोनों उच्च अनुबंध वाले पक्ष तत्काल ही आपस में वार्ता कर इस प्रकार के खतरे को दूर करने का प्रयास करेंगे। साथ ही तत्काल ऐसे कदम उठाना सुनिश्चित करेंगे जिससे की अपने देशों में शांति और सुरक्षा स्थापित कर सकें)।
इस ‘शांति और मैत्री संधि’ के जरिए इंदिरा गांधी ने अमेरिका और चीन को सीधे सोवियत संघ के सामने ला खड़ा किया।’ पाकिस्तान सैन्य शासन जनरल याहया खान ने जेल में कैद शेख मुजीबुर रहमान पर सैन्य अदालत में मुकदमा चलाए जाने और अदालती कार्यवाही को गोपनीय रखने के आदेश दे तनाव को ज्यादा गहरा दिया था। इंदिरा गांधी ने शेख मुजीबुर की तत्काल रिहाई और पाकिस्तान को ऐसा कोई भी कदम उठाने से रोकने की अपील अंतरराष्ट्रीय समुदाय से करने में देरी नहीं लगाई। उन्होंने विभिन्न देशों के राष्ट्राध्यक्षों को भेजे अपने पत्र में आशंका जताई कि शेख मुजीबुर पर सैन्य अदालत में गुप्त तरीके से मुकदमा चलाने के पीछे याहया खान का इरादा उन्हें फांसी पर चढ़ाने का है जिसका बेहद प्रतिकूल प्रभाव न केवल पाकिस्तान पर बल्कि भारत में भी पड़ने की बात इंदिरा ने कही। इस पत्र के तुरंत बाद वे पाकिस्तान द्वारा बंगाली समुदाय पर किए जा रहे दमन को मुद्दा बनाने की नीयत से विश्व दौरे पर निकल गईं। सितंबर, 1971 में सबसे पहले उन्होंने सोवियत संघ को साधा। मास्को में उन्होंने कहा ‘What has happened in Bangladesh can no longer be regarded as Pakistan’s domestic affair. More than nine million East Bengalis have come into our country… This is not an India-Pakistan dispute. The problem is international one. But the weignt of it has fallen on India. It is surely the duty of the world not to delay in creating conditions in which these refugees… can return without fear.’ (पाकिस्तान में जो कुछ हुआ है उसे केवल उसके आंतरिक मामला नहीं माना जा सकता। नब्बे लाख से अधिक पूर्वी पाकिस्तान के बंगालियों ने हमारे देश में शरण ले ली है…यह भारत- पाक विवाद नहीं है, बल्कि यह एक अंतरराष्ट्रीय समस्या है जिसका भार भारत के ऊपर
आन पड़ा है। निश्चित ही यह समूचे विश्व की जिम्मेवारी है कि वह ऐसा माहौल तैयार करे जिससे की ये शरणार्थी… बगैर डर वापस जा सकें)। अक्टूबर और नवंबर, 1971 में इंदिरा गांधी और उनके साथ गए प्रतिनिधिमंडल ने यूरोप और अमेरिका का भ्रमण कर सारी परिस्थितियों को दमदार तरीके से इन देशों के नेताओं समक्ष रखा। बेल्जियम, फ्रांस, ऑस्ट्रिया, पश्चिम जर्मनी, ब्रिटेन ने उनके दृष्टिकोण की सराहना की लेकिन अमेरिका ने भारत के रुख को स्वीकारने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा स्पष्ट संकेत देने का काम किया कि उसका झुकाव और समर्थन पाकिस्तान के साथ है। अमेरिकी राष्ट्रपति निजी तौर पर भी भारतीयों के प्रति गहरी वितृष्णा का भाव रखते थे। इंदिरा गांधी संग उनकी मुलाकात 4 और 5 नवंबर को अमेरिकी राष्ट्रपति भवन ‘व्हाइट हाऊस’ में बेहद सर्द माहौल में हुई। 4 नवंबर के दिन बंगाली समस्या पर इंदिरा गांधी से पूरी तरह असहमति दर्ज कराते हुए राष्ट्रपति निक्सन ने याहया खान के पक्ष की बातें ही कहीं। उनकी बात को काटते हुए भारतीय प्रधानमंत्री ने स्पष्ट कह डाला कि यदि शेख मुजीबुर रहमान को रिहा कर याहया खान उनके साथ बातचीत की शुरुआत नहीं करते हैं तो हालात काबू से बाहर हो जाएंगे और भारत को मजबूर हो हस्तक्षेप करना पड़ेगा। इस मुलाकात की बाबत अमेरिका के तत्कालीन सुरक्षा सलाहकार हेनरी किसिंजर ने बाद में कहा था कि ‘यह बहरों के मध्य बातचीत’ सरीखा था। 5 नवंबर को दोबारा जब दोनों राजनेता बैठे तो माहौल खासा तल्ख था। इंदिरा ने निक्सन के समक्ष बंगाली शरणार्थियों का मुद्दा उठाया ही नहीं। वे इस बात से काफी खिन्न थीं कि इस मीटिंग के लिए निक्सन ने उन्हें पैंतालीस मिनट तक इंतजार करवा दिया था। उसी शाम जब निक्सन भारतीय प्रधानमंत्री से मुलाकात करने अतिथि गृह गए तब अपने सुबह के ‘अपमान’ का बदला इंदिरा गांधी ने अमेरिकी राष्ट्रपति को ठीक पैंतालीस मिनट इंतजार करवा के ले लिया। हेनरी किसिंजर ने अपनी पुस्तक ‘व्हाइट हाऊस इर्यस’ में इंदिरा-निक्सन के संबंधों की बाबत रोचक जानकारी दी है। बकौल किसिंजर राष्ट्रपति निक्सन भारतीयों से, विशेषकर इंदिरा गांधी से खासी नफरत करते थे। 5 नवंबर, 1971 को निक्सन ने अपने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार से कहा ‘Indians are bastards any way they are starting the war’ (भारतीय हर हाल में कमीने हैं। वे युद्ध की शुरुआत कर रहे हैं)। उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री के लिए बेहद घटिया शब्दों का प्रयोग करते हुए उन्हें ‘Witch and a bitch’ (चुडै़ल और कुतिया) तक कह डाला था।’
क्रमशः